परिचय: मिश्रणों का पृथक्करण
मिश्रणों का पृथक्करण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी मिश्रण के घटकों को अलग-अलग किया जाता है। चूंकि मिश्रण में घटक रासायनिक रूप से बंधे नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें आमतौर पर भौतिक विधियों द्वारा अलग किया जा सकता है। पृथक्करण की विधि मिश्रण की प्रकृति और उसके घटकों के भौतिक गुणों (जैसे आकार, घनत्व, क्वथनांक, घुलनशीलता) पर निर्भर करती है।
पृथक्करण की प्रमुख विधियाँ
निस्पंदन (Filtration)
सिद्धांत: यह विधि कणों के आकार में अंतर पर आधारित है।
उपयोग: किसी द्रव में अघुलनशील ठोस कणों को अलग करने के लिए।
उदाहरण: पानी से रेत को अलग करना, चाय से चायपत्ती को अलग करना।
वाष्पीकरण (Evaporation)
सिद्धांत: यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि द्रव वाष्पित हो जाते हैं, जबकि ठोस पीछे रह जाते हैं।
उपयोग: किसी द्रव में घुले हुए ठोस को अलग करने के लिए।
उदाहरण: समुद्री जल से नमक प्राप्त करना।
अपकेंद्रण (Centrifugation)
सिद्धांत: यह विधि घनत्व में अंतर पर आधारित है। मिश्रण को तेजी से घुमाने पर, भारी कण नीचे बैठ जाते हैं और हल्के कण ऊपर रह जाते हैं।
उपयोग: किसी द्रव में निलंबित बहुत छोटे कणों को अलग करने के लिए।
उदाहरण: दूध से क्रीम (मक्खन) निकालना, रक्त से रक्त कोशिकाओं को अलग करना।
पृथक्करण कीप (Separating Funnel)
सिद्धांत: यह विधि दो अघुलनशील द्रवों के घनत्व में अंतर पर आधारित है।
उपयोग: दो अमिश्रणीय (immiscible) द्रवों के मिश्रण को अलग करने के लिए।
उदाहरण: तेल और पानी के मिश्रण को अलग करना।
ऊर्ध्वपातन (Sublimation)
सिद्धांत: यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि कुछ ठोस पदार्थ गर्म करने पर बिना द्रव अवस्था में आए सीधे गैस में बदल जाते हैं।
उपयोग: एक ऊर्ध्वपातित होने वाले ठोस को एक गैर-ऊर्ध्वपातित ठोस से अलग करने के लिए।
उदाहरण: नमक और अमोनियम क्लोराइड (नौसादर) के मिश्रण को अलग करना, कपूर को अशुद्धियों से अलग करना।
आसवन (Distillation)
सिद्धांत: यह विधि दो घुलनशील द्रवों के क्वथनांक (boiling points) में अंतर पर आधारित है।
उपयोग: ऐसे दो मिश्रणीय द्रवों को अलग करने के लिए जिनके क्वथनांक में पर्याप्त अंतर हो।
उदाहरण: नमक के पानी से शुद्ध पानी प्राप्त करना।
क्रोमैटोग्राफी (Chromatography)
सिद्धांत: यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि एक ही विलायक में घुले विभिन्न घटकों की अधिशोषण (adsorption) क्षमता भिन्न-भिन्न होती है।
उपयोग: किसी मिश्रण में उपस्थित बहुत सूक्ष्म मात्रा वाले घटकों को अलग करने और उनकी पहचान करने के लिए।
उदाहरण: स्याही से रंगों को अलग करना, रक्त से नशीले पदार्थों का पता लगाना।