सूखा (Droughts)
सूखे के प्रकार (Types of Droughts)
सूखा विभिन्न प्रकार का हो सकता है, जो इसके कारण और प्रभाव पर निर्भर करता है:
- मौसम संबंधी सूखा (Meteorological Drought): सामान्य वर्षा से कम वर्षा।
- कृषि सूखा (Agricultural Drought): मिट्टी में नमी की कमी, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
- जलाशय सूखा (Hydrological Drought): नदियों, झीलों और भूजल में जल की कमी।
- सामाजिक-आर्थिक सूखा (Socioeconomic Drought): पानी की कमी के कारण आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ।
सूखे के संकेतक (Indicators of Drought)
सूखे की पहचान के लिए विभिन्न संकेतकों का उपयोग किया जाता है:
- वर्षा का स्तर: सामान्य से कम वर्षा।
- मिट्टी में नमी: खेती के लिए अपर्याप्त नमी।
- जलाशय स्तर: नदियों और झीलों का जलस्तर कम होना।
- वनस्पति स्वास्थ्य: सूखे के कारण पेड़ों और फसलों का सूखना।
सूखे के प्रभाव (Impacts of Drought)
सूखा मानव, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालता है:
- कृषि: फसल उत्पादन में कमी और किसानों की आय पर नकारात्मक प्रभाव।
- पानी की कमी: पीने के पानी और सिंचाई के लिए जल स्रोतों की कमी।
- पर्यावरण: जैव विविधता का ह्रास और वन्यजीवों की मृत्यु।
- स्वास्थ्य: जलजनित बीमारियाँ और कुपोषण।
- आर्थिक: खाद्य कीमतों में वृद्धि और रोजगार की कमी।
सूखा शमन रणनीतियाँ (Drought Mitigation Strategies)
सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:
- वाटरशेड प्रबंधन: जल पुनर्भरण और जलधारण क्षमता को बढ़ाना।
- सूखा प्रतिरोधी फसलें: ऐसी फसलें उगाना जो कम पानी में भी जीवित रह सकें।
- जल संरक्षण: जल संग्रहण और अपव्यय को रोकना।
- वृक्षारोपण: वनों का विकास और मिट्टी की नमी बनाए रखना।
- सामुदायिक भागीदारी: सूखा प्रबंधन में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी।
- जल पुनर्चक्रण: घरेलू और औद्योगिक जल का पुनः उपयोग।