पर्यावरणीय मुद्दे और शैल (Environmental Issues and Rocks)
पर्यावरणीय मुद्दे और शैल
शैल पृथ्वी की संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और प्राकृतिक संसाधनों का आधार हैं। हालांकि, इनका अत्यधिक खनन और उपयोग पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बन सकता है।
खनन के पर्यावरणीय प्रभाव
खनन से प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- मृदा अपरदन: खनन स्थल पर मिट्टी का क्षरण।
- जल प्रदूषण: खनन से निकलने वाले रसायन और अपशिष्ट जल स्रोतों को दूषित करते हैं।
- वायु प्रदूषण: खनन से उत्पन्न धूल और जहरीली गैसें वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
- जैव विविधता पर प्रभाव: खनन के कारण प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं।
- पर्यावरणीय क्षति: बड़े पैमाने पर खनन से भू-आकृतियों का विनाश होता है।
शैलों का संरक्षण और सतत उपयोग
शैलों के सतत उपयोग और संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- पुनर्चक्रण: निर्माण और औद्योगिक शैलों का पुन: उपयोग।
- खनन तकनीकों में सुधार: पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का उपयोग।
- शोध और विकास: वैकल्पिक सामग्री और प्रौद्योगिकियों का विकास।
- संगठनात्मक नियंत्रण: खनन गतिविधियों पर सख्त सरकारी नियंत्रण।
- जन जागरूकता: शैलों के सतत उपयोग के महत्व को समझाना।
परीक्षापयोगी तथ्य
- खनन से निकलने वाले मुख्य प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड और भारी धातु हैं।
- जल प्रदूषण को रोकने के लिए खनन के बाद खदानों को फिर से भरना जरूरी है।
- रिसाइक्लिंग से 70% तक प्राकृतिक शैलों की खपत कम की जा सकती है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में खनन से भूस्खलन का खतरा बढ़ता है।
- भारत में सबसे अधिक खनिज उत्पादन झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में होता है।