महाद्वीपों का पर्यावरणीय मुद्दे (Environmental Issues of Continents)
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Impact of Climate Change)
महाद्वीपों पर जलवायु परिवर्तन के गहरे प्रभाव देखे जा रहे हैं:
- एशिया: ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि, और अनियमित मानसून।
- अफ्रीका: सूखा, मरुस्थलीकरण, और खाद्य सुरक्षा पर संकट।
- यूरोप: गर्मियों में उच्च तापमान, बाढ़, और जैव विविधता पर प्रभाव।
- उत्तरी अमेरिका: तूफान की तीव्रता में वृद्धि, जंगल की आग, और कृषि पर नकारात्मक प्रभाव।
- दक्षिण अमेरिका: वर्षावनों का कटाव, ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन।
- ऑस्ट्रेलिया: प्रवाल भित्तियों का नष्ट होना और भीषण गर्मी।
- अंटार्कटिका: बर्फ की चादरों का तेजी से पिघलना और वैश्विक समुद्र स्तर में योगदान।
जैव विविधता संरक्षण (Biodiversity Conservation)
प्रत्येक महाद्वीप जैव विविधता से समृद्ध है, लेकिन यह संरक्षण की मांग करता है:
- एशिया: बंगाल टाइगर, विशाल पांडा, और एशियाई हाथी जैसे प्रजातियों का संरक्षण।
- अफ्रीका: सफारी पारिस्थितिकी तंत्र, गोरिल्ला और शेरों का संरक्षण।
- यूरोप: आल्प्स और बाल्कन क्षेत्रों में जैव विविधता का संरक्षण।
- उत्तरी अमेरिका: ग्रिजली भालू, बाइसन, और प्रवासी पक्षियों के संरक्षण प्रयास।
- दक्षिण अमेरिका: अमेज़न वर्षावन में वनस्पति और जीव-जंतु का संरक्षण।
- ऑस्ट्रेलिया: कोआला, कंगारू, और प्रवाल भित्तियों का संरक्षण।
- अंटार्कटिका: पेंगुइन, सील, और समुद्री जीवन का संरक्षण।
परीक्षापयोगी तथ्य
- ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अंटार्कटिका में बर्फ की चादरें प्रति वर्ष 250 गीगाटन पिघल रही हैं।
- अमेज़न वर्षावन पृथ्वी के 20% ऑक्सीजन का उत्पादन करता है।
- ग्रेट बैरियर रीफ, ऑस्ट्रेलिया, प्रवाल भित्तियों में सबसे बड़ा है और यह जलवायु परिवर्तन से गंभीर खतरे में है।
- अफ्रीका में सहारा मरुस्थल हर साल 6 किमी उत्तर की ओर बढ़ रहा है।
- यूरोप के आल्प्स में ग्लेशियर 2100 तक लगभग पूरी तरह पिघल सकते हैं।