छंद (Chhand) – व्यापक नोट्स
परिभाषा
छंद काव्य रचना का वह आधार है जो मात्रा, वर्ण, गति, यति और तुक के नियमों से बंधी होती है। यह कविता को एक निश्चित लय, ताल और संगीतात्मकता प्रदान करता है, जिससे वह पढ़ने और सुनने में अधिक आकर्षक लगती है।
छंद के अंग
छंद को समझने के लिए उसके विभिन्न अंगों को समझना आवश्यक है:
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वर्ण (Syllable): अक्षर। ये दो प्रकार के होते हैं:
- लघु (ह्रस्व) वर्ण: अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु आदि। इनके लिए ‘।’ (एक मात्रा) का प्रयोग होता है।
- गुरु (दीर्घ) वर्ण: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, का, की, कू आदि। इनके लिए ‘ऽ’ (दो मात्राएँ) का प्रयोग होता है।
- मात्रा (Mora): वर्ण के उच्चारण में लगने वाला समय। लघु वर्ण की एक मात्रा और गुरु वर्ण की दो मात्राएँ होती हैं।
- चरण/पद (Line/Foot): छंद की प्रत्येक पंक्ति को चरण या पद कहते हैं। सामान्यतः एक छंद में चार चरण होते हैं।
- यति (Pause): छंद को पढ़ते समय जहाँ ठहराव या विराम लिया जाता है, उसे यति कहते हैं। यह अल्पविराम (,) या पूर्णविराम (।) से दर्शाया जाता है।
- गति (Rhythm): छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।
- तुक (Rhyme): चरण के अंत में वर्णों की आवृत्ति को तुक कहते हैं। यह छंद में संगीतात्मकता लाता है।
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गण (Group of three syllables): तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इनकी संख्या 8 होती है और इन्हें याद रखने के लिए ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
- यगण (यमात) – । ऽ ऽ
- मगण (मातारा) – ऽ ऽ ऽ
- तगण (ताराज) – ऽ ऽ ।
- रगण (राजभा) – ऽ । ऽ
- जगण (जभान) – । ऽ ।
- भगण (भानस) – ऽ । ।
- नगण (नसल) – । । ।
- सगण (सलगा) – । । ऽ
छंद के प्रकार
छंद मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
1. मात्रिक छंद (Quantitative Metre)
जिन छंदों में मात्राओं की गणना का ध्यान रखा जाता है, उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। इनमें वर्णों की संख्या निश्चित नहीं होती, बल्कि मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।
प्रमुख मात्रिक छंद:
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दोहा: यह अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों (दूसरे और चौथे) के अंत में गुरु-लघु (ऽ।) होना चाहिए।
उदाहरण:
श्री गुरु चरन सरोज रज, (13 मात्राएँ)
निज मन मुकुर सुधारि। (11 मात्राएँ)
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, (13 मात्राएँ)
जो दायक फल चारि॥ (11 मात्राएँ) -
सोरठा: यह दोहे का उल्टा होता है। यह भी अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
मुक होइ बाचाल, (11 मात्राएँ)
पंगु चढ़ै गिरिबर गहन। (13 मात्राएँ)
जासु कृपाँ सो दयाल, (11 मात्राएँ)
द्रवउ सकल कलि मल दहन॥ (13 मात्राएँ) -
चौपाई: यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु (ऽऽ) या दो लघु (।।) नहीं होने चाहिए।
उदाहरण:
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। (16 मात्राएँ)
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ (16 मात्राएँ)
राम दूत अतुलित बल धामा। (16 मात्राएँ)
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥ (16 मात्राएँ) -
रोला: यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है।
उदाहरण:
जो जग हित पर प्राण निछावर है कर पाता। (24 मात्राएँ)
जिसका तन है किसी लोकहित में लग जाता॥ (24 मात्राएँ) -
हरिगीतिका: यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है, और अंत में लघु-गुरु (।ऽ) आता है।
उदाहरण:
कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। (28 मात्राएँ)
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए॥ (28 मात्राएँ)
2. वर्णिक छंद (Syllabic Metre)
जिन छंदों में वर्णों की संख्या और उनके लघु-गुरु क्रम का ध्यान रखा जाता है, उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या निश्चित नहीं होती।
प्रमुख वर्णिक छंद:
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इंद्रवज्रा: यह सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इसका गण-विधान ‘तगण, तगण, जगण और दो गुरु (ऽऽ। ऽऽ। ।ऽ। ऽऽ)’ होता है।
उदाहरण:
होती नहीं है कुछ भी कमी ही।
होती नहीं है कुछ भी कमी ही। -
उपेंद्रवज्रा: यह भी सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इसका गण-विधान ‘जगण, तगण, जगण और दो गुरु (।ऽ। ऽऽ। ।ऽ। ऽऽ)’ होता है।
उदाहरण:
बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै।
परंतु पूर्वापर सोच लीजै॥ -
सवैया: यह सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। इसके कई भेद हैं जैसे मत्तगयंद सवैया, दुर्मिल सवैया आदि।
उदाहरण (मत्तगयंद सवैया – 23 वर्ण):
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि को सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥ -
कवित्त (मनहरण कवित्त): यह सम वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। 16 और 15 वर्णों पर यति होती है, और अंत में गुरु आता है।
उदाहरण:
सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
3. मुक्त छंद (Free Verse)
जिन छंदों में मात्राओं या वर्णों की संख्या का कोई निश्चित नियम नहीं होता, और न ही यति-गति या तुक का कोई विशेष बंधन होता है, उन्हें मुक्त छंद कहते हैं। इन कविताओं में कवि अपनी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करता है।
विशेषताएँ:
- स्वतंत्रता: कवि को नियमों से मुक्ति मिलती है।
- भाव प्रधानता: भावों की अभिव्यक्ति पर अधिक जोर।
- आधुनिक काव्य: आधुनिक हिंदी कविता में इसका प्रयोग अधिक होता है।
प्रमुख लेखक और उनकी रचनाएँ:
- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’:
- मुख्य रचनाएँ: जूही की कली, भिक्षुक, तोड़ती पत्थर
- विशेषता: मुक्त छंद के प्रवर्तक माने जाते हैं।
- अज्ञेय:
- मुख्य रचनाएँ: कितनी नावों में कितनी बार, हरी घास पर क्षण भर
- विशेषता: प्रयोगवादी कविता में मुक्त छंद का प्रयोग।
उदाहरण
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता “भिक्षुक”:
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को, भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता।
परीक्षा में भ्रमित करने वाले बिंदु और छात्रों के लिए सुझाव
छंद से संबंधित कुछ ऐसे बिंदु हैं जो परीक्षा में अक्सर भ्रम पैदा करते हैं, साथ ही कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:
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मात्रा गणना में त्रुटि:
लघु और गुरु मात्राओं की गणना में अक्सर गलती होती है। संयुक्त अक्षर, अनुस्वार, विसर्ग और चंद्रबिंदु वाले वर्णों की मात्रा गणना के नियमों को ठीक से समझें।
उदाहरण: ‘संयोग’ में ‘सं’ गुरु (ऽ) है, ‘योग’ में ‘यो’ गुरु (ऽ) है। -
यति और गति का भ्रम:
यति ठहराव है, जबकि गति पढ़ने का प्रवाह। दोनों को अलग-अलग पहचानना महत्वपूर्ण है। -
दोहा और सोरठा में अंतर:
इन दोनों में मात्राओं का क्रम ठीक उल्टा होता है। दोहा (13-11) और सोरठा (11-13)। सम चरणों के अंत में तुक और गुरु-लघु का नियम ध्यान रखें। -
चौपाई और रोला में अंतर:
चौपाई में 16 मात्राएँ और रोला में 24 मात्राएँ होती हैं। यति स्थान भी अलग-अलग होते हैं। -
वर्णिक छंद में गण-विधान:
गणों को याद रखने के लिए ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र का अभ्यास करें। प्रत्येक गण के लघु-गुरु क्रम को समझें। -
मुक्त छंद की पहचान:
यदि कविता में मात्रा या वर्ण का कोई निश्चित नियम न हो और वह स्वतंत्र लगे, तो वह मुक्त छंद है। इसमें भाव की प्रधानता होती है।
छात्रों के लिए सामान्य सुझाव
- मात्रा गणना का अभ्यास: विभिन्न शब्दों और पंक्तियों की मात्रा गणना का बार-बार अभ्यास करें।
- उदाहरणों को याद करें: प्रत्येक छंद के कम से कम एक-दो उदाहरणों को मात्रा गणना के साथ याद रखें।
- सूत्रों का प्रयोग: गणों को याद रखने के लिए ‘यमाताराजभानसलगा’ जैसे सूत्रों का प्रयोग करें।
- पढ़ने का अभ्यास: छंदबद्ध कविताओं को लय और यति के साथ पढ़ने का अभ्यास करें। इससे आपको छंद की पहचान में मदद मिलेगी।
- पिछले वर्षों के प्रश्नपत्र हल करें: इससे आपको परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के प्रकार का अनुमान होगा।
निष्कर्ष
छंद काव्य को एक विशिष्ट संरचना और संगीतात्मकता प्रदान करते हैं। मात्रिक, वर्णिक और मुक्त छंद हिंदी कविता के महत्वपूर्ण आधार हैं। उनके अंगों (वर्ण, मात्रा, यति, गति, तुक, गण) को समझना और प्रत्येक छंद के नियमों और उदाहरणों का गहन अध्ययन करना इस विषय पर आपकी पकड़ मजबूत करेगा। नियमित अभ्यास से आप छंदों की पहचान और उनके प्रयोग में निपुण हो सकते हैं।
छंद (Chhand) – क्विज़
अपनी तैयारी परखें
छंद से संबंधित इन प्रश्नों के उत्तर देकर अपनी समझ को मजबूत करें। प्रत्येक प्रश्न के बाद सही उत्तर दिया गया है।
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1. छंद का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर: C) बंधन या नियम
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2. लघु (ह्रस्व) वर्ण के लिए किस चिह्न का प्रयोग होता है?
उत्तर: B) ।
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3. गुरु (दीर्घ) वर्ण के लिए किस चिह्न का प्रयोग होता है?
उत्तर: B) ऽ
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4. छंद को पढ़ते समय जहाँ ठहराव या विराम लिया जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर: B) यति
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5. छंद के पढ़ने के प्रवाह या लय को क्या कहते हैं?
उत्तर: C) गति
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6. चरण के अंत में वर्णों की आवृत्ति को क्या कहते हैं?
उत्तर: C) तुक
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7. तीन वर्णों के समूह को क्या कहते हैं?
उत्तर: C) गण
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8. ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र का प्रयोग किसके लिए किया जाता है?
उत्तर: C) गणों को याद रखने के लिए
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9. जिस छंद में मात्राओं की गणना का ध्यान रखा जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर: B) मात्रिक छंद
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10. दोहा छंद के पहले और तीसरे चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: B) 13
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11. दोहा छंद के दूसरे और चौथे चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: A) 11
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12. सोरठा छंद के पहले और तीसरे चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: B) 11
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13. चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: C) 16
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14. ‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: C) चौपाई
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15. रोला छंद के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: B) 24
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16. हरिगीतिका छंद के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं?
उत्तर: C) 28
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17. जिस छंद में वर्णों की संख्या और उनके लघु-गुरु क्रम का ध्यान रखा जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर: B) वर्णिक छंद
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18. इंद्रवज्रा छंद के प्रत्येक चरण में कितने वर्ण होते हैं?
उत्तर: B) 11
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19. उपेंद्रवज्रा छंद के प्रत्येक चरण में कितने वर्ण होते हैं?
उत्तर: B) 11
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20. सवैया छंद के प्रत्येक चरण में कितने वर्ण होते हैं?
उत्तर: C) 22 से 26
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21. कवित्त (मनहरण कवित्त) छंद के प्रत्येक चरण में कितने वर्ण होते हैं?
उत्तर: D) 31
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22. जिस छंद में मात्राओं या वर्णों की संख्या का कोई निश्चित नियम नहीं होता, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर: C) मुक्त छंद
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23. मुक्त छंद के प्रवर्तक कवि कौन माने जाते हैं?
उत्तर: C) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
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24. ‘जूही की कली’, ‘भिक्षुक’, ‘तोड़ती पत्थर’ किस कवि की मुक्त छंद रचनाएँ हैं?
उत्तर: B) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
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25. ‘कितनी नावों में कितनी बार’ और ‘हरी घास पर क्षण भर’ किस प्रयोगवादी कवि की रचनाएँ हैं, जिनमें मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: B) अज्ञेय
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26. ‘श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) दोहा
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27. ‘मुक होइ बाचाल, पंगु चढ़ै गिरिबर गहन।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) सोरठा
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28. ‘जो जग हित पर प्राण निछावर है कर पाता।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: C) रोला
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29. ‘कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) हरिगीतिका
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30. ‘या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) सवैया
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31. ‘सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) कवित्त
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32. ‘वह आता, दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।’ यह किस प्रकार के छंद का उदाहरण है?
उत्तर: C) मुक्त छंद
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33. ‘बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै। परंतु पूर्वापर सोच लीजै॥’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) उपेंद्रवज्रा
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34. ‘होती नहीं है कुछ भी कमी ही।’ इस पंक्ति में कौन सा छंद है?
उत्तर: B) इंद्रवज्रा
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35. ‘मात्रा’ का अर्थ क्या है?
उत्तर: B) वर्ण के उच्चारण में लगने वाला समय
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36. छंद की प्रत्येक पंक्ति को क्या कहते हैं?
उत्तर: C) चरण/पद
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37. ‘संयोग’ शब्द में ‘सं’ की मात्रा क्या होगी?
उत्तर: B) गुरु (ऽ)
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38. दोहा और सोरठा में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर: C) मात्राओं का क्रम
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39. चौपाई में प्रत्येक चरण के अंत में क्या नहीं होना चाहिए?
उत्तर: D) A और B दोनों
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40. ‘रगण’ गण का लघु-गुरु क्रम क्या है?
उत्तर: C) ऽ । ऽ
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41. ‘नगण’ गण का लघु-गुरु क्रम क्या है?
उत्तर: B) । । ।
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42. ‘हरिगीतिका’ छंद में 16 और 12 मात्राओं पर क्या होता है?
उत्तर: C) यति
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43. किस छंद में ‘तगण, तगण, जगण और दो गुरु’ गण-विधान होता है?
उत्तर: B) इंद्रवज्रा
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44. ‘कवित्त’ छंद में 16 और 15 वर्णों पर क्या होता है?
उत्तर: C) यति
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45. मुक्त छंद की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर: C) नियमों से स्वतंत्रता और भाव प्रधानता
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46. ‘अज्ञेय’ किस प्रकार के छंद के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं?
उत्तर: C) मुक्त छंद
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47. ‘जूही की कली’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
उत्तर: C) मुक्त छंद
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48. किस छंद को ‘दोहे का उल्टा’ कहा जाता है?
उत्तर: B) सोरठा
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49. ‘मातारा’ किस गण का उदाहरण है?
उत्तर: B) मगण
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50. छंद में ‘तुक’ का मुख्य कार्य क्या है?
उत्तर: C) संगीतात्मकता लाना