हिंदी का विकास और आधुनिक हिंदी का स्वरूप – परिष्कृत नोट्स
1. हिंदी का उद्भव एवं विकास: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भाषा परिवार
- हिंदी एक इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की सदस्य है, जिसका पूर्वज भारोपीय भाषा परिवार (Indo-European) माना जाता है।
- संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश के विभिन्न चरणों से होते हुए हिंदी का क्रमिक विकास हुआ।
- क्षेत्रीय परिवर्तनों के कारण हिंदी कई बोलियों के साथ विकसित हुई (अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, कन्नौजी, बुंदेली, भोजपुरी आदि)।
संस्कृत से प्राकृत और अपभ्रंश तक
- वैदिक संस्कृत से क्लासिकल संस्कृत का विकास हुआ।
- प्राकृत भाषाएँ (पाली, अर्धमागधी, शौरसेनी आदि) संस्कृत से सरलता की ओर जाने का क्रम थीं।
- प्राकृतों के परवर्ती रूपों को अपभ्रंश कहा गया। अलग-अलग क्षेत्र में अपभ्रंश के अनेक रूप विकसित हुए। इन्हीं अपभ्रंश से आगे चलकर अवहट्ट और फिर आरंभिक हिंदी रूपों का विकास हुआ।
अपभ्रंश से आरंभिक हिंदी
- अपभ्रंश के विभिन्न उपरूपों ने मध्यकालीन भारतीय भाषाओं की नींव रखी।
- शौरसेनी अपभ्रंश से अवधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली जैसी विभिन्न बोलियाँ विकसित हुईं।
- प्राचीन काल में बोलियों के साहित्यिक रूप भी देखने को मिलते हैं (जैसे जैन साहित्य की कुछ रचनाएँ, जो अपभ्रंश में हैं)।
मध्यकालीन हिंदी और बोलियाँ
- भक्ति आंदोलन के समय हिंदी की विभिन्न बोलियाँ – अवधी, ब्रज, बुंदेली आदि – भक्ति काव्य की प्रमुख माध्यम बनीं।
- अवधी में तुलसीदास का रामचरितमानस (16वीं शताब्दी) व मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत।
- ब्रजभाषा में सूरदास, रसखान, मीराबाई, नंददास, और रीतिकालीन कवि (बिहारी, केशव, घनानंद इत्यादि) ने रचनाएँ कीं।
- खड़ी बोली: उस समय साहित्यिक भाषा के रूप में बहुत प्रचलित नहीं थी, लेकिन 17वीं-18वीं शताब्दी के आसपास “हिंदवी,” “रेख्ता,” “हिंदुस्तानी” आदि नामों से इसका अस्तित्व था।
2. हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक कालखंड
परंपरागत रूप से हिंदी साहित्य को चार कालों में बाँटा जाता है (यह वर्गीकरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लोकप्रिय हुआ):
आदिकाल (वीरगाथा काल) – 10वीं/11वीं सदी से 14वीं सदी तक
- इस काल में अपभ्रंश के अवशेष और लोकभाषाओं में रचित वीर रस प्रधान काव्य मिलता है।
- चंदबरदाई की पृथ्वीराज रासो इस काल की प्रमुख रचना।
- भाषा रूप अधिकतर लोकबोलीनुमा और अपभ्रंश व प्राचीन हिंदी का मिश्रण है।
भक्तिकाल – 14वीं सदी से 17वीं सदी तक
- कबीर, रैदास, तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई आदि के काव्य रचनाओं में भक्ति और लोकभाषा का अद्भुत समन्वय।
- अवधी (तुलसीदास, जायसी) और ब्रजभाषा (सूर, मीरा, रसखान आदि) इस काल में साहित्यिक अभिव्यक्ति के प्रमुख माध्यम बने।
रीतिकाल – 17वीं सदी से 19वीं सदी तक
- इस काल में मुख्य रूप से ब्रजभाषा में शृंगार और अलंकार प्रधान काव्य रचा गया।
- बिहारी, केशव, घनानंद, देव, पद्माकर इत्यादि प्रमुख कवि।
- राजदरबारों में काव्य रचना का चलन था, जहाँ भाषा श्रृंगारिक और अलंकारिक हो गई।
आधुनिक काल – 19वीं सदी से वर्तमान तक
- आधुनिक काल में खड़ी बोली को साहित्यिक माध्यम बनाने की शुरुआत हुई।
- भारतेन्दु हरिश्चंद्र (भारतेन्दु युग), महावीरप्रसाद द्विवेदी (द्विवेदी युग), छायावाद (प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी), प्रगतिवाद, नई कविता, समकालीन कविता आदि का क्रमिक विकास।
- गद्य विधाओं (उपन्यास, कहानी, नाटक, निबंध, पत्रकारिता) का जोरदार विकास इसी काल में देखने को मिलता है।
3. आधुनिक हिंदी का स्वरूप: विकास के चरण
भारतेन्दु युग (19वीं सदी के उत्तरार्ध)
- भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850-1885) को आधुनिक हिंदी का जनक या खड़ी बोली के पितामह भी कहा जाता है।
- इस युग में भारतेंदु ने खड़ी बोली गद्य को लोकप्रिय बनाया।
- “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल” – भारतेंदु की इस उक्ति ने मातृभाषा में शिक्षा, लेखन और नवजागरण को प्रेरित किया।
द्विवेदी युग (1900-1918 लगभग)
- महावीरप्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका का संपादन किया और भाषा-सुधार के लिए प्रयास किए।
- साहित्य में विषय-विस्तार, राष्ट्रीय चेतना, नारी शिक्षा, सामाजिक सुधार आदि का समावेश हुआ।
- संस्कृतनिष्ठ शब्दावली को प्रोत्साहन मिला और गद्य-लेखन में परिष्कृत शैली स्थापित हुई।
छायावाद (1918-1936 लगभग)
- जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा – ये चार स्तंभ माने जाते हैं।
- इस काल में कविता में प्रेम, प्रकृति, रहस्यवाद, और व्यक्ति-स्वातंत्र्य की प्रधानता रही।
- हिंदी काव्य को ब्रज से हटाकर खड़ी बोली में लाने की यह एक महत्वपूर्ण कड़ी रही।
प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता (1936 के बाद)
- प्रगतिवाद (नागार्जुन, त्रिलोचन, केदारनाथ अग्रवाल, धर्मवीर भारती) – सामाजिक यथार्थ, शोषण, वर्ग-संघर्ष।
- प्रयोगवाद और फिर नई कविता (अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध) – आधुनिकताबोध, व्यक्तिवाद, मनोविश्लेषण, जटिल भाषा-प्रयोग।
- इस दौर में हिंदी पत्रकारिता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, सभी ने नई ऊँचाइयाँ छुईं (प्रेमचंद, यशपाल, अज्ञेय, विष्णु प्रभाकर, मोहन राकेश इत्यादि)।
आधुनिक उत्तर-आधुनिक (पिछली शताब्दी के उत्तरार्ध से आज तक)
- समकालीन हिंदी में दलित साहित्य, स्त्री साहित्य, भूमंडलीकरण की चुनौतियाँ, यथार्थ के नए प्रतिमान, संचार क्रांति का प्रभाव जैसे विषयों का समावेश।
- सोशल मीडिया, ब्लॉगिंग, ऑनलाइन पोर्टलों के माध्यम से हिंदी का वैश्विक प्रसार तेज़ी से हो रहा है।
4. आधुनिक हिंदी का व्याकरण और लिपि
देवनागरी लिपि
- हिंदी की लिपि देवनागरी है, जो ध्वन्यात्मक (phonetic) मानी जाती है।
- देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह बाँई से दाहिनी ओर लिखी जाती है, ऊपर “शिरोरेखा” (मात्रा की रेखा) से पहचानी जाती है।
भाषिक संरचना
- ध्वनि, शब्द, वाक्य, अर्थ और व्याकरण के स्तर पर हिंदी में संस्कृत, फारसी, अरबी, उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों की भरपूर स्वीकृति।
- व्याकरणिक रूप से हिंदी में दो लिंग (पुल्लिंग, स्त्रीलिंग), दो वचन (एकवचन, बहुवचन), और आठ कारक होते हैं (जैसे कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान इत्यादि)।
शब्द-भंडार
- तत्सम शब्द (संस्कृत से अपरिवर्तित), तद्भव शब्द (संस्कृत के परवर्ती रूप), देशज शब्द (क्षेत्रीय बोलियों से), विदेशी शब्द (फारसी, अरबी, अंग्रेज़ी आदि) सभी का मिश्रण आधुनिक हिंदी को लचीला और समृद्ध बनाता है।
- इसी कारण से हिंदी में “परिनिष्ठित” (शुद्ध/संस्कृतनिष्ठ) एवं “हिंदुस्तानी” (फारसी-उर्दू तत्वों से समृद्ध) दोनों शैलियाँ मौजूद हैं।
5. हिंदी का संवैधानिक और प्रशासनिक दर्जा
राजभाषा का दर्जा
- संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी (देवनागरी लिपि) को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया।
- 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के साथ हिंदी आधिकारिक तौर पर राजभाषा बनी।
- इसके अतिरिक्त अंग्रेज़ी को सह-राजभाषा की भूमिका भी मिली।
राजभाषा अधिनियम 1963
- इस अधिनियम के तहत केंद्र और राज्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया और साथ ही यह प्रावधान किया गया कि अंग्रेज़ी का भी प्रयोग तब तक चलता रहेगा जब तक सभी राज्यों में हिंदी का व्यवस्थित चलन नहीं हो पाता।
अन्य संस्थागत प्रयास
- केंद्रीय हिंदी निदेशालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, नागरी प्रचारिणी सभा, राजभाषा विभाग आदि संस्थाओं ने हिंदी को मजबूत किया है।
- सरकारी आदेशों, अधिनियमों, शिक्षा, न्यायालय में क्रमशः हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के प्रयास जारी हैं।
6. आधुनिक हिंदी के प्रचार-प्रसार में प्रमुख कारक
हिंदी पत्रकारिता
- 1826 में उदंत मार्तंड (कलकत्ता से प्रकाशित) को हिंदी पत्रकारिता का आरंभ माना जाता है।
- 19वीं-20वीं सदी में कई पत्र-पत्रिकाओं ने समाज-सुधार, स्वतंत्रता आंदोलन और सांस्कृतिक जागरण में भूमिका निभाई (भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीरप्रसाद द्विवेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबूराव विष्णु पराड़कर इत्यादि)।
स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रवाद
- महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, सुभाष चंद्र बोस आदि नेताओं ने हिंदी का उपयोग व्यापक जनसंपर्क के लिए किया।
- “स्वराज,” “स्वदेशी,” “असहयोग,” “सत्याग्रह” जैसे शब्दों का व्यापक प्रसार हुआ।
- हिंदी ने राष्ट्रीय एकता की भाषा के रूप में पहचान बनाई।
साहित्यिक आंदोलन और लेखक
- प्रेमचंद, ‘उपन्यास सम्राट’, ने खड़ी बोली में “गोदान,” “गबन,” “सेवासदन” आदि लिखकर आम जनजीवन को साहित्य में उतारा।
- छायावादियों ने काव्य-भाषा को परिष्कृत किया; प्रगतिवादियों ने सामाजिक मुद्दों को उठाया।
- समकालीन साहित्य में दलित साहित्य, नारी विमर्श, ग्लोबलाइजेशन जैसे विषयों पर रचनात्मक योगदान हो रहा है।
शिक्षा और संचार माध्यम
- औपचारिक शिक्षा में हिंदी की शिक्षा, स्कूल-कॉलेजों में अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना।
- दूरदर्शन, रेडियो, सिनेमा, समाचार चैनल और इंटरनेट के प्रसार ने हिंदी का व्यापक प्रचार-प्रसार किया।
- आधुनिक समय में सोशल मीडिया (WhatsApp, Facebook, YouTube, Instagram) पर हिंदी कंटेंट बहुतायत में उपलब्ध है।
वैश्विक स्तर पर विस्तार
- प्रवासी भारतीय समुदायों (मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, ट्रिनिडाड, यूके, यूएस, कनाडा आदि) ने हिंदी को विदेशों में जीवित रखा।
- अब अनेक देशों की विश्वविधालयों में हिंदी पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।
- अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में राजनयिक स्तर पर भी हिंदी का प्रयोग बढ़ा है।
7. आधुनिक हिंदी की चुनौतियाँ और संभावनाएँ
बहुभाषिक समाज में अस्तित्व
- भारत में सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ हैं। सभी को उपयुक्त स्थान मिलना चुनौती है।
- अंग्रेज़ी का वैश्विक प्रभाव उच्च शिक्षा और कारोबार में हिंदी के प्रसार को सीमित करता है।
अतिरिक्त रूप से समावेशी भाषा
- हिंदी लगातार विदेशी शब्दों (अंग्रेज़ी, अरबी, फ़ारसी) और प्रादेशिक भाषाओं के शब्द अपनाती जा रही है, इससे यह अधिक लचीली बनती है।
- कभी-कभी अतिसंस्कृतनिष्ठ या अतिमिलावटी (हिंग्लिश) बनने पर विवाद भी उठते हैं।
तकनीकी विकास और भाषा
- कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट पर हिंदी टाइपिंग, अनुवाद उपकरण, स्पीच रिकग्निशन जैसी तकनीकों का विकास तेज़ी से हो रहा है, जिससे हिंदी का दायरा व्यापक हुआ है।
- यूनीकोड (Unicode) ने देवनागरी को ऑनलाइन लिखना-पढ़ना सुगम बना दिया है।
सरकारी प्रोत्साहन और रचनात्मक साहित्य
- सरकारी स्तर पर विभिन्न योजनाओं, आयोजनों (जैसे विश्व हिंदी सम्मेलन, हिंदी दिवस, राजभाषा पुरस्कार), साहित्यिक संस्थाओं द्वारा हिंदी को बढ़ावा दिया जाता है।
- रचनात्मक साहित्य (कविता, उपन्यास, कहानी) और लोकप्रिय माध्यम (फिल्म, वेब सीरीज, टीवी धारावाहिक) ने हिंदी को जन-जन तक पहुँचाया है।
हिंदी का विकास और आधुनिक हिंदी का स्वरूप – क्विज़
अपनी तैयारी परखें
हिंदी के उद्भव, विकास और आधुनिक स्वरूप से संबंधित इन प्रश्नों के उत्तर देकर अपनी समझ को मजबूत करें। प्रत्येक प्रश्न के बाद सही उत्तर दिया गया है।
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1. हिंदी किस भाषा परिवार की सदस्य है?
उत्तर: B) भारोपीय भाषा परिवार
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2. हिंदी का क्रमिक विकास संस्कृत से किन चरणों से होते हुए हुआ?
उत्तर: D) संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश
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3. प्राकृत भाषाओं के परवर्ती रूपों को क्या कहा गया?
उत्तर: C) अपभ्रंश
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4. तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ किस बोली में रचा गया है?
उत्तर: C) अवधी
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5. सूरदास, रसखान और मीराबाई ने मुख्य रूप से किस बोली में रचनाएँ कीं?
उत्तर: B) ब्रजभाषा
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6. आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा हिंदी साहित्य को परंपरागत रूप से कितने कालों में बाँटा गया है?
उत्तर: C) चार
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7. ‘पृथ्वीराज रासो’ किस काल की प्रमुख रचना है और इसके रचयिता कौन हैं?
उत्तर: B) आदिकाल, चंदबरदाई
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8. भक्तिकाल के प्रमुख कवि कौन-कौन से हैं?
उत्तर: C) कबीर, तुलसीदास, सूरदास
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9. रीतिकाल में मुख्य रूप से किस बोली में काव्य रचा गया?
उत्तर: C) ब्रजभाषा
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10. आधुनिक काल में साहित्यिक माध्यम बनाने की शुरुआत किस बोली से हुई?
उत्तर: C) खड़ी बोली
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11. ‘आधुनिक हिंदी का जनक’ या ‘खड़ी बोली के पितामह’ के रूप में किसे जाना जाता है?
उत्तर: C) भारतेन्दु हरिश्चंद्र
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12. “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल” यह उक्ति किसकी है?
उत्तर: B) भारतेन्दु हरिश्चंद्र
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13. ‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन किसने किया और किस युग से संबंधित हैं?
उत्तर: B) महावीरप्रसाद द्विवेदी, द्विवेदी युग
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14. छायावाद के चार स्तंभों में कौन शामिल नहीं है?
उत्तर: D) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
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15. हिंदी की लिपि क्या है?
उत्तर: C) देवनागरी
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16. देवनागरी लिपि का विकास किस प्राचीन लिपि से हुआ है?
उत्तर: B) ब्राह्मी लिपि
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17. व्याकरणिक रूप से हिंदी में कितने लिंग और वचन होते हैं?
उत्तर: B) दो लिंग, दो वचन
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18. ‘तत्सम शब्द’ किसे कहते हैं?
उत्तर: B) संस्कृत से अपरिवर्तित रूप में आए शब्द
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19. संविधान सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में कब स्वीकार किया?
उत्तर: C) 14 सितंबर 1949
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20. हिंदी पत्रकारिता का आरंभ किस पत्रिका से माना जाता है?
उत्तर: C) उदंत मार्तंड
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21. ‘उपन्यास सम्राट’ प्रेमचंद ने खड़ी बोली में कौन से उपन्यास लिखे?
उत्तर: B) गोदान, गबन, सेवासदन
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22. हिंदी के वैश्विक प्रसार में प्रवासी भारतीय समुदायों का क्या योगदान है?
उत्तर: B) उन्होंने हिंदी को विदेशों में जीवित रखा।
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23. आधुनिक हिंदी की एक प्रमुख चुनौती क्या है?
उत्तर: B) अंग्रेजी का वैश्विक प्रभाव
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24. ‘यूनीकोड’ ने देवनागरी के लिए क्या सुगम बनाया है?
उत्तर: B) ऑनलाइन लिखना-पढ़ना
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25. हिंदी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किस रूप में पहचान बनाई?
उत्तर: C) राष्ट्रीय एकता की भाषा
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26. ‘राजभाषा अधिनियम’ किस वर्ष पारित किया गया था?
उत्तर: C) 1963
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27. ‘प्रगतिवाद’ के प्रमुख कवियों में से एक कौन हैं?
उत्तर: C) नागार्जुन
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28. हिंदी में ‘हिंदुस्तानी’ शैली किसे कहा जाता है?
उत्तर: C) फारसी-उर्दू तत्वों से समृद्ध हिंदी
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29. ‘अवहट्ट’ का विकास किस भाषा से हुआ?
उत्तर: C) अपभ्रंश
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30. ‘पद्मावत’ के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी किस बोली के कवि हैं?
उत्तर: C) अवधी