परिचय
साहित्यिक आलोचना साहित्य के मूल्यांकन, विश्लेषण और व्याख्या का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। हिंदी साहित्य में अनेक ऐसे विद्वान हुए हैं जिन्होंने अपनी गहन दृष्टि और मौलिक चिंतन से आलोचना के क्षेत्र को समृद्ध किया है। इन प्रमुख आलोचकों ने न केवल साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन किया, बल्कि विभिन्न आलोचनात्मक सिद्धांतों को विकसित और स्थापित भी किया, जिससे हिंदी साहित्य की दिशा और दशा निर्धारित हुई।
प्रमुख हिंदी साहित्यिक आलोचक
1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941)
परिचय:
- आधुनिक हिंदी आलोचना के प्रवर्तक और मूर्धन्य आलोचक।
- हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने में अग्रणी, उनका ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ मील का पत्थर है।
- साहित्य के साथ-साथ दर्शन, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र में भी गहरी पैठ।
- वस्तुनिष्ठ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण: वे साहित्य का मूल्यांकन तटस्थ भाव से करते थे, तथ्यों और तर्कों पर आधारित।
- मनोवैज्ञानिक विश्लेषण: वे साहित्य में निहित मानवीय भावनाओं और मनोविकारों का सूक्ष्म विश्लेषण करते थे।
- रसवादी आलोचक: रस को काव्य की आत्मा मानते थे और रस निष्पत्ति को आलोचना का केंद्रीय बिंदु।
- लोकमंगल की भावना: साहित्य का उद्देश्य लोकमंगल मानते थे।
- भाषा में स्पष्टता, गंभीरता और प्रौढ़ता।
- हिंदी साहित्य का इतिहास: हिंदी साहित्य का प्रथम व्यवस्थित और विस्तृत इतिहास।
- चिंतामणि (भाग 1, 2, 3, 4): आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह, जिसमें भाव और मनोविकारों पर आधारित निबंध प्रमुख हैं।
- सूरदास: सूरदास की काव्य प्रतिभा और उनके भ्रमरगीत सार का गहन विश्लेषण।
- तुलसीदास: तुलसीदास के काव्य और लोक मंगल की भावना का विवेचन।
2. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (1907-1979)
परिचय:
- बहुमुखी प्रतिभा के धनी: उपन्यासकार, निबंधकार, आलोचक और इतिहासकार।
- हिंदी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान, भारतीय संस्कृति और दर्शन का गहन ज्ञान।
- शांतिनिकेतन और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।
- सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण: वे साहित्य को उसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों में विश्लेषित करते थे, परंपरा का महत्व समझते थे।
- गहन शोध और विस्तृत अध्ययन: उनकी आलोचना में गहन शोध और व्यापक ज्ञान की झलक मिलती है।
- मानवीय मूल्यों के समर्थक: वे साहित्य में मानवीय मूल्यों और लोक चेतना को महत्व देते थे।
- भाषा में काव्यात्मकता, सौंदर्य और सहजता।
- कबीर, जायसी, सूरदास जैसे निर्गुण और सगुण कवियों पर नवीन दृष्टि डाली।
- कबीर: कबीर के व्यक्तित्व, उनके दर्शन और काव्य का गहन विश्लेषण, उन्हें ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा।
- अशोक के फूल: ललित निबंधों का संग्रह, जिसमें सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों का विश्लेषण है।
- हिंदी साहित्य की भूमिका: हिंदी साहित्य के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ।
- हिंदी साहित्य का आदिकाल: आदिकाल के साहित्य का गहन अध्ययन।
3. डॉ. नामवर सिंह (1926-2019)
परिचय:
- आधुनिक हिंदी आलोचना के प्रमुख स्तंभ और प्रगतिशील आलोचक।
- मार्क्सवादी आलोचना के सशक्त प्रवर्तक और प्रचारक।
- साहित्यिक सिद्धांतों के गहन अध्येता और व्याख्याता।
- समाजवादी (मार्क्सवादी) दृष्टिकोण: वे साहित्य को सामाजिक परिवर्तन और वर्ग चेतना के संदर्भ में देखते थे।
- साहित्य में नवीनता और प्रयोगवाद का समर्थन: वे नई साहित्यिक प्रवृत्तियों का स्वागत करते थे और उन्हें सैद्धांतिक आधार प्रदान करते थे।
- वाद-विवाद और संवाद: आलोचना को एक जीवंत संवाद के रूप में प्रस्तुत किया।
- स्पष्ट, तर्कसंगत और प्रभावशाली भाषा शैली।
- ‘दूसरी परंपरा’ की अवधारणा देकर साहित्य के अनदेखे पहलुओं को उजागर किया।
- कविता के नए प्रतिमान: आधुनिक कविता का विश्लेषण, जिसमें उन्होंने नई कविता की प्रवृत्तियों और विशेषताओं को उजागर किया।
- दूसरी परंपरा की खोज: हिंदी साहित्य की परंपराओं का पुनर्मूल्यांकन, विशेषकर कबीर, जायसी और सूरदास पर नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।
- छायावाद: छायावादी कविता का गहन विश्लेषण और उसकी विशेषताओं का उद्घाटन।
- बकलम खुद: उनके भाषणों और लेखों का संग्रह।
4. डॉ. रामविलास शर्मा (1912-2000)
परिचय:
- हिंदी के अग्रणी मार्क्सवादी आलोचक और चिंतक।
- प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे।
- भाषा विज्ञान, इतिहास और संस्कृति के भी गहन अध्येता।
- मार्क्सवादी आलोचना का सैद्धांतिक आधार: उन्होंने हिंदी में मार्क्सवादी आलोचना को एक सुदृढ़ सैद्धांतिक आधार प्रदान किया।
- साहित्य और समाज का संबंध: वे साहित्य को समाज के आर्थिक और सामाजिक संबंधों के प्रतिबिंब के रूप में देखते थे।
- तुलनात्मक आलोचना: भारतीय और पश्चिमी साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन किया।
- भाषा विज्ञान का प्रयोग: आलोचना में भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी प्रयोग किया।
- तेजस्वी और निर्भीक शैली।
- प्रेमचंद और उनका युग: प्रेमचंद के साहित्य का मार्क्सवादी विश्लेषण।
- निराला की साहित्य साधना (तीन खंड): निराला के साहित्य का विस्तृत और गहन अध्ययन।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र और हिंदी नवजागरण: भारतेंदु युग और हिंदी नवजागरण का ऐतिहासिक-साहित्यिक विश्लेषण।
- भाषा और समाज: भाषा विज्ञान पर महत्वपूर्ण कृति।
5. नंददुलारे वाजपेयी (1906-1967)
परिचय:
- छायावाद के प्रमुख समीक्षक और सौंदर्यवादी आलोचक।
- आचार्य शुक्ल की परंपरा के बाद छायावाद को सैद्धांतिक आधार प्रदान करने वाले आलोचक।
- सौंदर्यवादी दृष्टिकोण: वे काव्य में सौंदर्य और कलात्मकता को विशेष महत्व देते थे।
- छायावाद के समर्थक: छायावादी काव्य की विशेषताओं और महत्व को स्थापित किया।
- रस और आनंद की अवधारणा: साहित्य से प्राप्त आनंद को महत्वपूर्ण माना।
- संतुलित और सूक्ष्म विश्लेषण।
- हिंदी साहित्य: बीसवीं शताब्दी: बीसवीं शताब्दी के हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक सर्वेक्षण।
- जयशंकर प्रसाद: प्रसाद के काव्य और व्यक्तित्व का विश्लेषण।
- आधुनिक साहित्य: आधुनिक हिंदी साहित्य की प्रवृत्तियों का अध्ययन।
- नया साहित्य: नए प्रश्न: आधुनिक साहित्य की नई दिशाओं पर विचार।
6. डॉ. नगेंद्र (1915-1999)
परिचय:
- हिंदी साहित्य के एक प्रमुख रसवादी और मनोवैज्ञानिक आलोचक।
- काव्यशास्त्र और रस सिद्धांत पर विशेष अधिकार।
- दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे।
- रस सिद्धांत का पुनर्व्याख्या: उन्होंने रस सिद्धांत को आधुनिक संदर्भों में पुनः स्थापित किया।
- मनोवैज्ञानिक आलोचना: साहित्य में मनोविज्ञान के तत्वों का विश्लेषण किया।
- तुलनात्मक अध्ययन: भारतीय और पश्चिमी काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया।
- शोधपरक और व्यवस्थित आलोचना: उनकी आलोचना में गहन शोध और व्यवस्थित प्रस्तुति मिलती है।
- रस सिद्धांत: रस सिद्धांत पर एक प्रामाणिक ग्रंथ।
- भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका: भारतीय काव्यशास्त्र का विस्तृत परिचय।
- देव और बिहारी: देव और बिहारी के काव्य का तुलनात्मक अध्ययन।
- आधुनिक हिंदी कविता की मुख्य प्रवृत्तियाँ: आधुनिक कविता का आलोचनात्मक मूल्यांकन।
निष्कर्ष
हिंदी साहित्य में आलोचना की परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल से लेकर डॉ. नामवर सिंह तक, इन प्रमुख आलोचकों ने अपने-अपने मौलिक सिद्धांतों और गहन विश्लेषण से साहित्य को एक नई दिशा दी है। उन्होंने न केवल साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन किया, बल्कि साहित्य और समाज के संबंधों, भाषा के महत्व, और मानवीय भावनाओं की जटिलताओं को भी उजागर किया। इन आलोचकों का अध्ययन हिंदी साहित्य की समझ को गहरा करने और आलोचनात्मक दृष्टि विकसित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।