भूमिका
हिंदी भाषा विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है, जिसका इतिहास हजारों वर्षों पुराना माना जाता है। आज हिंदी न केवल भारत की राजभाषा है, बल्कि अनेक देशों में बसे भारतीयों व हिंदी भाषियों की संपर्क भाषा भी बन चुकी है। हिंदी भाषा की विशालता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके अंतर्गत कई उपभाषाएँ (dialects) एवं बोलियाँ (varieties) आती हैं, जो भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुरूप विकसित हुई हैं। आमतौर पर हिंदी के प्रमुख रूपों में अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, बुंदेली, कन्नौजी, हरियाणवी, राजस्थानी (हालाँकि राजस्थानी को स्वतंत्र भाषा भी माना जाता है), भोजपुरी इत्यादि गिनी जाती हैं। इन बोलियों का अपना-अपना समृद्ध साहित्य, व्याकरण, लोक-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व रहा है।
1. अवधी
1.1 परिचय एवं भौगोलिक विस्तार
- अवधी उत्तर प्रदेश के पूर्वी एवं मध्य भागों में बोली जाने वाली एक प्रमुख बोली है।
- प्रमुख जिले: लखनऊ, फ़ैज़ाबाद (अयोध्या), सुल्तानपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़, इलाहाबाद (प्रयागराज के कुछ क्षेत्र), कानपुर, उन्नाव।
- नाम: “अवध” क्षेत्र से आया है, जिसका ऐतिहासिक केंद्र अयोध्या रही है।
- विस्तार: उत्तर भारत के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्रों और विदेशों (विशेषतः फिजी, मॉरीशस, गुयाना व ट्रिनिडाड) में भी पाई जाती है।
1.2 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं प्रमुख साहित्य
- मध्यकाल में हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण भाषा रही।
- भक्ति आंदोलन के दौरान धार्मिक और भक्ति साहित्य के माध्यम से अपार लोकप्रियता हासिल की।
- प्रमुख रचनाकार एवं रचनाएँ:
- गोस्वामी तुलसीदास: “रामचरितमानस” (कालजयी रचना, भक्ति, नीति और दर्शन)।
- मलिक मुहम्मद जायसी: “पद्मावत” (प्रसिद्ध सूफ़ी प्रेम-काव्य रचना, रानी पद्मावती और राजा रतनसिंह की कथा)।
- कबीर: उनकी साखियाँ व पद अवधी के साथ-साथ भोजपुरी व पूर्वी हिंदी की मिली-जुली भाषा में भी मिलती हैं।
1.3 भाषा संरचना की विशेषताएँ
- ध्वन्यात्मक विशेषताएँ: खड़ी बोली में “रहा” शब्द अवधी में “रहै/रही” रूप में, “नहीं” अक्सर “नाहीं” हो जाता है।
- प्रत्ययों का उपयोग: क्रियाओं के अंत में लगने वाले प्रत्यय भिन्न हो सकते हैं (जैसे “मैं जाता हूँ” के बदले “हम जाईत हईं” या “मैं जाउत हौं”)।
- व्याकरणिक विन्यास: सर्वनामों में अक्सर बहुवचन या आदरसूचक रूपों का ज्यादा प्रयोग होता है (जैसे “हम” का इस्तेमाल बहुवचन और आदर सूचक एकवचन दोनों के लिए)।
- शब्दगत भिन्नताएँ: कुछ शब्द खड़ी बोली से बिल्कुल अलग होते हैं (जैसे “खाना” को “भोजन” या “जिउनार”)।
1.4 लोक-संस्कृति एवं आधुनिक संदर्भ
- लोकगीत: “सोहर,” “लोरी,” “कजरी,” “फाग” आदि बेहद प्रसिद्ध।
- आधुनिक संदर्भ: शिक्षा और प्रशासन की भाषा के रूप में खड़ी बोली हिंदी का वर्चस्व है, फिर भी ग्रामीण एवं स्थानीय स्तर पर अवधी आज भी जीवित है। फ़िल्मों और धारावाहिकों में भी इसका प्रयोग होता है।
2. ब्रजभाषा
2.1 परिचय एवं भौगोलिक विस्तार
- मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा, आगरा, अलीगढ़, हाथरस, फ़िरोज़ाबाद, एटा व उससे सटे इलाकों में बोली जाती है।
- धार्मिक महत्त्व: भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली रहा है।
2.2 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं प्रमुख साहित्य
- हिंदी परिवार की प्राचीन बोलियों में से एक, जड़ें अपभ्रंश से जुड़ी।
- मध्यकाल (15वीं से 17वीं शताब्दी) को ब्रजभाषा साहित्य का स्वर्णकाल माना जाता है।
- इसमें वैष्णव काव्य, कृष्ण-भक्ति साहित्य, रीतिकाव्य और प्रेम काव्य शामिल हैं।
- प्रमुख रचनाकार एवं रचनाएँ:
- सूरदास: ‘सूरसागर,’ ‘सूरसारावली,’ ‘साहित्य लहरी’ (कृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन)।
- मीराबाई: कृष्ण-भक्ति में रचे-बसे अनेक पद।
- रसखान: कृष्ण-भक्ति में अनेक पद।
- बिहारीलाल: ‘बिहारी सतसई’ (रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि, दोहों की रचना)।
- नंददास, ध्रुवदास: अन्य प्रमुख कवि।
2.3 भाषा संरचना की विशेषताएँ
- ध्वन्यात्मक परिवर्तन: ‘कान्हा’ का उच्चारण ‘कान्ह’, ‘राधा’ का ‘राधे’ के रूप में।
- वचन और लिंग: शब्दों और क्रियाओं के रूप में परिवर्तन, अक्सर “-ऊँ” या “-ऊ” प्रत्यय (जैसे “मैं करऊँ”)।
- साहित्यिक सौंदर्य: कोमल, मधुर, काव्यात्मक गुणों के लिए जानी जाती है।
2.4 धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व एवं आधुनिक संदर्भ
- परंपराएँ: रास-लीला, होली के फाग, राधा-कृष्ण की लीलाएँ, बरसाना की लठमार होली, मथुरा-वृंदावन के उत्सव।
- आधुनिक संदर्भ: भक्ति संगीत, लोकगीत, भजन, और ब्रज क्षेत्र के संचार-माध्यमों में प्रयोग। प्रशासनिक स्तर पर सीमित प्रयोग।
3. खड़ी बोली
3.1 परिचय एवं भौगोलिक विस्तार
- आधुनिक मानक हिंदी का आधार मानी जाती है।
- भौगोलिक क्षेत्र: मुख्यतः दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर), हरियाणा, उत्तरी राजस्थान।
- ऐतिहासिक विकास: ‘अपभ्रंश’ से विकसित, दिल्ली-सल्तनत और मुग़लकाल के दौरान क्रमिक विकास।
3.2 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं साहित्यिक विकास
- मध्यकाल में फारसी और अरबी शब्दों के संपर्क से भाषा-समृद्धि।
- आधुनिक हिंदी गद्य का विकास: 18वीं शताब्दी के बाद भारतेन्दु हरिश्चंद्र के प्रयासों से।
- काव्य में प्रयोग: भारतेन्दु युग से आगे बढ़ते हुए द्विवेदी युग और छायावाद तक, कविता में भी खड़ी बोली का प्रयोग बढ़ा।
- प्रमुख रचनाकार एवं रचनाएँ:
- भारतेन्दु हरिश्चंद्र: हिंदी गद्य और नाटक के जनक।
- महावीरप्रसाद द्विवेदी: हिंदी साहित्य के मानकीकरण और परिष्कार में योगदान।
- मैथिलीशरण गुप्त: ‘साकेत’, ‘यशोधरा’।
- जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला: छायावादी कवि, जिन्होंने खड़ी बोली काव्य को उच्च शिखर पर पहुँचाया।
- प्रेमचंद: ‘गोदान’, ‘गबन’ (उपन्यास और कहानियाँ, खड़ी बोली हिंदी के उत्कृष्ट उदाहरण)।
3.3 भाषा संरचना और व्याकरण
- ध्वन्यात्मक प्रणाली: स्वर व व्यंजन की स्पष्ट प्रणाली, उच्चारण मानक रूप में व्यवस्थित।
- व्याकरण: संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया आदि का विन्यास आधुनिक मानकीकृत रूप में।
- उपसर्ग-प्रत्यय का समृद्ध प्रयोग: संस्कृत, फारसी, उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों के साथ-साथ तमाम उपसर्ग-प्रत्ययों का समावेश।
- शैलियाँ: परिनिष्ठित (संस्कृतनिष्ठ) और साधारण (हिंदुस्तानी) शैली।
3.4 आधुनिक भारतीय प्रशासन में खड़ी बोली की भूमिका
- आज की सरकारी हिन्दी (राजभाषा) मूलतः खड़ी बोली पर आधारित है।
- सरकारी दस्तावेज़, अधिनियम, विधान, सरकारी घोषणाएँ, न्यायालयीन कार्यवाहियाँ, शिक्षा, मीडिया और पत्रकारिता में आधिकारिक रूप।
- पूरे भारत में और विश्व के अन्य हिस्सों में हिंदी की पहचान बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका।
4. अन्य प्रमुख बोलियाँ: संक्षिप्त परिचय
- बुंदेली: उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र (झाँसी, ललितपुर, बांदा) और मध्य प्रदेश के सागर, दमोह आदि जिलों में। आल्हा-ऊदल की गाथाएँ प्रसिद्ध।
- बघेली: बघेलखंड (रीवा, सतना, शहडोल) में। अवधी से निकटता रखती है।
- कन्नौजी: कन्नौज व उसके आसपास के जिलों (फर्रुख़ाबाद, हरदोई)। अवधी और खड़ी बोली के बीच की कड़ी।
- हरियाणवी (बाँगरू): हरियाणा और दिल्ली के आसपास के ग्रामीण इलाकों में। लोकगीतों, रागनियों में प्रभाव।
- भोजपुरी: बिहार (पश्चिमी भाग), उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग (गोरखपुर, वाराणसी), झारखंड, और सीमावर्ती नेपाल में। विदेशों (मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम) में भी लोकप्रिय। भोजपुरी सिनेमा और लोकगीतों ने इसे विश्व-स्तर पर लोकप्रियता दिलवाई है।
- राजस्थानी बोलियाँ: मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाडौती आदि। कुछ विद्वान इन्हें स्वतंत्र भाषा मानते हैं। समृद्ध साहित्य और लोकगीत।
5. विभिन्न बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन
| विशेषता | अवधी | ब्रज | खड़ी बोली |
|---|---|---|---|
| भौगोलिक क्षेत्र | अवध क्षेत्र (लखनऊ, फ़ैज़ाबाद इत्यादि) | ब्रज क्षेत्र (मथुरा, आगरा इत्यादि) | दिल्ली, पश्चिमी यूपी, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान इत्यादि |
| साहित्यिक काल | 14वीं-18वीं शताब्दी में प्रमुखता | 15वीं-17वीं शताब्दी (भक्ति/रीतिकाल) | 19वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान आधुनिक साहित्य |
| प्रमुख कवि/लेखक | तुलसीदास, जायसी, कबीर | सूरदास, रसखान, मीराबाई, बिहारी | भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमचंद, प्रसाद, पंत, महादेवी, निराला |
| भाषा-प्रकृति | मधुर, सरल, भक्ति प्रधान | कोमल, काव्यात्मक, भक्ति व रीतिकाव्य | मानकीकृत, प्रशासनिक, आधुनिक व बहुस्रोतों से समृद्ध |
| उदाहरण | “हम जाईत हईं” (मैं जाता हूँ) | “मैं खेलऊँ”, “राधे-राधे” | “मैं जाता हूँ”, “मैं खेलता हूँ” |
| वर्तमान उपयोग | लोकगीत, लोक-संस्कृति, पारंपरिक भक्ति | भक्ति संगीत, भजन, लोकगीत, साहित्यिक आयोजनों में | सरकारी हिंदी, शिक्षा, आधुनिक साहित्य, मीडिया, पत्रकारिता |
निष्कर्ष
हिंदी भाषा की समृद्धता और विविधता उसकी विभिन्न उपभाषाओं और बोलियों में निहित है। अवधी, ब्रज और खड़ी बोली जैसी प्रमुख बोलियों ने हिंदी साहित्य और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जहाँ अवधी और ब्रज ने भक्ति और रीतिकाल के काव्य को समृद्ध किया, वहीं खड़ी बोली ने आधुनिक गद्य और पद्य का आधार बनकर हिंदी को एक मानक और प्रशासनिक भाषा के रूप में स्थापित किया। इन बोलियों का अध्ययन हिंदी की गहरी समझ के लिए आवश्यक है।