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हिंदी साहित्य के प्रयोगवाद का विस्तृत अध्ययन

प्रयोगवाद आधुनिक हिंदी कविता की एक महत्वपूर्ण धारा है जो छायावाद और प्रगतिवाद की प्रतिक्रिया स्वरूप उभरी। इसका मुख्य उद्देश्य काव्य में नए प्रयोग करना, नवीन विषयों को खोजना और भाषा तथा शिल्प में मौलिकता लाना था।

1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं समय सीमा

  • समयावधि: मुख्यतः 1943 से 1953 तक मानी जाती है। इसका आरंभ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ (1943) के प्रकाशन से हुआ।
  • पूर्ववर्ती आंदोलनों से भिन्नता:
    • छायावाद की अति-काल्पनिकता और रहस्यवाद से मुक्ति की चाह।
    • प्रगतिवाद की सामाजिक यथार्थवादिता और स्थूलता से असंतोष।
  • विश्व युद्ध का प्रभाव: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की निराशा, मोहभंग और मानवीय मूल्यों के विघटन ने कवियों को नई दिशा में सोचने पर विवश किया।
  • पश्चिमी साहित्य का प्रभाव: पश्चिमी साहित्य में हुए नए प्रयोगों (जैसे अस्तित्ववाद, फ्रायड का मनोविश्लेषणवाद) का प्रभाव।

2. प्रयोगवाद का अर्थ एवं स्वरूप

‘प्रयोगवाद’ का अर्थ केवल नए प्रयोग करना नहीं था, बल्कि जीवन और जगत को नए दृष्टिकोण से देखना और उसे काव्य में अभिव्यक्त करना था। यह एक प्रकार से व्यक्ति की आंतरिक जटिलताओं और आधुनिक बोध को समझने का प्रयास था।

  • प्रयोगशीलता: काव्य के विषय, भाषा, छंद, बिंब और प्रतीक सभी स्तरों पर नए प्रयोगों पर बल।
  • व्यक्तिगत सत्य की खोज: समाज और सामूहिक चेतना के बजाय व्यक्ति की निजी अनुभूतियों, कुंठाओं, और मानसिक स्थितियों का चित्रण।
  • बुद्धिमत्ता और बौद्धिकता: भावनाओं के साथ-साथ बौद्धिक तत्वों का समावेश।
  • नग्न यथार्थ का चित्रण: जीवन की कटु सच्चाइयों और कुरूपताओं को भी बिना किसी आवरण के प्रस्तुत करना।

3. प्रयोगवाद की प्रमुख विशेषताएँ

  • नवीनता और मौलिकता: हर स्तर पर नयापन लाने का प्रयास, किसी भी पुरानी परंपरा का आँख मूँदकर पालन न करना।
  • अति-बौद्धिकता: भावनाओं की बजाय तर्क और बुद्धि पर अधिक बल, जिससे कविता कभी-कभी दुरूह हो जाती थी।
  • कुंठा और निराशा का चित्रण: आधुनिक जीवन की विसंगतियों, अकेलेपन, मोहभंग और निराशा को अभिव्यक्त करना।
  • अहं की प्रधानता: कवि के ‘मैं’ (अहं) की अभिव्यक्ति, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-खोज पर बल।
  • नये बिंब और प्रतीक: परंपरागत बिंबों और प्रतीकों के स्थान पर नए, अप्रचलित और कभी-कभी अटपटे बिंबों का प्रयोग।
  • लघुमानव की प्रतिष्ठा: साधारण व्यक्ति की समस्याओं और उसके जीवन को महत्व देना।
  • व्यंग्य और विद्रोह: सामाजिक रूढ़ियों, पाखंडों और व्यवस्था के प्रति व्यंग्यात्मक और विद्रोही स्वर।

4. भाषा और शिल्प

  • गद्यमयता: कविता में गद्य के निकट की भाषा का प्रयोग, जिससे वह अधिक स्वाभाविक लगे।
  • संस्कृतनिष्ठता से मुक्ति: छायावाद की संस्कृतनिष्ठता से हटकर बोलचाल की भाषा और विदेशी शब्दों का भी प्रयोग।
  • मुक्त छंद और नवीन छंद: परंपरागत छंदों के बंधन से मुक्ति और नए छंदों का प्रयोग।
  • अलंकारों का नवीन प्रयोग: अलंकारों का प्रयोग चमत्कार के लिए नहीं, बल्कि अर्थ को स्पष्ट करने या भावना को गहरा करने के लिए।
  • बिंब विधान की नवीनता: नए और अप्रत्याशित बिंबों का प्रयोग, जो पाठक को चौंकाते थे।

5. प्रमुख रचनाकार और उनकी रचनाएँ

  • सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (1911-1987):
    • प्रवर्तक: प्रयोगवाद के प्रवर्तक और ‘तार सप्तक’ के संपादक।
    • रचनाएँ: हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार (ज्ञानपीठ पुरस्कार)।
    • विशेषताएँ: व्यक्ति स्वातंत्र्य, बौद्धिकता, गहन अनुभूतियाँ, नए बिंब और प्रतीक, अस्तित्ववादी चेतना।
  • मुक्तिबोध (गजानन माधव मुक्तिबोध) (1917-1964):
    • रचनाएँ: चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल।
    • विशेषताएँ: गहन बौद्धिकता, फैंटेसी का प्रयोग, आत्मसंघर्ष, सामाजिक विसंगतियों का चित्रण, जटिल और लंबी कविताएँ।
  • गिरिजाकुमार माथुर (1918-1994):
    • रचनाएँ: नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले।
    • विशेषताएँ: रोमानी भावुकता, शिल्पगत सजगता, बिंबों की नवीनता।
  • धर्मवीर भारती (1926-1997):
    • रचनाएँ: कनुप्रिया, ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष।
    • विशेषताएँ: प्रेम और सौंदर्य का चित्रण, आधुनिक बोध, धर्म और नैतिकता पर चिंतन।
  • भारतभूषण अग्रवाल (1919-1975):
    • रचनाएँ: ओ अप्रस्तुत मन, अग्निलीक।
    • विशेषताएँ: बौद्धिकता, प्रेम और प्रकृति का चित्रण।
  • नेमिचंद्र जैन (1918-2005):
    • रचनाएँ: अचानक हम फिर।
    • विशेषताएँ: आलोचनात्मक दृष्टि, प्रयोगशीलता।

6. प्रयोगवाद का साहित्यिक योगदान और प्रभाव

  • आधुनिकता का प्रवेश: हिंदी कविता में आधुनिकता, व्यक्तिवाद और बौद्धिकता को स्थापित किया।
  • भाषा और शिल्प में नवीनता: भाषा को अधिक लचीला और प्रयोगधर्मी बनाया, नए बिंबों और प्रतीकों का मार्ग प्रशस्त किया।
  • नई कविता का आधार: प्रयोगवाद ने ही आगे चलकर ‘नई कविता’ आंदोलन के लिए आधार तैयार किया।
  • व्यक्तिगत अनुभूतियों को महत्त्व: समाज के बजाय व्यक्ति की आंतरिक दुनिया और उसकी जटिलताओं को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
  • आलोचनात्मक चेतना: साहित्य में आलोचनात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष

प्रयोगवाद हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने कविता को नए क्षितिज प्रदान किए। इसने कवियों को परंपरागत बंधनों से मुक्त होकर अपनी बात कहने की स्वतंत्रता दी और आधुनिक जीवन की जटिलताओं को अभिव्यक्त करने के लिए नए रास्ते खोले। यद्यपि इसकी बौद्धिकता और दुरूहता के कारण यह जनसामान्य से कुछ दूर रहा, फिर भी इसने हिंदी कविता को गहराई और वैविध्य प्रदान किया।

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