अहमदाबाद सत्याग्रह (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
अहमदाबाद सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा भारत में किया गया पहला भूख हड़ताल का प्रयोग था। यह आंदोलन 1918 में गुजरात के अहमदाबाद शहर में मिल मजदूरों और मिल मालिकों के बीच वेतन वृद्धि को लेकर हुए विवाद के समर्थन में चलाया गया था। यह गांधीजी के प्रारंभिक सफल आंदोलनों में से एक था, जिसने औद्योगिक विवादों को हल करने में सत्याग्रह की शक्ति को प्रदर्शित किया।
1. पृष्ठभूमि और कारण (Background and Causes)
अहमदाबाद के मिल मजदूरों को प्रथम विश्व युद्ध के बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था, जिससे वेतन वृद्धि की मांग उठी।
- प्लेग बोनस का विवाद: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अहमदाबाद में प्लेग फैलने के कारण मिल मालिकों ने मजदूरों को ‘प्लेग बोनस’ देना शुरू किया था। युद्ध समाप्त होने और प्लेग का प्रकोप कम होने पर, मिल मालिकों ने यह बोनस बंद करने का निर्णय लिया।
- वेतन वृद्धि की मांग: प्लेग बोनस बंद होने और बढ़ती महंगाई के कारण, मजदूरों ने अपने वेतन में 50% की वृद्धि की मांग की। हालांकि, मिल मालिक केवल 20% वृद्धि देने को तैयार थे।
- मजदूरों की दयनीय स्थिति: मजदूरों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब थी, और बोनस बंद होने तथा वेतन वृद्धि न मिलने से उनकी समस्याएँ और बढ़ गईं।
2. गांधीजी का हस्तक्षेप और सत्याग्रह (Gandhi’s Intervention and Satyagraha)
मजदूरों की दुर्दशा से अवगत होने के बाद, महात्मा गांधी ने इस विवाद में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया।
- अनुसूया साराभाई का आमंत्रण: अनुसूया साराभाई, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं और मिल मालिक अंबालाल साराभाई की बहन थीं, ने गांधीजी को मजदूरों के मुद्दे में हस्तक्षेप करने के लिए आमंत्रित किया।
- गांधीजी की जाँच: गांधीजी ने मजदूरों की स्थिति का अध्ययन किया और उनके दावों को सत्यापित किया। उन्होंने पाया कि मजदूरों की 35% वेतन वृद्धि की मांग उचित थी।
- हड़ताल का आह्वान: जब मिल मालिक मजदूरों की उचित मांगों को मानने को तैयार नहीं हुए, तो गांधीजी ने मजदूरों को अहिंसक हड़ताल पर जाने का आह्वान किया।
- भूख हड़ताल का प्रयोग: मजदूरों का मनोबल बनाए रखने और उन्हें हड़ताल जारी रखने के लिए प्रेरित करने हेतु, गांधीजी ने स्वयं भूख हड़ताल शुरू की। यह भारत में गांधीजी का पहला भूख हड़ताल का प्रयोग था।
3. परिणाम और महत्व (Outcome and Significance)
अहमदाबाद सत्याग्रह की सफलता ने औद्योगिक विवादों को हल करने में गांधीजी की कार्यप्रणाली की प्रभावशीलता को सिद्ध किया।
- मिल मालिकों पर दबाव: गांधीजी की भूख हड़ताल ने मिल मालिकों पर भारी नैतिक दबाव डाला, क्योंकि वे गांधीजी के जीवन को खतरे में नहीं डालना चाहते थे।
- समझौता और ट्रिब्यूनल: अंततः, मिल मालिकों और मजदूरों के बीच एक समझौता हुआ। विवाद को एक ट्रिब्यूनल को सौंप दिया गया, जिसने मामले की सुनवाई की।
- 35% वेतन वृद्धि: ट्रिब्यूनल ने मजदूरों के लिए 35% वेतन वृद्धि की सिफारिश की, जिसे मिल मालिकों ने स्वीकार कर लिया।
- गांधीजी की दूसरी सफलता: यह गांधीजी का भारत में दूसरा सफल आंदोलन था (चंपारण के बाद) और शहरी औद्योगिक विवाद में उनकी पहली जीत थी।
- सत्याग्रह की शक्ति का प्रदर्शन: इस आंदोलन ने औद्योगिक विवादों को हल करने के लिए सत्याग्रह और भूख हड़ताल की शक्ति को प्रदर्शित किया।
- गांधीजी का नेतृत्व: इस आंदोलन ने गांधीजी को मजदूरों और शहरी मध्य वर्ग के बीच एक विश्वसनीय नेता के रूप में स्थापित किया।
- अहिंसक और अनुशासित आंदोलन: यह आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक और अनुशासित तरीके से चलाया गया था, जो गांधीजी के सिद्धांतों के अनुरूप था।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
अहमदाबाद सत्याग्रह महात्मा गांधी के भारत में प्रारंभिक सफल आंदोलनों में से एक था, जिसने औद्योगिक विवादों को हल करने में उनकी अनूठी कार्यप्रणाली – सत्याग्रह और भूख हड़ताल – की प्रभावशीलता को सिद्ध किया। इस आंदोलन ने मिल मजदूरों को न्याय दिलाया और गांधीजी को शहरी श्रमिक वर्ग के बीच एक मजबूत आधार बनाने में मदद की। चंपारण सत्याग्रह के साथ, अहमदाबाद सत्याग्रह ने गांधीजी के नेतृत्व कौशल और जन आंदोलनों को संगठित करने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे वे भविष्य के बड़े राष्ट्रीय आंदोलनों के लिए तैयार हुए। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना हुआ है, जो अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति को उजागर करता है।