मुगल साम्राज्य: अकबर की नीतियां (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
सम्राट अकबर का शासनकाल (1556-1605 ईस्वी) न केवल सैन्य विजयों और साम्राज्य विस्तार के लिए, बल्कि अपनी दूरदर्शी धार्मिक और प्रशासनिक नीतियों के लिए भी जाना जाता है। इन नीतियों ने मुगल साम्राज्य को एक मजबूत, स्थिर और समावेशी इकाई बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. धार्मिक नीतियां (Religious Policies)
अकबर की धार्मिक नीति उसकी उदारता और सहिष्णुता की भावना को दर्शाती है, जिसका उद्देश्य विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सामंजस्य स्थापित करना था।
- सुलह-ए-कुल (Sulh-i Kul):
- यह अकबर की धार्मिक नीति का आधारभूत सिद्धांत था, जिसका अर्थ है ‘सार्वभौमिक शांति’ या ‘सभी के लिए शांति’।
- इसका उद्देश्य सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों के बीच सद्भाव और सहिष्णुता को बढ़ावा देना था।
- यह नीति अबुल फजल द्वारा प्रतिपादित की गई थी।
- इबादत खाना (Ibadat Khana):
- 1575 ईस्वी में फतेहपुर सीकरी में निर्मित।
- प्रारंभ में, यह केवल मुस्लिम विद्वानों के बीच धार्मिक चर्चा के लिए था।
- 1578 ईस्वी से, इसे सभी धर्मों के विद्वानों (हिंदू, जैन, ईसाई, पारसी, सूफी आदि) के लिए खोल दिया गया, ताकि वे अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकें।
- इसका उद्देश्य अकबर को विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं को समझने में मदद करना था।
- दीन-ए-इलाही (Din-i Ilahi):
- 1582 ईस्वी में अकबर द्वारा स्थापित एक नया धार्मिक-दार्शनिक मार्ग।
- यह कोई नया धर्म नहीं था, बल्कि विभिन्न धर्मों के सर्वोत्तम सिद्धांतों का एक संश्लेषण था।
- इसका उद्देश्य ईश्वर की एकता पर जोर देना और धार्मिक कट्टरता को कम करना था।
- इसे बहुत कम लोगों ने अपनाया, जिनमें बीरबल एकमात्र हिंदू था।
- जजिया और तीर्थयात्रा कर का उन्मूलन (Abolition of Jizya and Pilgrimage Tax):
- 1563 ईस्वी में तीर्थयात्रा कर समाप्त किया।
- 1564 ईस्वी में गैर-मुसलमानों पर लगने वाला जजिया कर समाप्त किया।
- इन कदमों ने हिंदुओं का विश्वास जीतने और उन्हें मुगल साम्राज्य का अभिन्न अंग बनाने में मदद की।
- राजपूत नीति:
- राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए, जिसमें विवाह संबंध और उच्च पदों पर नियुक्ति शामिल थी।
- यह उसकी धार्मिक सहिष्णुता और साम्राज्य को मजबूत करने की नीति का हिस्सा था।
2. प्रशासनिक नीतियां (Administrative Policies)
अकबर ने एक कुशल और केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली विकसित की, जिसने साम्राज्य को स्थिरता प्रदान की।
- मनसबदारी प्रणाली (Mansabdari System):
- यह एक सैन्य और नागरिक प्रशासनिक प्रणाली थी, जिसे अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान विकसित किया।
- मनसबदार: वे अधिकारी होते थे जिन्हें एक निश्चित ‘मनसब’ (पद या रैंक) दिया जाता था।
- मनसब दो भागों में विभाजित था:
- जात (Zat): मनसबदार के व्यक्तिगत पद और वेतन को दर्शाता था।
- सवार (Sawar): मनसबदार द्वारा रखे जाने वाले घुड़सवारों की संख्या को दर्शाता था।
- यह प्रणाली सेना को संगठित करने और प्रशासन में योग्यता को बढ़ावा देने में सहायक थी।
- ज़ब्ती/दहसाला प्रणाली (Zabti/Dahsala System):
- राजा टोडरमल (अकबर का वित्त मंत्री) द्वारा 1580 ईस्वी में शुरू की गई एक भू-राजस्व प्रणाली।
- यह प्रणाली पिछले दस वर्षों की औसत उपज और कीमतों पर आधारित थी।
- भूमि को उसकी उर्वरता के आधार पर वर्गीकृत किया गया था (जैसे पोलज, परौती, चाचर, बंजर)।
- राजस्व का निर्धारण नकद में किया जाता था।
- यह प्रणाली किसानों और राज्य दोनों के लिए अधिक स्थिर और न्यायसंगत थी।
- प्रांतीय प्रशासन:
- साम्राज्य को सूबा (प्रांतों) में विभाजित किया गया था (अकबर के समय 15 सूबे)।
- प्रत्येक सूबे का प्रमुख ‘सूबेदार’ होता था, जो सैन्य और नागरिक दोनों शक्तियों का प्रयोग करता था।
- अन्य प्रांतीय अधिकारी: दीवान (वित्त), बख्शी (सैन्य भुगतान), सद्र (धार्मिक मामले)।
- सूबे को सरकार (जिले) और परगना में विभाजित किया गया था।
- अन्य सुधार:
- न्याय प्रणाली: सुल्तान सर्वोच्च न्यायाधीश था, और काजी न्याय करते थे।
- मुद्रा सुधार: सोने, चांदी और तांबे के सिक्के जारी किए गए, जिनमें एकरूपता थी।
- अमीर-ए-दाद: न्याय अधिकारी जो दीवानी मामलों को देखते थे।
3. निष्कर्ष (Conclusion)
अकबर की धार्मिक और प्रशासनिक नीतियाँ उसके दूरदर्शी नेतृत्व का प्रमाण थीं। ‘सुलह-ए-कुल’ के सिद्धांत ने एक बहु-धार्मिक समाज में शांति और सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया, जबकि मनसबदारी और ज़ब्ती जैसी प्रशासनिक प्रणालियों ने साम्राज्य को मजबूत और कुशल बनाया। इन नीतियों ने अकबर के शासनकाल को मुगल इतिहास का स्वर्ण युग बना दिया और भारतीय उपमहाद्वीप पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।