मुगल साम्राज्य: औरंगजेब (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
मुही-उद-दीन मुहम्मद औरंगजेब, जिसे आमतौर पर औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता है, मुगल साम्राज्य का छठा और अंतिम प्रभावी शासक था। उसका शासनकाल (1658-1707 ईस्वी) मुगल साम्राज्य के चरमोत्कर्ष और उसके पतन की शुरुआत दोनों का प्रतीक था।
1. प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक (Early Life and Accession)
- जन्म: 3 नवंबर 1618 ईस्वी को उज्जैन के निकट दोहद नामक स्थान पर।
- पिता: शाहजहाँ।
- माता: मुमताज महल।
- उत्तराधिकार का संघर्ष: शाहजहाँ के बीमार पड़ने के बाद, औरंगजेब ने अपने भाइयों (विशेषकर दारा शिकोह) के साथ एक क्रूर उत्तराधिकार का युद्ध लड़ा।
- धर्मत का युद्ध (1658 ईस्वी): औरंगजेब और मुराद की संयुक्त सेना ने दारा शिकोह को पराजित किया।
- सामूगढ़ का युद्ध (1658 ईस्वी): औरंगजेब ने दारा शिकोह को निर्णायक रूप से पराजित किया।
- देवराई का युद्ध (1659 ईस्वी): दारा शिकोह की अंतिम हार और गिरफ्तारी, जिसके बाद उसे फांसी दे दी गई।
- राज्याभिषेक: औरंगजेब ने दो बार राज्याभिषेक करवाया।
- प्रथम राज्याभिषेक: 21 जुलाई 1658 ईस्वी को आगरा पर अधिकार करने के बाद दिल्ली में।
- द्वितीय राज्याभिषेक: 5 जून 1659 ईस्वी को देवराई के युद्ध में अंतिम विजय के बाद दिल्ली में। उसने ‘अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर पादशाह गाजी’ की उपाधि धारण की।
2. सैन्य अभियान और साम्राज्य विस्तार (Military Campaigns and Imperial Expansion)
औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य को उसके सर्वाधिक भौगोलिक विस्तार तक पहुँचाया, लेकिन इसके लिए उसे लगातार युद्ध लड़ने पड़े।
- दक्कन नीति: औरंगजेब ने अपना अधिकांश शासनकाल दक्कन में बिताया, जिसका उद्देश्य मराठों और दक्कन सल्तनतों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करना था।
- उसने बीजापुर (1686 ईस्वी) और गोलकुंडा (1687 ईस्वी) के शिया सल्तनतों का मुगल साम्राज्य में विलय कर लिया।
- मराठों से संघर्ष:
- औरंगजेब का मराठा शक्ति, विशेषकर शिवाजी और उनके उत्तराधिकारियों के साथ लंबा और थका देने वाला संघर्ष चला।
- शिवाजी के बाद, उसके पुत्र संभाजी को औरंगजेब ने पकड़कर मार डाला (1689 ईस्वी)।
- मराठा प्रतिरोध ताराबाई के नेतृत्व में जारी रहा, जिसने मुगलों को लगातार परेशान किया।
- दक्कन में लंबे समय तक सैन्य अभियानों ने मुगल साम्राज्य के संसाधनों को बहुत अधिक समाप्त कर दिया।
- उत्तर-पश्चिमी सीमांत: अफगान जनजातियों के साथ भी संघर्ष जारी रहा।
3. धार्मिक नीति (Religious Policy)
औरंगजेब की धार्मिक नीति अकबर की उदार नीतियों के विपरीत थी और इस्लामी रूढ़िवादिता पर आधारित थी।
- वह एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसने शरीयत (इस्लामी कानून) को सख्ती से लागू करने का प्रयास किया।
- जजिया कर की पुनः स्थापना: 1679 ईस्वी में उसने गैर-मुसलमानों पर लगने वाले जजिया कर को पुनः लागू किया, जिसे अकबर ने समाप्त कर दिया था।
- तीर्थयात्रा कर: इसने तीर्थयात्रा कर को भी पुनः लागू किया।
- मंदिर विध्वंस: उसने कई हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) और केशवदेव मंदिर (मथुरा) प्रमुख थे।
- गैर-इस्लामी प्रथाओं पर प्रतिबंध:
- शाही दरबार में संगीत और नृत्य पर प्रतिबंध लगाया।
- झरोखा दर्शन (अकबर द्वारा शुरू) और तुलादान प्रथा (सम्राट को सोने-चांदी से तौलना) जैसी प्रथाओं को बंद किया।
- सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद किया।
- नवरोज (फारसी नव वर्ष) त्योहार मनाने पर प्रतिबंध लगाया।
- सिखों से संघर्ष:
- सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार न करने के कारण फांसी दे दी गई (1675 ईस्वी)।
- इसके बाद सिखों और मुगलों के बीच संबंध और खराब हो गए, और गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की।
4. प्रशासन और सुधार (Administration and Reforms)
औरंगजेब एक कुशल प्रशासक था, जिसने साम्राज्य को मजबूत बनाए रखने का प्रयास किया।
- उसने मनसबदारी प्रणाली को बनाए रखा, लेकिन दक्कन में लंबे युद्धों के कारण मनसबदारों की संख्या में वृद्धि हुई, जिससे जागीर संकट उत्पन्न हुआ।
- उसने स्थानीय करों (अविवाब) को समाप्त करने का प्रयास किया।
- उसने न्याय प्रणाली को शरीयत के अनुसार अधिक कठोर बनाया।
- उसने ‘फतवा-ए-आलमगीरी’ नामक इस्लामी कानूनों का एक संग्रह तैयार करवाया।
- उसके शासनकाल में सूबों (प्रांतों) की संख्या 20 तक पहुँच गई थी।
5. कला और साहित्य (Art and Literature)
- कला:
- औरंगजेब व्यक्तिगत रूप से कला और स्थापत्य में बहुत रुचि नहीं रखता था, और उसने शाही संरक्षण कम कर दिया था।
- हालांकि, उसके शासनकाल में कुछ महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण हुआ, जैसे लाहौर की बादशाही मस्जिद और बीबी का मकबरा (औरंगाबाद), जो ताजमहल की नकल है।
- चित्रकला में शाही संरक्षण में कमी आई, लेकिन क्षेत्रीय शैलियों का विकास जारी रहा।
- साहित्य:
- फारसी साहित्य का विकास जारी रहा।
- उसने स्वयं धार्मिक ग्रंथों को पढ़ा और उनकी नकल की।
- ‘आलमगीरनामा’ (मुहम्मद काज़िम द्वारा) उसके शासनकाल के पहले 10 वर्षों का आधिकारिक इतिहास है।
6. विद्रोह (Rebellions)
औरंगजेब की नीतियों के कारण उसके शासनकाल में कई विद्रोह हुए।
- जाट विद्रोह: मथुरा क्षेत्र में गोकुला और राजाराम के नेतृत्व में।
- सतनामी विद्रोह: नारनौल क्षेत्र में सतनामी समुदाय द्वारा।
- सिख विद्रोह: गुरु तेग बहादुर की फांसी और गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में खालसा पंथ की स्थापना के बाद।
- राजपूत विद्रोह: मारवाड़ और मेवाड़ के राजपूतों ने औरंगजेब की नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया।
7. मुगल साम्राज्य का पतन और औरंगजेब की भूमिका (Decline of the Mughal Empire and Aurangzeb’s Role)
- औरंगजेब का शासनकाल मुगल साम्राज्य के पतन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
- दक्कन का लंबा युद्ध: दक्कन में मराठों के खिलाफ 25 वर्षों के लगातार युद्धों ने साम्राज्य के संसाधनों को समाप्त कर दिया, शाही खजाने को खाली कर दिया और सेना को थका दिया।
- धार्मिक असहिष्णुता: उसकी धार्मिक नीतियों ने बहुसंख्यक हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों को अलग-थलग कर दिया, जिससे साम्राज्य के प्रति उनकी निष्ठा कम हो गई।
- मनसबदारी और जागीरदारी संकट: मनसबदारों की बढ़ती संख्या और जागीरों की कमी ने प्रशासनिक संकट पैदा किया।
- उत्तराधिकार का संघर्ष: उसके बाद के कमजोर उत्तराधिकारियों के बीच हुए संघर्षों ने साम्राज्य को और कमजोर कर दिया।
8. मृत्यु और विरासत (Death and Legacy)
- मृत्यु: 3 मार्च 1707 ईस्वी को अहमदनगर (दक्कन) में। उसे दौलताबाद में दफनाया गया।
- विरासत:
- औरंगजेब एक कट्टर और कर्तव्यनिष्ठ शासक था, जिसने व्यक्तिगत रूप से सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया।
- उसने मुगल साम्राज्य को उसके सर्वाधिक भौगोलिक विस्तार तक पहुँचाया, लेकिन उसकी नीतियों ने साम्राज्य के भीतर गहरे विभाजन पैदा किए।
- उसके शासनकाल के अंत तक, मुगल साम्राज्य आंतरिक कमजोरियों और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय के कारण पतन के कगार पर था।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
औरंगजेब का शासनकाल मुगल साम्राज्य के इतिहास में एक जटिल और विवादास्पद अध्याय है। उसकी सैन्य सफलताओं ने साम्राज्य को विशाल बनाया, लेकिन उसकी धार्मिक नीतियों और दक्कन के लंबे युद्धों ने इसकी नींव को कमजोर कर दिया। उसके बाद के कमजोर शासकों के कारण मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन हुआ, जिससे भारत में एक नए राजनीतिक परिदृश्य का उदय हुआ।