मुगल साम्राज्य: बाबर और साम्राज्य की स्थापना (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर द्वारा की गई थी, जिसने 1526 ईस्वी में पानीपत के प्रथम युद्ध में विजय प्राप्त कर दिल्ली सल्तनत का अंत किया। यह घटना भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरुआत थी, जिसने उपमहाद्वीप में एक शक्तिशाली और दीर्घकालिक साम्राज्य की नींव रखी।
1. बाबर का प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि (Babur’s Early Life and Background)
- जन्म: 14 फरवरी 1483 ईस्वी को फरगाना (आधुनिक उज्बेकिस्तान) में।
- पूरा नाम: ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर।
- वंश:
- पिता की ओर से तैमूर का पांचवां वंशज।
- माता की ओर से चंगेज खान का चौदहवां वंशज।
- फरगाना का शासक: 1494 ईस्वी में, मात्र 11 वर्ष की आयु में अपने पिता उमर शेख मिर्जा की मृत्यु के बाद फरगाना की गद्दी पर बैठा।
- प्रारंभिक संघर्ष: मध्य एशिया में समरकंद और फरगाना पर नियंत्रण के लिए लगातार संघर्षों का सामना किया, लेकिन सफल नहीं हो सका।
- काबुल पर अधिकार: 1504 ईस्वी में उसने काबुल पर अधिकार कर लिया, जो भारत की ओर उसके विस्तार का आधार बना।
- ‘पादशाह’ की उपाधि: 1507 ईस्वी में उसने ‘मिर्जा’ की पैतृक उपाधि त्याग कर ‘पादशाह’ (बादशाह) की उपाधि धारण की, जो एक स्वतंत्र शासक के रूप में उसकी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
2. भारत पर आक्रमण के कारण (Causes of Invasion of India)
बाबर के भारत पर आक्रमण के कई कारण थे, जिनमें उसकी महत्वाकांक्षा और तत्कालीन भारतीय राजनीतिक स्थिति प्रमुख थी।
- साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा: मध्य एशिया में अपने पैतृक क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने में विफल रहने के बाद, बाबर ने भारत में एक नया और शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित करने का निश्चय किया।
- धन प्राप्ति की कामना: काबुल राज्य की सीमित आय के कारण, भारत की अकूत धन-संपत्ति उसे आकर्षित करती थी।
- भारत की राजनीतिक अस्थिरता:
- दिल्ली सल्तनत (लोदी वंश) कमजोर हो चुकी थी और इब्राहिम लोदी एक अलोकप्रिय शासक था।
- राजपूत राज्यों और अफगान सरदारों के बीच आपसी संघर्ष और फूट थी।
- पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और मेवाड़ के शासक राणा सांगा जैसे कुछ भारतीय शासकों ने स्वयं बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था।
- तोपखाने का प्रयोग: बाबर के पास उन्नत तोपखाना और ‘तुलुगमा’ युद्ध पद्धति जैसी बेहतर सैन्य तकनीकें थीं, जो उसे भारतीय सेनाओं पर बढ़त दिला सकती थीं।
3. पानीपत का प्रथम युद्ध (First Battle of Panipat) (21 अप्रैल 1526 ईस्वी)
यह युद्ध भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
- पक्ष: बाबर (मुगल सेना) बनाम इब्राहिम लोदी (दिल्ली सल्तनत)।
- स्थान: पानीपत (वर्तमान हरियाणा)।
- परिणाम:
- बाबर की निर्णायक विजय हुई।
- इब्राहिम लोदी युद्ध के मैदान में मारा गया, जो दिल्ली सल्तनत का एकमात्र सुल्तान था जिसकी युद्ध के मैदान में मृत्यु हुई।
- बाबर की विजय के कारण:
- तोपखाने का प्रभावी उपयोग: बाबर ने उस्मानी पद्धति (रूमी विधि) का प्रयोग किया, जिसमें तोपों को गाड़ियों के बीच रखकर सुरक्षित किया जाता था।
- तुलुगमा युद्ध पद्धति: सेना के दाएँ और बाएँ छोर पर कुछ सैन्य टुकड़ियाँ खड़ी रहती थीं, जो तेजी से आगे बढ़कर शत्रु को पीछे से घेर लेती थीं।
- कुशल घुड़सवार सेना और सैन्य रणनीति।
- इब्राहिम लोदी की अयोग्यता और उसकी सेना में अनुशासन की कमी।
- महत्व: इस युद्ध ने दिल्ली सल्तनत का अंत किया और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
4. मुगल साम्राज्य की स्थापना (Foundation of the Mughal Empire)
पानीपत की विजय के बाद बाबर ने भारत में अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए कई और युद्ध लड़े।
- खानवा का युद्ध (17 मार्च 1527 ईस्वी):
- पक्ष: बाबर बनाम राणा सांगा (मेवाड़ के राजपूत शासक) और उनके सहयोगी।
- उद्देश्य: राणा सांगा भारत में अफगान शक्ति को समाप्त करने के बाद स्वयं सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे।
- परिणाम: बाबर की विजय हुई। बाबर ने इस युद्ध में ‘जिहाद’ का नारा दिया और ‘गाजी’ की उपाधि धारण की।
- महत्व: इस युद्ध ने भारत में राजपूत शक्ति को कमजोर किया और बाबर के साम्राज्य को स्थिरता प्रदान की।
- चंदेरी का युद्ध (29 जनवरी 1528 ईस्वी):
- पक्ष: बाबर बनाम मेदनी राय (मालवा का राजपूत शासक)।
- परिणाम: बाबर की विजय हुई।
- महत्व: इस विजय से मालवा पर बाबर का नियंत्रण स्थापित हुआ और राजपूतों की रही-सही शक्ति भी समाप्त हो गई।
- घाघरा का युद्ध (6 मई 1529 ईस्वी):
- पक्ष: बाबर बनाम अफगान सरदार (महमूद लोदी के नेतृत्व में)।
- स्थान: घाघरा नदी के तट पर (बिहार में)।
- परिणाम: बाबर की विजय हुई।
- महत्व: यह पहला युद्ध था जो जल और थल दोनों पर लड़ा गया। इस युद्ध ने भारत में अफगान शक्ति को पूरी तरह से कुचल दिया और बाबर के साम्राज्य को पूर्वी सीमा पर सुरक्षित किया।
5. बाबर का व्यक्तित्व और विरासत (Babur’s Personality and Legacy)
- एक कुशल सेनापति और रणनीतिकार: बाबर एक उत्कृष्ट सैन्य नेता था जिसने अपनी नवीन युद्ध पद्धतियों (जैसे तुलुगमा और तोपखाने का उपयोग) से भारत में विजय प्राप्त की।
- कला और साहित्य का संरक्षक:
- वह एक विद्वान और लेखक था।
- उसने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ (तुज़्क-ए-बाबरी) तुर्की भाषा (चगताई तुर्की) में लिखी, जो मध्यकालीन भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- ‘बाबरनामा’ में उसके जीवन, विजय अभियानों, भारत के भूगोल, वनस्पतियों, जीवों और तत्कालीन समाज का विस्तृत विवरण मिलता है।
- न्यायप्रिय शासक: उसने न्याय और व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया।
- बागों का शौकीन: उसे बागवानी का बहुत शौक था और उसने भारत में कई बाग लगवाए (जैसे आगरा में आराम बाग)।
- मृत्यु: 27 दिसंबर 1530 ईस्वी को आगरा में। उसे पहले आगरा के आराम बाग में दफनाया गया, बाद में उसकी इच्छा के अनुसार काबुल में दफनाया गया।
- विरासत: उसने भारत में एक नए और शक्तिशाली साम्राज्य, मुगल साम्राज्य की नींव रखी, जिसने लगभग 300 वर्षों तक भारत पर शासन किया।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
बाबर, अपनी असाधारण सैन्य प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के साथ, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी व्यक्ति था। उसने दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद भारत में एक नए और शक्तिशाली साम्राज्य, मुगल साम्राज्य की स्थापना की। उसकी विजयों ने न केवल एक नए राजवंश को जन्म दिया, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप में एक नई राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था की शुरुआत भी की, जिसकी छाप सदियों तक बनी रही।