बारदोली सत्याग्रह (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
बारदोली सत्याग्रह, जो 1928 में गुजरात के बारदोली तालुका में हुआ, ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा किसानों पर बढ़ाए गए अत्यधिक भू-राजस्व के खिलाफ एक महत्वपूर्ण किसान आंदोलन और राष्ट्रवादी आंदोलन था। इस आंदोलन ने बॉम्बे प्रेसीडेंसी में लगाए जा रहे 22% कर वृद्धि को रद्द करने की मांग की।
1. पृष्ठभूमि और कारण (Background and Causes)
बारदोली क्षेत्र में किसान पहले से ही आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे थे, जब सरकार ने उन पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया।
- अत्यधिक कर वृद्धि: 1925 में, बारदोली तालुका में बाढ़ और अकाल के कारण फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई थीं, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। इसके बावजूद, बॉम्बे प्रेसीडेंसी सरकार ने भू-राजस्व में अचानक 22% की वृद्धि कर दी।
- किसानों की दयनीय स्थिति: फसल की विफलता और आर्थिक संकट के कारण किसान बढ़े हुए कर का भुगतान करने में असमर्थ थे।
- सरकार की हठधर्मिता: किसानों और विभिन्न नागरिक समूहों द्वारा कर वृद्धि को रद्द करने की कई अपीलों के बावजूद, सरकार ने अपनी निर्णय पर कोई पुनर्विचार नहीं किया।
- स्थानीय नेताओं की प्रारंभिक पहल: बारदोली तालुका के कल्याणजी और कुंवरजी मेहता (जिन्हें ‘मेहता बंधु’ कहा जाता है) और दयालजी ने 1922 में ही किसानों के समर्थन में आंदोलन शुरू कर दिया था।
2. नेतृत्व और प्रमुख नेता (Leadership and Key Leaders)
बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया, जिन्होंने इसे एक सफल जन आंदोलन में बदल दिया।
- सरदार वल्लभभाई पटेल: 1928 में, बारदोली के किसानों ने सरदार वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और उनसे आंदोलन का नेतृत्व करने का आग्रह किया। पटेल ने गांधीजी के अहिंसक सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया।
- महात्मा गांधी का समर्थन: गांधीजी ने सीधे तौर पर आंदोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने पटेल को अपना पूरा समर्थन दिया और ‘यंग इंडिया’ जैसे अपने प्रकाशनों के माध्यम से आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया।
- स्थानीय स्वयंसेवक: पटेल को कई स्थानीय नेताओं और स्वयंसेवकों का समर्थन मिला, जिन्होंने आंदोलन को केंद्रित और अहिंसक बनाए रखने में मदद की। इनमें महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल थीं।
3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Revolt)
बारदोली सत्याग्रह अहिंसक असहयोग और दृढ़ता का एक उल्लेखनीय उदाहरण था।
- ‘कर नहीं’ अभियान: 12 फरवरी 1928 को, हजारों किसानों ने एक बैठक में बढ़े हुए लगान का भुगतान न करने की प्रतिज्ञा ली। यह ‘कर नहीं’ अभियान पूरे तालुका में फैल गया।
- सामाजिक बहिष्कार: किसानों ने सरकार के अधिकारियों और उन लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया, जिन्होंने लगान का भुगतान किया या सरकार का समर्थन किया।
- भूमि और संपत्ति की कुर्की: सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए किसानों की भूमि और संपत्ति को जब्त करना और नीलाम करना शुरू कर दिया। सरकार ने पठानों के गिरोहों को भी भेजा ताकि वे ग्रामीणों को आतंकित कर सकें और उनकी संपत्ति जब्त कर सकें।
- किसानों का दृढ़ संकल्प: दमन के बावजूद, किसानों ने अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ता बनाए रखी। उन्होंने अपनी भूमि को जब्त होने दिया लेकिन उसे खरीदने के लिए किसी को आगे नहीं आने दिया।
- महिला भागीदारी: बारदोली सत्याग्रह में महिलाओं ने अभूतपूर्व भागीदारी दिखाई। उन्होंने जुलूसों में भाग लिया, विरोध प्रदर्शन किए और पुरुषों को आंदोलन में सक्रिय रहने के लिए प्रेरित किया। यह बारदोली की महिलाओं द्वारा ही वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी गई थी।
- राष्ट्रव्यापी समर्थन: यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया, और विभिन्न क्षेत्रों से मौद्रिक और भौतिक सहायता बारदोली के लोगों तक पहुंचने लगी।
4. विद्रोह का दमन और परिणाम (Suppression and Outcomes of the Revolt)
किसानों के दृढ़ संकल्प और राष्ट्रीय समर्थन के कारण सरकार को अंततः झुकना पड़ा।
- मैक्सवेल-ब्रूमफील्ड आयोग: बढ़ते दबाव और आलोचना के बाद, ब्रिटिश सरकार ने स्थिति की जांच के लिए मैक्सवेल-ब्रूमफील्ड आयोग का गठन किया।
- आयोग की रिपोर्ट: आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि कर वृद्धि अनुचित थी। उसने सिफारिश की कि कर वृद्धि को कम किया जाए।
- सरकार का समझौता: अगस्त 1928 तक, सरकार ने किसानों की मांगों को स्वीकार कर लिया। उसने बढ़े हुए कर को रद्द कर दिया और केवल 6.03% की वृद्धि पर सहमति व्यक्त की। जब्त की गई सभी भूमि और संपत्तियां किसानों को वापस कर दी गईं।
- कैदियों की रिहाई: आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए सभी किसानों और नेताओं को रिहा कर दिया गया।
5. विद्रोह का महत्व (Significance of the Revolt)
बारदोली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
- सरदार पटेल का उदय: इस आंदोलन की सफलता ने वल्लभभाई पटेल को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली, जो उनकी नेतृत्व क्षमता का प्रतीक बन गई।
- सत्याग्रह की शक्ति का प्रदर्शन: इसने एक बार फिर अहिंसक सत्याग्रह की शक्ति और प्रभावशीलता को सिद्ध किया।
- किसानों में आत्मविश्वास: बारदोली की जीत ने पूरे भारत के किसानों में आत्मविश्वास और प्रेरणा पैदा की कि वे अन्यायपूर्ण नीतियों के खिलाफ लड़ सकते हैं।
- राष्ट्रीय आंदोलन को गति: इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई गति दी और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) जैसे भविष्य के बड़े आंदोलनों के लिए आधार तैयार किया।
- महिला सशक्तिकरण: महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को उजागर किया और भविष्य में उनकी भागीदारी के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
बारदोली सत्याग्रह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय किसानों के सफल प्रतिरोध का एक ज्वलंत उदाहरण है। सरदार वल्लभभाई पटेल के कुशल नेतृत्व, किसानों के दृढ़ संकल्प और अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। इस आंदोलन ने न केवल बारदोली के किसानों को राहत दिलाई, बल्कि इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा और भविष्य के राष्ट्रवादी आंदोलनों के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा स्रोत बना। यह भारतीय इतिहास में आम लोगों की एकजुटता और संघर्ष की क्षमता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।