यूरोपीय शक्तियों का आगमन: ब्रिटिश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
पुर्तगालियों, डचों और फ्रेंच के बाद, ब्रिटिश भारत में आने वाली सबसे महत्वपूर्ण यूरोपीय शक्ति थे, जिन्होंने अंततः भारत पर अपना औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित किया। उनकी संगठित व्यापारिक गतिविधियाँ और सैन्य श्रेष्ठता ने उन्हें अन्य यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त दिलाई।
1. भारत आने के कारण (Reasons for Coming to India)
ब्रिटिश के भारत आने के पीछे मुख्य रूप से आर्थिक, व्यापारिक और साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएँ थीं।
- मसालों और वस्त्रों का व्यापार: यूरोपीय बाजारों में भारतीय मसालों, सूती वस्त्रों और रेशम की भारी मांग थी, जिससे ब्रिटिश व्यापारी आकर्षित हुए।
- अन्य यूरोपीय शक्तियों से प्रतिस्पर्धा: ब्रिटिश, पुर्तगाली, डच और फ्रेंच की पूर्वी व्यापार में सफलता से प्रेरित थे और वे भी इस लाभदायक व्यापार में हिस्सा लेना चाहते थे।
- औद्योगिक क्रांति: इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के साथ, उन्हें अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल (जैसे कपास) और तैयार माल के लिए बाजार की आवश्यकता थी।
- साम्राज्यवादी विस्तार: ब्रिटिश साम्राज्य अपनी वैश्विक शक्ति और प्रभाव का विस्तार करना चाहता था, और भारत एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था।
2. प्रमुख ब्रिटिश व्यापारिक कंपनी (Key British Trading Company)
- ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company – EIC):
- 31 दिसंबर 1600 ईस्वी को इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम से एक शाही चार्टर द्वारा स्थापित की गई।
- इसे पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का 15 वर्षों का एकाधिकार प्राप्त था।
- यह एक निजी व्यापारिक कंपनी थी, जो इसे फ्रांसीसी कंपनी की तुलना में अधिक लचीलापन और स्वतंत्रता प्रदान करती थी।
3. प्रमुख ब्रिटिश बस्तियाँ और व्यापारिक केंद्र (Prominent British Settlements and Trading Posts)
ब्रिटिश ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी व्यापारिक फैक्ट्रियां स्थापित कीं, जो बाद में राजनीतिक और सैन्य अड्डों में बदल गईं।
- सूरत (गुजरात): 1613 ईस्वी में भारत में उनकी पहली स्थायी फैक्ट्री स्थापित की गई (कैप्टन विलियम हॉकिन्स 1608 में मुगल दरबार में आया, लेकिन सर थॉमस रो 1615 में जहांगीर से व्यापारिक रियायतें प्राप्त करने में सफल रहा)।
- मसूलीपट्टनम (आंध्र प्रदेश): 1611 ईस्वी में स्थापित (अस्थायी फैक्ट्री)।
- मद्रास (चेन्नई): 1639 ईस्वी में फ्रांसिस डे द्वारा स्थापित, जहाँ ‘फोर्ट सेंट जॉर्ज’ का निर्माण किया गया। यह दक्षिण भारत में उनका मुख्य केंद्र बन गया।
- बम्बई (मुंबई): 1668 ईस्वी में ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को 10 पाउंड वार्षिक किराए पर दे दिया था (यह उसे पुर्तगाल से दहेज में मिला था)। यह पश्चिमी तट पर उनका मुख्य केंद्र बन गया।
- कलकत्ता (कोलकाता): 1690 ईस्वी में जॉब चारनॉक द्वारा स्थापित, जहाँ ‘फोर्ट विलियम’ का निर्माण किया गया। यह पूर्वी भारत में उनका मुख्य केंद्र बन गया।
- अन्य:
- हुगली, कासिमबाजार, पटना, बालासोर।
- मुख्य व्यापारिक वस्तुएँ: भारत से सूती वस्त्र, रेशम, नील, शोरा और अफीम का निर्यात करते थे।
4. प्रमुख ब्रिटिश गवर्नर और नीतियां (Key British Governors and Policies)
ब्रिटिश ने भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए विभिन्न रणनीतिक नीतियां अपनाईं।
- रॉबर्ट क्लाइव:
- भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- प्लासी का युद्ध (1757) और बक्सर का युद्ध (1764) में उसकी भूमिका निर्णायक थी।
- उसने बंगाल में ‘द्वैध शासन’ प्रणाली लागू की।
- वॉरेन हेस्टिंग्स:
- बंगाल का पहला गवर्नर-जनरल।
- उसने द्वैध शासन समाप्त किया और ब्रिटिश प्रशासन को मजबूत किया।
- लॉर्ड वेलेजली:
- ‘सहायक संधि’ प्रणाली का जनक, जिसने भारतीय राज्यों को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
- लॉर्ड डलहौजी:
- ‘व्यपगत का सिद्धांत’ (Doctrine of Lapse) लागू किया, जिसके तहत कई भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
5. अन्य यूरोपीय शक्तियों के साथ संघर्ष (Conflicts with Other European Powers)
ब्रिटिश को भारत में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए अन्य यूरोपीय शक्तियों से कठोर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
- पुर्तगाली:
- स्वाली का युद्ध (1612 ईस्वी): अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को पराजित किया, जिससे भारत में पुर्तगाली शक्ति का पतन शुरू हुआ और अंग्रेजों की समुद्री श्रेष्ठता स्थापित हुई।
- डच:
- बेदरा का युद्ध (1759 ईस्वी): अंग्रेजों ने डचों को निर्णायक रूप से पराजित किया, जिससे भारत में डच शक्ति लगभग समाप्त हो गई।
- फ्रेंच:
- कर्नाटक युद्ध (1746-1763 ईस्वी): इन तीन युद्धों में अंग्रेजों ने फ्रेंच को निर्णायक रूप से पराजित किया।
- वांडीवाश का युद्ध (1760 ईस्वी): तृतीय कर्नाटक युद्ध का निर्णायक युद्ध, जिसमें अंग्रेजों ने फ्रेंच को अंतिम रूप से पराजित किया, जिससे भारत में फ्रेंच शक्ति का अंत हो गया।
6. ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना की ओर (Towards the Establishment of British Control)
यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों पर विजय प्राप्त करने के बाद, ब्रिटिश ने भारत में राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की ओर कदम बढ़ाए।
- बंगाल पर नियंत्रण:
- प्लासी का युद्ध (1757 ईस्वी): रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित किया। यह भारत में ब्रिटिश राजनीतिक प्रभुत्व की शुरुआत थी।
- बक्सर का युद्ध (1764 ईस्वी): अंग्रेजों ने बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को पराजित किया। इस युद्ध ने भारत में ब्रिटिश सर्वोच्चता को स्थापित किया।
- इलाहाबाद की संधि (1765 ईस्वी): इस संधि के तहत कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व एकत्र करने का अधिकार) प्राप्त हुई, जिससे वे इन क्षेत्रों के वास्तविक शासक बन गए।
- मैसूर और मराठों के साथ युद्ध:
- एंग्लो-मैसूर युद्ध: टीपू सुल्तान जैसे शासकों को पराजित कर मैसूर पर नियंत्रण स्थापित किया।
- एंग्लो-मराठा युद्ध: मराठा परिसंघ को पराजित कर दक्कन और मध्य भारत पर नियंत्रण स्थापित किया।
- पंजाब और सिंध का विलय:
- सिखों को पराजित कर पंजाब का विलय किया।
- सिंध का भी विलय किया।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आने वाली यूरोपीय शक्तियों में सबसे सफल रही। उनकी कुशल व्यापारिक रणनीति, मजबूत नौसेना, बेहतर सैन्य संगठन और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने उन्हें अन्य यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों पर निर्णायक बढ़त दिलाई। प्लासी और बक्सर जैसे युद्धों में मिली जीत ने उन्हें भारत में राजनीतिक शक्ति स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे अंततः भारत में एक विशाल ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य की नींव रखी गई।