उत्तर-गुप्त काल: चालुक्य वंश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद, दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। इनमें से एक प्रमुख शक्ति चालुक्य वंश था, जिसने लगभग छठी शताब्दी ईस्वी से बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक दक्कन और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। चालुक्य वंश ने तीन प्रमुख शाखाओं में शासन किया, जो भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला।
1. चालुक्य वंश की शाखाएँ (Branches of Chalukya Dynasty)
चालुक्य वंश की तीन प्रमुख शाखाएँ थीं, जिन्होंने अलग-अलग समय पर और अलग-अलग क्षेत्रों में शासन किया:
- बादामी के चालुक्य (पश्चिमी चालुक्य): यह सबसे प्राचीन और प्रमुख शाखा थी, जिसने छठी से आठवीं शताब्दी ईस्वी तक शासन किया। इनकी राजधानी वातापी (आधुनिक बादामी, कर्नाटक) थी।
- वेंगी के पूर्वी चालुक्य: यह शाखा बादामी के चालुक्यों से निकली और सातवीं से ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी तक पूर्वी दक्कन (आधुनिक आंध्र प्रदेश) में शासन किया। इनकी राजधानी वेंगी थी।
- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य: यह शाखा राष्ट्रकूटों के पतन के बाद दसवीं से बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक उभरी। इनकी राजधानी कल्याणी (आधुनिक बसावकल्याण, कर्नाटक) थी।
2. बादामी के चालुक्य (Chalukyas of Badami)
यह चालुक्य वंश की सबसे महत्वपूर्ण शाखा थी, जिसने दक्कन में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया।
- संस्थापक: पुलकेशिन प्रथम (लगभग 543-566 ईस्वी)। उसने वातापी को अपनी राजधानी बनाया और अश्वमेध यज्ञ किया।
- प्रमुख शासक:
- कीर्तिवर्मन प्रथम (लगभग 566-597 ईस्वी): उसने कदंबों और मौर्यों को पराजित किया।
- पुलकेशिन द्वितीय (लगभग 610-642 ईस्वी):
- बादामी चालुक्यों का सबसे महान शासक।
- उपाधियाँ: ‘परमेश्वर’, ‘सत्याश्रय’।
- उसने उत्तर भारत के शक्तिशाली शासक हर्षवर्धन को नर्मदा नदी के तट पर पराजित किया। इसकी जानकारी उसके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित ऐहोल प्रशस्ति से मिलती है।
- उसने पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम को पराजित किया, लेकिन बाद में पल्लव शासक नरसिंहवर्मन प्रथम द्वारा पराजित होकर मारा गया, जिसने वातापी पर कब्जा कर लिया और ‘वातापीकोंड’ की उपाधि धारण की।
- उसने पूर्वी चालुक्य शाखा की नींव रखी (अपने भाई विष्णुवर्धन को वेंगी का शासक बनाकर)।
- विक्रमादित्य प्रथम (लगभग 655-680 ईस्वी): उसने पल्लवों से वातापी को वापस जीता।
- विनयादित्य (लगभग 680-696 ईस्वी): उसने चोल, पांड्य और चेर राज्यों को पराजित किया।
- विक्रमादित्य द्वितीय (लगभग 733-744 ईस्वी): उसने पल्लवों की राजधानी कांची पर तीन बार आक्रमण किया।
- कीर्तिवर्मन द्वितीय (लगभग 744-753 ईस्वी): बादामी चालुक्यों का अंतिम शासक, जिसे राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग ने पराजित किया।
3. वेंगी के पूर्वी चालुक्य (Eastern Chalukyas of Vengi)
यह शाखा बादामी के चालुक्यों से अलग होकर पूर्वी दक्कन में स्वतंत्र रूप से शासन करने लगी।
- संस्थापक: विष्णुवर्धन (लगभग 624-641 ईस्वी), जो पुलकेशिन द्वितीय का भाई था।
- राजधानी: वेंगी (आधुनिक आंध्र प्रदेश में)।
- प्रमुख शासक: विजयादित्य तृतीय, राजराजा नरेंद्र।
- पतन: ग्यारहवीं शताब्दी में चोलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित हुए और अंततः चोल साम्राज्य में विलीन हो गए।
4. कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य (Western Chalukyas of Kalyani)
यह शाखा राष्ट्रकूटों के पतन के बाद उभरी और दक्कन में एक नई शक्ति के रूप में स्थापित हुई।
- संस्थापक: तैलप द्वितीय (लगभग 973-997 ईस्वी)। उसने राष्ट्रकूट शासक कक्का द्वितीय को पराजित कर इस वंश की स्थापना की।
- राजधानी: मान्यखेट (शुरुआत में), बाद में कल्याणी।
- प्रमुख शासक:
- सोमेश्वर प्रथम (लगभग 1042-1068 ईस्वी): उसने अपनी राजधानी मान्यखेट से कल्याणी स्थानांतरित की।
- विक्रमादित्य षष्ठ (लगभग 1076-1126 ईस्वी):
- कल्याणी चालुक्यों का सबसे प्रतापी शासक।
- उसने ‘चालुक्य विक्रम संवत’ नामक एक नया कैलेंडर शुरू किया।
- उसके दरबार में प्रसिद्ध विद्वान विल्हण (विक्रमांकदेवचरित के रचयिता) और विज्ञानेश्वर (मिताक्षरा के रचयिता) रहते थे।
- पतन: बारहवीं शताब्दी के मध्य तक, होयसल, यादव और काकतीय जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के उदय और चोलों के साथ लगातार संघर्षों के कारण इस शाखा का पतन हो गया।
5. प्रशासन (Administration)
चालुक्य प्रशासन में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी, जिसमें राजा सर्वोच्च होता था।
- राजा: राजा को ‘सत्याश्रय’, ‘श्रीपृथ्वीवल्लभ’, ‘परमेश्वर’, ‘महाराजाधिराज’ जैसी उपाधियाँ धारण करते थे।
- प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को ‘राष्ट्र’ (प्रांत), ‘विषय’ (जिले) और ‘नाडु’ (छोटी इकाइयाँ) में विभाजित किया गया था।
- ग्राम प्रशासन: ग्राम सभाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी, हालांकि पल्लवों और चोलों जितनी स्वायत्तता नहीं थी।
- राजस्व: भूमि राजस्व राज्य की आय का मुख्य स्रोत था। विभिन्न प्रकार के कर प्रचलित थे (जैसे सिद्धया – भूमि कर, हर्जुन्का – भार कर)।
- सैन्य: एक सुसंगठित सेना थी।
6. कला और स्थापत्य (Art and Architecture)
चालुक्यों ने वेसर शैली नामक एक विशिष्ट मंदिर निर्माण शैली विकसित की, जो नागर और द्रविड़ शैलियों का मिश्रण थी।
- वेसर शैली:
- यह उत्तर भारतीय (नागर) और दक्षिण भारतीय (द्रविड़) स्थापत्य तत्वों का एक अनूठा मिश्रण है।
- इस शैली के मंदिर कृष्णा नदी और विंध्य पर्वत के बीच के क्षेत्र में पाए जाते हैं, विशेषकर कर्नाटक में।
- विशेषताएँ: जटिल नक्काशी, अलंकृत स्तंभ, और विस्तृत विवरण।
- प्रमुख केंद्र: ऐहोल, बादामी और पट्टडकल। इन स्थानों पर बड़ी संख्या में चालुक्यकालीन मंदिर पाए जाते हैं।
- ऐहोल: ‘भारतीय मंदिर स्थापत्य का पालना’ (Cradle of Indian Temple Architecture) कहा जाता है।
- उदाहरण: लाड खान मंदिर, दुर्गा मंदिर, मेगुती जैन मंदिर (रविकीर्ति द्वारा निर्मित)।
- बादामी:
- उदाहरण: बादामी गुफा मंदिर (विष्णु, शिव और जैन धर्म को समर्पित)।
- पट्टडकल: यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।
- उदाहरण: विरूपाक्ष मंदिर (लोकमहादेवी द्वारा निर्मित), मल्लिकार्जुन मंदिर, पापनाथ मंदिर।
- ऐहोल: ‘भारतीय मंदिर स्थापत्य का पालना’ (Cradle of Indian Temple Architecture) कहा जाता है।
- मूर्ति कला: चालुक्य मंदिरों में देवी-देवताओं की जीवंत मूर्तियाँ और पौराणिक दृश्यों का चित्रण मिलता है।
7. साहित्य और धर्म (Literature and Religion)
चालुक्यों ने संस्कृत और कन्नड़ दोनों भाषाओं के साहित्य को संरक्षण दिया।
- साहित्य:
- रविकीर्ति: पुलकेशिन द्वितीय का दरबारी कवि, जिसने ‘ऐहोल प्रशस्ति’ की रचना की।
- विल्हण: विक्रमादित्य षष्ठ का दरबारी कवि, जिसने ‘विक्रमांकदेवचरित’ (विक्रमादित्य षष्ठ की जीवनी) की रचना की।
- विज्ञानेश्वर: ‘मिताक्षरा’ (हिंदू कानून पर एक टीका) के रचयिता।
- कन्नड़ साहित्य का भी विकास हुआ।
- धर्म:
- चालुक्य शासक मुख्य रूप से ब्राह्मणवादी धर्म (हिंदू धर्म) के अनुयायी थे, विशेषकर शैव और वैष्णव संप्रदायों के।
- उन्होंने जैन धर्म को भी संरक्षण दिया (जैसे ऐहोल में मेगुती जैन मंदिर)।
- धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई।
8. पतन (Decline)
चालुक्य वंश का पतन बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक शुरू हो गया था।
- पल्लवों, राष्ट्रकूटों और चोलों के साथ लगातार संघर्षों ने चालुक्य शक्ति को कमजोर किया।
- आंतरिक विद्रोह और सामंतों की बढ़ती शक्ति ने भी पतन में योगदान दिया।
- अंततः, कलचुरियों और बाद में होयसल, यादव और काकतीय जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के उदय ने चालुक्यों के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
चालुक्य वंश दक्षिण भारत के इतिहास में एक शक्तिशाली और प्रभावशाली राजवंश था, जिसने दक्कन में राजनीतिक स्थिरता प्रदान की। उन्होंने विशेष रूप से वेसर स्थापत्य शैली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला में एक अनूठी पहचान रखती है। उनके साहित्यिक और धार्मिक संरक्षण ने भी दक्षिण भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया।