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चम्पारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha)

चम्पारण सत्याग्रह (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

चम्पारण सत्याग्रह (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

चम्पारण सत्याग्रह, जो 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में हुआ, महात्मा गांधी द्वारा भारत में किया गया पहला महत्वपूर्ण सत्याग्रह आंदोलन था। यह आंदोलन मुख्य रूप से यूरोपीय बागान मालिकों द्वारा किसानों पर थोपी गई तीनकठिया प्रणाली के खिलाफ था।

1. पृष्ठभूमि और कारण (Background and Causes)

चम्पारण में किसानों को ब्रिटिश बागान मालिकों द्वारा अत्यधिक शोषण का सामना करना पड़ रहा था।

  • तीनकठिया प्रणाली: यह प्रणाली चम्पारण के किसानों को अपनी भूमि के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करने और उसे बागान मालिकों को निर्धारित कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर करती थी। यह किसानों के लिए अत्यंत हानिकारक थी क्योंकि नील की खेती से भूमि की उर्वरता कम हो जाती थी और उन्हें अन्य फसलों के लिए पर्याप्त भूमि नहीं मिल पाती थी।
  • अन्यायपूर्ण शर्तें: बागान मालिक किसानों को नील की खेती के लिए अग्रिम भुगतान करते थे, लेकिन कीमतें बहुत कम होती थीं। इसके अलावा, यदि किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे, तो उन्हें भारी अवैध लगान (अब्वाब) और अन्य कर चुकाने पड़ते थे।
  • जर्मन सिंथेटिक डाई का आगमन: 20वीं सदी की शुरुआत में, जर्मनी में सिंथेटिक नील का विकास हो गया था, जिससे प्राकृतिक नील की मांग और कीमत गिर गई। बागान मालिकों ने किसानों को नील की खेती से मुक्त करने के लिए भारी मुआवजा (तवान) की मांग की, जिससे किसानों पर और बोझ बढ़ गया।
  • किसानों की दयनीय स्थिति: इन सभी कारणों से चम्पारण के किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी।

2. नेतृत्व और प्रमुख नेता (Leadership and Key Leaders)

महात्मा गांधी ने चम्पारण के किसानों की पुकार सुनी और उनके संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए आगे आए।

  • राजकुमार शुक्ल का आमंत्रण: राजकुमार शुक्ल नामक एक स्थानीय किसान ने गांधीजी को चम्पारण आने और किसानों की समस्याओं को देखने के लिए आमंत्रित किया। वे 1916 के लखनऊ अधिवेशन में गांधीजी से मिले थे।
  • महात्मा गांधी का आगमन: गांधीजी अप्रैल 1917 में चम्पारण पहुंचे। यह भारत में उनका पहला बड़ा सत्याग्रह प्रयोग था।
  • अन्य सहयोगी: गांधीजी को कई प्रमुख नेताओं का समर्थन मिला, जिनमें डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जे.बी. कृपलानी, महादेव देसाई, नरहरि पारेख, ब्रजकिशोर प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा शामिल थे।

3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Revolt)

चम्पारण सत्याग्रह गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध के सिद्धांतों पर आधारित एक व्यवस्थित आंदोलन था।

  • जांच और सर्वेक्षण: गांधीजी ने चम्पारण पहुंचने के बाद किसानों की समस्याओं का विस्तृत सर्वेक्षण और जांच शुरू की। उन्होंने किसानों से सीधे बात की और उनके बयान दर्ज किए।
  • सरकार का विरोध: स्थानीय प्रशासन ने गांधीजी को चम्पारण छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन गांधीजी ने इस आदेश की अवहेलना की और कहा कि वह किसानों की समस्याओं को समझे बिना नहीं जाएंगे। उन्होंने अहिंसक सविनय अवज्ञा का प्रदर्शन किया।
  • गिरफ्तारी और रिहाई: गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन जनता के भारी विरोध और उनके दृढ़ संकल्प के कारण उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया गया।
  • चम्पारण कृषि समिति: सरकार को अंततः झुकना पड़ा और उसने स्थिति की जांच के लिए एक चम्पारण कृषि समिति (Champaran Agrarian Committee) का गठन किया, जिसमें गांधीजी को भी सदस्य बनाया गया।
  • समिति की रिपोर्ट: समिति ने बागान मालिकों द्वारा किए गए शोषण को स्वीकार किया और तीनकठिया प्रणाली को समाप्त करने की सिफारिश की।

4. विद्रोह का दमन और परिणाम (Suppression and Outcomes of the Revolt)

चम्पारण सत्याग्रह किसानों की एक बड़ी जीत थी।

  • चम्पारण कृषि अधिनियम, 1917: समिति की सिफारिशों के आधार पर, चम्पारण कृषि अधिनियम (Champaran Agrarian Act) पारित किया गया। इस अधिनियम ने तीनकठिया प्रणाली को समाप्त कर दिया।
  • अवैध करों की वापसी: बागान मालिकों को किसानों से अवैध रूप से वसूले गए धन का 25% हिस्सा वापस करने के लिए मजबूर किया गया।
  • किसानों को राहत: इस अधिनियम ने किसानों को नील की खेती के बोझ से मुक्त किया और उन्हें अपनी भूमि पर अधिक नियंत्रण प्रदान किया।
  • गांधीजी को ‘महात्मा’ की उपाधि: इस आंदोलन की सफलता के बाद, रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी।

5. विद्रोह का महत्व (Significance of the Revolt)

चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

  • गांधीजी का भारत में पहला सफल सत्याग्रह: यह भारत में गांधीजी का पहला सफल सत्याग्रह प्रयोग था, जिसने उनकी अहिंसक प्रतिरोध की रणनीति की प्रभावशीलता को सिद्ध किया।
  • राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों की भागीदारी: इसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों की सक्रिय भागीदारी के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
  • गांधीजी का राष्ट्रीय नेता के रूप में उदय: चम्पारण की सफलता ने गांधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और उन्हें जनता का विश्वास दिलाया।
  • आत्मनिर्भरता और निर्भयता का पाठ: गांधीजी ने किसानों को आत्मनिर्भर बनने और अन्याय के खिलाफ निर्भयता से खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
  • भविष्य के आंदोलनों के लिए प्रेरणा: चम्पारण सत्याग्रह ने खेड़ा सत्याग्रह और अहमदाबाद मिल हड़ताल जैसे भविष्य के आंदोलनों के लिए एक मॉडल और प्रेरणा के रूप में कार्य किया।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। इसने न केवल चम्पारण के किसानों को यूरोपीय बागान मालिकों के शोषण से मुक्ति दिलाई, बल्कि इसने महात्मा गांधी की नेतृत्व क्षमता और सत्याग्रह के सिद्धांत को भी भारत में स्थापित किया। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों की भागीदारी की शुरुआत का प्रतीक था और इसने भविष्य के बड़े जन आंदोलनों के लिए एक शक्तिशाली नींव रखी। चम्पारण ने दिखाया कि कैसे अहिंसक प्रतिरोध और जनता की एकजुटता से सबसे शक्तिशाली औपनिवेशिक शासन को भी चुनौती दी जा सकती है और सफलता प्राप्त की जा सकती है।

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