सविनय अवज्ञा आंदोलन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1930 में शुरू हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों का शांतिपूर्ण और अहिंसक ढंग से उल्लंघन करने पर केंद्रित था, जिसका मुख्य उद्देश्य पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) प्राप्त करना था।
1. पृष्ठभूमि और आंदोलन के कारण (Background and Causes of the Movement)
असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद की घटनाओं और ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए मंच तैयार किया।
- असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद की निराशा: चौरी-चौरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन की अचानक समाप्ति से उत्पन्न निराशा और राजनीतिक शून्यता।
- साइमन कमीशन (1927): ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने के लिए नियुक्त साइमन कमीशन में किसी भी भारतीय सदस्य का न होना, जिससे भारतीयों में व्यापक असंतोष फैला। ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाए गए।
- नेहरू रिपोर्ट (1928) की अस्वीकृति: मोतीलाल नेहरू द्वारा तैयार की गई नेहरू रिपोर्ट, जिसमें भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस की मांग की गई थी, को ब्रिटिश सरकार ने अस्वीकार कर दिया।
- विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (1929): वैश्विक आर्थिक मंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे किसानों, मजदूरों और व्यापारियों की स्थिति और खराब हो गई।
- लाहौर अधिवेशन (1929) और पूर्ण स्वराज: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (1929) में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में ‘पूर्ण स्वराज’ (पूर्ण स्वतंत्रता) का प्रस्ताव पारित किया गया। यह आंदोलन इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शुरू किया गया था।
- गांधीजी की 11 सूत्री माँगें: गांधीजी ने वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष 11 सूत्री माँगें रखी थीं (जैसे नमक कर का उन्मूलन, सैन्य व्यय में कमी, सिविल सेवाओं का भारतीयकरण), जिन्हें सरकार ने अस्वीकार कर दिया।
2. आंदोलन का प्रारंभ: दांडी मार्च और नमक सत्याग्रह (Beginning of the Movement: Dandi March and Salt Satyagraha)
नमक कानून का उल्लंघन सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रतीक बन गया, जिसने पूरे देश को आंदोलित कर दिया।
- दांडी मार्च की शुरुआत:
- 12 मार्च, 1930 को, महात्मा गांधी ने अपने 78 चुने हुए अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से गुजरात के तटीय गाँव दांडी के लिए मार्च शुरू किया।
- यह यात्रा लगभग 240 मील (385 किमी) लंबी थी और इसे पूरा करने में 24 दिन लगे।
- नमक कानून का उल्लंघन:
- 6 अप्रैल, 1930 को, गांधीजी दांडी पहुँचे और समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया।
- यह ब्रिटिश सरकार के एकाधिकार और अन्यायपूर्ण नमक कर के खिलाफ एक प्रतीकात्मक कार्य था, जिसने सभी भारतीयों को प्रभावित किया।
- आंदोलन का प्रसार: दांडी मार्च के बाद, पूरे देश में नमक सत्याग्रह फैल गया। लोगों ने नमक कानूनों का उल्लंघन किया, विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना दिया, और सरकारी स्कूलों, कॉलेजों तथा अदालतों का बहिष्कार किया।
3. आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रम और स्वरूप (Key Programs and Forms of the Movement)
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने विभिन्न रचनात्मक और प्रतिरोधात्मक तरीकों का उपयोग किया।
- नमक सत्याग्रह: देश भर में नमक कानूनों का उल्लंघन किया गया। तमिलनाडु में सी. राजगोपालाचारी ने तिरुचिरापल्ली से वेदारण्यम तक मार्च किया। केरल में के. केलप्पन ने कालीकट से पयन्नूर तक मार्च किया।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार: विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना दिया गया।
- कर न देने का अभियान: कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर किसानों द्वारा, कर न देने का अभियान चलाया गया।
- जंगल सत्याग्रह: मध्य प्रांत, महाराष्ट्र और कर्नाटक में आदिवासियों द्वारा वन कानूनों का उल्लंघन किया गया।
- पेशावर में घटनाएँ: खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गांधी) के नेतृत्व में ‘खुदाई खिदमतगार’ (लाल कुर्ती आंदोलन) ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- महिलाओं की भागीदारी: महिलाओं ने आंदोलन में अभूतपूर्व भागीदारी दिखाई, जुलूसों में भाग लिया और धरना प्रदर्शन किए।
- प्रचार: राष्ट्रीय समाचार पत्रों, पर्चों और सार्वजनिक सभाओं के माध्यम से आंदोलन का प्रचार किया गया।
4. आंदोलन की समाप्ति और गांधी-इरविन समझौता (Withdrawal and Gandhi-Irwin Pact)
आंदोलन की बढ़ती तीव्रता और ब्रिटिश सरकार पर दबाव के कारण एक समझौता हुआ।
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन (1930): कांग्रेस ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया, जिससे यह असफल रहा।
- गांधी-इरविन समझौता (5 मार्च, 1931):
- आंदोलन की बढ़ती तीव्रता और ब्रिटिश सरकार पर दबाव के कारण, वायसराय लॉर्ड इरविन और महात्मा गांधी के बीच एक समझौता हुआ।
- सरकार ने सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने, नमक बनाने की अनुमति देने, और विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की।
- गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमति व्यक्त की।
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931): गांधीजी ने इस सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व और अन्य मुद्दों पर गतिरोध के कारण यह असफल रहा।
- आंदोलन का पुनरारंभ और समाप्ति: भारत लौटने पर, गांधीजी ने आंदोलन को फिर से शुरू किया, लेकिन सरकार ने कठोर दमनकारी नीतियाँ अपनाईं। 1934 में, गांधीजी ने औपचारिक रूप से आंदोलन को वापस ले लिया।
5. आंदोलन का महत्व और परिणाम (Significance and Consequences of the Movement)
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा और स्थायी प्रभाव डाला।
- पूर्ण स्वराज का लक्ष्य: इसने पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र बिंदु बनाया।
- जन भागीदारी: यह आंदोलन असहयोग आंदोलन से भी अधिक व्यापक था, जिसमें समाज के सभी वर्गों, विशेषकर महिलाओं और किसानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
- ब्रिटिश शासन की नींव हिलाई: आंदोलन ने ब्रिटिश प्रशासन को गंभीर रूप से चुनौती दी और ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कराया कि भारत पर शासन करना अब असंभव होता जा रहा है।
- आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता: इसने भारतीयों में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता की भावना को और मजबूत किया।
- गांधीजी का नेतृत्व स्थापित: इसने गांधीजी को एक अविवादित राष्ट्रीय नेता के रूप में और अधिक स्थापित किया।
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: आंदोलन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन जुटाया।
- भविष्य के आंदोलनों के लिए नींव: इसने भारत छोड़ो आंदोलन जैसे भविष्य के बड़े आंदोलनों के लिए एक मजबूत नींव तैयार की।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक निर्णायक चरण था। दांडी मार्च और नमक सत्याग्रह के साथ शुरू हुआ यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया। इसने समाज के सभी वर्गों को एकजुट किया और पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश शासन पर भारी दबाव डाला। यद्यपि इसे गांधी-इरविन समझौते और बाद में सरकारी दमन के कारण समाप्त कर दिया गया, सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीयों में आत्म-विश्वास जगाया, गांधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया, और भविष्य के बड़े आंदोलनों के लिए एक मजबूत नींव तैयार की। यह भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना रहेगा।