उत्तर-मौर्य काल: कला विकास – गांधार और मथुरा शैली (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद (लगभग 185 ईसा पूर्व), भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इस उत्तर-मौर्य काल में कई छोटे और मध्यम आकार के राज्यों के साथ-साथ विदेशी शक्तियों (जैसे शक, कुषाण) का उदय हुआ। इस अवधि को कला और स्थापत्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास के लिए जाना जाता है, विशेषकर बौद्ध धर्म के विकास के साथ।
1. गांधार कला शैली (Gandhara School of Art)
गांधार कला, जिसे ग्रीको-बौद्ध कला के नाम से भी जाना जाता है, का विकास उत्तर-पश्चिमी भारत (आधुनिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान) के गांधार क्षेत्र में हुआ। यह कला शैली कुषाण शासकों, विशेषकर कनिष्क के संरक्षण में फली-फूली।
1.1. उद्भव और क्षेत्र (Origin and Region)
- काल: मुख्य रूप से पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पाँचवीं शताब्दी ईस्वी तक।
- क्षेत्र: गांधार क्षेत्र – वर्तमान अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान।
- मुख्य केंद्र: पेशावर, तक्षशिला, बामियान, हड्डा, जलालाबाद, स्वात घाटी।
1.2. प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features)
- बाहरी प्रभाव: ग्रीक और रोमन कला (हेलेनिस्टिक प्रभाव) का स्पष्ट मिश्रण।
- वास्तविक मानव आकृतियाँ (Realistic Human Figures)।
- चेहरे पर स्पष्ट भाव, मांसपेशियों का प्रदर्शन।
- बुद्ध के घुंघराले बाल, माथे पर तीसरा नेत्र (ऊर्णा), सिर के चारों ओर प्रभामंडल (halo)।
- विषय वस्तु: मुख्य रूप से बौद्ध धर्म से संबंधित।
- पहली बार बुद्ध का मानवीय रूप में चित्रण।
- बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और जातक कथाएँ।
- बोधिसत्वों और अन्य बौद्ध देवताओं का चित्रण।
- प्रयुक्त सामग्री: मुख्य रूप से नीले-भूरे शिस्ट पत्थर (Blue-grey schist) का उपयोग। बाद में मिट्टी और प्लास्टर (stucco) का भी प्रयोग।
- वस्त्र: बुद्ध की मूर्तियों में पारदर्शी, भारी वस्त्र (जैसे रोमन टोगा) जिनमें गहरी सलवटें स्पष्ट दिखती हैं।
- भाव: बुद्ध का चेहरा शांत, गंभीर और आध्यात्मिक।
- आभामंडल (Halo): सादा और बिना अलंकरण का। सिर्फ एक सपाट, गोलाकार या अंडाकार डिस्क जो बुद्ध के सिर के पीछे होती थी। कोई नक्काशी या पैटर्न नहीं।
1.3. संरक्षण (Patronage)
💡 याद रखें: गांधार कला को कुषाण शासकों, विशेषकर कनिष्क का पूर्ण संरक्षण मिला। यह महायान बौद्ध धर्म के उदय से भी जुड़ी थी, जिसने बुद्ध की मूर्ति पूजा को प्रोत्साहित किया।
2. मथुरा कला शैली (Mathura School of Art)
मथुरा कला शैली का विकास भारत के आंतरिक भाग में, विशेषकर उत्तर प्रदेश के मथुरा क्षेत्र में हुआ। यह पूर्णतः स्वदेशी कला शैली थी, जिस पर भारतीय परंपराओं का गहरा प्रभाव था।
2.1. उद्भव और क्षेत्र (Origin and Region)
- काल: लगभग पहली शताब्दी ईस्वी से 12वीं शताब्दी ईस्वी तक (कुषाण काल में चरमोत्कर्ष, गुप्त काल तक जारी)।
- क्षेत्र: मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्र जैसे सोंख, कंकालीटीला।
- मुख्य केंद्र: मथुरा।
2.2. प्रमुख विशेषताएँ (Salient Features)
- प्रभाव: पूरी तरह से भारतीय परंपराओं और मूल्यों पर आधारित। कोई बाहरी प्रभाव नहीं।
- विषय वस्तु: तीनों प्रमुख धर्मों से संबंधित मूर्तियाँ मिलीं:
- बौद्ध धर्म: बुद्ध की मूर्तियाँ (खड़ी और बैठी हुई दोनों मुद्रा में)।
- जैन धर्म: जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ (जैसे ऋषभनाथ)। कंकालीटीला जैन मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध था।
- हिंदू धर्म: ब्राह्मणवादी देवताओं (शिव, विष्णु, दुर्गा आदि) की मूर्तियाँ।
- प्रयुक्त सामग्री: लाल चित्तीदार बलुआ पत्थर (Spotted Red Sandstone)।
- वस्त्र: बुद्ध की मूर्तियों में कम वस्त्र, जो शरीर पर कस कर चिपके होते हैं, जिससे शरीर की बनावट स्पष्ट दिखती है। वस्त्रों में गहरी सलवटों का अभाव।
- भाव: बुद्ध का चेहरा प्रसन्न, मुस्कुराता हुआ, ऊर्जावान और भौतिकवादी (spirituality कम)।
- आभामंडल (Halo): अत्यधिक अलंकृत। बुद्ध के सिर के चारों ओर एक बड़ा, गोल आभामंडल जिस पर ज्यामितीय पैटर्न, फूलों की नक्काशी (floral motifs), या अन्य अलंकरण होते थे।
- बुद्ध की आकृति: पूर्ववर्ती यक्ष मूर्तियों से प्रेरित। मांसपेशियाँ स्पष्ट, लेकिन गांधार की तरह यथार्थवादी नहीं।
2.3. संरक्षण (Patronage)
💡 याद रखें: मथुरा कला को भी कुषाण शासकों का संरक्षण मिला। यह भारतीय उपमहाद्वीप में एक महत्वपूर्ण कलात्मक केंद्र बना रहा और इसका प्रभाव दक्षिण-पूर्वी एशिया तक फैला।
3. गांधार और मथुरा कला का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study)
- क्षेत्र:
- गांधार: उत्तर-पश्चिमी भारत (पाकिस्तान, अफगानिस्तान)।
- मथुरा: मध्य भारत (उत्तर प्रदेश)।
- प्रभाव:
- गांधार: ग्रीको-रोमन (हेलेनिस्टिक)।
- मथुरा: पूर्णतः स्वदेशी।
- सामग्री:
- गांधार: नीले-भूरे शिस्ट पत्थर।
- मथुरा: लाल चित्तीदार बलुआ पत्थर।
- विषय वस्तु:
- गांधार: मुख्य रूप से बौद्ध धर्म।
- मथुरा: बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म।
- बुद्ध की आकृति:
- गांधार: यथार्थवादी, मानवीय मांसपेशियाँ, घुंघराले बाल, आध्यात्मिक भाव, टोगा जैसे वस्त्र।
- मथुरा: यक्ष प्रेरित, प्रसन्न/मुस्कुराता चेहरा, कम वस्त्र, शरीर से चिपके वस्त्र, आध्यात्मिक से अधिक भौतिकवादी भाव।
- आभामंडल (Halo):
- गांधार: सादा, बिना अलंकरण का (Plain, undecorated).
- मथुरा: अत्यधिक अलंकृत, ज्यामितीय/पुष्प पैटर्न (Highly ornamented, geometric/floral patterns).
4. निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तर-मौर्य काल, विशेषकर कुषाणों के अधीन, भारतीय कला के इतिहास में एक स्वर्ण युग था। गांधार और मथुरा कला शैलियों का विकास न केवल मूर्ति कला में विविधता लाया बल्कि भारतीय कला में मानव रूप में देवताओं के चित्रण के एक नए युग की शुरुआत की। जहाँ गांधार शैली ने बाहरी प्रभावों को आत्मसात किया, वहीं मथुरा शैली ने अपनी स्वदेशी पहचान बनाए रखी। दोनों शैलियों ने भारतीय कला और संस्कृति को समृद्ध किया, जो आगे चलकर गुप्त काल की कला पर भी गहरा प्रभाव डालेंगी। ये शैलियाँ यूपीएससी और पीसीएस परीक्षाओं के लिए कला और संस्कृति खंड का एक अति महत्वपूर्ण विषय हैं।