डेक्कन दंगे, जिन्हें दक्कन विद्रोह (Deccan Uprising) के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान महाराष्ट्र के पुणे और अहमदनगर जिलों में 1875 में हुए किसानों के विद्रोह थे। यह विद्रोह मुख्य रूप से मराठी किसानों (रैयतों) द्वारा साहूकारों के शोषण और अत्यधिक भू-राजस्व के खिलाफ किया गया था।
1. पृष्ठभूमि और क्षेत्र (Background and Region)
दक्कन के पठारी क्षेत्रों में भू-राजस्व प्रणाली और कृषि संकट ने किसानों की स्थिति को दयनीय बना दिया था।
- भौगोलिक क्षेत्र: यह विद्रोह मुख्य रूप से महाराष्ट्र के पुणे, अहमदनगर, सोलापुर और सतारा जिलों में केंद्रित था।
- भू-राजस्व प्रणाली (Land Revenue System): दक्कन में रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू थी, जिसके तहत किसान सीधे सरकार को भू-राजस्व का भुगतान करते थे। हालांकि, इस व्यवस्था में भी भू-राजस्व की दरें बहुत अधिक थीं और उनमें लगातार वृद्धि की जा रही थी।
- कृषि संकट (Agrarian Crisis):
- 1860 के दशक में अमेरिकी गृहयुद्ध (American Civil War) के कारण कपास की कीमतों में अस्थायी उछाल आया था, जिससे दक्कन के किसानों ने बड़े पैमाने पर कपास की खेती शुरू कर दी।
- गृहयुद्ध समाप्त होने के बाद, कपास की कीमतें गिर गईं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ और वे कर्ज में डूब गए।
- साहूकारों का शोषण (Exploitation by Moneylenders):
- किसानों को भू-राजस्व और अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए अक्सर साहूकारों (मुख्यतः मारवाड़ी और गुजराती) से ऋण लेना पड़ता था।
- साहूकार अत्यधिक ब्याज दरें वसूलते थे और अक्सर धोखाधड़ी करके किसानों की भूमि और संपत्ति हड़प लेते थे।
2. विद्रोह के कारण (Causes of the Revolt)
अत्यधिक भू-राजस्व, साहूकारों का शोषण और कृषि संकट ने किसानों में गहरा असंतोष पैदा किया।
- भू-राजस्व में वृद्धि (Increase in Land Revenue):
- ब्रिटिश सरकार ने भू-राजस्व की दरों में 50% तक की वृद्धि कर दी थी, जिससे किसानों पर अत्यधिक वित्तीय बोझ पड़ा।
- यह वृद्धि ऐसे समय में हुई जब कृषि उत्पादकता कम थी और कीमतें गिर रही थीं।
- साहूकारों द्वारा धोखाधड़ी और उत्पीड़न (Fraud and Oppression by Moneylenders):
- साहूकार किसानों से उच्च ब्याज दरें वसूलते थे और अक्सर निरक्षर किसानों से खाली बॉन्ड पर हस्ताक्षर करवा लेते थे, जिससे वे उनकी भूमि और संपत्ति पर कब्जा कर लेते थे।
- वे किसानों को ऋण चुकाने के लिए मजबूर करने हेतु अदालत का सहारा लेते थे, जिससे किसानों को अपनी पैतृक भूमि से भी हाथ धोना पड़ता था।
- न्याय प्रणाली की विफलता (Failure of Justice System):
- ब्रिटिश न्याय प्रणाली साहूकारों के पक्ष में थी, और किसानों को शायद ही कभी न्याय मिल पाता था।
- अदालतें अक्सर साहूकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों को वैध मानती थीं, भले ही वे धोखाधड़ी से प्राप्त किए गए हों।
- कपास की कीमतों में गिरावट (Fall in Cotton Prices):
- अमेरिकी गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद कपास की कीमतों में भारी गिरावट आई, जिससे किसानों को अपनी उपज से पर्याप्त आय नहीं मिल पाई और वे कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गए।
- सामाजिक बहिष्कार की विफलता (Failure of Social Boycott):
- किसानों ने पहले साहूकारों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार का प्रयास किया था, लेकिन जब यह विफल हो गया, तो उन्होंने हिंसक रास्ता अपनाया।
3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Revolt)
यह विद्रोह मुख्य रूप से साहूकारों के खिलाफ हिंसा और उनके दस्तावेजों को नष्ट करने पर केंद्रित था।
- विद्रोह का प्रारंभ (Beginning of the Revolt):
- विद्रोह की शुरुआत मई 1875 में पुणे जिले के सुपा गाँव से हुई।
- किसानों ने साहूकारों के घरों और दुकानों पर हमला करना शुरू कर दिया, उनके ऋण बॉन्ड और दस्तावेजों को जला दिया।
- विद्रोह की प्रकृति (Nature of the Revolt):
- यह विद्रोह मुख्य रूप से साहूकारों के खिलाफ निर्देशित था, न कि ब्रिटिश सरकार या जमींदारों के खिलाफ (क्योंकि यहां रैयतवाड़ी प्रणाली थी)।
- किसानों का मुख्य लक्ष्य साहूकारों के ऋण दस्तावेजों को नष्ट करना था ताकि वे अपनी संपत्ति को बचा सकें।
- विद्रोहियों ने साहूकारों की संपत्ति को लूटा नहीं, बल्कि केवल उन दस्तावेजों को नष्ट किया जो उनके कर्ज का प्रमाण थे।
- विद्रोह का फैलाव (Spread of the Revolt):
- यह विद्रोह जल्द ही अहमदनगर, सोलापुर और सतारा जिलों के लगभग 30 गाँवों में फैल गया।
- किसानों ने एकजुट होकर साहूकारों के खिलाफ कार्रवाई की।
- नेतृत्व (Leadership):
- यह विद्रोह मुख्य रूप से स्थानीय किसानों के स्वयं के नेतृत्व में था, इसमें कोई केंद्रीय या प्रमुख नेता नहीं था।
4. विद्रोह का दमन और परिणाम (Suppression and Outcomes of the Revolt)
ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को नियंत्रित करने के लिए बल का प्रयोग किया और बाद में कुछ सुधार किए।
- सरकार की प्रतिक्रिया (Government’s Response):
- ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को दबाने के लिए पुलिस और सेना का प्रयोग किया।
- कई किसानों को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया।
- डेक्कन दंगा आयोग (Deccan Riots Commission):
- विद्रोह की गंभीरता को देखते हुए, ब्रिटिश सरकार ने 1875 में डेक्कन दंगा आयोग का गठन किया।
- आयोग ने विद्रोह के कारणों की जाँच की और अपनी रिपोर्ट में साहूकारों के शोषण और भू-राजस्व की उच्च दरों को स्वीकार किया।
- डेक्कन कृषि राहत अधिनियम, 1879 (Deccan Agriculturists’ Relief Act, 1879):
- आयोग की सिफारिशों के आधार पर, ब्रिटिश सरकार ने 1879 में डेक्कन कृषि राहत अधिनियम (Deccan Agriculturists’ Relief Act) पारित किया।
- इस अधिनियम ने किसानों को साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए कुछ सुरक्षा प्रदान की। इसने किसानों को अपनी भूमि से बेदखल होने से बचाने और ऋण चुकाने के लिए अधिक समय देने का प्रावधान किया।
- इसने साहूकारों द्वारा धोखाधड़ी वाले ऋण समझौतों को रद्द करने की शक्ति भी अदालतों को दी।
- विद्रोह का अंत (End of the Revolt):
- अधिनियम के पारित होने और सरकारी कार्रवाई के बाद, दक्कन दंगे धीरे-धीरे समाप्त हो गए।
5. विद्रोह का महत्व (Significance of the Revolt)
डेक्कन दंगे भारतीय किसान आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।
- किसानों की एकजुटता और प्रतिरोध (Farmers’ Unity and Resistance):
- यह विद्रोह किसानों की एकजुटता और साहूकारों के शोषण के खिलाफ उनके प्रतिरोध को दर्शाता है।
- यह पहला किसान आंदोलन था जो सीधे साहूकारों के खिलाफ निर्देशित था।
- सरकार की नीति में बदलाव (Change in Government Policy):
- इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार को किसानों की समस्याओं पर ध्यान देने और उनके लिए कानून बनाने के लिए मजबूर किया।
- डेक्कन कृषि राहत अधिनियम, 1879 एक महत्वपूर्ण विधायी उपलब्धि थी जिसने किसानों को कुछ राहत प्रदान की।
- राष्ट्रवादी आंदोलन पर प्रभाव (Impact on Nationalist Movement):
- इस विद्रोह ने राष्ट्रवादी नेताओं का ध्यान किसानों की दुर्दशा की ओर खींचा और उन्हें भविष्य के आंदोलनों में किसानों के मुद्दों को शामिल करने के लिए प्रेरित किया।
- ग्रामीण ऋणग्रस्तता का मुद्दा (Issue of Rural Indebtedness):
- इस विद्रोह ने ग्रामीण ऋणग्रस्तता और साहूकारों के शोषण के गंभीर मुद्दे को उजागर किया, जो ब्रिटिश भारत में एक व्यापक समस्या थी।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
डेक्कन दंगे ब्रिटिश भू-राजस्व नीतियों और साहूकारों के शोषण के खिलाफ भारतीय किसानों के गुस्से और हताशा का एक स्पष्ट प्रकटीकरण थे। हालांकि यह विद्रोह हिंसक था, इसने ब्रिटिश सरकार को किसानों की समस्याओं को स्वीकार करने और उनके समाधान के लिए विधायी उपाय करने के लिए मजबूर किया। डेक्कन कृषि राहत अधिनियम, 1879 इस विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसने किसानों को ऋणग्रस्तता और बेदखली से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान की। यह भारतीय इतिहास में किसान आंदोलनों के एक महत्वपूर्ण चरण का प्रतीक था और इसने भविष्य के किसान संघर्षों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।