मौर्य साम्राज्य – प्रशासन और समाज
मौर्य साम्राज्य (लगभग 322-185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास में एक अत्यधिक केंद्रीकृत और सुव्यवस्थित प्रशासन के लिए जाना जाता है। इस काल में एक विशाल साम्राज्य को नियंत्रित करने के लिए एक जटिल प्रशासनिक ढाँचा विकसित किया गया था, जिसका विस्तृत विवरण हमें कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ और मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ जैसे स्रोतों से मिलता है। इस अवधि में सामाजिक संरचना, आर्थिक जीवन और सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आए।
1. प्रशासन (Administration)
मौर्य प्रशासन की विशेषता उसका केंद्रीकृत स्वरूप और विभिन्न स्तरों पर कुशल अधिकारियों की नियुक्ति थी।
1.1. केंद्रीय प्रशासन (Central Administration)
- राजा (King/Swami):
- राज्य का सर्वोच्च अधिकारी और सभी शक्तियों का केंद्र।
- वह न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका का प्रमुख था।
- कौटिल्य के अनुसार, राजा को ‘धार्मिक’ और ‘प्रजा के कल्याण’ को सर्वोपरि रखना चाहिए।
- मंत्रिपरिषद (Council of Ministers/Mantriparishad):
- राजा को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी, जिसमें मंत्री (उच्च अधिकारी) और अमात्य (सिविल सेवक) शामिल होते थे।
- प्रमुख मंत्री: पुरोहित (मुख्य पुजारी/सलाहकार), सेनापति (सेना प्रमुख), समाहर्ता (राजस्व संग्रहकर्ता), सन्निधाता (शाही कोषाध्यक्ष)।
- विभिन्न विभाग और अध्यक्ष (Departments and Adhyakshas):
- अर्थशास्त्र में लगभग 27 अध्यक्षों (अधीक्षकों) का उल्लेख है, जो विभिन्न विभागों के प्रमुख थे।
- उदाहरण:
- लक्षणाध्यक्ष: टकसाल का प्रमुख।
- पण्याध्यक्ष: वाणिज्य का प्रमुख।
- सीताध्यक्ष: राजकीय कृषि विभाग का प्रमुख।
- पोताध्यक्ष: माप-तौल का प्रमुख।
- शुल्काध्यक्ष: सीमा शुल्क का प्रमुख।
- सूत्राध्यक्ष: कताई और बुनाई का प्रमुख।
- विविताध्यक्ष: चारागाहों का प्रमुख।
1.2. प्रांतीय प्रशासन (Provincial Administration)
- साम्राज्य को कई प्रांतों (Provinces) में विभाजित किया गया था।
- प्रमुख प्रांत: उत्तरापथ (तक्षशिला), दक्षिणापथ (सुवर्णगिरि), अवंतिराष्ट्र (उज्जैनी), कलिंग (तोसली), और प्राची (पाटलिपुत्र)।
- प्रत्येक प्रांत का प्रमुख एक राजकुमार (कुमार) या आर्यपुत्र होता था, जिसे राजा द्वारा नियुक्त किया जाता था।
- प्रांतों को आगे आहार/विषय (जिले) में विभाजित किया गया था, जिसका प्रमुख विषयपति होता था।
1.3. स्थानीय प्रशासन (Local Administration)
- नगर प्रशासन (City Administration):
- मेगस्थनीज की ‘इंडिका’ के अनुसार, पाटलिपुत्र का प्रशासन छह समितियों द्वारा चलाया जाता था, प्रत्येक में पाँच सदस्य होते थे।
- ये समितियाँ विभिन्न कार्य करती थीं: उद्योग और शिल्प, विदेशियों की देखभाल, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण, व्यापार और वाणिज्य, निर्मित वस्तुओं का निरीक्षण, और कर संग्रह।
- नगर का प्रमुख अधिकारी नागरक कहलाता था।
- ग्राम प्रशासन (Village Administration):
- ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी, जिसका प्रमुख ग्रामिक होता था।
- ग्रामिक गाँव के मामलों को ग्राम सभा की मदद से देखता था।
1.4. राजस्व प्रशासन (Revenue Administration)
- राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि कर (भाग) था, जो उपज का 1/4 से 1/6 भाग होता था।
- अन्य कर: सिंचाई कर (उदक भाग), व्यापार कर, नमक कर, वन उत्पाद कर, खान कर, आदि।
- समाहर्ता: राजस्व संग्रह का सर्वोच्च अधिकारी।
- सन्निधाता: शाही कोषागार और अन्न भंडार का प्रभारी।
1.5. न्याय प्रशासन (Judicial Administration)
- राजा न्याय का सर्वोच्च स्रोत था।
- दो प्रकार के न्यायालय:
- धर्मस्थीय (धर्म न्यायालय): दीवानी मामलों (विवाह, संपत्ति, अनुबंध) से संबंधित। इसमें तीन धर्मास्थ (न्यायाधीश) और तीन अमात्य (सहायक) होते थे।
- कंटकशोधन (फौजदारी न्यायालय): आपराधिक मामलों (चोरी, हत्या, राजद्रोह) से संबंधित। इसमें तीन प्रदेष्ट्री (न्यायाधीश) और तीन अमात्य होते थे।
1.6. सैन्य प्रशासन (Military Administration)
- मौर्यों के पास एक विशाल स्थायी सेना थी। मेगस्थनीज के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल सैनिक, 30,000 घुड़सवार और 9,000 हाथी थे।
- मेगस्थनीज ने सैन्य प्रशासन को छह समितियों में विभाजित बताया है, प्रत्येक में पाँच सदस्य:
- 1. नौसेना (Navy)
- 2. रसद और परिवहन (Transport and Provision)
- 3. पैदल सेना (Infantry)
- 4. घुड़सवार सेना (Cavalry)
- 5. रथ (Chariots)
- 6. हाथी (Elephants)
1.7. गुप्तचर प्रणाली (Espionage System)
- कौटिल्य ने एक मजबूत और व्यापक गुप्तचर प्रणाली पर जोर दिया।
- गुप्तचरों को ‘गुढ़पुरुष’ कहा जाता था।
- दो प्रकार के गुप्तचर:
- संस्था (Sthita): एक ही स्थान पर रहकर कार्य करने वाले।
- संचार (Sanchara): एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमकर कार्य करने वाले।
2. समाज (Society)
मौर्यकालीन समाज में उत्तर वैदिक काल की तुलना में कुछ परिवर्तन आए, विशेषकर बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रभाव के कारण।
2.1. वर्ण व्यवस्था (Varna System)
- वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) अभी भी मौजूद थी, लेकिन सामाजिक गतिशीलता कुछ हद तक संभव थी।
- कौटिल्य ने वर्णों के कर्तव्यों का उल्लेख किया है, लेकिन यह कठोर नहीं थी।
2.2. मेगस्थनीज का वर्गीकरण (Megasthenes’ Classification)
- मेगस्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित किया, जो वर्ण व्यवस्था से भिन्न था और संभवतः उसके अवलोकन पर आधारित था:
- 1. दार्शनिक (Philosophers): ब्राह्मण और श्रमण (बौद्ध/जैन भिक्षु)।
- 2. किसान (Farmers): समाज का सबसे बड़ा वर्ग।
- 3. सैनिक (Soldiers): एक बड़ा और महत्वपूर्ण वर्ग।
- 4. चरवाहे (Herdsmen): पशुपालन करने वाले।
- 5. कारीगर (Artisans): विभिन्न शिल्पों में संलग्न।
- 6. निरीक्षक (Magistrates/Overseers): प्रशासन और न्याय से जुड़े।
- 7. सभासद (Councillors/Assessors): राजा के सलाहकार और उच्च अधिकारी।
- महत्वपूर्ण नोट: मेगस्थनीज का यह वर्गीकरण भारतीय वर्ण व्यवस्था पर आधारित नहीं था, बल्कि व्यवसायों पर आधारित था। वह भारत में ‘दास प्रथा’ के प्रचलन से अनभिज्ञ था या उसने इसे पश्चिमी दास प्रथा से भिन्न पाया।
2.3. दास प्रथा (Slavery)
- दास प्रथा मौजूद थी, लेकिन यह यूनानी दास प्रथा से भिन्न थी। अर्थशास्त्र में नौ प्रकार के दासों का उल्लेख है।
- दासों को निजी संपत्ति माना जाता था, लेकिन उन्हें कुछ अधिकार भी प्राप्त थे और वे अपनी स्वतंत्रता खरीद सकते थे।
2.4. महिलाओं की स्थिति (Status of Women)
- महिलाओं की स्थिति उत्तर वैदिक काल से बेहतर थी।
- उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने की स्वतंत्रता थी।
- विवाह के कई रूप प्रचलित थे। पुनर्विवाह और नियोग की अनुमति थी।
- गणिकाएँ (Courtesans): राज्य द्वारा नियंत्रित और सम्मानित थीं।
- कुछ महिलाएँ अंगरक्षक या गुप्तचर के रूप में भी कार्य करती थीं।
2.5. पारिवारिक जीवन (Family Life)
- समाज पितृसत्तात्मक था, और संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी।
- पिता परिवार का मुखिया होता था।
2.6. शहरी और ग्रामीण जीवन (Urban and Rural Life)
- शहरी जीवन: पाटलिपुत्र जैसे शहर विशाल और सुव्यवस्थित थे, जिनमें लकड़ी के महल और किलेबंदी थी। शहरीकरण में वृद्धि हुई।
- ग्रामीण जीवन: अधिकांश आबादी गाँवों में रहती थी और कृषि उनका मुख्य व्यवसाय था।
2.7. धर्म और संस्कृति (Religion and Culture)
- बौद्ध धर्म और जैन धर्म का व्यापक प्रसार हुआ, विशेषकर अशोक के शासनकाल में।
- वैदिक धर्म और ब्राह्मणवाद भी मौजूद थे।
- कला और वास्तुकला में स्तूपों, स्तंभों (अशोक स्तंभ), और गुफाओं का विकास हुआ।
3. मौर्य साम्राज्य का पतन (Decline of the Mauryan Empire)
सम्राट अशोक की मृत्यु (लगभग 232 ईसा पूर्व) के लगभग 50 वर्षों के भीतर मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। इसके पतन के लिए कई कारण जिम्मेदार थे, जो विभिन्न इतिहासकारों द्वारा सुझाए गए हैं।
3.1. अशोक की शांतिवादी नीति (Ashoka’s Pacifist Policy)
- कुछ इतिहासकारों (जैसे हरप्रसाद शास्त्री) का मानना है कि अशोक की अहिंसा और धम्म की नीति ने मौर्य सेना को कमजोर कर दिया, जिससे साम्राज्य बाहरी आक्रमणों और आंतरिक विद्रोहों का सामना करने में असमर्थ हो गया।
- हालांकि, यह तर्क विवादित है, क्योंकि अशोक ने कभी भी सेना को भंग नहीं किया और उनके अभिलेखों से पता चलता है कि वे सीमांत क्षेत्रों में अपनी सैन्य शक्ति बनाए रखते थे।
3.2. ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया (Brahmanical Reaction)
- कुछ विद्वानों का मत है कि अशोक द्वारा पशु बलि पर प्रतिबंध और ब्राह्मणों को दिए जाने वाले दान में कमी ने ब्राह्मणों को असंतुष्ट कर दिया।
- पुष्यमित्र शुंग, जो अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ का सेनापति था और जिसने मौर्य साम्राज्य का अंत किया, एक ब्राह्मण था। इसे ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है।
3.3. अत्यधिक केंद्रीकृत प्रशासन (Highly Centralized Administration)
- मौर्य प्रशासन अत्यधिक केंद्रीकृत था, जिसमें राजा के पास असीमित शक्तियाँ थीं। अशोक के उत्तराधिकारी इतने सक्षम नहीं थे कि वे इतने विशाल साम्राज्य को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकें।
- दूरस्थ प्रांतों पर केंद्रीय नियंत्रण कमजोर पड़ने लगा, जिससे विद्रोह और स्वतंत्रता की घोषणाएँ हुईं।
3.4. आर्थिक समस्याएँ (Economic Problems)
- विशाल सेना और प्रशासन को बनाए रखने के लिए भारी वित्तीय संसाधन की आवश्यकता थी।
- अशोक द्वारा बौद्ध मठों और स्तूपों के निर्माण पर किए गए भारी खर्च ने शाही खजाने पर दबाव डाला।
- अंतिम मौर्य शासकों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जिससे सेना और प्रशासन को बनाए रखना मुश्किल हो गया।
3.5. उत्तराधिकार का अभाव और कमजोर उत्तराधिकारी (Lack of Succession and Weak Successors)
- अशोक के बाद कोई भी योग्य उत्तराधिकारी नहीं आया जो साम्राज्य की एकता और शक्ति को बनाए रख सके।
- अशोक के बाद साम्राज्य दो भागों में विभाजित हो गया था – पश्चिमी भाग (कुणाल के अधीन) और पूर्वी भाग (दशरथ के अधीन)।
3.6. पश्चिमोत्तर सीमा पर आक्रमण (Invasions from the Northwest)
- मौर्य साम्राज्य के अंतिम चरण में पश्चिमोत्तर सीमा पर बैक्ट्रियन यूनानियों के आक्रमण शुरू हो गए थे।
- कमजोर मौर्य शासक इन आक्रमणों को रोकने में असमर्थ रहे, जिससे साम्राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा में और गिरावट आई।
3.7. प्रांतीय गवर्नरों का विद्रोह (Revolt of Provincial Governors)
- दूरस्थ प्रांतों के गवर्नर, जिन्हें ‘कुमारा’ या ‘आर्यपुत्र’ कहा जाता था, केंद्रीय सत्ता के कमजोर पड़ने पर स्वतंत्र होने लगे।
- अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी, जिसने शुंग वंश की स्थापना की।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
मौर्य साम्राज्य का पतन किसी एक कारण का परिणाम नहीं था, बल्कि यह कई कारकों के संयोजन का परिणाम था, जिसमें कमजोर उत्तराधिकारी, प्रशासनिक केंद्रीकरण की समस्याएँ, आर्थिक दबाव, ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया और बाहरी आक्रमण शामिल थे। हालांकि, मौर्य साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में एक अविस्मरणीय छाप छोड़ी, जिसने एक विशाल और केंद्रीकृत राज्य की अवधारणा को स्थापित किया और भविष्य के साम्राज्यों के लिए एक मजबूत नींव रखी।