मुगल साम्राज्य का पतन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
औरंगजेब की मृत्यु (1707 ईस्वी) के बाद मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन होना शुरू हो गया। एक विशाल और शक्तिशाली साम्राज्य, जो अकबर के समय अपने चरमोत्कर्ष पर था, लगभग 150 वर्षों के भीतर पूरी तरह से बिखर गया। इस पतन के कई जटिल कारण थे, जिनमें आंतरिक कमजोरियां और बाहरी चुनौतियाँ दोनों शामिल थीं।
1. औरंगजेब की नीतियां और उनकी भूमिका (Aurangzeb’s Policies and Their Role)
औरंगजेब की कुछ नीतियों को मुगल साम्राज्य के पतन के लिए महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
- दक्कन नीति (Deccan Policy):
- दक्कन में मराठों के खिलाफ 25 वर्षों के लगातार युद्धों ने साम्राज्य के संसाधनों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया।
- इससे शाही खजाना खाली हो गया और सेना कमजोर पड़ गई।
- इस नीति ने मराठों को और भी शक्तिशाली बना दिया, जो बाद में मुगलों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए।
- धार्मिक असहिष्णुता (Religious Intolerance):
- जजिया कर की पुनः स्थापना (1679 ईस्वी) और मंदिरों को तोड़ने के आदेश जैसी नीतियों ने गैर-मुस्लिम आबादी, विशेषकर हिंदुओं को अलग-थलग कर दिया।
- इससे राजपूतों, सिखों, जाटों और सतनामियों जैसे विभिन्न समुदायों में विद्रोह हुए, जिससे साम्राज्य में अशांति और अस्थिरता बढ़ी।
- कला और साहित्य की उपेक्षा: औरंगजेब ने कला और साहित्य को शाही संरक्षण देना कम कर दिया, जिससे सांस्कृतिक समृद्धि में कमी आई।
2. कमजोर उत्तराधिकारी (Weak Successors)
औरंगजेब के बाद के मुगल शासक अयोग्य और कमजोर थे, जो साम्राज्य को एकजुट रखने में विफल रहे।
- उत्तराधिकार के युद्ध: औरंगजेब के बाद उसके पुत्रों और पोतों के बीच लगातार उत्तराधिकार के संघर्ष हुए, जिससे साम्राज्य की स्थिरता कमजोर हुई और अमीरों का प्रभाव बढ़ा।
- व्यक्तिगत कमजोरियाँ: बहादुर शाह प्रथम (‘शाह-ए-बेखबर’), जहांदार शाह (‘लंपट मूर्ख’), मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ जैसे शासक विलासितापूर्ण जीवन में लिप्त थे और प्रशासनिक मामलों में कम रुचि रखते थे।
- शाही प्रतिष्ठा में गिरावट: बादशाह की शक्ति और प्रतिष्ठा में लगातार गिरावट आई, जिससे क्षेत्रीय शक्तियों को स्वतंत्र होने का प्रोत्साहन मिला।
3. दरबार में गुटबाजी और अमीरों का प्रभाव (Court Factions and Influence of Nobles)
उत्तर मुगल काल में दरबारी गुटबाजी और अमीरों का बढ़ता प्रभाव साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण था।
- ‘किंगमेकर’ की भूमिका: सैयद बंधुओं जैसे शक्तिशाली अमीरों ने बादशाहों को गद्दी पर बैठाया और हटाया, जिससे शाही सत्ता की गरिमा समाप्त हो गई।
- व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ: विभिन्न गुटों (ईरानी, तुरानी, अफगानी, हिंदुस्तानी) के अमीर अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए आपस में लड़ते रहते थे, जिससे केंद्रीय प्रशासन कमजोर हुआ।
- जागीरदारी संकट: जागीरों की कमी और मनसबदारों की बढ़ती संख्या ने जागीरदारी संकट को जन्म दिया, जिससे प्रशासन में भ्रष्टाचार और अक्षमता बढ़ी।
4. क्षेत्रीय शक्तियों का उदय (Rise of Regional Powers)
केंद्रीय सत्ता के कमजोर होने के साथ ही, कई स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ।
- अवध, बंगाल, हैदराबाद: इन प्रांतों के सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी और मुगल साम्राज्य से अलग हो गए।
- मराठा शक्ति का उदय: मराठों ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रतिरोध विकसित किया और दक्कन से लेकर उत्तर भारत तक अपना प्रभाव बढ़ाया।
- जाट, सिख, राजपूत: इन समुदायों ने भी अपनी स्वायत्तता स्थापित की और मुगलों के खिलाफ विद्रोह किए।
- रूहेला और अफगान: उत्तर भारत में कुछ अफगान सरदारों ने भी अपनी रियासतें स्थापित कीं।
5. विदेशी आक्रमण (Foreign Invasions)
बाहरी आक्रमणों ने मुगल साम्राज्य की कमजोरियों को उजागर किया और उसके पतन को तेज किया।
- नादिर शाह का आक्रमण (1739 ईस्वी):
- ईरान के शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया और करनाल के युद्ध में मुगल सेना को पराजित किया।
- उसने दिल्ली को बेरहमी से लूटा और अपार धन-संपत्ति (मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा सहित) ले गया।
- इस आक्रमण ने मुगल साम्राज्य की आर्थिक और सैन्य शक्ति को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
- अहमद शाह अब्दाली का आक्रमण (1748-1767 ईस्वी):
- अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कई बार आक्रमण किए।
- पानीपत का तीसरा युद्ध (1761 ईस्वी), हालांकि मराठों और अब्दाली के बीच लड़ा गया था, इसने भारत में किसी भी एक शक्ति को मजबूत होने से रोका और अंग्रेजों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
6. आर्थिक दिवालियापन (Economic Bankruptcy)
लगातार युद्धों, प्रशासनिक अक्षमता और शाही विलासिता के कारण मुगल साम्राज्य आर्थिक रूप से दिवालिया हो गया।
- राजस्व संग्रह में गिरावट आई, जबकि सैन्य और प्रशासनिक खर्च बढ़ते गए।
- जागीरदारी संकट ने किसानों पर बोझ बढ़ाया और कृषि उत्पादन को प्रभावित किया।
- व्यापार और वाणिज्य में गिरावट आई, जिससे साम्राज्य की आय और कम हो गई।
7. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का उदय (Rise of the British East India Company)
मुगल साम्राज्य के पतन ने भारत में ब्रिटिश सत्ता के उदय के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा कीं।
- प्लासी का युद्ध (1757 ईस्वी) और बक्सर का युद्ध (1764 ईस्वी): इन युद्धों में अंग्रेजों की विजय ने उन्हें बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर नियंत्रण प्रदान किया।
- इलाहाबाद की संधि (1765 ईस्वी): इस संधि ने अंग्रेजों को बंगाल की दीवानी प्रदान की और मुगल सम्राट को एक पेंशनभोगी बना दिया।
- धीरे-धीरे, अंग्रेजों ने भारत के अधिकांश हिस्सों पर अपना राजनीतिक और सैन्य नियंत्रण स्थापित कर लिया।
8. निष्कर्ष (Conclusion)
मुगल साम्राज्य का पतन किसी एक कारण का परिणाम नहीं था, बल्कि यह कई आंतरिक और बाहरी कारकों के जटिल संयोजन का परिणाम था। औरंगजेब की नीतियों, कमजोर उत्तराधिकारियों, दरबारी गुटबाजी, क्षेत्रीय शक्तियों के उदय, विदेशी आक्रमणों और आर्थिक दिवालियापन ने साम्राज्य को कमजोर किया। इन कमजोरियों का लाभ उठाते हुए, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी सत्ता स्थापित की, जिससे मुगल साम्राज्य का औपचारिक अंत हुआ और भारत में एक नए औपनिवेशिक युग की शुरुआत हुई।