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ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना (Establishment of British Control)

यूरोपीय शक्तियों का आगमन: ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

यूरोपीय शक्तियों का आगमन: ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के आगमन के साथ, विशेषकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने, धीरे-धीरे व्यापारिक प्रभुत्व से राजनीतिक और सैन्य नियंत्रण की ओर कदम बढ़ाया। 18वीं शताब्दी के मध्य तक, मुगल साम्राज्य के पतन और क्षेत्रीय शक्तियों की आपसी फूट ने ब्रिटिश को भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने का अवसर प्रदान किया।

1. बंगाल पर नियंत्रण (Control over Bengal)

बंगाल भारत का सबसे समृद्ध प्रांत था, और इस पर नियंत्रण ब्रिटिश प्रभुत्व की नींव साबित हुआ।

  • प्लासी का युद्ध (1757 ईस्वी):
    • कारण: बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच व्यापारिक विशेषाधिकारों, किलेबंदी और नवाब के आदेशों की अवहेलना को लेकर तनाव।
    • घटना: रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने सिराजुद्दौला को पराजित किया। नवाब के सेनापति मीर जाफर की गद्दारी निर्णायक साबित हुई।
    • परिणाम:
      • सिराजुद्दौला की हार और हत्या। मीर जाफर को कठपुतली नवाब बनाया गया।
      • कंपनी को बंगाल में व्यापक व्यापारिक रियायतें और धन प्राप्त हुआ।
      • यह युद्ध भारत में ब्रिटिश राजनीतिक प्रभुत्व की शुरुआत थी, हालांकि औपचारिक रूप से नहीं।
  • बक्सर का युद्ध (1764 ईस्वी):
    • कारण: मीर कासिम (मीर जाफर का दामाद) द्वारा कंपनी के हस्तक्षेप को चुनौती देना और भारतीय शासकों का एक गठबंधन बनाना।
    • घटना: अंग्रेजों ने बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया।
    • परिणाम:
      • यह युद्ध भारत में ब्रिटिश सैन्य सर्वोच्चता को स्थापित किया।
      • यह प्लासी से अधिक निर्णायक था क्योंकि इसमें भारतीय शासकों की संगठित शक्ति को हराया गया था।
  • इलाहाबाद की संधि (1765 ईस्वी):
    • बक्सर के युद्ध के बाद रॉबर्ट क्लाइव और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय तथा अवध के नवाब शुजा-उद-दौला के बीच दो अलग-अलग संधियाँ हुईं।
    • महत्वपूर्ण प्रावधान:
      • कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व एकत्र करने का अधिकार) प्राप्त हुई।
      • मुगल सम्राट को इलाहाबाद और कोरा के जिले दिए गए और उसे कंपनी से 26 लाख रुपये वार्षिक पेंशन मिलने लगी।
      • अवध के नवाब को युद्ध क्षतिपूर्ति देनी पड़ी।
    • परिणाम: इस संधि ने कंपनी को बंगाल के वास्तविक शासक के रूप में स्थापित किया, जिससे भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की नींव पड़ी।

2. अन्य क्षेत्रीय शक्तियों पर नियंत्रण (Control over Other Regional Powers)

बंगाल पर नियंत्रण के बाद, ब्रिटिश ने भारत के अन्य प्रमुख राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

  • एंग्लो-मैसूर युद्ध (Anglo-Mysore Wars) (1767-1799 ईस्वी):
    • ब्रिटिश और मैसूर के शासकों हैदर अली और उसके पुत्र टीपू सुल्तान के बीच चार युद्ध लड़े गए।
    • टीपू सुल्तान एक बहादुर और दूरदर्शी शासक था, जिसने अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी।
    • चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799) में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई और मैसूर पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित हो गया।
  • एंग्लो-मराठा युद्ध (Anglo-Maratha Wars) (1775-1818 ईस्वी):
    • ब्रिटिश और शक्तिशाली मराठा परिसंघ के बीच तीन युद्ध लड़े गए।
    • मराठा शक्ति भारत में ब्रिटिश के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।
    • तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध (1817-1818) के बाद मराठा शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो गई और ब्रिटिश ने दक्कन और मध्य भारत पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • पंजाब का विलय (Annexation of Punjab) (1849 ईस्वी):
    • महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद सिखों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी।
    • दो एंग्लो-सिख युद्धों (1845-46 और 1848-49) के बाद, अंग्रेजों ने पंजाब को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
  • सिंध का विलय (Annexation of Sindh) (1843 ईस्वी):
    • रणनीतिक महत्व के कारण अंग्रेजों ने सिंध पर कब्जा कर लिया।
  • सहायक संधि (Subsidiary Alliance) (लॉर्ड वेलेजली):
    • इस प्रणाली के तहत भारतीय शासकों को अपनी संप्रभुता ब्रिटिश को सौंपनी पड़ती थी और ब्रिटिश सेना को अपने राज्य में रखना पड़ता था।
    • यह अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय राज्यों पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित करने का एक प्रभावी तरीका था।
  • व्यपगत का सिद्धांत (Doctrine of Lapse) (लॉर्ड डलहौजी):
    • इस नीति के तहत यदि किसी भारतीय शासक का कोई प्राकृतिक पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था, तो उसके राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जाता था।
    • सतारा, झांसी, नागपुर जैसे कई राज्यों को इस नीति के तहत हड़प लिया गया।

3. ब्रिटिश नियंत्रण की स्थापना में सहायक कारक (Factors Aiding British Control)

  • मुगल साम्राज्य का पतन: केंद्रीय सत्ता के कमजोर होने से भारत में राजनीतिक शून्य पैदा हुआ।
  • भारतीय शासकों की आपसी फूट: क्षेत्रीय शक्तियों के बीच लगातार संघर्ष और एकता का अभाव।
  • ब्रिटिश सैन्य श्रेष्ठता: बेहतर प्रशिक्षण, अनुशासन और आधुनिक हथियारों से लैस सेना।
  • कुशल नेतृत्व: रॉबर्ट क्लाइव, वॉरेन हेस्टिंग्स, लॉर्ड वेलेजली जैसे सक्षम गवर्नर और सैन्य कमांडर।
  • आर्थिक संसाधन: कंपनी के पास व्यापार से प्राप्त पर्याप्त वित्तीय संसाधन थे।
  • नौसेना शक्ति: ब्रिटिश नौसेना की हिंद महासागर में सर्वोच्चता।

4. निष्कर्ष (Conclusion)

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में नियंत्रण की स्थापना एक क्रमिक प्रक्रिया थी, जिसमें रणनीतिक सैन्य विजय, कूटनीतिक संधियाँ और भारतीय शासकों की कमजोरियों का फायदा उठाना शामिल था। प्लासी और बक्सर के युद्धों ने बंगाल में उनकी राजनीतिक नींव रखी, जबकि मैसूर, मराठा और सिख शक्तियों को पराजित करने तथा सहायक संधि और व्यपगत के सिद्धांत जैसी नीतियों ने उन्हें पूरे भारत पर अपना औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित करने में सक्षम बनाया।

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