1857 का विद्रोह, जिसे भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है, विभिन्न घटनाओं और चरणों से गुजरा। इसकी शुरुआत एक सिपाही विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन यह जल्द ही एक व्यापक जन-विद्रोह में बदल गया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के शासकों, किसानों और आम लोगों ने भाग लिया।
1. विद्रोह की शुरुआत (Beginning of the Revolt)
चर्बी वाले कारतूसों की घटना ने वर्षों से जमा हो रहे असंतोष को एक तात्कालिक चिंगारी दी।
- बैरकपुर की घटना (Mangal Pandey Incident – Barrackpore):
- 29 मार्च 1857 को, बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34वीं रेजिमेंट के सिपाही मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में चर्बी वाले कारतूसों का उपयोग करने से इनकार कर दिया।
- उसने अपने सार्जेंट मेजर ह्यूसन और लेफ्टिनेंट बॉग पर हमला किया।
- मंगल पांडे को गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फाँसी दे दी गई। यह घटना विद्रोह की पहली चिंगारी थी।
- मेरठ में विद्रोह (Revolt in Meerut):
- 24 अप्रैल 1857 को, मेरठ में 90 भारतीय घुड़सवार सिपाहियों ने नए कारतूस लेने से इनकार कर दिया।
- 9 मई 1857 को, इनमें से 85 सिपाहियों को बर्खास्त कर 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई।
- 10 मई 1857 को, मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने अपने अधिकारियों पर हमला किया, जेल तोड़ दी, और अपने साथियों को मुक्त कराया।
- मेरठ से विद्रोही सिपाही दिल्ली की ओर कूच कर गए।
2. दिल्ली पर कब्जा और विद्रोह का प्रसार (Capture of Delhi and Spread of Revolt)
मेरठ से दिल्ली पहुँचे सिपाहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय को विद्रोह का नेता घोषित किया।
- दिल्ली पर कब्जा (Capture of Delhi):
- 11 मई 1857 को, मेरठ के सिपाही दिल्ली पहुँचे और लाल किले पर कब्जा कर लिया।
- उन्होंने वृद्ध मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय (बहादुर शाह जफर) को ‘शहंशाह-ए-हिंदुस्तान’ (भारत का सम्राट) घोषित किया, जिससे विद्रोह को एक शाही वैधता मिली।
- दिल्ली विद्रोह का प्रमुख केंद्र बन गया।
- विद्रोह का प्रसार (Spread of the Revolt):
- दिल्ली पर कब्जे के बाद, विद्रोह तेजी से उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में फैल गया।
- मुख्य रूप से अवध, रोहिलखंड, दोआब, बुंदेलखंड, मध्य भारत और बिहार के कुछ हिस्सों में यह सक्रिय रहा।
- यह एक सिपाही विद्रोह से बढ़कर एक जन-विद्रोह में बदल गया, जिसमें किसान, कारीगर, जमींदार और स्थानीय शासक भी शामिल हो गए।
3. विद्रोह के प्रमुख केंद्र और नेता (Main Centers and Leaders of the Revolt)
विद्रोह के विभिन्न केंद्रों पर अलग-अलग नेताओं ने कमान संभाली।
- कानपुर (Kanpur):
- नेतृत्व: नाना साहब (पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र)।
- सहायक: तात्या टोपे (उनका सेनापति) और अजीमुल्ला खान (उनके सलाहकार)।
- घटनाएँ: ब्रिटिश गैरीसन को घेर लिया गया और आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया गया। बाद में ब्रिटिश ने कानपुर पर पुनः कब्जा कर लिया।
- लखनऊ (Lucknow):
- नेतृत्व: बेगम हजरत महल (अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी)।
- उन्होंने अपने अल्पवयस्क पुत्र बिरजिस कादिर को नवाब घोषित किया।
- घटनाएँ: ब्रिटिश रेजिडेंसी पर हमला किया गया। सर हेनरी लॉरेंस की मृत्यु हुई। बाद में कॉलिन कैंपबेल ने लखनऊ पर पुनः कब्जा किया।
- झांसी (Jhansi):
- नेतृत्व: रानी लक्ष्मीबाई।
- घटनाएँ: उन्होंने डलहौजी के व्यपगत सिद्धांत के तहत अपने राज्य के विलय का विरोध किया। उन्होंने बहादुरी से ब्रिटिश सेना का सामना किया, लेकिन अंततः सर ह्यू रोज द्वारा झांसी पर कब्जा कर लिया गया। वह ग्वालियर चली गईं।
- ग्वालियर (Gwalior):
- नेतृत्व: तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई।
- घटनाएँ: रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया, लेकिन बाद में सर ह्यू रोज ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया। रानी लक्ष्मीबाई 17 जून 1858 को युद्ध में शहीद हो गईं।
- बरेली (Bareilly):
- नेतृत्व: खान बहादुर खान।
- उन्होंने खुद को रोहिलखंड का शासक घोषित किया।
- बिहार (जगदीशपुर – Arrah):
- नेतृत्व: कुंवर सिंह (एक वृद्ध जमींदार)।
- उन्होंने ब्रिटिश के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ा।
- फैजाबाद (Faizabad):
- नेतृत्व: मौलवी अहमदुल्ला शाह।
- उन्होंने ब्रिटिश के खिलाफ जिहाद का आह्वान किया।
4. ब्रिटिश द्वारा विद्रोह का दमन (Suppression of the Revolt by British)
ब्रिटिश ने कठोरता से विद्रोह का दमन किया और विभिन्न केंद्रों पर पुनः कब्जा किया।
- दिल्ली पर पुनः कब्जा (Recapture of Delhi):
- सितंबर 1857 में, ब्रिटिश सेना (जॉन निकोलसन के नेतृत्व में) ने दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया।
- बहादुर शाह द्वितीय को गिरफ्तार कर रंगून (बर्मा) निर्वासित कर दिया गया, जहाँ 1862 में उनकी मृत्यु हो गई।
- यह विद्रोहियों के लिए एक बड़ा झटका था।
- अन्य केंद्रों का दमन:
- कानपुर: सर कॉलिन कैंपबेल ने दिसंबर 1857 में कानपुर पर पुनः कब्जा किया। तात्या टोपे भाग गए।
- लखनऊ: मार्च 1858 में, सर कॉलिन कैंपबेल ने लखनऊ पर पुनः कब्जा कर लिया। बेगम हजरत महल नेपाल भाग गईं।
- झांसी और ग्वालियर: सर ह्यू रोज ने झांसी और ग्वालियर पर पुनः कब्जा किया। रानी लक्ष्मीबाई युद्ध में शहीद हो गईं। तात्या टोपे को बाद में गिरफ्तार कर फाँसी दे दी गई (अप्रैल 1859)।
- अन्य क्षेत्र: ब्रिटिश ने अन्य छोटे विद्रोहों को भी दबा दिया।
- कठोर दमन (Brutal Suppression):
- ब्रिटिश ने विद्रोहियों के खिलाफ अत्यंत क्रूरता का प्रदर्शन किया।
- हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, गाँव जला दिए गए और विद्रोहियों के समर्थकों को भी दंडित किया गया।
5. विद्रोह का अंत (End of the Revolt)
1857 के अंत तक और 1858 की शुरुआत तक, अधिकांश प्रमुख विद्रोहियों को दबा दिया गया था।
- विद्रोहियों के बीच केंद्रीय नेतृत्व और समन्वय की कमी के कारण ब्रिटिश को इसे दबाने में आसानी हुई।
- ब्रिटिश की बेहतर सैन्य शक्ति, संचार (टेलीग्राफ), और रसद ने उन्हें लाभ दिया।
- कुछ भारतीय शासकों ने ब्रिटिश का समर्थन किया या तटस्थ रहे, जिससे विद्रोहियों को समर्थन नहीं मिल पाया।
- 1859 तक, विद्रोह को पूरी तरह से दबा दिया गया था, हालांकि छिटपुट प्रतिरोध कुछ समय तक जारी रहा।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
1857 का विद्रोह, अपनी शुरुआत से लेकर दमन तक, भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण और रक्तपातपूर्ण अध्याय था। इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता के गहरे असंतोष को उजागर किया और भविष्य के राष्ट्रवादी आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा का काम किया। यद्यपि यह विद्रोह अपने तात्कालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा, इसने ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन में महत्वपूर्ण परिवर्तनों को जन्म दिया और भारत में कंपनी शासन का अंत कर दिया।