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फ्रेंच (French)

यूरोपीय शक्तियों का आगमन: फ्रेंच (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

यूरोपीय शक्तियों का आगमन: फ्रेंच (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

पुर्तगालियों और डचों के बाद, फ्रेंच भारत में व्यापारिक और औपनिवेशिक महत्वाकांक्षाओं के साथ आने वाली अंतिम प्रमुख यूरोपीय शक्ति थे। 17वीं शताब्दी के अंत में, फ्रेंच ने भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और जल्द ही अंग्रेजों के साथ वर्चस्व के लिए संघर्ष में उलझ गए।

1. भारत आने के कारण (Reasons for Coming to India)

फ्रेंच के भारत आने के पीछे मुख्य रूप से आर्थिक, राजनीतिक और साम्राज्यवादी कारण थे।

  • व्यापारिक लाभ: अन्य यूरोपीय शक्तियों की तरह, फ्रेंच भी भारत के मसालों, सूती वस्त्रों, रेशम और अन्य मूल्यवान वस्तुओं से व्यापारिक लाभ कमाना चाहते थे।
  • औपनिवेशिक विस्तार: फ्रांस यूरोपीय शक्तियों के बीच अपनी औपनिवेशिक शक्ति का विस्तार करना चाहता था, और भारत एक समृद्ध लक्ष्य था।
  • ब्रिटिश और डच से प्रतिस्पर्धा: फ्रेंच, भारत में ब्रिटिश और डच की बढ़ती शक्ति को चुनौती देना चाहते थे और अपना स्वयं का प्रभाव क्षेत्र स्थापित करना चाहते थे।
  • सरकारी समर्थन: फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को फ्रांसीसी सरकार का सीधा समर्थन प्राप्त था, जो इसे एक मजबूत स्थिति प्रदान करता था।

2. प्रमुख फ्रेंच व्यापारिक कंपनी (Key French Trading Company)

  • फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी (Compagnie française pour le commerce des Indes orientales):
    • 1664 ईस्वी में फ्रांस के वित्त मंत्री जीन-बैप्टिस्ट कोल्बर्ट द्वारा किंग लुई XIV के संरक्षण में स्थापित की गई।
    • यह एक सरकारी कंपनी थी, जिसका अर्थ था कि यह सीधे फ्रांसीसी सरकार के नियंत्रण में थी और उसकी वित्तीय सहायता पर निर्भर थी।
    • इसका उद्देश्य भारत और पूर्वी एशिया के साथ व्यापार करना था।

3. प्रमुख फ्रेंच बस्तियाँ और व्यापारिक केंद्र (Prominent French Settlements and Trading Posts)

फ्रेंच ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी व्यापारिक फैक्ट्रियां स्थापित कीं।

  • सूरत (गुजरात): 1668 ईस्वी में भारत में उनकी पहली फैक्ट्री स्थापित की गई (फ्रांकोइस कैरन द्वारा)।
  • मसूलीपट्टनम (आंध्र प्रदेश): 1669 ईस्वी में स्थापित।
  • पॉन्डिचेरी (पुडुचेरी): 1674 ईस्वी में फ्रांकोइस मार्टिन द्वारा स्थापित, जो भारत में फ्रेंच का मुख्य मुख्यालय और सबसे महत्वपूर्ण बस्ती बन गया।
  • चंद्रनगर (बंगाल): 1690 ईस्वी में स्थापित।
  • अन्य:
    • माहे (केरल)
    • कराईकल (तमिलनाडु)
    • यानम (आंध्र प्रदेश)
    • बालासोरे, कासिमबाजार।
  • मुख्य व्यापारिक वस्तुएँ: भारत से सूती वस्त्र, रेशम, कॉफी और नील का निर्यात करते थे।

4. प्रमुख फ्रेंच गवर्नर और नीतियां (Key French Governors and Policies)

  • जोसेफ फ्रैंकोइस डुप्लेक्स (Joseph François Dupleix) (1742-1754 ईस्वी):
    • फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वाकांक्षी गवर्नर-जनरल।
    • उसने भारत में ब्रिटिश प्रभाव को चुनौती देने और फ्रेंच साम्राज्य स्थापित करने का सपना देखा।
    • उसने भारतीय शासकों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और उन्हें अपने पक्ष में करने की नीति अपनाई (जिसे ‘सहायक संधि’ का अग्रदूत माना जा सकता है)।
    • उसने भारतीय सिपाहियों को यूरोपीय शैली में प्रशिक्षित किया और उनका उपयोग अपनी सेना में किया।
    • उसकी नीतियों के कारण अंग्रेजों के साथ कर्नाटक युद्ध हुए।
  • सरकारी नियंत्रण: फ्रेंच कंपनी पर सरकार का सीधा नियंत्रण था, जिससे उसे वित्तीय सहायता मिलती थी, लेकिन साथ ही निर्णय लेने में देरी और लचीलेपन की कमी भी होती थी।

5. अंग्रेजों के साथ संघर्ष: कर्नाटक युद्ध (Conflicts with the British: Carnatic Wars)

भारत में ब्रिटिश और फ्रेंच के बीच वर्चस्व के लिए तीन प्रमुख कर्नाटक युद्ध हुए, जो फ्रेंच शक्ति के पतन में निर्णायक साबित हुए।

  • प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-1748 ईस्वी):
    • कारण: ऑस्ट्रियाई उत्तराधिकार का युद्ध (यूरोप में)।
    • घटना: फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स ने मद्रास पर कब्जा कर लिया।
    • महत्वपूर्ण युद्ध: सेंट थोम का युद्ध (1746), जिसमें फ्रेंच सेना ने कर्नाटक के नवाब की बड़ी सेना को पराजित किया, जिससे यूरोपीय सैन्य प्रशिक्षण की श्रेष्ठता साबित हुई।
    • समाप्ति: एक्स-ला-शैपल की संधि (1748) के साथ, मद्रास अंग्रेजों को वापस मिल गया।
  • द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-1754 ईस्वी):
    • कारण: भारतीय रियासतों (कर्नाटक और हैदराबाद) के उत्तराधिकार के विवादों में यूरोपीय हस्तक्षेप।
    • घटना: डुप्लेक्स ने भारतीय शासकों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।
    • समाप्ति: पॉन्डिचेरी की संधि (1754) के साथ, डुप्लेक्स को वापस बुला लिया गया।
  • तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758-1763 ईस्वी):
    • कारण: यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध (Seven Years’ War) का विस्तार।
    • निर्णायक युद्ध: वांडीवाश का युद्ध (1760 ईस्वी)।
      • अंग्रेजों ने सर आयर कूट के नेतृत्व में फ्रेंच सेना (काउंट डी लाली के नेतृत्व में) को निर्णायक रूप से पराजित किया।
      • यह युद्ध भारत में फ्रेंच शक्ति के अंतिम अंत का प्रतीक था।
    • समाप्ति: पेरिस की संधि (1763) के साथ, फ्रेंच को पॉन्डिचेरी और चंद्रनगर वापस मिल गए, लेकिन उन्हें किलेबंदी करने या सेना रखने की अनुमति नहीं थी। वे केवल व्यापारिक शक्ति के रूप में रह गए।

6. फ्रेंच के पतन के कारण (Reasons for the Decline of the French)

भारत में फ्रेंच शक्ति के पतन के पीछे कई आंतरिक और बाहरी कारण थे।

  • अंग्रेजों की नौसेना श्रेष्ठता: ब्रिटिश नौसेना फ्रेंच की तुलना में अधिक शक्तिशाली और संगठित थी, जिससे उन्हें समुद्री व्यापार मार्गों पर नियंत्रण मिला।
  • फ्रेंच कंपनी की सरकारी प्रकृति:
    • सरकारी नियंत्रण के कारण निर्णय लेने में देरी और नौकरशाही बढ़ गई।
    • वित्तीय सहायता के लिए सरकार पर अत्यधिक निर्भरता, जबकि ब्रिटिश कंपनी एक निजी उद्यम थी जो अधिक लचीली और स्वतंत्र थी।
  • यूरोपीय राजनीति में व्यस्तता: फ्रांस यूरोपीय युद्धों में अधिक व्यस्त था, जिससे वह भारत में अपनी उपनिवेशों पर पर्याप्त ध्यान और संसाधन नहीं दे पाया।
  • डुप्लेक्स की वापसी: डुप्लेक्स जैसे सक्षम गवर्नर को महत्वपूर्ण समय पर वापस बुला लिया गया, जिससे फ्रेंच की रणनीतिक पहल कमजोर पड़ गई।
  • कमजोर वित्तीय स्थिति: फ्रेंच कंपनी की वित्तीय स्थिति अंग्रेजों की तुलना में कमजोर थी, खासकर लगातार युद्धों के कारण।
  • ब्रिटिश नेतृत्व: रॉबर्ट क्लाइव और सर आयर कूट जैसे सक्षम ब्रिटिश नेताओं ने फ्रेंच पर रणनीतिक बढ़त हासिल की।

7. निष्कर्ष (Conclusion)

फ्रेंच भारत में एक शक्तिशाली यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरे थे, और डुप्लेक्स जैसे महत्वाकांक्षी नेताओं ने भारत में एक साम्राज्य स्थापित करने का सपना देखा था। हालांकि, कर्नाटक युद्धों में अंग्रेजों से हार, उनकी सरकारी कंपनी की कमजोरियाँ और यूरोपीय राजनीति में व्यस्तता के कारण उनकी शक्ति का पतन हो गया। 1763 की पेरिस की संधि के बाद, फ्रेंच केवल भारत में कुछ व्यापारिक बस्तियों तक सीमित रह गए, जिससे भारत में ब्रिटिश सर्वोच्चता का मार्ग पूरी तरह से प्रशस्त हो गया।

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