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 हर्षवर्धन और उसका साम्राज्य (Post-Gupta Period – Harshavardhana and his Empire)

उत्तर-गुप्त काल: हर्षवर्धन और उसका साम्राज्य (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तर-गुप्त काल: हर्षवर्धन और उसका साम्राज्य (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद (लगभग 550 ईस्वी), उत्तर भारत में राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ। इस कालखंड में, पुष्यभूति वंश के शासक हर्षवर्धन ने उत्तर भारत को फिर से एक बड़े साम्राज्य के तहत एकजुट करने का प्रयास किया। उसका शासनकाल (606 ईस्वी – 647 ईस्वी) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल था।

1. हर्षवर्धन का उदय (Rise of Harshavardhana)

  • वंश: पुष्यभूति वंश (या वर्धन वंश), जिसकी स्थापना पुष्यभूति ने 5वीं या 6वीं शताब्दी ईस्वी में थानेश्वर (हरियाणा) में की थी।
  • पिता: प्रभाकर वर्धन, जिन्होंने ‘महाराजाधिराज’ जैसी उपाधियाँ धारण कीं और हूणों को पराजित किया।
  • उत्तराधिकार: 606 ईस्वी में अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद, हर्षवर्धन मात्र 16 वर्ष की आयु में थानेश्वर की गद्दी पर बैठा।
  • अन्य नाम: उसे ‘शिलादित्य’ के नाम से भी जाना जाता था।
  • राजधानी परिवर्तन: हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानांतरित की, जो उत्तर भारत में राजनीतिक शक्ति का नया केंद्र बन गया।

2. हर्ष का साम्राज्य और विजय (Harsha’s Empire and Conquests)

हर्षवर्धन ने उत्तर भारत में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, जो उसकी सैन्य शक्ति और कूटनीति का परिणाम था।

  • साम्राज्य विस्तार:
    • पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में बंगाल और उड़ीसा तक।
    • उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक।
    • कन्नौज उसकी राजधानी थी।
  • प्रमुख विजयें:
    • शशांक (गौड़ा नरेश) पर विजय: अपने भाई राज्यवर्धन की हत्या का बदला लेने और कन्नौज पर अधिकार करने के लिए।
    • वल्लभी (गुजरात) के मैत्रकों और मगध के उत्तर-गुप्तों पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • पुलकेशिन द्वितीय से पराजय:
    • हर्ष ने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने का प्रयास किया, लेकिन चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने उसे नर्मदा नदी के तट पर पराजित किया।
    • इसकी जानकारी ऐहोल प्रशस्ति (पुलकेशिन द्वितीय के दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित) से मिलती है।

3. प्रशासन (Administration)

हर्ष का प्रशासन गुप्तों की तुलना में अधिक सामंती और विकेन्द्रीकृत था, लेकिन कुशल था।

  • राजा की स्थिति: सम्राट सर्वोच्च शक्ति था। उसने ‘महाराजाधिराज’, ‘परमभट्टारक’ जैसी उपाधियाँ धारण कीं।
  • मंत्रिपरिषद: राजा को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी।
  • प्रमुख अधिकारी:
    • अवंति: युद्ध और शांति का प्रभारी (सन्धि-विग्रहिक)।
    • सिंहनाद: महासेनापति।
    • कुंतल: अश्वसेना का प्रमुख।
    • स्कंदगुप्त: गजसेना का प्रमुख।
  • प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को ‘भुक्ति’ (प्रांत) और ‘विषय’ (जिले) में विभाजित किया गया था।
  • राजस्व: भू-राजस्व उपज का 1/6 भाग होता था।
  • दंड प्रणाली: फाह्यान के विपरीत, ह्वेन त्सांग के अनुसार दंड कुछ कठोर थे, लेकिन मौर्यों जितने नहीं।
  • सामंतवाद: सामंतों की भूमिका महत्वपूर्ण थी। वे केंद्रीय शासक को सैन्य सहायता प्रदान करते थे।

4. धार्मिक नीति (Religious Policy)

हर्षवर्धन प्रारंभ में शैव था, लेकिन बाद में बौद्ध धर्म (महायान शाखा) का अनुयायी बन गया और धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई।

  • बौद्ध धर्म का संरक्षण:
    • उसने नालंदा विश्वविद्यालय को उदारतापूर्वक दान दिया और उसका संरक्षण किया।
    • पशु बलि पर प्रतिबंध लगाया और मांसाहारी भोजन के प्रचलन को कम करने का प्रयास किया।
  • कन्नौज सभा (643 ईस्वी):
    • हर्ष ने ह्वेन त्सांग के सम्मान में कन्नौज में एक विशाल धार्मिक सभा का आयोजन किया।
    • इस सभा में महायान बौद्ध धर्म की श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास किया गया।
  • प्रयाग सभा (महासम्मेलन):
    • हर्ष प्रत्येक पांच वर्ष में प्रयाग (आधुनिक प्रयागराज) में एक धार्मिक सम्मेलन आयोजित करता था, जिसे ‘महासम्मेलन’ कहा जाता था।
    • इन सभाओं में वह अपना सर्वस्व दान कर देता था, जिसमें बौद्ध, ब्राह्मण और जैन सभी धर्मों के लोगों को दान दिया जाता था, जो उसकी धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।

5. साहित्य और कला (Literature and Art)

हर्षवर्धन स्वयं एक विद्वान और साहित्य का संरक्षक था।

  • हर्ष की रचनाएँ: हर्षवर्धन ने स्वयं संस्कृत में तीन नाटक लिखे:
    • ‘प्रियदर्शिका’
    • ‘रत्नावली’
    • ‘नागानंद’ (बौद्ध धर्म से प्रेरित)
  • दरबारी कवि:
    • बाणभट्ट: हर्ष का दरबारी कवि।
      • प्रमुख कृतियाँ: ‘हर्षचरित’ (हर्ष की जीवनी) और ‘कादम्बरी’ (एक संस्कृत उपन्यास)।
  • चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (Xuanzang):
    • हर्ष के शासनकाल में (लगभग 630-645 ईस्वी) भारत आया।
    • उसने अपनी यात्रा का विस्तृत विवरण अपनी पुस्तक ‘सी-यू-की’ (Si-Yu-Ki) में दिया है, जिससे हर्षकालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
    • उसे ‘यात्रियों का राजकुमार’ कहा जाता है।
    • उसने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन और अध्यापन भी किया।
  • कला और स्थापत्य:
    • गुप्त काल की कलात्मक परंपरा जारी रही, हालांकि बड़े पैमाने पर मंदिर निर्माण कम हुआ।
    • नालंदा महाविहार जैसे बौद्ध मठों और विहारों का निर्माण और विस्तार हुआ।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

हर्षवर्धन का साम्राज्य उत्तर-गुप्त काल में राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक था। यद्यपि वह पूरे भारत को एकजुट नहीं कर सका, लेकिन उसने उत्तर भारत में एक मजबूत साम्राज्य स्थापित किया और कला, साहित्य और बौद्ध धर्म को महत्वपूर्ण संरक्षण दिया। उसका काल भारतीय इतिहास में एक अंतिम महान हिंदू साम्राज्य के रूप में महत्वपूर्ण है, जिसके बाद क्षेत्रीय शक्तियों का उदय और बढ़ा।

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