आजाद हिंद फौज (INA) (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
आजाद हिंद फौज (Indian National Army – INA), जिसे ‘आजाद हिंद सेना’ भी कहा जाता है, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से गठित एक सशस्त्र बल था। इसकी अवधारणा मूल रूप से मोहन सिंह द्वारा की गई थी, लेकिन इसे सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में पुनर्जीवित और संगठित किया गया, जिन्होंने इसे एक शक्तिशाली मुक्ति सेना में बदल दिया।
1. पृष्ठभूमि और गठन (Background and Formation)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश सेना की हार ने INA के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
- जापानी युद्धबंदी: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश सेना के खिलाफ कई युद्ध जीते, जिसमें बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक युद्धबंदी बन गए।
- मोहन सिंह की भूमिका (प्रथम INA):
- कैप्टन मोहन सिंह, जो ब्रिटिश भारतीय सेना के एक अधिकारी थे, ने जापानियों की मदद से इन भारतीय युद्धबंदियों को संगठित कर आजाद हिंद फौज का गठन करने का विचार रखा।
- दिसंबर 1941 में, जापानियों ने भारतीय युद्धबंदियों को मोहन सिंह को सौंप दिया, और सितंबर 1942 में, औपचारिक रूप से प्रथम INA का गठन हुआ।
- हालांकि, जापानी सेना के साथ मतभेदों के कारण, मोहन सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और प्रथम INA का विघटन हो गया।
- रास बिहारी बोस की भूमिका: जापान में रह रहे भारतीय राष्ट्रवादी रास बिहारी बोस ने भारतीय स्वतंत्रता लीग (Indian Independence League) की स्थापना की और INA को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को इसका नेतृत्व संभालने के लिए आमंत्रित किया।
2. सुभाष चंद्र बोस का नेतृत्व (Leadership of Subhas Chandra Bose)
सुभाष चंद्र बोस के आगमन ने INA को एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की।
- बोस का आगमन: 1943 में, सुभाष चंद्र बोस जर्मनी से जापान पहुँचे और फिर सिंगापुर आए। उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा!’ का प्रसिद्ध नारा दिया।
- INA का पुनर्गठन: 21 अक्टूबर, 1943 को, बोस ने सिंगापुर में ‘आजाद हिंद सरकार’ (Provisional Government of Free India) की स्थापना की और INA को पुनर्जीवित किया। वह इसके सर्वोच्च कमांडर बने।
- रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट: बोस ने INA में एक महिला रेजिमेंट का भी गठन किया, जिसका नाम ‘रानी लक्ष्मीबाई रेजिमेंट’ था और इसका नेतृत्व लक्ष्मी सहगल ने किया।
- अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: आजाद हिंद सरकार को जापान, जर्मनी, इटली और उनके सहयोगी देशों सहित कई देशों से मान्यता मिली।
3. INA की गतिविधियाँ और अभियान (Activities and Campaigns of INA)
INA ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सैन्य अभियान चलाए, विशेषकर भारत की पूर्वी सीमा पर।
- ‘दिल्ली चलो’ का नारा: बोस ने INA को ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया, जिसका उद्देश्य दिल्ली पहुँचकर ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था।
- बर्मा अभियान: INA ने जापानी सेना के साथ मिलकर बर्मा (म्यांमार) अभियान में भाग लिया।
- इम्फाल और कोहिमा अभियान (1944):
- INA और जापानी सेना ने इम्फाल और कोहिमा (मणिपुर और नागालैंड) में ब्रिटिश सेना के खिलाफ महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ी।
- INA ने मोइरांग (मणिपुर) में भारतीय ध्वज फहराया, जो भारतीय धरती पर INA की पहली बड़ी उपलब्धि थी।
- हालांकि, मित्र राष्ट्रों के जवाबी हमले, रसद की कमी और मानसून की शुरुआत के कारण यह अभियान असफल रहा।
- प्रचार और प्रेरणा: INA ने रेडियो प्रसारण और पर्चों के माध्यम से भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
4. INA का पतन और प्रभाव (Decline and Impact of INA)
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ INA का सैन्य अभियान समाप्त हो गया, लेकिन इसका प्रभाव गहरा था।
- जापान की हार: द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार (अगस्त 1945) के साथ, INA का सैन्य समर्थन समाप्त हो गया और उसके अभियान रुक गए।
- सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु: अगस्त 1945 में, सुभाष चंद्र बोस की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई, जिससे INA का नेतृत्व समाप्त हो गया।
- INA के मुकदमे (Red Fort Trials):
- ब्रिटिश सरकार ने INA के अधिकारियों, जिनमें शाहनवाज खान, प्रेम सहगल और गुरुबख्श सिंह ढिल्लों शामिल थे, पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया।
- ये मुकदमे दिल्ली के लाल किले में हुए और इन्होंने पूरे देश में व्यापक विरोध और सहानुभूति को जन्म दिया।
- कांग्रेस ने INA के बचाव के लिए एक समिति बनाई, जिसमें जवाहरलाल नेहरू, भूलाभाई देसाई और तेज बहादुर सप्रू जैसे वकील शामिल थे।
- जनता के दबाव के कारण, ब्रिटिश सरकार को अधिकांश INA अधिकारियों को रिहा करना पड़ा।
- महत्व और विरासत:
- INA ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक सशस्त्र क्रांति की संभावना को दर्शाया।
- इसने भारतीयों में राष्ट्रीय गौरव और आत्म-बलिदान की भावना जगाई।
- INA के मुकदमों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन आक्रोश पैदा किया और शाही भारतीय नौसेना विद्रोह (1946) जैसे बाद के विद्रोहों को प्रेरित किया।
- इसने ब्रिटिश सरकार को यह एहसास कराया कि अब भारतीय सेना पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता है, जिससे भारत की स्वतंत्रता की प्रक्रिया तेज हुई।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
आजाद हिंद फौज, जिसे कैप्टन मोहन सिंह ने शुरू किया और सुभाष चंद्र बोस ने पुनर्जीवित कर एक शक्तिशाली बल में बदला, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक असाधारण अध्याय था। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा!’ के नारे के साथ, बोस ने INA को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र चुनौती के रूप में खड़ा किया। यद्यपि INA अपने सैन्य लक्ष्यों को पूरी तरह से प्राप्त करने में सफल नहीं हुई, विशेषकर इम्फाल और कोहिमा अभियान में, इसके बलिदान और INA के मुकदमों ने पूरे भारत में व्यापक जन आक्रोश और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया। आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सरकार को यह स्पष्ट संदेश दिया कि अब भारत पर शासन करना असंभव है, जिससे भारत की स्वतंत्रता की प्रक्रिया तेज हुई। यह भारतीय इतिहास में साहस, बलिदान और राष्ट्रवाद का एक अमर प्रतीक बना रहेगा।