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इंडो-ग्रीक (Indo-Greeks)

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद (लगभग 185 ईसा पूर्व), भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इस अवधि को उत्तर-मौर्य काल (Post-Mauryan Period) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान कई छोटे और मध्यम आकार के राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से कुछ स्थानीय राजवंश थे और कुछ विदेशी आक्रमणकारी। इन्हीं विदेशी आक्रमणकारियों में इंडो-ग्रीक (या इंडो-बैक्ट्रियन) सबसे पहले और महत्वपूर्ण थे।

1. इंडो-ग्रीक (Indo-Greeks)

इंडो-ग्रीक शासकों ने लगभग 180 ईसा पूर्व से 10 ईस्वी तक भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों पर शासन किया। ये बैक्ट्रिया (आधुनिक अफगानिस्तान और मध्य एशिया का हिस्सा) में स्थापित ग्रीक साम्राज्य के वंशज थे।

1.1. स्थापना और समयकाल (Establishment and Period)

  • पृष्ठभूमि: सिकंदर महान के भारत से लौटने के बाद, उसके साम्राज्य का पूर्वी भाग सेल्यूकस निकेटर के नियंत्रण में आया। सेल्यूकस के उत्तराधिकारियों ने बैक्ट्रिया में एक स्वतंत्र ग्रीक राज्य की स्थापना की, जिसे बैक्ट्रियन ग्रीक साम्राज्य कहा जाता है।
  • भारत में प्रवेश: लगभग 180 ईसा पूर्व में, बैक्ट्रियन ग्रीक शासकों ने हिंदू कुश पर्वतमाला को पार कर भारत पर आक्रमण करना शुरू किया। मौर्य साम्राज्य के पतन और शुंगों की कमजोर स्थिति ने उन्हें भारत में पैर जमाने का अवसर दिया।
  • समयकाल: लगभग 180 ईसा पूर्व – 10 ईस्वी।
  • क्षेत्र: मुख्य रूप से पंजाब, गांधार (आधुनिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान का सीमावर्ती क्षेत्र) और कुछ समय के लिए मध्य गंगा घाटी तक।

1.2. प्रमुख शासक (Prominent Rulers)

  • डेमेट्रियस प्रथम (लगभग 200-180 ईसा पूर्व):
    • पहला महत्वपूर्ण इंडो-ग्रीक शासक जिसने भारत में प्रवेश किया।
    • उसने साकल (आधुनिक सियालकोट) को अपनी राजधानी बनाया।
    • उसे ‘भारतीयों का राजा’ कहा जाता था।
  • मिनेंडर/मिलिंद (लगभग 165-145 ईसा पूर्व):
    • इंडो-ग्रीक शासकों में सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली।
    • उसकी राजधानी भी साकल (सियालकोट) थी।
    • वह बौद्ध भिक्षु नागसेन से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया।
    • उसके और नागसेन के बीच हुए संवाद को बौद्ध ग्रंथ ‘मिलिंदपन्हो’ (मिलिंद के प्रश्न) में संकलित किया गया है। यह ग्रंथ इंडो-ग्रीक और बौद्ध धर्म के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण स्रोत है।
    • उसने मध्य गंगा घाटी तक आक्रमण किया और पाटलिपुत्र तक पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन शुंग शासक पुष्यमित्र शुंग ने उसे रोका।
  • स्ट्रैटो द्वितीय (लगभग 25 ईसा पूर्व – 10 ईस्वी):
    • अंतिम ज्ञात इंडो-ग्रीक शासक।
    • उसके बाद शक शासकों ने इंडो-ग्रीक शक्ति को समाप्त कर दिया।

1.3. प्रशासन और समाज (Administration and Society)

  • प्रशासन: उन्होंने स्थानीय भारतीय प्रशासनिक इकाइयों को अपनाया, लेकिन ग्रीक शैली के गवर्नरों (स्ट्रैटेगस) की नियुक्ति भी की।
  • सामाजिक स्थिति: भारतीय और ग्रीक संस्कृतियों का मिश्रण देखा गया। कुछ ग्रीक शासकों ने भारतीय धर्मों (जैसे बौद्ध धर्म, वैष्णव धर्म) को अपनाया।
  • मुद्राएँ: इंडो-ग्रीक शासकों ने भारत में पहली बार शासकों के नाम और चित्र वाली सोने की मुद्राएँ जारी कीं, जो भारतीय मुद्राशास्त्र में एक महत्वपूर्ण नवाचार था। इन मुद्राओं पर ग्रीक और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग होता था।

1.4. सांस्कृतिक विकास और प्रभाव (Cultural Developments and Impact)

  • कला और वास्तुकला:
    • गांधार कला शैली: यह इंडो-ग्रीक प्रभाव का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण है। इसमें ग्रीक-रोमन कला शैली और भारतीय कला शैली का अद्भुत मिश्रण है। महात्मा बुद्ध की मूर्तियों को ग्रीक देवताओं (विशेषकर अपोलो) की तरह बनाया गया, जिसमें यथार्थवादी शारीरिक संरचना और घुंघराले बाल दिखाए गए।
    • स्तूपों और चैत्यों में भी ग्रीक प्रभाव देखा गया।
  • धर्म:
    • बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ और कई ग्रीक शासकों ने इसे अपनाया (जैसे मिनेंडर)।
    • भागवत धर्म (वैष्णव धर्म) पर भी ग्रीक प्रभाव पड़ा, जैसा कि हेलियोडोरस के बेसनगर स्तंभ से पता चलता है, जिसने स्वयं को ‘परम भागवत’ कहा।
  • भाषा और साहित्य:
    • ग्रीक भाषा के साथ-साथ प्राकृत और संस्कृत का भी प्रयोग होता था।
    • ‘मिलिंदपन्हो’ बौद्ध धर्म और ग्रीक दर्शन के बीच संवाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • विज्ञान और खगोल विज्ञान:
    • भारतीय खगोल विज्ञान पर ग्रीक प्रभाव पड़ा, विशेषकर ज्योतिष के क्षेत्र में। ‘यवनजातक’ इसका प्रमाण है।

1.5. महत्व (Significance)

  • इंडो-ग्रीक शासकों ने भारत में पहली बार सोने के सिक्के जारी किए, जिन पर शासकों के नाम और चित्र अंकित थे।
  • उन्होंने गांधार कला शैली को जन्म दिया, जो भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
  • उनके शासनकाल में भारतीय और ग्रीक संस्कृतियों का अभूतपूर्व संगम हुआ, जिससे कला, धर्म और विज्ञान के क्षेत्र में नए विकास हुए।
  • उन्होंने उत्तर-पश्चिमी भारत में एक राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, यद्यपि उनका साम्राज्य बहुत बड़ा या दीर्घकालिक नहीं था।
  • वे भारत में आने वाले पहले विदेशी शासक थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति को प्रभावित किया और उससे प्रभावित भी हुए।

2. निष्कर्ष (Conclusion)

इंडो-ग्रीक शासकों का भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान है। यद्यपि उनका राजनीतिक प्रभुत्व सीमित था, फिर भी उनके सांस्कृतिक योगदान, विशेषकर गांधार कला शैली और मुद्राशास्त्र के क्षेत्र में, अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने भारतीय और ग्रीक सभ्यताओं के बीच एक सेतु का काम किया, जिससे दोनों क्षेत्रों की कला, धर्म और विचारों का आदान-प्रदान हुआ और भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए सांस्कृतिक युग की शुरुआत हुई।

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