सांस्कृतिक विकास: भारत-इस्लामी वास्तुकला (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
भारत में इस्लामी शासन की स्थापना के साथ, एक नई वास्तुकला शैली का विकास हुआ जिसे भारत-इस्लामी वास्तुकला (Indo-Islamic Architecture) के नाम से जाना जाता है। यह शैली इस्लामी और भारतीय (मुख्यतः हिंदू और जैन) स्थापत्य परंपराओं के मिश्रण से बनी, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप में एक अद्वितीय और भव्य कलात्मक विरासत को जन्म दिया।
1. प्रमुख विशेषताएँ (Key Characteristics)
भारत-इस्लामी वास्तुकला में दोनों परंपराओं के तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण दिखाई देता है।
- मेहराब और गुंबद (Arches and Domes):
- इस्लामी वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएँ, जो भारतीय स्थापत्य में पहले नहीं थीं।
- मेहराब संरचनाओं को सहारा देने के लिए उपयोग किए जाते थे, और गुंबद छतों को ढकने के लिए।
- मीनारें (Minarets):
- मस्जिदों और मकबरों से जुड़ी लंबी, पतली मीनारें, जिनका उपयोग अज़ान (प्रार्थना के लिए बुलावा) देने के लिए किया जाता था।
- खुली जगह (Open Spaces):
- मस्जिदों और मकबरों में बड़े खुले प्रांगण (Courtyards) और विशाल हॉल।
- सजावट (Decoration):
- कैलिग्राफी (सुलेख): कुरान की आयतों और अन्य अरबी/फारसी ग्रंथों का उपयोग सजावट के रूप में।
- ज्यामितीय पैटर्न: फूलों, पत्तियों और ज्यामितीय आकृतियों का जटिल उपयोग, क्योंकि इस्लाम में सजीव आकृतियों का चित्रण वर्जित था।
- अरेबस्क (Arabesque): घुमावदार रेखाओं और फूलों के पैटर्न का उपयोग।
- पिएट्रा ड्यूरा (Pietra Dura): संगमरमर में कीमती पत्थरों की जड़ाई का काम (विशेषकर मुगल काल में लोकप्रिय)।
- सामग्री (Materials):
- शुरुआत में स्थानीय सामग्री (जैसे लाल बलुआ पत्थर) का उपयोग, बाद में संगमरमर का व्यापक उपयोग (मुगल काल)।
- जल का उपयोग (Use of Water):
- बागानों, फव्वारों और चैनलों में पानी का उपयोग, जो सौंदर्य और शीतलता प्रदान करता था।
- भारतीय प्रभाव (Indian Influence):
- स्तंभ और ब्रैकेट: भारतीय मंदिरों से प्रेरित स्तंभ और ब्रैकेट का उपयोग।
- छतरियां: भारतीय वास्तुकला से ली गई छोटी गुंबददार संरचनाएँ।
- बालकनी और झरोखे: भारतीय महलों से प्रेरित।
- नक्काशी: भारतीय कारीगरों द्वारा की गई जटिल नक्काशी, जिसमें स्थानीय रूपांकनों का समावेश था।
2. प्रमुख चरण और शैलियाँ (Major Phases and Styles)
भारत-इस्लामी वास्तुकला को विभिन्न राजवंशों के तहत विकसित हुई कई शैलियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
2.1. दिल्ली सल्तनत काल (Delhi Sultanate Period) (1206-1526 ईस्वी)
- गुलाम वंश (Mamluk Dynasty):
- कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद (दिल्ली): भारत में निर्मित पहली मस्जिद, हिंदू और जैन मंदिरों के अवशेषों से बनी।
- अढ़ाई दिन का झोपड़ा (अजमेर): एक मस्जिद, जो एक संस्कृत विद्यालय को तोड़कर बनाई गई।
- विशेषताएँ: ‘आर्कुएट’ शैली (मेहराब और गुंबद) का प्रयोग, लेकिन भारतीय कारीगरों द्वारा ‘लिंटेल और बीम’ (धरण और शहतीर) पद्धति का भी उपयोग।
- खिलजी वंश (Khalji Dynasty):
- अलाई दरवाजा (दिल्ली): कुतुब मीनार परिसर में, भारत में निर्मित पहला ‘सच्चा’ गुंबद और मेहराब का उदाहरण।
- सीरी किला (दिल्ली): अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित।
- विशेषताएँ: मेहराब और गुंबद का अधिक व्यवस्थित और वैज्ञानिक उपयोग।
- तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty):
- तुगलकाबाद किला (दिल्ली): गयासुद्दीन तुगलक द्वारा निर्मित।
- फीरोजशाह कोटला (दिल्ली): फिरोज शाह तुगलक द्वारा निर्मित।
- विशेषताएँ: सादगी, भारीपन, ढलान वाली दीवारें (बैटर्स), कम सजावट। ग्रे बलुआ पत्थर का उपयोग।
- सैयद और लोदी वंश (Sayyid and Lodi Dynasties):
- लोदी गार्डन के मकबरे (दिल्ली): जैसे सिकंदर लोदी का मकबरा।
- विशेषताएँ: डबल गुंबद का प्रयोग (ऊंचाई और स्थिरता के लिए), अष्टकोणीय और चौकोर मकबरे।
2.2. क्षेत्रीय सल्तनत शैलियाँ (Regional Sultanate Styles)
- बंगाल शैली:
- विशेषताएँ: टेराकोटा का व्यापक उपयोग, झुकी हुई छतें (बांग्ला छत), ईंटों का निर्माण।
- उदाहरण: अदीना मस्जिद (पांडुआ), कदम रसूल मस्जिद (गौर)।
- गुजरात शैली:
- विशेषताएँ: भारतीय और इस्लामी तत्वों का उत्कृष्ट मिश्रण, बारीक नक्काशी, झूलती मीनारें।
- उदाहरण: जामा मस्जिद (अहमदाबाद), सिदी सैय्यद की जाली (अहमदाबाद)।
- मालवा शैली:
- विशेषताएँ: विशालता, सादगी, रंगीन टाइलों का उपयोग।
- उदाहरण: मांडू का किला, जहाज महल, हिंडोला महल।
- दक्कनी शैली (बीजापुर और गोलकुंडा):
- विशेषताएँ: विशाल गुंबद, पतली मीनारें, प्लास्टर का उपयोग।
- उदाहरण: बीजापुर का गोल गुम्बज (विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गुंबद), गोलकुंडा किला, चारमीनार (हैदराबाद)।
- जौनपुर शैली:
- विशेषताएँ: विशाल मेहराब, मीनारों का अभाव, ‘अटाला मस्जिद’।
2.3. मुगल वास्तुकला (Mughal Architecture) (1526-1857 ईस्वी)
- भारत-इस्लामी वास्तुकला का चरमोत्कर्ष।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- समरूपता और संतुलन: इमारतों में समरूपता और संतुलन पर जोर।
- संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर का उपयोग: बाबर और हुमायूं ने लाल बलुआ पत्थर, अकबर ने लाल बलुआ पत्थर, शाहजहाँ ने सफेद संगमरमर, औरंगजेब ने पुनः लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया।
- चारबाग शैली: मकबरों और महलों के आसपास ज्यामितीय रूप से नियोजित उद्यान।
- पिएट्रा ड्यूरा: संगमरमर में कीमती पत्थरों की जड़ाई का व्यापक उपयोग।
- दोहरे गुंबद: इमारतों को भव्यता और ऊंचाई प्रदान करने के लिए।
- प्रमुख उदाहरण:
- हुमायूं का मकबरा (दिल्ली): मुगल वास्तुकला का पहला महान उदाहरण, ताजमहल का अग्रदूत।
- फतेहपुर सीकरी (अकबर): बुलंद दरवाजा, जोधाबाई का महल, पंच महल, सलीम चिश्ती का मकबरा।
- आगरा का किला (अकबर):
- ताजमहल (शाहजहाँ): विश्व प्रसिद्ध, सफेद संगमरमर से निर्मित।
- लाल किला (दिल्ली, शाहजहाँ): दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मोती मस्जिद।
- जामा मस्जिद (दिल्ली, शाहजहाँ): भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक।
- बीबी का मकबरा (औरंगजेब, औरंगाबाद): ताजमहल की नकल।
3. निष्कर्ष (Conclusion)
भारत-इस्लामी वास्तुकला भारतीय इतिहास में सांस्कृतिक संश्लेषण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसने इस्लामी मेहराब, गुंबद और मीनार जैसी विशेषताओं को भारतीय स्तंभों, छतरियों और नक्काशी के साथ जोड़ा, जिससे एक अद्वितीय और भव्य कलात्मक शैली का निर्माण हुआ। दिल्ली सल्तनत से लेकर मुगल काल तक, इस वास्तुकला ने भारत के परिदृश्य को समृद्ध किया और आज भी अपनी भव्यता और शिल्प कौशल के लिए विश्व प्रसिद्ध है।