उत्तर-मौर्य काल – कण्व वंश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद (लगभग 185 ईसा पूर्व), भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इस अवधि को उत्तर-मौर्य काल (Post-Mauryan Period) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान कई छोटे और मध्यम आकार के राज्यों का उदय हुआ। शुंग वंश के बाद मगध पर शासन करने वाला एक महत्वपूर्ण लेकिन अल्पकालिक राजवंश कण्व वंश था।
1. कण्व वंश (Kanvas)
कण्व वंश ने शुंग वंश के बाद मगध पर शासन किया। यह एक ब्राह्मण राजवंश था, जिसने शुंगों के अंतिम शासक देवभूति की हत्या कर सत्ता संभाली।
1.1. स्थापना और समयकाल (Establishment and Period)
- संस्थापक: वासुदेव कण्व।
- समयकाल: लगभग 73 ईसा पूर्व – 28 ईसा पूर्व।
- पृष्ठभूमि: वासुदेव कण्व शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति का अमात्य (मंत्री) था। उसने देवभूति की हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की।
- राजधानी: पाटलिपुत्र।
1.2. प्रमुख शासक (Prominent Rulers)
- वासुदेव कण्व (लगभग 73-64 ईसा पूर्व):
- कण्व वंश का संस्थापक और पहला शासक।
- अपने ब्राह्मण होने के कारण, उसने ब्राह्मणवादी परंपराओं को जारी रखा।
- भूमिमित्र (लगभग 64-50 ईसा पूर्व):
- वासुदेव का पुत्र और उत्तराधिकारी।
- नारायण (लग约 50-36 ईसा पूर्व):
- भूमिमित्र का पुत्र और उत्तराधिकारी।
- सुशर्मन (लगभग 36-28 ईसा पूर्व):
- कण्व वंश का अंतिम शासक।
- उसकी हत्या सातवाहन वंश के सिमुक ने कर दी, जिससे मगध पर कण्व वंश का शासन समाप्त हो गया।
1.3. प्रशासन और महत्व (Administration and Significance)
- कण्व वंश का साम्राज्य शुंगों से भी छोटा था और यह मुख्य रूप से मगध क्षेत्र तक ही सीमित था।
- उनका शासनकाल बहुत संक्षिप्त (लगभग 45 वर्ष) था और उन्होंने शुंगों की ब्राह्मणवादी नीतियों को ही जारी रखा।
- कण्व वंश के पतन के बाद, मगध की केंद्रीय सत्ता और कमजोर पड़ गई, जिससे सातवाहन वंश को दक्कन में अपनी शक्ति का विस्तार करने का अवसर मिला।
- कण्व वंश को भारतीय इतिहास में एक संक्रमणकालीन राजवंश के रूप में देखा जाता है, जिसने शुंगों और सातवाहनों के बीच की कड़ी का काम किया।
- यह वंश ब्राह्मणवादी परंपराओं के संरक्षण के लिए जाना जाता है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह बहुत शक्तिशाली नहीं था।
2. निष्कर्ष (Conclusion)
कण्व वंश ने शुंगों के बाद मगध पर एक संक्षिप्त अवधि के लिए शासन किया। यद्यपि उनका साम्राज्य सीमित था और राजनीतिक रूप से बहुत शक्तिशाली नहीं था, उन्होंने ब्राह्मणवादी परंपराओं को जारी रखने में योगदान दिया। उनके पतन ने मगध में केंद्रीय सत्ता को और कमजोर किया और दक्कन में सातवाहन जैसे नए शक्तिशाली राजवंशों के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।