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कोंड विद्रोह (Khond Rebellion)

कोंड विद्रोह (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

कोंड विद्रोह, जिसे कोंध विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और उनके हस्तक्षेप के खिलाफ कोंड जनजाति द्वारा किया गया एक महत्वपूर्ण आदिवासी विद्रोह था। यह विद्रोह मुख्य रूप से 1837 से 1856 तक चला, लेकिन इसके बाद भी छिटपुट प्रतिरोध जारी रहा।

1. पृष्ठभूमि और क्षेत्र (Background and Region)

कोंड जनजाति मुख्य रूप से पूर्वी भारत के पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में निवास करती थी।

  • भौगोलिक क्षेत्र: कोंड मुख्य रूप से उड़ीसा (अब ओडिशा) के पहाड़ी क्षेत्रों, विशेषकर घूमुसर, कालाहांडी और बौध में रहते थे।
  • पारंपरिक जीवनशैली: वे अपनी पारंपरिक जीवनशैली, जिसमें झूम कृषि, वन उत्पादों का संग्रह और शिकार शामिल था, के साथ स्वतंत्र रूप से रहते थे।
  • सामाजिक-धार्मिक प्रथाएँ: कोंड जनजाति में ‘मरियाह’ (मानव बलि) की प्रथा प्रचलित थी, जिसे वे अपनी भूमि की उर्वरता और समुदाय की समृद्धि के लिए आवश्यक मानते थे।
  • ब्रिटिश हस्तक्षेप: ब्रिटिश ने 1837 में घूमुसर पर कब्जा कर लिया और कोंड क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू किया। इसके साथ ही उनकी पारंपरिक प्रथाओं और जीवनशैली में हस्तक्षेप शुरू हुआ।

2. विद्रोह के कारण (Causes of the Revolt)

ब्रिटिश नीतियों और उनके हस्तक्षेप ने कोंडों को विद्रोह करने के लिए मजबूर किया।

  • मरियाह प्रथा पर प्रतिबंध (Ban on Mariah Practice):
    • ब्रिटिश सरकार ने मरियाह (मानव बलि) की प्रथा को समाप्त करने का प्रयास किया, जिसे कोंड अपनी धार्मिक और सामाजिक प्रथा का अभिन्न अंग मानते थे। यह उनके लिए एक गंभीर सांस्कृतिक हस्तक्षेप था।
  • नए कर और राजस्व नीतियाँ (New Taxes and Revenue Policies):
    • ब्रिटिश ने कोंड क्षेत्रों में नए कर लगाए और राजस्व संग्रह की नई प्रणालियाँ लागू कीं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • जमींदारों और साहूकारों का शोषण (Exploitation by Zamindars and Moneylenders):
    • बाहरी जमींदारों और साहूकारों का कोंड क्षेत्रों में प्रवेश और उनका शोषण बढ़ गया।
    • ऋण का जाल और भूमि का अतिक्रमण आम बात हो गई।
  • वन कानूनों में हस्तक्षेप (Interference in Forest Laws):
    • ब्रिटिश ने वन कानूनों में बदलाव किए, जिससे कोंडों के वन उत्पादों पर पारंपरिक अधिकारों का हनन हुआ।
  • न्याय प्रणाली में विश्वास की कमी (Lack of Faith in Justice System):
    • कोंडों को लगा कि ब्रिटिश न्याय प्रणाली उनके हितों के खिलाफ है और उन्हें न्याय नहीं मिलेगा।
  • स्थानीय राजाओं का समर्थन: कुछ स्थानीय राजाओं, जैसे कि घूमुसर के राजा, ने भी कोंडों को ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाया।

3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Revolt)

कोंड विद्रोह विभिन्न चरणों में हुआ, जो विभिन्न नेताओं के अधीन थे।

  • पहला चरण (1837-1840):
    • यह विद्रोह चक्र बिसाई (Chakra Bisoi) के नेतृत्व में शुरू हुआ।
    • चक्र बिसाई ने घूमुसर के अपदस्थ राजा के उत्तराधिकारी के रूप में भी लड़ाई लड़ी।
    • कोंडों ने ब्रिटिश अधिकारियों, साहूकारों और पुलिस पर हमला किया।
  • दूसरा चरण (1846-1848):
    • चक्र बिसाई ने फिर से विद्रोह का नेतृत्व किया, विशेषकर मरियाह प्रथा पर ब्रिटिश हस्तक्षेप के खिलाफ।
    • यह विद्रोह ब्रिटिश सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध के रूप में लड़ा गया।
  • तीसरा चरण (1855-1856):
    • हालांकि चक्र बिसाई 1855 में गायब हो गए, लेकिन उनके भतीजे राधाकृष्ण दंडसेना ने विद्रोह का नेतृत्व संभाला।
    • यह चरण भी मरियाह प्रथा और ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ था।
  • अन्य छिटपुट विद्रोह:
    • 1857 के विद्रोह के दौरान भी कोंडों ने ब्रिटिश के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाई।

4. विद्रोह का दमन (Suppression of the Revolt)

ब्रिटिश ने कोंड विद्रोह को दबाने के लिए कठोर सैन्य अभियानों का उपयोग किया।

  • कठोर सैन्य अभियान:
    • ब्रिटिश ने विद्रोह को कुचलने के लिए बड़ी सैन्य टुकड़ियों को भेजा।
    • कोंडों के गाँव जला दिए गए और कई लोग मारे गए।
  • नेताओं का पीछा:
    • चक्र बिसाई को पकड़ने के लिए ब्रिटिश ने लंबे समय तक पीछा किया, लेकिन वे कभी पकड़े नहीं गए।
    • राधाकृष्ण दंडसेना को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया।
  • मरियाह प्रथा का दमन:
    • ब्रिटिश ने मरियाह प्रथा को समाप्त करने के लिए एक विशेष ‘मरियाह एजेंसी’ की स्थापना की, जिसने बलपूर्वक इस प्रथा को रोका।

5. विद्रोह के परिणाम और प्रभाव (Outcomes and Impact of the Revolt)

यद्यपि कोंड विद्रोह को दबा दिया गया, इसके कुछ महत्वपूर्ण परिणाम हुए।

  • मरियाह प्रथा का उन्मूलन (Abolition of Mariah Practice):
    • ब्रिटिश सरकार मरियाह प्रथा को सफलतापूर्वक समाप्त करने में सफल रही, हालांकि यह कोंडों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा था।
  • भूमि कानूनों में सीमित सुधार (Limited Reforms in Land Laws):
    • ब्रिटिश ने आदिवासियों की भूमि की सुरक्षा के लिए कुछ सीमित कानून बनाए, लेकिन कोंडों को अभी भी बाहरी लोगों के शोषण का सामना करना पड़ा।
  • आदिवासी पहचान का सुदृढीकरण (Strengthening of Tribal Identity):
    • विद्रोह ने कोंडों के बीच अपनी सामूहिक पहचान और एकजुटता को मजबूत किया।
  • भविष्य के आंदोलनों के लिए प्रेरणा (Inspiration for Future Movements):
    • कोंड विद्रोह ने भविष्य के आदिवासी और किसान आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा का काम किया।
  • ब्रिटिश नीति में बदलाव (Shift in British Policy):
    • ब्रिटिश ने आदिवासियों के प्रति अपनी नीति में कुछ बदलाव किए, जिसमें उनके पारंपरिक कानूनों और रीति-रिवाजों का सम्मान करने का प्रयास शामिल था, हालांकि यह सीमित था।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

कोंड विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत में हुए महत्वपूर्ण आदिवासी प्रतिरोधों में से एक था। यह विद्रोह कोंडों के पारंपरिक अधिकारों, सांस्कृतिक प्रथाओं और आर्थिक स्वतंत्रता पर ब्रिटिश हस्तक्षेप के खिलाफ उनकी लड़ाई का प्रतीक था। यद्यपि इसे क्रूरता से दबा दिया गया, इसने ब्रिटिश को आदिवासियों की समस्याओं के प्रति कुछ हद तक संवेदनशील होने के लिए मजबूर किया और भविष्य के राष्ट्रवादी और आदिवासी आंदोलनों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।

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