उत्तर-मौर्य काल – कुषाण (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद (लगभग 185 ईसा पूर्व), भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इस अवधि को उत्तर-मौर्य काल (Post-Mauryan Period) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान कई छोटे और मध्यम आकार के राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से कुछ स्थानीय राजवंश थे और कुछ विदेशी आक्रमणकारी। इंडो-ग्रीक और शकों के बाद भारत में प्रवेश करने वाले सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली विदेशी शासक कुषाण (Kushanas) थे।
1. कुषाण (Kushanas)
कुषाण मध्य एशिया की यूची (Yuezhi) जनजाति की एक शाखा थे। वे पहली शताब्दी ईस्वी में भारत में प्रवेश किए और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जो मध्य एशिया से लेकर गंगा घाटी तक फैला हुआ था।
1.1. उद्भव और भारत में प्रवेश (Origin and Entry into India)
- मूल: कुषाण मूल रूप से मध्य एशिया की यूची जनजाति की एक शाखा थे। यूची जनजाति को चीन से हूणों द्वारा धकेला गया था।
- प्रवेश: यूची जनजाति पाँच कबीलों में विभाजित थी, जिनमें से एक कुषाण थे। कुषाणों ने अन्य चार कबीलों पर प्रभुत्व स्थापित किया और भारत की ओर बढ़े।
- समयकाल: लगभग पहली शताब्दी ईस्वी से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक।
- क्षेत्र: उनका साम्राज्य मध्य एशिया (बैक्ट्रिया), अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के बड़े हिस्से (पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार) तक फैला हुआ था।
1.2. प्रमुख शासक (Prominent Rulers)
- कुजुल कडफिसेस (Kujula Kadphises) – (लगभग 30-80 ईस्वी):
- कुषाण वंश का संस्थापक।
- उसने काबुल और कंधार में अपनी सत्ता स्थापित की।
- उसने रोमन सिक्कों की नकल पर तांबे के सिक्के जारी किए।
- वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
- विमा कडफिसेस (Vima Kadphises) – (लगभग 80-95 ईस्वी):
- भारत में कुषाण शक्ति का वास्तविक संस्थापक।
- उसने भारत में कुषाण साम्राज्य का विस्तार किया।
- वह भारत में सोने के सिक्के जारी करने वाला पहला कुषाण शासक था। उसके सिक्कों पर शिव, नंदी और त्रिशूल के चित्र अंकित थे, जो उसके शैव धर्म के प्रति झुकाव को दर्शाते हैं।
- उसे ‘महेश्वर’ की उपाधि से भी जाना जाता था।
- कनिष्क (Kanishka) – (लगभग 78-101/102 ईस्वी):
- कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली शासक।
- उसने 78 ईस्वी में शक संवत की शुरुआत की, जो भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है।
- उसकी राजधानी पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) थी। मथुरा उसकी दूसरी राजधानी थी।
- वह बौद्ध धर्म का महान संरक्षक था और उसके शासनकाल में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन कश्मीर के कुंडलवन में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी और अश्वघोष उपाध्यक्ष थे। इसी संगीति में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान शाखाओं में विभाजित हो गया।
- कनिष्क के दरबार में कई विद्वान थे, जैसे:
- अश्वघोष: बौद्ध दार्शनिक और कवि, जिसने ‘बुद्धचरित’ और ‘सौंदरानंद’ की रचना की।
- नागार्जुन: महान बौद्ध दार्शनिक और वैज्ञानिक, जिन्हें ‘भारत का आइंस्टीन’ कहा जाता है। उन्होंने ‘माध्यमिक सूत्र’ की रचना की।
- चरक: प्रसिद्ध चिकित्सक, जिन्होंने ‘चरक संहिता’ की रचना की।
- वसुमित्र: चौथी बौद्ध संगीति के अध्यक्ष।
- उसने चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा दिया, विशेषकर रेशम मार्ग (Silk Route) पर नियंत्रण के माध्यम से।
1.3. प्रशासन और समाज (Administration and Society)
- प्रशासनिक व्यवस्था: कुषाणों ने ‘क्षत्रप’ प्रणाली का उपयोग किया, लेकिन वे स्वयं को ‘देवपुत्र’ (स्वर्ग के पुत्र) कहते थे, जो चीनी प्रभाव को दर्शाता है।
- सेना: उनकी सेना शक्तिशाली थी, जिसमें घुड़सवार सेना प्रमुख थी।
- सामाजिक स्थिति: कुषाण समाज में भारतीय और मध्य एशियाई तत्वों का मिश्रण था। उन्होंने भारतीय रीति-रिवाजों और धर्मों को अपनाया।
- मुद्राएँ: कुषाणों ने बड़े पैमाने पर सोने के सिक्के जारी किए, जो रोमन और पार्थियन सिक्कों से प्रेरित थे। उनके सिक्कों पर विभिन्न भारतीय, ग्रीक और ईरानी देवताओं के चित्र अंकित होते थे, जो उनकी धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाते हैं।
1.4. सांस्कृतिक विकास और प्रभाव (Cultural Developments and Impact)
- कला और वास्तुकला:
- गांधार कला शैली: कुषाण काल में गांधार कला शैली अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची। यह ग्रीक-रोमन और भारतीय कला का मिश्रण थी, जिसमें बुद्ध की मूर्तियाँ यथार्थवादी और मानवीय रूप में बनाई गईं।
- मथुरा कला शैली: यह पूर्णतः स्वदेशी कला शैली थी, जिसमें लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया जाता था। इसमें बुद्ध, जैन तीर्थंकरों और हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गईं, जिनमें भारतीयता का प्रभाव अधिक था।
- दोनों शैलियों में मूर्तियों में आध्यात्मिक भाव और शारीरिक सौंदर्य का अद्भुत संगम था।
- धर्म:
- बौद्ध धर्म: कनिष्क के संरक्षण में महायान बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार हुआ। बुद्ध की मूर्ति पूजा इसी काल में लोकप्रिय हुई।
- हिंदू धर्म: शैव और वैष्णव धर्म को भी संरक्षण मिला। कुषाण सिक्कों पर शिव, विष्णु, कार्तिकेय आदि देवताओं के चित्र मिलते हैं।
- ईरानी धर्म: कुषाणों के मूल ईरानी धर्म का प्रभाव भी उनके सिक्कों पर देखा जा सकता है, जहाँ ईरानी देवताओं के चित्र भी मिलते हैं।
- भाषा और साहित्य:
- संस्कृत भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन मिला। अश्वघोष और चरक जैसे विद्वानों ने संस्कृत में महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
- उनके अभिलेखों में प्राकृत और संस्कृत का प्रयोग होता था।
- व्यापार और वाणिज्य:
- कुषाणों ने रेशम मार्ग (Silk Route) पर नियंत्रण के कारण व्यापार और वाणिज्य को बहुत बढ़ावा दिया। भारत का चीन, मध्य एशिया, पश्चिमी एशिया और रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार फला-फूला।
- सोने के सिक्कों की प्रचुरता व्यापारिक समृद्धि का प्रमाण है।
1.5. महत्व (Significance)
- कुषाणों ने भारत में एक विशाल और एकीकृत साम्राज्य की स्थापना की, जो मध्य एशिया से लेकर गंगा घाटी तक फैला था।
- उनके शासनकाल में गांधार और मथुरा कला शैलियों का विकास हुआ, जो भारतीय कला के इतिहास में मील के पत्थर हैं।
- कनिष्क के संरक्षण में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार हुआ और महायान शाखा लोकप्रिय हुई।
- उन्होंने बड़े पैमाने पर सोने के सिक्के जारी किए, जिससे व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला।
- शक संवत की शुरुआत उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक है।
- उनके शासनकाल में भारत का मध्य एशिया और रोमन साम्राज्य के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध मजबूत हुए।
1.6. पतन (Decline)
- कनिष्क के बाद कुषाण साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा।
- आंतरिक संघर्ष, स्थानीय शक्तियों का उदय (जैसे नाग और यौधेय), और बाद में ईरानी ससैनियन साम्राज्य के आक्रमण ने कुषाण शक्ति को समाप्त कर दिया।
- तीसरी शताब्दी ईस्वी तक कुषाण साम्राज्य छोटे-छोटे राज्यों में बिखर गया।
2. निष्कर्ष (Conclusion)
कुषाण शासकों ने उत्तर-मौर्य काल में भारतीय इतिहास पर गहरा और स्थायी प्रभाव डाला। उनका साम्राज्य न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी समृद्ध था। कनिष्क जैसे शासकों के संरक्षण में कला, धर्म और व्यापार के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुए, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप को विश्व मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। यद्यपि उनका साम्राज्य अंततः समाप्त हो गया, उनके योगदान आज भी भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक अभिन्न अंग हैं।