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महुआ विद्रोह (Mahua Rebellion)

महुआ विद्रोह, जिसे महुआ डाबर नरसंहार (Mahua Dabar Massacre) के नाम से भी जाना जाता है, 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुई एक महत्वपूर्ण और दुखद घटना थी। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ स्थानीय आबादी के प्रतिरोध और अंग्रेजों द्वारा की गई क्रूर प्रतिशोध का एक प्रतीक है।

1. पृष्ठभूमि और क्षेत्र (Background and Region)

महुआ डाबर एक समृद्ध हथकरघा उद्योग का केंद्र था और 1857 के विद्रोह की चिंगारी से प्रभावित था।

  • भौगोलिक क्षेत्र: यह घटना उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में मनोरमा नदी के तट पर स्थित महुआ डाबर नामक एक गाँव/कस्बे में हुई थी।
  • आबादी: महुआ डाबर मुख्य रूप से बुनकरों और कारीगरों की आबादी वाला एक समृद्ध केंद्र था, जिनमें से कई बंगाल और बिहार से आए उत्पीड़ित कारीगरों के वंशज थे। उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गहरा आक्रोश था।
  • 1857 के विद्रोह का संदर्भ: 1857 का विद्रोह पूरे उत्तर भारत में फैल चुका था, और ब्रिटिश अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से भाग रहे थे।

2. विद्रोह के कारण (Causes of the Rebellion)

स्थानीय आबादी में अंग्रेजों के प्रति गहरा असंतोष और 1857 के विद्रोह की लहर ने इस घटना को जन्म दिया।

  • अंग्रेजों के प्रति आक्रोश:
    • स्थानीय आबादी, विशेषकर बुनकर, अंग्रेजों की बेगारी (जबरन श्रम) और अन्य उत्पीड़नकारी नीतियों से त्रस्त थे।
    • कुछ बुनकरों के पूर्वजों के हाथ अंग्रेजों ने काट दिए थे, जिससे उनके मन में गहरा प्रतिशोध था।
  • 1857 के विद्रोह का प्रभाव:
    • पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ फैले विद्रोह की चिंगारी महुआ डाबर तक भी पहुँच गई थी, जिससे स्थानीय लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का साहस आया।
  • तत्काल कारण:
    • फैजाबाद से दानापुर (बिहार) जा रहे छह ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों का महुआ डाबर से गुजरना इस घटना का तात्कालिक कारण बना।

3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Rebellion)

यह घटना ब्रिटिश अधिकारियों पर हमले और उसके बाद अंग्रेजों के क्रूर प्रतिशोध के रूप में सामने आई।

  • ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला (Attack on British Officers):
    • 10 जून, 1857 को, महुआ डाबर के ग्रामीणों ने फैजाबाद से भाग रहे छह ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों (लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थॉमस, लेफ्टिनेंट इंग्लिश, लेफ्टिनेंट रिची, सार्जेंट एडवर्ड, लेफ्टिनेंट काकल) को घेर लिया।
    • ग्रामीणों ने इन अधिकारियों पर हमला किया, जिसमें छह अंग्रेज अधिकारी मारे गए। एक सार्जेंट बुशर किसी तरह जान बचाकर भाग निकला और उसने गोरखपुर में अधिकारियों को घटना की जानकारी दी।
  • ब्रिटिश प्रतिशोध (British Retaliation):
    • इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत हिल गई, क्योंकि उस समय पूरे क्षेत्र में उनकी सैन्य उपस्थिति बहुत कम थी।
    • 20 जून, 1857 को, बस्ती के डिप्टी मजिस्ट्रेट विलियम पेपे के नेतृत्व में घुड़सवार सैनिकों की एक बड़ी फौज ने महुआ डाबर को चारों तरफ से घेर लिया।
    • 3 जुलाई, 1857 तक, अंग्रेजों ने पूरे गाँव को आग लगाकर जला दिया, मकानों, मस्जिदों और हथकरघा केंद्रों को जमींदोज कर दिया।
    • हजारों निवासियों का नरसंहार किया गया।
  • “गैर-चिरागी” घोषणा (“Ghair-Chiragi” Declaration):
    • अंग्रेजों ने उस स्थान पर एक बोर्ड लगवा दिया जिस पर लिखा था ‘गैर-चिरागी’, जिसका अर्थ था कि ‘इस जगह पर कभी चिराग नहीं जलेगा’ या ‘कोई आबादी नहीं रहेगी’।
    • इस गाँव को सरकारी गजट और राजस्व अभिलेखों से भी हटा दिया गया ताकि इसका कोई निशान न रहे।
  • स्थानीय नेता:
    • इस विद्रोह में पिरई खां और जाकिर अली जैसे स्थानीय बुनकर नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

4. विद्रोह का दमन और परिणाम (Suppression and Outcomes of the Rebellion)

महुआ विद्रोह का दमन अत्यंत क्रूरता से किया गया, जिससे गाँव का अस्तित्व ही मिट गया।

  • पूर्ण विनाश: महुआ डाबर गाँव को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया और उसे मानचित्र से मिटा दिया गया।
  • नरसंहार: हजारों निवासियों को मार डाला गया, और जो बच गए वे अपनी जान बचाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर भाग गए।
  • दंड और सम्मान: गाँव को आग लगाने वाले अंग्रेज अधिकारी विलियम पेपे को इस क्रूर कार्रवाई के लिए सम्मानित किया गया।
  • इतिहास से मिटाने का प्रयास: अंग्रेजों ने इस घटना को इतिहास और सरकारी रिकॉर्ड से मिटाने का हर संभव प्रयास किया, और कई दशकों तक यह घटना गुमनाम रही।

5. विद्रोह का महत्व (Significance of the Rebellion)

महुआ विद्रोह 1857 के संघर्ष में स्थानीय प्रतिरोध और ब्रिटिश क्रूरता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

  • स्थानीय प्रतिरोध का प्रतीक: यह 1857 के विद्रोह के दौरान स्थानीय आबादी के तीव्र प्रतिरोध और बलिदान का एक शक्तिशाली उदाहरण है।
  • ब्रिटिश क्रूरता का प्रमाण: यह घटना ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अत्यधिक क्रूरता और दमनकारी नीतियों को दर्शाती है, विशेषकर जब उन्हें स्थानीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
  • गुमनाम नायकों का स्मरण: लंबे समय तक इतिहास के पन्नों से गायब रहने के बाद, हाल के वर्षों में इस घटना को फिर से उजागर किया गया है, जिससे इसके गुमनाम नायकों को याद किया जा रहा है।
  • राष्ट्रवादी चेतना पर प्रभाव: हालांकि यह घटना तुरंत व्यापक रूप से ज्ञात नहीं हुई, लेकिन इसकी जानकारी मिलने पर यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी भावना को और मजबूत करने में सहायक रही।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

महुआ विद्रोह (महुआ डाबर नरसंहार) 1857 के भारतीय विद्रोह का एक दुखद लेकिन महत्वपूर्ण अध्याय है। यह न केवल ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ स्थानीय आबादी के साहसिक प्रतिरोध को दर्शाता है, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किए गए अत्यंत क्रूर प्रतिशोध का भी एक स्पष्ट उदाहरण है। इस घटना को लंबे समय तक इतिहास से मिटाने का प्रयास किया गया, लेकिन यह आज भी हमें ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता के संघर्ष और बलिदान की याद दिलाती है। यह उन अनगिनत स्थानीय विद्रोहों में से एक था जिन्होंने 1857 के महाविद्रोह को एक व्यापक जन-आंदोलन का रूप दिया।

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