नागा विद्रोह, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और बाद में स्वतंत्र भारत सरकार के खिलाफ नागा जनजातियों द्वारा अपनी भूमि पर स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के लिए किया गया एक लंबा और जटिल संघर्ष है। यह विद्रोह 19वीं शताब्दी के अंत से लेकर 20वीं शताब्दी तक विभिन्न चरणों में चला।
1. पृष्ठभूमि और क्षेत्र (Background and Region)
नागा जनजाति मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी भारत और म्यांमार के सीमावर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती थी।
- भौगोलिक क्षेत्र: नागा जनजातियाँ मुख्य रूप से वर्तमान नागालैंड, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करती हैं।
- पारंपरिक जीवनशैली: नागा समुदाय अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा, पारंपरिक कानूनों और ग्राम-आधारित स्वशासन प्रणाली के लिए जाने जाते हैं। वे अपनी भूमि और वनों पर सामूहिक स्वामित्व रखते थे।
- ब्रिटिश हस्तक्षेप से पहले: नागा समुदाय बाहरी दुनिया से काफी हद तक अलग-थलग थे और अपनी स्वशासन प्रणाली के तहत रहते थे। ब्रिटिश के आगमन से पहले, उनके आंतरिक संघर्ष और बाहरी आक्रमणों का सामना करना पड़ता था, लेकिन उनकी स्वायत्तता बनी हुई थी।
- ब्रिटिश प्रवेश: ब्रिटिश ने 19वीं शताब्दी के मध्य में असम पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद नागा पहाड़ियों में प्रवेश करना शुरू किया। उनका उद्देश्य व्यापार मार्गों को सुरक्षित करना और इस क्षेत्र पर प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना था।
2. विद्रोह के कारण (Causes of the Revolt)
नागा विद्रोह के कई जटिल कारण थे, जो ब्रिटिश नीतियों और नागाओं की आत्मनिर्णय की आकांक्षा से जुड़े थे।
- नागा भूमि पर ब्रिटिश नियंत्रण (British Control over Naga Land):
- ब्रिटिश ने धीरे-धीरे नागा पहाड़ियों पर अपना प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना शुरू किया, जिससे नागाओं की पारंपरिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता का हनन हुआ।
- उन्होंने नागा क्षेत्रों को ‘गैर-विनियमन प्रांत’ घोषित किया और बाहरी कानूनों को लागू करने का प्रयास किया।
- पारंपरिक कानूनों और संस्कृति में हस्तक्षेप (Interference in Traditional Laws and Culture):
- ब्रिटिश ने नागाओं के पारंपरिक ग्राम-आधारित स्वशासन और न्यायिक प्रणाली में हस्तक्षेप किया।
- कुछ नागा प्रथाओं, जैसे सिर काटना (headhunting), पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया, जिसे नागा अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते थे।
- आर्थिक शोषण और कराधान (Economic Exploitation and Taxation):
- ब्रिटिश ने नागाओं पर नए कर लगाए, जैसे गृह कर (house tax) और श्रम कर (labour tax), जो उनके लिए एक नया बोझ था।
- वन कानूनों में बदलाव से नागाओं के वन उत्पादों पर पारंपरिक अधिकारों का हनन हुआ।
- ईसाई मिशनरियों का प्रभाव (Influence of Christian Missionaries):
- मिशनरियों ने नागा समाज में प्रवेश किया और ईसाई धर्म का प्रसार किया। हालांकि इसने शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार किया, इसने पारंपरिक नागा विश्वासों और सामाजिक संरचनाओं को भी चुनौती दी, जिससे कुछ वर्गों में असंतोष पैदा हुआ।
- आत्मनिर्णय की आकांक्षा (Aspiration for Self-Determination):
- नागाओं की अपनी विशिष्ट पहचान, संस्कृति और इतिहास था। वे अपनी भूमि पर बाहरी शासन को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे और अपनी आत्मनिर्णय की आकांक्षा रखते थे।
- भारतीय स्वतंत्रता के बाद की स्थिति:
- 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, नागाओं ने खुद को भारत का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया और एक स्वतंत्र नागालैंड की मांग की। इसने विद्रोह को एक नया आयाम दिया।
3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Revolt)
नागा विद्रोह एक लंबा और बहु-चरणीय संघर्ष रहा है।
- प्रारंभिक ब्रिटिश-नागा संघर्ष (Early British-Naga Conflicts – 19वीं शताब्दी):
- ब्रिटिश के नागा पहाड़ियों में प्रवेश के साथ ही स्थानीय नागा जनजातियों, जैसे अंगामी और आओ, ने प्रतिरोध शुरू कर दिया।
- कई छोटे-मोटे हमले और जवाबी कार्रवाईयाँ हुईं, जिससे ब्रिटिश को इस क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने में दशकों लग गए।
- रानी गाइदिन्ल्यू का आंदोलन (Rani Gaidinliu’s Movement – 1930s):
- रानी गाइदिन्ल्यू ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक धार्मिक-राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसे ‘हेराका आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है।
- उन्होंने नागाओं को अपने पारंपरिक धर्मों पर लौटने और ब्रिटिश के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। उन्हें ‘नागाओं की रानी’ के रूप में जाना जाता है।
- उन्हें 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और 14 साल जेल में बिताए।
- नागा नेशनल काउंसिल (NNC) और स्वतंत्रता के बाद का संघर्ष (Naga National Council and Post-Independence Struggle):
- 1946 में नागा नेशनल काउंसिल (NNC) का गठन हुआ, जिसका उद्देश्य नागाओं के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना था।
- ए. ज़ेड. फिजो (A. Z. Phizo) के नेतृत्व में NNC ने 1947 में भारत की स्वतंत्रता से पहले ही नागालैंड की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
- 1950 के दशक में NNC ने एक सशस्त्र विद्रोह शुरू किया, जिसमें भारतीय सेना के साथ कई हिंसक झड़पें हुईं।
- विभिन्न नागा समूहों का उदय (Emergence of Various Naga Groups):
- समय के साथ, नागा आंदोलन में कई गुट और संगठन उभरे, जैसे NSCN (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) के विभिन्न धड़े (इसाक-मुइवा, खापलांग)।
- इन समूहों के बीच आंतरिक संघर्ष भी हुए, जिससे स्थिति और जटिल हो गई।
4. विद्रोह का दमन और शांति प्रक्रिया (Suppression and Peace Process)
भारत सरकार ने विद्रोह को नियंत्रित करने और शांति स्थापित करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण अपनाए।
- सैन्य अभियान (Military Operations):
- भारत सरकार ने नागा विद्रोह को दबाने के लिए सैन्य बल का उपयोग किया। AFSPA (Armed Forces Special Powers Act) जैसे कानून लागू किए गए, जिससे सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार मिले।
- शांति वार्ता और समझौते (Peace Talks and Agreements):
- विभिन्न चरणों में नागा समूहों के साथ शांति वार्ता आयोजित की गई।
- 1960 का 16-सूत्रीय समझौता जिसके तहत नागालैंड को एक अलग राज्य का दर्जा दिया गया (1963 में)।
- 1975 का शिलॉंग समझौता, जिसे NNC के कुछ धड़ों ने स्वीकार किया, लेकिन फिजो और अन्य ने इसका विरोध किया।
- हाल के वर्षों में, NSCN (IM) जैसे प्रमुख समूहों के साथ संघर्ष विराम और शांति वार्ता जारी है, जिसका उद्देश्य नागा राजनीतिक मुद्दे का स्थायी समाधान खोजना है।
5. विद्रोह के परिणाम और प्रभाव (Outcomes and Impact of the Revolt)
नागा विद्रोह के भारत और नागालैंड पर गहरे और स्थायी प्रभाव पड़े।
- नागालैंड राज्य का गठन (Formation of Nagaland State):
- नागाओं की राजनीतिक आकांक्षाओं के परिणामस्वरूप, 1 दिसंबर, 1963 को नागालैंड को भारतीय संघ के 16वें राज्य के रूप में गठित किया गया।
- इसे संविधान के अनुच्छेद 371A के तहत विशेष प्रावधान दिए गए, जो नागाओं के धार्मिक, सामाजिक रीति-रिवाजों, पारंपरिक कानूनों और प्रथाओं, भूमि और संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण की रक्षा करते हैं।
- दीर्घकालिक शांति और स्थिरता की चुनौती (Challenge of Long-term Peace and Stability):
- हालांकि एक राज्य का गठन हुआ, लेकिन नागा राजनीतिक मुद्दे का स्थायी समाधान अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। विभिन्न नागा समूहों के बीच एकता और भारत सरकार के साथ अंतिम समझौते तक पहुंचना जटिल है।
- पहचान और आत्मनिर्णय का मुद्दा (Issue of Identity and Self-Determination):
- नागा विद्रोह ने भारत में आदिवासी और जातीय पहचान के मुद्दों को उजागर किया। यह आत्मनिर्णय और क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांगों का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया।
- क्षेत्रीय विकास पर प्रभाव (Impact on Regional Development):
- लंबे समय तक चले संघर्ष ने नागालैंड के विकास को प्रभावित किया, लेकिन शांति प्रक्रिया के साथ विकास के नए अवसर भी खुले हैं।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
नागा विद्रोह भारत के इतिहास में एक अद्वितीय और जटिल संघर्ष है, जो नागा लोगों की आत्मनिर्णय और अपनी विशिष्ट पहचान को बनाए रखने की गहरी इच्छा से उपजा है। ब्रिटिश शासन के खिलाफ शुरू होकर, यह स्वतंत्र भारत में भी जारी रहा, जिससे नागालैंड को एक अलग राज्य का दर्जा मिला। यद्यपि सैन्य अभियानों और शांति वार्ताओं के माध्यम से कुछ हद तक स्थिरता आई है, नागा राजनीतिक मुद्दे का अंतिम समाधान अभी भी प्रतीक्षित है। यह विद्रोह भारत में संघीय ढांचे के भीतर क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित करने की चुनौती और आवश्यकता को दर्शाता है।