सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) – उत्पत्ति और विस्तार
सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन और विश्व की प्रमुख प्रारंभिक शहरी सभ्यताओं में से एक है। यह अपनी सुनियोजित नगर नियोजन, उन्नत जल निकासी व्यवस्था और समृद्ध कला के लिए प्रसिद्ध है।
1. परिचय (Introduction)
सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization), जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं, लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई। यह विश्व की तीन प्रारंभिक शहरी सभ्यताओं (मेसोपोटामिया और मिस्र के साथ) में से एक थी। इसकी खोज 1921 में हड़प्पा और 1922 में मोहनजोदड़ो के उत्खनन के साथ हुई। यह सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे फली-फूली, लेकिन बाद में इसका विस्तार सरस्वती (घग्गर-हाकरा) नदी घाटी और अन्य क्षेत्रों तक भी हुआ।
2. उत्पत्ति (Origin)
सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न सिद्धांत प्रचलित हैं। मोटे तौर पर, इसे दो मुख्य दृष्टिकोणों में बांटा जा सकता है:
2.1. विदेशी उत्पत्ति का सिद्धांत (Foreign Origin Theory)
प्रारंभिक विद्वानों, जैसे जॉन मार्शल, मार्टिमर व्हीलर और गॉर्डन चाइल्ड ने इस सिद्धांत का समर्थन किया।
- मुख्य तर्क: उनका मानना था कि सिंधु सभ्यता का विकास मेसोपोटामिया (सुमेरियन) सभ्यता के प्रभाव या प्रवासन के कारण हुआ।
- आधार:
- दोनों सभ्यताओं के बीच शहरीकरण, लेखन प्रणाली (हालांकि सिंधु लिपि अभी तक पढ़ी नहीं गई है), और मुहरों में कुछ समानताएँ।
- मेसोपोटामिया के साथ सिंधु सभ्यता के व्यापारिक संबंध के साक्ष्य।
- आलोचना:
- आधुनिक शोध ने इस सिद्धांत को काफी हद तक खारिज कर दिया है।
- सिंधु सभ्यता की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं जो मेसोपोटामिया से भिन्न हैं (जैसे नगर नियोजन, जल निकासी, माप-तौल प्रणाली)।
- सिंधु सभ्यता के पूर्व-हड़प्पा चरणों (Pre-Harappan phases) के साक्ष्य, जो स्थानीय विकास को दर्शाते हैं।
2.2. स्वदेशी/स्थानीय उत्पत्ति का सिद्धांत (Indigenous Origin Theory)
अधिकांश आधुनिक विद्वान इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं।
- मुख्य तर्क: सिंधु सभ्यता का विकास स्थानीय ताम्रपाषाण कालीन संस्कृतियों, विशेष रूप से मेहरगढ़ संस्कृति के क्रमिक विकास का परिणाम था।
- आधार:
- मेहरगढ़ (बलूचिस्तान) में नवपाषाण काल से लेकर हड़प्पा काल तक के सांस्कृतिक निरंतरता के साक्ष्य।
- पूर्व-हड़प्पा चरणों (जैसे कोट दीजी, कालीबंगा, बनावली) में कृषि अधिशेष, प्रारंभिक शहरीकरण, और शिल्प विशेषज्ञता का विकास।
- स्थानीय पर्यावरण और संसाधनों के अनुकूलन के कारण विशिष्ट सिंधु शहरीकरण का विकास।
- मेसोपोटामिया से कोई बड़े पैमाने पर प्रवासन का कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य नहीं।
- निष्कर्ष: सिंधु सभ्यता एक स्वदेशी विकास थी, जिसमें स्थानीय समुदायों ने धीरे-धीरे कृषि, शिल्प और व्यापार में प्रगति कर एक जटिल शहरी समाज का निर्माण किया। बाहरी प्रभावों ने शायद इसे प्रेरित किया हो, लेकिन वे इसकी उत्पत्ति का कारण नहीं थे।
3. विस्तार (Extent)
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार अत्यंत विशाल था, जो वर्तमान भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था।
3.1. भौगोलिक सीमाएँ (Geographical Boundaries)
- उत्तरी सीमा: मांडा (जम्मू और कश्मीर), चिनाब नदी के तट पर।
- दक्षिणी सीमा: दायमाबाद (महाराष्ट्र), प्रवरा नदी (गोदावरी की सहायक) के तट पर।
- पूर्वी सीमा: आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश), हिंडन नदी (यमुना की सहायक) के तट पर।
- पश्चिमी सीमा: सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान, पाकिस्तान), दासक नदी के तट पर, मकरान तट पर।
यह सभ्यता लगभग 1.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई थी, जो प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से भी बड़ी थी।
3.2. प्रमुख स्थल (Major Sites)
- पाकिस्तान में स्थल:
- हड़प्पा (पंजाब): सबसे पहले खोजा गया स्थल, सिंधु सभ्यता का नामकरण इसी के नाम पर।
- मोहनजोदड़ो (सिंध): सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण स्थल, ‘मृतकों का टीला’ के नाम से प्रसिद्ध, विशाल स्नानागार और अन्नागार।
- चन्हुदड़ो (सिंध): एकमात्र शहर जिसमें दुर्ग नहीं था, मनके बनाने का प्रमुख केंद्र।
- कोट दीजी (सिंध): पूर्व-हड़प्पा और हड़प्पा काल के साक्ष्य।
- सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान): पश्चिमी सीमा का स्थल, बंदरगाह शहर।
- भारत में स्थल:
- लोथल (गुजरात): सिंधु सभ्यता का प्रमुख बंदरगाह शहर, गोदीवाड़ा (डॉकयार्ड) के साक्ष्य।
- कालीबंगा (राजस्थान): ‘काले रंग की चूड़ियाँ’, जुते हुए खेत के प्राचीनतम साक्ष्य, अग्नि वेदी।
- धोलावीरा (गुजरात): तीन भागों में विभाजित शहर, विशाल जल प्रबंधन प्रणाली, स्टेडियम के साक्ष्य।
- बनावली (हरियाणा): जौ की खेती के साक्ष्य, खिलौना हल, सड़कों का शतरंज पैटर्न।
- राखीगढ़ी (हरियाणा): भारत में सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल।
- रोपड़ (पंजाब): स्वतंत्रता के बाद भारत में खोजा गया पहला स्थल, मानव के साथ कुत्ते को दफनाने के साक्ष्य।
- सुरकोटड़ा (गुजरात): घोड़े की हड्डियों के साक्ष्य।
- आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश): सबसे पूर्वी स्थल।
- दायमाबाद (महाराष्ट्र): सबसे दक्षिणी स्थल, कांस्य रथ के साक्ष्य।
- अफगानिस्तान में स्थल:
- शोर्तुगई: सिंधु सभ्यता का एकमात्र स्थल जो अफगानिस्तान में है, नहर सिंचाई के साक्ष्य।
4. महत्व (Significance)
सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय इतिहास और विश्व इतिहास दोनों में अत्यधिक महत्व है:
- प्रथम शहरीकरण: भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम शहरीकरण का प्रतिनिधित्व करती है, जो सुनियोजित नगरों और उन्नत बुनियादी ढांचे के साथ थी।
- कृषि और व्यापार में उन्नति: कृषि अधिशेष और सुदूर व्यापार संबंधों ने एक जटिल अर्थव्यवस्था को जन्म दिया।
- तकनीकी और कलात्मक कौशल: मुहरों, मूर्तियों, मृदभांडों और जल निकासी प्रणालियों में उच्च स्तर का तकनीकी और कलात्मक कौशल प्रदर्शित होता है।
- सांस्कृतिक विरासत: इसके कई पहलू, जैसे मातृदेवी पूजा, योगिक मुद्राएँ, और कुछ प्रतीकात्मक चिन्ह, बाद की भारतीय संस्कृतियों में भी दिखाई देते हैं।