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भारत का विभाजन (Partition of India)

भारत का विभाजन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

भारत का विभाजन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

भारत का विभाजन, जिसे ‘भारत की स्वतंत्रता’ के साथ जोड़ा जाता है, ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र डोमिनियन राज्यों में विभाजित करने की प्रक्रिया थी। यह विभाजन 15 अगस्त, 1947 को हुआ और इसने लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया, जिससे बड़े पैमाने पर विस्थापन और सांप्रदायिक हिंसा हुई।

1. पृष्ठभूमि और विभाजन के कारण (Background and Causes of Partition)

कई दशकों से चली आ रही राजनीतिक और सामाजिक-धार्मिक घटनाओं ने भारत के विभाजन के लिए मंच तैयार किया।

  • ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति: ब्रिटिश सरकार की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा दिया।
  • पृथक निर्वाचन मंडल (1909): मॉर्ले-मिंटो सुधारों (1909) के तहत मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की शुरुआत ने सांप्रदायिक राजनीति को संस्थागत रूप दिया।
  • मुस्लिम लीग की स्थापना (1906): मुस्लिम लीग का गठन मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था, और बाद में इसने एक अलग मुस्लिम राज्य की मांग की।
  • द्वि-राष्ट्र सिद्धांत: मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और उन्हें अलग-अलग देश होने चाहिए।
  • कैबिनेट मिशन की विफलता (1946): कैबिनेट मिशन ने एक अविभाजित भारत का प्रस्ताव रखा था, लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समूहीकरण योजना पर सहमति न बन पाने के कारण यह विफल रहा, जिससे विभाजन की संभावना बढ़ गई।
  • बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा: ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ (16 अगस्त, 1946) के बाद पूरे भारत में, विशेषकर बंगाल और पंजाब में, व्यापक सांप्रदायिक दंगे और हिंसा फैल गई थी, जिससे स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी।
  • कांग्रेस की सहमति: बढ़ती हिंसा को रोकने और सत्ता के त्वरित हस्तांतरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी अंततः विभाजन को एक आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार कर लिया।

2. माउंटबेटन योजना और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 (Mountbatten Plan and Indian Independence Act, 1947)

माउंटबेटन योजना ने विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने इसे कानूनी रूप दिया।

  • माउंटबेटन योजना (3 जून योजना):
    • 3 जून, 1947 को, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के विभाजन और सत्ता हस्तांतरण की योजना प्रस्तुत की।
    • इस योजना में भारत को दो डोमिनियन राज्यों (भारत और पाकिस्तान) में विभाजित करने, बंगाल और पंजाब के विभाजन, NWFP और सिलहट में जनमत संग्रह, और रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प देने का प्रस्ताव था।
  • भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947:
    • माउंटबेटन योजना को ब्रिटिश संसद द्वारा जुलाई 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के रूप में कानूनी रूप दिया गया।
    • इस अधिनियम के तहत, 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र डोमिनियन राज्य अस्तित्व में आए।
    • प्रत्येक डोमिनियन को अपना संविधान बनाने का अधिकार दिया गया और ब्रिटिश संप्रभुता रियासतों पर समाप्त हो गई।

3. विभाजन की प्रक्रिया और सीमांकन (Process of Partition and Demarcation)

विभाजन की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और जल्दबाजी में की गई थी, जिससे कई समस्याएँ उत्पन्न हुईं।

  • सीमा आयोग: विभाजन की सीमाओं को निर्धारित करने के लिए एक सीमा आयोग (Boundary Commission) का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सर सिरिल रेडक्लिफ ने की।
  • रेडक्लिफ रेखा: पंजाब और बंगाल की सीमाओं को ‘रेडक्लिफ रेखा’ द्वारा निर्धारित किया गया था, जिसे गुप्त रूप से तैयार किया गया और स्वतंत्रता के बाद ही सार्वजनिक किया गया।
  • सेना और संपत्ति का विभाजन: ब्रिटिश भारतीय सेना, सरकारी संपत्ति, वित्तीय संपत्तियाँ और देनदारियों का भी दोनों देशों के बीच विभाजन किया गया।
  • प्रशासनिक चुनौतियाँ: विभाजन ने प्रशासन, न्यायपालिका और अन्य सरकारी संस्थानों के लिए भारी प्रशासनिक चुनौतियाँ खड़ी कर दीं।

4. विभाजन के परिणाम (Consequences of Partition)

भारत का विभाजन एक ऐतिहासिक घटना थी जिसके दूरगामी और अक्सर दुखद परिणाम हुए।

  • बड़े पैमाने पर विस्थापन: विभाजन के कारण इतिहास का सबसे बड़ा मानव विस्थापन हुआ। अनुमान है कि 10 से 20 मिलियन लोग अपने घरों से विस्थापित हुए।
  • व्यापक सांप्रदायिक हिंसा: विभाजन के दौरान और उसके बाद व्यापक सांप्रदायिक दंगे, हत्याएँ, बलात्कार और लूटपाट हुई, विशेषकर पंजाब और बंगाल में।
  • लाखों लोगों की मौत: अनुमान है कि सांप्रदायिक हिंसा में लाखों लोग मारे गए।
  • रियासतों का एकीकरण: रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प दिया गया, जिससे बाद में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में उनका भारत में एकीकरण हुआ। जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ रियासतों के एकीकरण में चुनौतियाँ आईं।
  • भारत-पाक संबंध: विभाजन ने भारत और पाकिस्तान के बीच दीर्घकालिक शत्रुता और क्षेत्रीय विवादों (जैसे कश्मीर मुद्दा) को जन्म दिया।
  • आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: विभाजन ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डाला।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

भारत का विभाजन भारतीय इतिहास की एक दुखद लेकिन अपरिहार्य घटना थी, जो ब्रिटिश शासन की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति, मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग और बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा का परिणाम थी। माउंटबेटन योजना और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने इस विभाजन को कानूनी रूप दिया, जिससे 15 अगस्त, 1947 को भारत और पाकिस्तान नामक दो स्वतंत्र राष्ट्र अस्तित्व में आए। यद्यपि इसने स्वतंत्रता प्रदान की, विभाजन के कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन, व्यापक सांप्रदायिक हिंसा और लाखों लोगों की मौत हुई। भारत का विभाजन आज भी दोनों देशों के संबंधों और उनकी पहचान को प्रभावित करता है, और यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना रहेगा जो स्वतंत्रता की खुशी और विभाजन के दर्द दोनों को दर्शाता है।

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