भारत छोड़ो आंदोलन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) महात्मा गांधी द्वारा अगस्त 1942 में ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने के लिए शुरू किया गया एक व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे महत्वपूर्ण और अंतिम बड़ा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने में निर्णायक भूमिका निभाई।
1. पृष्ठभूमि और आंदोलन के कारण (Background and Causes of the Movement)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान की अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिस्थितियों ने भारत छोड़ो आंदोलन के लिए मंच तैयार किया।
- क्रिप्स मिशन की विफलता (1942): ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का समर्थन प्राप्त करने के लिए क्रिप्स मिशन को भारत भेजा था। हालांकि, मिशन ने भारत को युद्ध के बाद डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव दिया, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह तत्काल पूर्ण स्वतंत्रता चाहती थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव: द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिशों की लगातार हार, विशेषकर दक्षिण-पूर्व एशिया में, ने भारतीयों में यह विश्वास जगाया कि ब्रिटिश शासन अब कमजोर हो गया है। जापान के भारत पर संभावित आक्रमण का खतरा भी बढ़ रहा था।
- जापानी आक्रमण का भय: बर्मा (म्यांमार) और मलाया में ब्रिटिश सेना की वापसी और जापानी सेना की बढ़ती निकटता ने भारतीयों में भय पैदा किया कि भारत भी युद्ध का मैदान बन सकता है। गांधीजी का मानना था कि ब्रिटिश उपस्थिति ही जापानियों को भारत पर हमला करने के लिए प्रेरित कर रही है।
- बढ़ती महंगाई और खाद्य पदार्थों की कमी: युद्ध के कारण भारत में अत्यधिक महंगाई और खाद्य पदार्थों की कमी हो गई थी, जिससे आम जनता में व्यापक असंतोष था।
- जनता में निराशा: लगातार ब्रिटिश दमन और संवैधानिक सुधारों की धीमी गति से जनता में निराशा बढ़ रही थी।
- गांधीजी का दृढ़ संकल्प: गांधीजी को विश्वास हो गया था कि भारत को स्वतंत्रता तभी मिल सकती है जब ब्रिटिश शासन तत्काल समाप्त हो जाए। उन्होंने महसूस किया कि अब ‘करो या मरो’ का समय आ गया है।
2. आंदोलन का प्रस्ताव और शुरुआत (Resolution and Beginning of the Movement)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया, जिसने आंदोलन की औपचारिक शुरुआत की।
- वर्धा प्रस्ताव (जुलाई 1942): कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें ब्रिटिश शासन से भारत छोड़ने की मांग की गई।
- भारत छोड़ो प्रस्ताव (अगस्त 1942):
- 8 अगस्त, 1942 को, बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के सत्र में ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव’ पारित किया गया।
- इस प्रस्ताव में भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने और एक स्वतंत्र भारत की स्थापना की मांग की गई।
- गांधीजी ने इस अवसर पर अपना प्रसिद्ध नारा ‘करो या मरो’ (Do or Die) दिया, जिसमें उन्होंने भारतीयों से या तो भारत को स्वतंत्र कराने या इस प्रयास में मर जाने का आह्वान किया।
- आंदोलन की शुरुआत: 9 अगस्त, 1942 की सुबह से ही आंदोलन शुरू हो गया।
3. आंदोलन का प्रसार और स्वरूप (Spread and Nature of the Movement)
भारत छोड़ो आंदोलन एक स्वतः स्फूर्त और व्यापक जन आंदोलन था, जिसमें समाज के सभी वर्गों ने भाग लिया।
- प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी: आंदोलन शुरू होते ही, ब्रिटिश सरकार ने ‘ऑपरेशन जीरो आवर’ के तहत गांधीजी सहित कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।
- स्वतः स्फूर्त आंदोलन: चूंकि कोई संगठित नेतृत्व नहीं था, आंदोलन एक स्वतः स्फूर्त जन विद्रोह के रूप में फैल गया।
- शहरों में विरोध: शहरों में हड़तालें, प्रदर्शन और जुलूस निकाले गए। सरकारी इमारतों पर हमला किया गया और ब्रिटिश प्रतीकों को नष्ट किया गया।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार: आंदोलन ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से फैला, जहाँ किसानों ने सरकारी अधिकारियों का विरोध किया और संचार लाइनों को बाधित किया।
- संचार लाइनों को बाधित करना: रेलवे ट्रैक, टेलीग्राफ लाइनें और डाकघर जैसे संचार और परिवहन के साधनों को व्यापक रूप से निशाना बनाया गया।
- समानांतर सरकारें: कुछ क्षेत्रों में, जैसे बलिया (चित्तू पांडे), तामलुक (जातीय सरकार, मिदनापुर) और सतारा (नाना पाटिल) में समानांतर सरकारें स्थापित की गईं।
- भूमिगत गतिविधियाँ: जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, उषा मेहता और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन का नेतृत्व किया। उषा मेहता ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन भी चलाया।
- महिलाओं की भागीदारी: महिलाओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, जुलूसों का नेतृत्व किया और भूमिगत गतिविधियों में शामिल हुईं।
- छात्रों की भूमिका: छात्रों ने स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया और आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. सरकारी दमन और आंदोलन की समाप्ति (Government Repression and End of the Movement)
ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर दमनकारी नीतियाँ अपनाईं।
- कठोर दमन: सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए अत्यधिक बल का प्रयोग किया। हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया, गोलियां चलाई गईं और लाठीचार्ज किया गया।
- सैन्य हस्तक्षेप: कई क्षेत्रों में सेना को बुलाया गया और मार्शल लॉ लागू किया गया।
- मृत्यु और गिरफ्तारी: अनुमान है कि हजारों लोग मारे गए और एक लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
- आंदोलन की समाप्ति: 1944 तक, आंदोलन को काफी हद तक दबा दिया गया था, हालांकि छिटपुट घटनाएँ जारी रहीं। गांधीजी को 1944 में स्वास्थ्य कारणों से रिहा कर दिया गया।
5. आंदोलन का महत्व और परिणाम (Significance and Consequences of the Movement)
भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा और स्थायी प्रभाव डाला।
- ब्रिटिश शासन का अंत: इसने ब्रिटिश सरकार को यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत पर शासन करना अब संभव नहीं है और उन्हें जल्द ही भारत छोड़ना होगा।
- जनता का दृढ़ संकल्प: इसने भारतीयों के पूर्ण स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित किया।
- नेतृत्व का हस्तांतरण: आंदोलन ने निचले स्तर पर नए नेतृत्व को उभरने का अवसर दिया, क्योंकि शीर्ष नेता जेल में थे।
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: इसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन जुटाया और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ाया।
- सांप्रदायिक विभाजन का बढ़ना: हालांकि, कांग्रेस के नेताओं की अनुपस्थिति के कारण मुस्लिम लीग को अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिला, जिससे सांप्रदायिक विभाजन और गहरा हुआ।
- अंतिम बड़ा आंदोलन: यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम बड़ा जन आंदोलन था, जिसने अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक निर्णायक और शक्तिशाली अध्याय था। द्वितीय विश्व युद्ध की परिस्थितियों और क्रिप्स मिशन की विफलता से प्रेरित होकर, महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो’ के नारे के साथ ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने का आह्वान किया। यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कठोरता से दबाया और सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, यह एक स्वतः स्फूर्त जन विद्रोह के रूप में फैल गया, जिसने ब्रिटिश प्रशासन को हिला दिया। इस आंदोलन ने भारतीयों के पूर्ण स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित किया और अंततः ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना रहेगा, जो जन शक्ति और अहिंसक प्रतिरोध की सर्वोच्च अभिव्यक्ति को दर्शाता है।