प्रारंभिक मध्यकालीन काल: राजपूत राज्य (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
गुप्त साम्राज्य के पतन और हर्षवर्धन के साम्राज्य के विघटन के बाद (लगभग 7वीं से 12वीं शताब्दी ईस्वी), उत्तर भारत में कई छोटे-बड़े क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। इनमें से अधिकांश राज्य राजपूतों द्वारा शासित थे, जिन्होंने भारतीय इतिहास के इस कालखंड पर गहरा प्रभाव डाला। यह अवधि उनकी वीरता, शौर्य और कला-संस्कृति के विकास के लिए जानी जाती है, लेकिन साथ ही आपसी संघर्ष और राजनीतिक विखंडन के लिए भी।
1. राजपूतों की उत्पत्ति (Origin of Rajputs)
राजपूत शब्द संस्कृत के ‘राज-पुत्र’ से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘राजा का पुत्र’ है। इनकी उत्पत्ति को लेकर विभिन्न सिद्धांत प्रचलित हैं:
- अग्निकुंड सिद्धांत:
- यह सिद्धांत कहता है कि राजपूतों की उत्पत्ति आबू पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ के अग्निकुंड से हुई थी।
- इस सिद्धांत के अनुसार, प्रतिहार, परमार, चौहान और चालुक्य (सोलंकी) चार प्रमुख राजपूत वंश इसी अग्निकुंड से उत्पन्न हुए।
- यह सिद्धांत पृथ्वीराज रासो जैसे ग्रंथों में मिलता है।
- विदेशी उत्पत्ति का सिद्धांत:
- कर्नल जेम्स टॉड जैसे विद्वानों का मानना है कि राजपूत शक, कुषाण और हूण जैसी विदेशी जातियों के वंशज थे, जो भारतीय समाज में घुलमिल गए।
- उनके अनुसार, इन विदेशी आक्रमणकारियों का भारतीय समाज में क्षत्रिय वर्ग में आत्मसात्करण हुआ।
- क्षत्रिय उत्पत्ति का सिद्धांत:
- कुछ इतिहासकारों का मत है कि राजपूत प्राचीन क्षत्रिय वर्ण से संबंधित थे, जिन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में अपनी शक्ति स्थापित की।
- यह सिद्धांत उन्हें प्राचीन सूर्यवंशी और चंद्रवंशी क्षत्रियों से जोड़ता है।
2. प्रमुख राजपूत राज्य और वंश (Major Rajput Kingdoms and Dynasties)
इस काल में उत्तर भारत में कई शक्तिशाली राजपूत राजवंशों का उदय हुआ:
- गुर्जर-प्रतिहार (कन्नौज):
- संस्थापक: नागभट्ट प्रथम।
- राजधानी: अवन्ति, बाद में कन्नौज।
- ये त्रिपक्षीय संघर्ष (पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट) में शामिल थे।
- महान शासक: मिहिरभोज।
- चौहान/चाहमान (दिल्ली-अजमेर):
- संस्थापक: वासुदेव।
- राजधानी: अजमेर, बाद में दिल्ली।
- महान शासक: पृथ्वीराज चौहान तृतीय (तराइन के युद्धों के लिए प्रसिद्ध)।
- परमार (मालवा):
- संस्थापक: सीअक द्वितीय (श्री हर्ष)।
- राजधानी: उज्जैन, बाद में धार।
- महान शासक: भोज परमार (एक महान विद्वान और निर्माता)।
- सोलंकी/चालुक्य (काठियावाड़/गुजरात):
- संस्थापक: मूलराज प्रथम।
- राजधानी: अन्हिलवाड़ा।
- महान शासक: भीमदेव प्रथम (सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी के आक्रमण के समय शासक)।
- चंदेल (जाजकभुक्ति/बुंदेलखंड):
- संस्थापक: नन्नुक चंदेला।
- राजधानी: खजुराहो, महोबा, कालिंजर।
- खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया।
- गहड़वाल/राठौर (कन्नौज):
- संस्थापक: चंद्रदेव।
- राजधानी: कन्नौज।
- महान शासक: जयचंद (पृथ्वीराज चौहान के समकालीन)।
- गुहिल/सिसोदिया (मेवाड़):
- संस्थापक: बप्पा रावल (वास्तविक संस्थापक)।
- राजधानी: चित्तौड़।
- यह वंश अपनी वीरता और स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध था।
3. प्रशासन (Administration)
राजपूत काल में प्रशासन सामंती प्रकृति का था, जिसमें केंद्रीय शक्ति कमजोर और स्थानीय सामंत शक्तिशाली थे।
- राजा: राजा सर्वोच्च होता था, लेकिन उसकी शक्ति सामंतों द्वारा सीमित होती थी। राजा ‘महाराजाधिराज’, ‘परमभट्टारक’ जैसी उपाधियाँ धारण करते थे।
- सामंतवाद:
- भूमि को जागीरों में विभाजित किया जाता था और सामंतों को दिया जाता था।
- सामंत अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से शासन करते थे और युद्ध के समय राजा को सैन्य सहायता प्रदान करते थे।
- इस व्यवस्था ने राजनीतिक विखंडन को बढ़ावा दिया।
- न्याय व्यवस्था: न्याय राजा और स्थानीय निकायों द्वारा किया जाता था। दंड कठोर होते थे।
- राजस्व: भू-राजस्व राज्य की आय का मुख्य स्रोत था।
- सैन्य व्यवस्था: सेना में पैदल सेना, घुड़सवार सेना और हाथी शामिल थे। सामंतों की सेना पर निर्भरता अधिक थी।
4. समाज और संस्कृति (Society and Culture)
राजपूत समाज सैन्य और सामंती संरचना पर आधारित था, जिसमें शौर्य और सम्मान को अत्यधिक महत्व दिया जाता था।
- वर्ण व्यवस्था: समाज चार वर्णों में विभाजित था, लेकिन जाति व्यवस्था अधिक कठोर हो गई थी।
- महिलाओं की स्थिति:
- महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई।
- बाल विवाह और सती प्रथा का प्रचलन बढ़ा।
- हालांकि, कुछ क्षेत्रों में स्वयंवर (वयस्क विवाह) के भी प्रमाण मिलते हैं।
- जौहर प्रथा: युद्ध में हार की स्थिति में राजपूत स्त्रियाँ अपनी इज्जत बचाने के लिए सामूहिक आत्मदाह कर लेती थीं।
- शिक्षा और साहित्य:
- संस्कृत और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं (जैसे हिंदी, गुजराती, मराठी) के साहित्य का विकास हुआ।
- पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई द्वारा रचित) इस काल का एक महत्वपूर्ण साहित्यिक उदाहरण है।
- शिक्षा का केंद्र मंदिर और मठ थे।
- धर्म:
- हिंदू धर्म (शैव और वैष्णव) प्रमुख था।
- जैन धर्म को भी कुछ शासकों द्वारा संरक्षण मिला।
- भक्ति आंदोलन का प्रभाव इस काल में भी जारी रहा।
- जीवनशैली: राजपूत युद्धकला, घुड़सवारी, अस्त्र-शस्त्र संचालन और कुल की मर्यादा की रक्षा को महत्व देते थे।
5. कला और स्थापत्य (Art and Architecture)
राजपूत शासक भव्य मंदिरों, किलों और महलों के निर्माण के लिए जाने जाते हैं।
- मंदिर स्थापत्य:
- इस काल में मंदिर निर्माण कला अपने चरमोत्कर्ष पर थी।
- उदाहरण:
- खजुराहो के मंदिर (चंदेलों द्वारा निर्मित): नागर शैली के उत्कृष्ट उदाहरण, जिनमें कंदरिया महादेव मंदिर प्रमुख है।
- पुरी का लिंगराज मंदिर और जगन्नाथ मंदिर (पूर्वी गंग वंश द्वारा निर्मित): उड़ीसा शैली के उदाहरण।
- कोणार्क का सूर्य मंदिर (पूर्वी गंग वंश द्वारा निर्मित): ब्लैक पैगोडा के नाम से प्रसिद्ध।
- दिलवाड़ा के जैन मंदिर (सोलंकियों द्वारा निर्मित): माउंट आबू में स्थित, अपनी जटिल नक्काशी के लिए प्रसिद्ध।
- किले और महल:
- राजपूतों ने अपनी सुरक्षा और शक्ति प्रदर्शन के लिए कई विशाल किले बनवाए (जैसे चित्तौड़गढ़, रणथंभौर, आमेर)।
- इन किलों में भव्य महल और जल प्रबंधन प्रणालियाँ भी होती थीं।
- चित्रकला: राजपूत चित्रकला शैली का विकास हुआ, जिसमें लोक चित्रकला और दरबारी जीवन का चित्रण मिलता है।
6. पतन और बाहरी आक्रमणों का प्रभाव (Decline and Impact of External Invasions)
राजपूत राज्यों का पतन आपसी फूट और राजनीतिक विखंडन के कारण हुआ, जिससे वे बाहरी आक्रमणों का प्रभावी ढंग से सामना नहीं कर पाए।
- आपसी संघर्ष: राजपूत राज्य लगातार एक-दूसरे से लड़ते रहते थे, जिससे उनकी शक्ति कमजोर हुई और वे एकजुट नहीं हो पाए।
- सामंती व्यवस्था की कमजोरी: सामंतों की बढ़ती स्वायत्तता ने केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया, जिससे राष्ट्रीय संकट के समय एक समन्वित प्रतिक्रिया संभव नहीं हो पाई।
- सैन्य कमजोरियाँ:
- राजपूत सेनाएँ अक्सर हाथियों पर अधिक निर्भर थीं, जबकि तुर्की आक्रमणकारी तेज गति वाले घुड़सवारों का उपयोग करते थे।
- उनकी युद्ध रणनीतियाँ पुरानी पड़ चुकी थीं और वे नई युद्ध तकनीकों को अपनाने में धीमे थे।
- सामाजिक स्तरीकरण: कठोर जाति व्यवस्था ने समाज के व्यापक वर्गों (विशेषकर निचली जातियों) की रक्षा और राज्य निर्माण में भागीदारी को प्रतिबंधित कर दिया।
- तुर्की आक्रमण:
- महमूद गजनवी और बाद में मुहम्मद गोरी जैसे तुर्की आक्रमणकारियों ने राजपूत राज्यों की कमजोरियों का फायदा उठाया।
- तराइन के युद्ध (1191 और 1192 ईस्वी) में पृथ्वीराज चौहान की हार ने उत्तर भारत में राजपूत शक्ति के अंत और दिल्ली सल्तनत की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
प्रारंभिक मध्यकालीन काल में राजपूत राज्यों ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी वीरता, कलात्मक योगदान और सांस्कृतिक विकास उल्लेखनीय थे। हालांकि, उनकी आपसी फूट, सामंती व्यवस्था की कमजोरियाँ और पुरानी सैन्य रणनीतियाँ उन्हें बाहरी आक्रमणों का प्रभावी ढंग से सामना करने में विफल रहीं, जिससे अंततः उत्तर भारत में उनकी राजनीतिक शक्ति का पतन हुआ और एक नए युग की शुरुआत हुई।