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राष्ट्रकूट वंश (Rashtrakutas)

उत्तर-गुप्त काल: राष्ट्रकूट वंश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तर-गुप्त काल: राष्ट्रकूट वंश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद, दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। इनमें से एक प्रमुख शक्ति राष्ट्रकूट वंश था, जिसने लगभग आठवीं शताब्दी ईस्वी से दसवीं शताब्दी ईस्वी तक दक्कन और दक्षिण भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया। राष्ट्रकूटों ने उत्तर भारत के गुर्जर-प्रतिहारों और पूर्वी भारत के पालों के साथ त्रिपक्षीय संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1. उद्भव और प्रमुख शासक (Origin and Prominent Rulers)

  • क्षेत्र: राष्ट्रकूटों ने मुख्य रूप से दक्कन (आधुनिक महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्से) पर शासन किया।
  • राजधानी: उनकी प्रारंभिक राजधानी मयूरखिंदी थी, जिसे बाद में मान्यखेट (आधुनिक मालखेड़, कर्नाटक) में स्थानांतरित कर दिया गया।
  • संस्थापक: दंतिदुर्ग (लगभग 735-756 ईस्वी)।
    • उसने चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन द्वितीय को पराजित कर दक्कन में राष्ट्रकूट वंश की स्वतंत्र सत्ता स्थापित की।
    • उसने ‘महाराजाधिराज’ और ‘परमेश्वर’ जैसी उपाधियाँ धारण कीं।
  • प्रमुख शासक:
    • कृष्ण प्रथम (लगभग 756-774 ईस्वी):
      • उसने बादामी के चालुक्यों के शेष प्रभुत्व को समाप्त किया।
      • एलोरा में प्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर (एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया) का निर्माण करवाया।
    • ध्रुव (लगभग 780-793 ईस्वी):
      • राष्ट्रकूटों का पहला शासक जिसने कन्नौज पर नियंत्रण के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया।
      • उसने पाल शासक धर्मपाल और गुर्जर-प्रतिहार शासक वत्सराज को पराजित किया।
      • उसे ‘धारावर्ष’ के नाम से भी जाना जाता था।
    • गोविंद तृतीय (लगभग 793-814 ईस्वी):
      • त्रिपक्षीय संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लिया और पालों और प्रतिहारों दोनों को पराजित किया।
      • उसने दक्षिण में चोल, पांड्य और चेर राज्यों को भी हराया।
    • अमोघवर्ष प्रथम (लगभग 814-878 ईस्वी):
      • वह राष्ट्रकूटों का सबसे लंबा शासन करने वाला शासक था और एक महान विद्वान व कवि था।
      • उसने अपनी राजधानी मान्यखेट (मानकिर) को बनाया।
      • उसने कन्नड़ भाषा में ‘कविराजमार्ग’ नामक पहली काव्य कृति की रचना की।
      • वह जैन धर्म का अनुयायी था।
      • उसके शासनकाल में अरब यात्री सुलेमान ने भारत का दौरा किया।
    • कृष्ण तृतीय (लगभग 939-967 ईस्वी):
      • राष्ट्रकूटों का अंतिम महान शासक।
      • उसने चोलों को तक्कोलम के युद्ध (949 ईस्वी) में पराजित किया।

2. प्रशासन (Administration)

राष्ट्रकूट प्रशासन राजतंत्रात्मक और सुव्यवस्थित था, जिसमें राजा सर्वोच्च होता था।

  • राजा: राजा ‘महाराजाधिराज’, ‘परमेश्वर’ जैसी उपाधियाँ धारण करते थे।
  • प्रांतीय प्रशासन: साम्राज्य को ‘राष्ट्र’ (प्रांत), ‘विषय’ (जिले) और ‘भुक्ति’ (छोटे समूह) में विभाजित किया गया था।
    • राष्ट्र का प्रमुख ‘राष्ट्रपति’ कहलाता था।
    • विषय का प्रमुख ‘विषयपति’ कहलाता था।
  • ग्राम प्रशासन: ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी, जिसका प्रमुख ‘ग्रामकूट’ या ‘ग्रामपति’ होता था।
  • राजस्व: भूमि राजस्व राज्य की आय का मुख्य स्रोत था (आमतौर पर 1/4 से 1/6 भाग)।
  • सैन्य: एक शक्तिशाली और सुसंगठित सेना थी, जिसमें पैदल सेना, घुड़सवार सेना और गज सेना शामिल थी।

💡 महत्वपूर्ण: राष्ट्रकूटों ने अपने साम्राज्य में अरब व्यापारियों को संरक्षण दिया, जिससे व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला और इस्लाम को भी कुछ हद तक स्वीकार्यता मिली।

3. कला और स्थापत्य (Art and Architecture)

राष्ट्रकूटों ने गुफा स्थापत्य और मूर्तिकला के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया।

  • एलोरा गुफाएँ (महाराष्ट्र):
    • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल।
    • यहां हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों से संबंधित 34 गुफाएँ हैं, जो राष्ट्रकूटों की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाती हैं।
    • कैलाशनाथ मंदिर (गुफा संख्या 16): कृष्ण प्रथम द्वारा निर्मित, यह एक अद्वितीय एकाश्म मंदिर है, जिसे एक ही चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर काटकर बनाया गया है। यह भारतीय स्थापत्य कला का एक चमत्कार माना जाता है।
  • एलिफेंटा गुफाएँ (महाराष्ट्र):
    • मुंबई के पास स्थित।
    • यहां की गुफाएँ मुख्य रूप से शैव धर्म को समर्पित हैं।
    • प्रसिद्ध ‘त्रिमूर्ति’ (महेश-मूर्ति) प्रतिमा (शिव के तीन मुखों का चित्रण) राष्ट्रकूट काल की उत्कृष्ट मूर्तिकला का उदाहरण है।
  • अन्य मंदिर:
    • कर्नाटक में लक्कुंडी का ब्रह्मजिनालय (जैन मंदिर) और काशीविश्वेश्वर मंदिर।
    • इटागी का महादेव मंदिर।

4. साहित्य और धर्म (Literature and Religion)

राष्ट्रकूट शासकों ने संस्कृत और कन्नड़ दोनों भाषाओं के साहित्य को संरक्षण दिया।

  • साहित्य:
    • कन्नड़ साहित्य: राष्ट्रकूट काल को कन्नड़ साहित्य के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि माना जाता है।
      • अमोघवर्ष प्रथम: स्वयं एक कवि था और उसने कन्नड़ में ‘कविराजमार्ग’ की रचना की।
      • पम्पा: कन्नड़ के महानतम कवियों में से एक, जिसने ‘विक्रमार्जुन विजय’ (पम्पा भारत) की रचना की।
      • पोन्ना: एक अन्य प्रसिद्ध कन्नड़ कवि, जिसने ‘शांतिपुराण’ लिखा।
      • रन्ना: कन्नड़ के प्रसिद्ध कवि।
    • संस्कृत साहित्य:
      • अमोघवर्ष ने संस्कृत में ‘प्रश्नोत्तर रत्नमालिका’ की रचना की।
      • जिनसेना ने ‘आदिपुराण’ लिखा।
  • धर्म:
    • राष्ट्रकूट शासक मुख्य रूप से ब्राह्मणवादी धर्म (हिंदू धर्म) के अनुयायी थे, विशेषकर शैव और वैष्णव संप्रदायों के।
    • उन्होंने जैन धर्म को भी उदारतापूर्वक संरक्षण दिया, और कई जैन विद्वानों को उनके दरबार में आश्रय मिला।
    • कुछ शासकों ने बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया।
    • उनकी धार्मिक सहिष्णुता एलोरा की गुफाओं में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

5. पतन (Decline)

राष्ट्रकूट वंश का पतन दसवीं शताब्दी ईस्वी के अंत तक शुरू हो गया था।

  • कल्याणी के चालुक्यों (तैलप द्वितीय) और चोलों के साथ लगातार संघर्षों ने राष्ट्रकूट शक्ति को कमजोर किया।
  • आंतरिक विद्रोह और सामंतों की बढ़ती शक्ति ने भी पतन में योगदान दिया।
  • परमार राजा सीयक हर्ष ने 972 ईस्वी में राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट को लूटा, जिससे राष्ट्रकूट साम्राज्य की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचा।
  • अंततः, तैलप द्वितीय ने राष्ट्रकूटों को पराजित कर कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य वंश की स्थापना की, जिससे राष्ट्रकूट साम्राज्य का अंत हो गया।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

राष्ट्रकूट वंश दक्षिण भारत के इतिहास में एक शक्तिशाली और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राजवंश था। उन्होंने न केवल दक्कन में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, बल्कि त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर उत्तर भारत की राजनीति को भी प्रभावित किया। उनकी सबसे बड़ी विरासत एलोरा और एलिफेंटा की गुफाओं में देखी जा सकती है, जो उनकी कलात्मक और स्थापत्य कौशल का प्रमाण हैं, साथ ही उनका साहित्यिक और धार्मिक संरक्षण भी उल्लेखनीय था।

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