17वीं शताब्दी में, मुगल साम्राज्य के कमजोर पड़ने और दक्कन में क्षेत्रीय शक्तियों के संघर्ष के बीच, मराठा शक्ति का उदय हुआ। यह उदय शिवाजी महाराज के नेतृत्व में हुआ, जिन्होंने एक स्वतंत्र मराठा राज्य की नींव रखी और मुगलों को कड़ी चुनौती दी। मराठा साम्राज्य बाद में 18वीं शताब्दी में भारत की सबसे शक्तिशाली शक्तियों में से एक बन गया।
1. मराठा शक्ति के उदय के कारण (Reasons for the Rise of Maratha Power)
मराठा शक्ति के उदय के पीछे कई भौगोलिक, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक कारण थे।
- भौगोलिक कारक (Geographical Factors):
- महाराष्ट्र का पहाड़ी और दुर्गम इलाका मराठाओं को बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान करता था।
- यह उन्हें गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) की रणनीति अपनाने में मदद करता था, जिसमें वे मुगलों जैसी बड़ी सेनाओं को परेशान कर सकते थे।
- भक्ति आंदोलन का प्रभाव (Influence of Bhakti Movement):
- महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन (ज्ञानेश्वर, एकनाथ, तुकाराम, रामदास जैसे संतों द्वारा) ने लोगों में एकता, समानता और मराठी भाषा व संस्कृति के प्रति गौरव की भावना पैदा की।
- संतों ने सरल भाषा में उपदेश दिए, जिससे आम लोगों में राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई।
- मराठी भाषा और साहित्य (Marathi Language and Literature):
- मराठी भाषा और साहित्य का विकास, जिसने लोगों को एक सूत्र में बांधा और उनकी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत किया।
- दक्कनी सल्तनतों में मराठा सरदारों की भूमिका (Role of Maratha Sardars in Deccan Sultanates):
- कई मराठा सरदार (जैसे शाहजी भोंसले – शिवाजी के पिता) बीजापुर और अहमदनगर जैसी दक्कनी सल्तनतों में सैन्य और प्रशासनिक पदों पर कार्यरत थे।
- इससे उन्हें सैन्य अनुभव और प्रशासनिक कौशल प्राप्त हुआ।
- औरंगजेब की दक्कन नीति (Aurangzeb’s Deccan Policy):
- औरंगजेब की दक्कन में लगातार सैन्य अभियानों ने मुगल साम्राज्य के संसाधनों को समाप्त कर दिया और मराठों को एकजुट होने का अवसर दिया।
- उसकी धार्मिक असहिष्णुता ने भी मराठों को मुगलों के खिलाफ खड़ा कर दिया।
2. शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) (1627-1680 ईस्वी)
शिवाजी महाराज को मराठा साम्राज्य का संस्थापक और सबसे महान शासक माना जाता है।
- प्रारंभिक जीवन:
- जन्म: 19 फरवरी 1627 (या 1630) को शिवनेरी किले में।
- पिता: शाहजी भोंसले (बीजापुर सल्तनत के एक प्रमुख सरदार)।
- माता: जीजाबाई (धार्मिक और देशभक्त)।
- गुरु: दादोजी कोंडदेव (प्रशासनिक और सैन्य शिक्षा), समर्थ रामदास (आध्यात्मिक गुरु)।
- स्वतंत्र राज्य की स्थापना:
- शिवाजी ने कम उम्र में ही बीजापुर सल्तनत के खिलाफ किले जीतना शुरू कर दिया (जैसे तोरणा, रायगढ़)।
- अफजल खान की हत्या (1659): बीजापुर के सेनापति अफजल खान को धोखे से मारने की घटना ने शिवाजी की प्रतिष्ठा को बढ़ाया।
- शाइस्ता खान पर हमला (1663): औरंगजेब के मामा शाइस्ता खान पर पुणे में रात में हमला कर उसे घायल किया, जिससे मुगलों को भारी अपमान हुआ।
- सूरत की लूट (1664): शिवाजी ने मुगल व्यापारिक केंद्र सूरत को लूटा, जिससे उन्हें अपार धन प्राप्त हुआ।
- पुरंदर की संधि (1665 ईस्वी):
- मुगल सम्राट औरंगजेब ने राजा जय सिंह को शिवाजी के खिलाफ भेजा।
- इस संधि के तहत शिवाजी को 23 किले मुगलों को सौंपने पड़े और मुगल सेवा में अपने पुत्र संभाजी को भेजना पड़ा।
- शिवाजी को आगरा में औरंगजेब के दरबार में उपस्थित होना पड़ा, जहाँ उन्हें कैद कर लिया गया, लेकिन वे चतुराई से भाग निकले (1666)।
- राज्याभिषेक (1674 ईस्वी):
- शिवाजी ने रायगढ़ किले में अपना राज्याभिषेक करवाया और ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की।
- इससे उन्हें एक स्वतंत्र संप्रभु शासक के रूप में मान्यता मिली।
- मृत्यु: 1680 ईस्वी में शिवाजी की मृत्यु हो गई।
3. शिवाजी का प्रशासन (Shivaji’s Administration)
शिवाजी का प्रशासन कुशल और जन-केंद्रित था, जिसमें केंद्रीय और स्थानीय स्तर पर सुव्यवस्थित व्यवस्था थी।
- अष्टप्रधान (Ashtapradhan):
- यह शिवाजी की मंत्रिपरिषद थी, जिसमें आठ प्रमुख मंत्री शामिल थे, जो विभिन्न विभागों के प्रमुख थे।
- यह मंत्रिपरिषद केवल सलाहकारी थी, और अंतिम निर्णय शिवाजी का होता था।
- प्रमुख पद:
- पेशवा (प्रधानमंत्री): प्रशासन का प्रमुख।
- अमात्य/मजूमदार (वित्त मंत्री): राजस्व और लेखा का प्रभारी।
- वाकयानवीस (गृह मंत्री): शाही पत्राचार और गुप्तचर।
- सुमंत/दबीर (विदेश मंत्री): विदेश मामले।
- सेनापति/सर-ए-नौबत (मुख्य कमांडर): सैन्य मामलों का प्रमुख।
- न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश): न्याय प्रशासन।
- पंडितराव (धार्मिक मामलों का प्रमुख): धार्मिक दान और शिक्षा।
- सचिव/शुरुनवीस (शाही पत्राचार का प्रमुख): शाही आदेशों और पत्रों का रखरखाव।
- राजस्व प्रशासन:
- शिवाजी ने रैयतवाड़ी प्रणाली अपनाई, जिसमें किसानों से सीधे राजस्व एकत्र किया जाता था।
- भू-राजस्व उपज का 2/5 (40%) भाग होता था।
- उसने चौथ (कुल उपज का 1/4) और सरदेशमुखी (कुल उपज का 1/10) नामक कर लगाए, जो पड़ोसी राज्यों से उनकी सुरक्षा के बदले में एकत्र किए जाते थे।
- सैन्य प्रशासन:
- शिवाजी के पास एक कुशल और अनुशासित सेना थी, जिसमें पैदल सेना (मावली), घुड़सवार सेना और तोपखाना शामिल था।
- उसने गुरिल्ला युद्ध (छापामार युद्ध) की रणनीति को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया।
- सैन्य अधिकारियों को जागीरें देने के बजाय नकद वेतन दिया जाता था, जिससे भ्रष्टाचार कम होता था।
- किले: शिवाजी ने कई किलों का निर्माण और मरम्मत करवाई, जो उनके साम्राज्य की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थे।
4. शिवाजी के उत्तराधिकारी और पेशवाओं का उदय (Shivaji’s Successors and the Rise of the Peshwas)
शिवाजी की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य में उत्तराधिकार के संघर्ष हुए, और धीरे-धीरे पेशवाओं की शक्ति बढ़ गई।
- संभाजी (1680-1689 ईस्वी):
- शिवाजी के पुत्र और उत्तराधिकारी।
- उसने मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा, लेकिन 1689 में औरंगजेब द्वारा पकड़ लिया गया और उसे मार दिया गया।
- राजाराग (1689-1700 ईस्वी):
- शिवाजी के दूसरे पुत्र।
- उसने मुगलों के खिलाफ मराठा प्रतिरोध का नेतृत्व किया।
- ताराबाई (1700-1707 ईस्वी):
- राजाराग की विधवा, जिसने अपने अल्पायु पुत्र शिवाजी द्वितीय के नाम पर शासन किया।
- उसने मुगलों के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया।
- शाहू (1707-1749 ईस्वी):
- संभाजी का पुत्र, जिसे औरंगजेब ने कैद कर लिया था और बहादुर शाह प्रथम ने 1707 में रिहा किया।
- उसने ताराबाई को हराकर सतारा में अपनी सत्ता स्थापित की।
- उसके शासनकाल में पेशवाओं की शक्ति का उदय हुआ।
4.1. पेशवाओं का उदय (Rise of the Peshwas)
पेशवा मराठा साम्राज्य में प्रधानमंत्री का पद था, जो शाहू के शासनकाल में वास्तविक शासक बन गए।
- बालाजी विश्वनाथ (1713-1720 ईस्वी):
- पहला और सबसे महत्वपूर्ण पेशवा।
- उसने मराठा शक्ति को पुनर्जीवित किया और मुगल सम्राट फर्रुखसियर से ‘चौथ’ और ‘सरदेशमुखी’ एकत्र करने का अधिकार प्राप्त किया।
- उसने मराठा संघ (Confederacy) की नींव रखी।
- बाजीराव प्रथम (1720-1740 ईस्वी):
- बालाजी विश्वनाथ का पुत्र और मराठा साम्राज्य का सबसे महान पेशवा।
- उसने ‘हिंदू पद पादशाही’ के आदर्श का पालन किया।
- उसने मराठा साम्राज्य का उत्तर भारत तक विस्तार किया (बुंदेलखंड, मालवा, गुजरात)।
- उसने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति को और प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया।
- बालाजी बाजीराव (नाना साहब) (1740-1761 ईस्वी):
- बाजीराव प्रथम का पुत्र।
- उसके शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।
- पानीपत का तीसरा युद्ध (1761 ईस्वी): मराठों और अहमद शाह अब्दाली (अफगान) के बीच लड़ा गया।
- मराठों की निर्णायक हार हुई, जिससे उनकी शक्ति को गंभीर झटका लगा।
- इस युद्ध ने भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व का मार्ग प्रशस्त किया।
5. मराठा संघ (Maratha Confederacy)
पेशवाओं के उदय के साथ, मराठा साम्राज्य एक संघ (Confederacy) में बदल गया, जिसमें कई स्वतंत्र मराठा सरदार शामिल थे।
- प्रमुख मराठा घराने:
- पेशवा: पुणे (केंद्रीय शक्ति)
- गायकवाड़: बड़ौदा
- भोंसले: नागपुर
- होल्कर: इंदौर
- सिंधिया: ग्वालियर
- ये घराने अपनी-अपनी रियासतों में स्वायत्त थे, लेकिन पेशवा के नेतृत्व में एकजुट होते थे।
- यह व्यवस्था बाद में मराठा शक्ति के पतन का एक कारण बनी, क्योंकि इन घरानों के बीच अक्सर आपसी संघर्ष होते थे।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
मराठाओं का उदय भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने मुगल साम्राज्य के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत में एक नई शक्ति का सूत्रपात किया। शिवाजी महाराज ने एक स्वतंत्र मराठा राज्य की नींव रखी, और बाद में पेशवाओं ने इसे एक विशाल साम्राज्य में बदल दिया। हालांकि, पानीपत के तीसरे युद्ध में मिली हार और मराठा सरदारों की आपसी फूट ने उनकी शक्ति को कमजोर किया, जिससे अंततः ब्रिटिश को भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर मिला।