18वीं शताब्दी की शुरुआत में, मुगल साम्राज्य के पतन के साथ, कई क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिन्होंने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। इनमें से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बंगाल था, जो अपनी आर्थिक समृद्धि और व्यापारिक महत्व के कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक प्रमुख लक्ष्य बन गया। बंगाल में स्वतंत्र नवाबों का उदय हुआ, जिन्होंने लगभग 1717 ईस्वी से 1757 ईस्वी तक शासन किया।
1. बंगाल में स्वायत्तता का उदय (Rise of Autonomy in Bengal)
बंगाल में स्वायत्तता का उदय मुगल साम्राज्य की कमजोरियों और कुछ सक्षम प्रशासकों के प्रयासों का परिणाम था।
- मुगल साम्राज्य का पतन: औरंगजेब की मृत्यु (1707 ईस्वी) के बाद कमजोर मुगल शासकों और केंद्रीय सत्ता के कमजोर पड़ने से बंगाल जैसे दूरस्थ प्रांतों को अपनी स्वतंत्रता घोषित करने का अवसर मिला।
- बंगाल की समृद्धि: बंगाल भारत का सबसे समृद्ध प्रांत था, जो अपने उपजाऊ कृषि भूमि, रेशम, सूती वस्त्र और अन्य उत्पादों के लिए जाना जाता था। यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी था।
- योग्य प्रशासक: मुर्शिद कुली खान जैसे योग्य प्रशासकों ने बंगाल को एक स्थिर और समृद्ध राज्य में बदल दिया।
2. प्रमुख नवाब (Prominent Nawabs)
बंगाल के नवाबों ने लगभग चार दशकों तक शासन किया, जिसमें उन्होंने आर्थिक और प्रशासनिक सुधार किए।
- मुर्शिद कुली खान (1717-1727 ईस्वी):
- बंगाल का पहला स्वतंत्र नवाब।
- उसे 1700 ईस्वी में औरंगजेब द्वारा बंगाल का दीवान नियुक्त किया गया था।
- उसने राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद स्थानांतरित किया।
- उसने इजारेदारी (राजस्व खेती) प्रणाली शुरू की और वित्तीय अनुशासन स्थापित किया।
- उसने मुगल सम्राट को नियमित रूप से राजस्व भेजा, लेकिन व्यवहार में वह स्वतंत्र शासक था।
- उसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने व्यापारिक विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने से रोका।
- शुजा-उद-दीन खान (1727-1739 ईस्वी):
- मुर्शिद कुली खान का दामाद और उत्तराधिकारी।
- उसने बिहार को बंगाल में मिलाया।
- उसने भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ सतर्क संबंध बनाए रखे।
- अलीवर्दी खान (1740-1756 ईस्वी):
- उसने गिरिया के युद्ध (1740) में शुजा-उद-दीन के उत्तराधिकारी सरफराज खान को पराजित कर सत्ता पर कब्जा किया।
- उसने मुगल सम्राट से औपचारिक रूप से अपने पद की पुष्टि नहीं करवाई, जिससे उसकी स्वतंत्र स्थिति और मजबूत हुई।
- उसने यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों (ब्रिटिश, फ्रेंच) को किलेबंदी करने या अपनी सेना बढ़ाने की अनुमति नहीं दी।
- उसने उन्हें ‘शहद की मक्खियों’ के रूप में वर्णित किया: “यदि उन्हें परेशान न किया जाए तो वे शहद देंगी, लेकिन यदि परेशान किया जाए तो वे काट-काटकर मार डालेंगी।”
- उसके शासनकाल में मराठा आक्रमण हुए, जिसके कारण उसे मराठों को ‘चौथ’ देना पड़ा।
- सिराजुद्दौला (1756-1757 ईस्वी):
- अलीवर्दी खान का पोता और अंतिम स्वतंत्र नवाब।
- उसका ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ तीव्र संघर्ष हुआ।
- ब्लैक होल त्रासदी (1756): कलकत्ता में ब्रिटिश कैदियों की मौत की घटना।
- उसने कलकत्ता में ब्रिटिश फैक्ट्री फोर्ट विलियम पर कब्जा कर लिया।
- प्लासी का युद्ध (1757): रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने उसे पराजित किया। मीर जाफर की गद्दारी के कारण उसकी हार हुई।
- इस युद्ध के बाद बंगाल में ब्रिटिश राजनीतिक प्रभुत्व की शुरुआत हुई।
3. प्रशासन और अर्थव्यवस्था (Administration and Economy)
बंगाल के नवाबों ने एक कुशल और समृद्ध प्रशासन स्थापित किया, जिसने प्रांत की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया।
- राजस्व प्रशासन:
- मुर्शिद कुली खान ने इजारेदारी प्रणाली को बढ़ावा दिया, जिससे राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई।
- भू-राजस्व राज्य की आय का मुख्य स्रोत था।
- न्याय व्यवस्था: नवाबों ने एक सुव्यवस्थित न्याय प्रणाली स्थापित की।
- सैन्य: नवाबों के पास अपनी सेना थी, लेकिन वे यूरोपीय कंपनियों की तुलना में आधुनिक सैन्य तकनीकों में पीछे थे।
- व्यापार और वाणिज्य:
- बंगाल एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था, जहाँ से रेशम, सूती वस्त्र, शोरा, नील और अफीम का निर्यात होता था।
- यूरोपीय कंपनियों (ब्रिटिश, फ्रेंच, डच) का व्यापार बंगाल में केंद्रित था।
- बैंकरों का प्रभाव: जगत सेठ जैसे बैंकरों का नवाबों के दरबार में अत्यधिक प्रभाव था, और वे अक्सर नवाबों की वित्तीय सहायता करते थे।
4. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संबंध (Relations with British East India Company)
बंगाल के नवाबों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे, जो अंततः संघर्ष में बदल गए।
- व्यापारिक विशेषाधिकारों का दुरुपयोग:
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगल सम्राट फर्रुखसियर द्वारा 1717 ईस्वी में ‘दस्तक’ (शुल्क मुक्त व्यापार) का अधिकार दिया गया था।
- कंपनी के अधिकारियों ने इन दस्तकों का निजी व्यापार के लिए दुरुपयोग करना शुरू कर दिया, जिससे नवाबों को भारी राजस्व का नुकसान हुआ।
- किलेबंदी का मुद्दा: ब्रिटिश ने कलकत्ता में अपनी फैक्ट्रियों की किलेबंदी शुरू कर दी, जिसे नवाबों ने अपनी संप्रभुता के लिए खतरा माना।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: ब्रिटिश ने बंगाल के नवाबों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया, जिससे संघर्ष और बढ़ा।
- प्लासी का युद्ध (1757): यह युद्ध नवाबों की स्वतंत्रता के अंत और बंगाल में ब्रिटिश प्रभुत्व की शुरुआत का प्रतीक था।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
बंगाल के नवाबों का उदय मुगल साम्राज्य के पतन के बाद की राजनीतिक अस्थिरता का एक महत्वपूर्ण परिणाम था। मुर्शिद कुली खान, शुजा-उद-दीन और अलीवर्दी खान जैसे नवाबों ने बंगाल को एक समृद्ध और स्थिर राज्य में बदल दिया। हालांकि, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं और व्यापारिक विशेषाधिकारों के दुरुपयोग ने नवाबों के साथ संघर्ष को जन्म दिया, जिसका अंत प्लासी के युद्ध में हुआ। इस युद्ध ने बंगाल में ब्रिटिश नियंत्रण की नींव रखी और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।