15वीं शताब्दी में गुरु नानक देव द्वारा स्थापित सिख धर्म ने धीरे-धीरे एक धार्मिक-सामाजिक आंदोलन का रूप लिया। 17वीं और 18वीं शताब्दी में, मुगल शासकों की दमनकारी नीतियों और सिख गुरुओं के बलिदान के कारण, सिखों ने एक राजनीतिक और सैन्य शक्ति के रूप में उदय किया, जो अंततः महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य में परिणत हुआ।
1. सिख धर्म का उद्भव (Origin of Sikhism)
सिख धर्म का उद्भव भक्ति आंदोलन की परंपरा में हुआ, जिसका उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समानता स्थापित करना था।
- गुरु नानक देव (1469-1539 ईस्वी):
- सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु।
- उन्होंने एक ईश्वर (अकाल पुरुष) में विश्वास, कर्मकांडों का विरोध, सामाजिक समानता और भाईचारे पर जोर दिया।
- उनके उपदेशों को ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित किया गया है।
- उन्होंने ‘लंगर’ (सामुदायिक रसोई) की प्रथा शुरू की।
2. सिख गुरु और उनका योगदान (Sikh Gurus and Their Contribution)
दस सिख गुरुओं ने सिख धर्म को संगठित और मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- गुरु अंगद देव (1539-1552 ईस्वी):
- दूसरे गुरु।
- उन्होंने गुरुमुखी लिपि का विकास किया और गुरु नानक की शिक्षाओं को संकलित किया।
- गुरु अमरदास (1552-1574 ईस्वी):
- तीसरे गुरु।
- उन्होंने ‘मंजी’ प्रणाली (धार्मिक प्रचार केंद्र) की स्थापना की।
- अकबर ने उनसे मुलाकात की और धार्मिक सहिष्णुता दिखाई।
- गुरु रामदास (1574-1581 ईस्वी):
- चौथे गुरु।
- उन्होंने अमृतसर शहर की स्थापना की और ‘हरमंदिर साहिब’ (स्वर्ण मंदिर) के निर्माण के लिए भूमि प्राप्त की।
- गुरु अर्जुन देव (1581-1606 ईस्वी):
- पांचवें गुरु।
- उन्होंने ‘आदि ग्रंथ’ (गुरु ग्रंथ साहिब का प्रारंभिक संकलन) का संकलन पूरा किया।
- उन्होंने अमृतसर में हरमंदिर साहिब का निर्माण पूरा करवाया।
- मुगल सम्राट जहांगीर ने उन्हें 1606 ईस्वी में मृत्युदंड दिया, क्योंकि उन्होंने विद्रोही राजकुमार खुसरो को आशीर्वाद दिया था। यह घटना सिख-मुगल संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।
- गुरु हरगोबिंद (1606-1644 ईस्वी):
- छठे गुरु।
- उन्होंने सिखों को एक सैन्य शक्ति में बदलना शुरू किया।
- उन्होंने ‘मीरी’ (लौकिक शक्ति) और ‘पीरी’ (आध्यात्मिक शक्ति) की अवधारणा पेश की।
- उन्होंने अमृतसर में ‘अकाल तख्त’ का निर्माण करवाया।
- गुरु तेग बहादुर (1664-1675 ईस्वी):
- नौवें गुरु।
- उन्होंने इस्लाम स्वीकार न करने के कारण मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा 1675 ईस्वी में दिल्ली में मृत्युदंड दिया गया। यह घटना सिखों को और अधिक उग्रवादी बनाने में सहायक हुई।
- गुरु गोबिंद सिंह (1675-1708 ईस्वी):
- दसवें और अंतिम मानव गुरु।
- उन्होंने 1699 ईस्वी में ‘खालसा’ पंथ की स्थापना की, जिससे सिख एक सैन्य और अनुशासित समुदाय बन गए।
- उन्होंने ‘पांच ककार’ (केश, कंघा, कड़ा, कृपाण, कच्छा) अनिवार्य किए।
- उन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को अंतिम गुरु घोषित किया।
- उन्होंने मुगलों और पहाड़ी राजाओं के खिलाफ कई युद्ध लड़े।
3. सिख-मुगल संघर्ष (Sikh-Mughal Conflict)
सिखों का उदय मुख्य रूप से मुगल शासकों की दमनकारी नीतियों के कारण हुआ, जिन्होंने सिख गुरुओं को शहीद किया।
- जहांगीर द्वारा गुरु अर्जुन देव की हत्या: इस घटना ने सिखों को सैन्य रूप से संगठित होने के लिए प्रेरित किया।
- औरंगजेब द्वारा गुरु तेग बहादुर की हत्या: इसने सिख-मुगल संबंधों को और खराब कर दिया और सिखों को एक जुझारू समुदाय में बदल दिया।
- मुगल उत्पीड़न के कारण सिखों ने अपनी पहचान और धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाए।
4. बंदा सिंह बहादुर (Banda Singh Bahadur) (1670-1716 ईस्वी)
गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के बाद, बंदा सिंह बहादुर ने सिखों का नेतृत्व किया और मुगलों के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह किया।
- गुरु गोबिंद सिंह के शिष्य।
- उन्होंने पंजाब में मुगल सत्ता के खिलाफ कई सफल अभियान चलाए और सिख राज्य की स्थापना का प्रयास किया।
- उन्होंने मुगल अधिकारियों को पराजित किया और भूमि सुधारों की शुरुआत की।
- 1716 ईस्वी में मुगल सम्राट फर्रुखसियर द्वारा उन्हें पकड़ लिया गया और बेरहमी से मृत्युदंड दिया गया।
- उनकी मृत्यु के बाद, सिख छोटे-छोटे जत्थों (समूहों) में बंट गए।
5. मिसलों का उदय (Rise of the Misls)
18वीं शताब्दी में, बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु के बाद, सिख समुदाय 12 स्वतंत्र मिसलों (सैन्य भाईचारे) में संगठित हो गया।
- मिसल शब्द का अर्थ ‘समान’ या ‘राज्य’ होता है।
- प्रत्येक मिसल का अपना सरदार, क्षेत्र और सेना होती थी।
- इन मिसलों ने पंजाब में अफगान आक्रमणकारियों (जैसे अहमद शाह अब्दाली) और मुगलों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया।
- प्रमुख मिसलें: भंगी, अहलुवालिया, रामगढ़िया, कन्हैया, नकई, शुकरचकिया आदि।
- ये मिसलें ‘सरबत खालसा’ (समस्त खालसा की सभा) और ‘गुरमत्ता’ (गुरु के निर्णय) के सिद्धांत पर एकजुट होती थीं।
6. महाराजा रणजीत सिंह और सिख साम्राज्य (Maharaja Ranjit Singh and the Sikh Empire)
18वीं शताब्दी के अंत में, शुकरचकिया मिसल के नेता रणजीत सिंह ने सभी मिसलों को एकजुट कर एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य की स्थापना की।
- जन्म: 1780 ईस्वी।
- लाहौर पर कब्जा (1799): उसने लाहौर पर कब्जा कर लिया, जो उसकी राजधानी बनी।
- अमृतसर पर कब्जा (1805): उसने अमृतसर पर भी नियंत्रण स्थापित किया।
- महाराजा की उपाधि: 1801 में उसने स्वयं को महाराजा घोषित किया।
- साम्राज्य विस्तार:
- उसने पंजाब के सभी मिसलों को एकजुट किया।
- उसने कश्मीर, पेशावर और मुल्तान को अपने साम्राज्य में मिलाया।
- उसने एक शक्तिशाली और आधुनिक सेना का निर्माण किया, जिसमें यूरोपीय अधिकारियों को भी प्रशिक्षित किया गया।
- अमृतसर की संधि (1809):
- यह संधि रणजीत सिंह और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुई थी।
- इसने सतलुज नदी को उनके राज्यों के बीच सीमा के रूप में स्थापित किया।
- इस संधि ने रणजीत सिंह को सतलुज के पश्चिम में अपने साम्राज्य का विस्तार करने की अनुमति दी, जबकि ब्रिटिश ने सतलुज के पूर्व में हस्तक्षेप न करने का वादा किया।
- प्रशासन: रणजीत सिंह का प्रशासन कुशल और धर्मनिरपेक्ष था। उसने सभी धर्मों के लोगों को समान अवसर दिए।
- मृत्यु: 1839 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई।
7. सिख साम्राज्य का पतन (Decline of the Sikh Empire)
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद, सिख साम्राज्य का तेजी से पतन होने लगा।
- कमजोर उत्तराधिकारी: रणजीत सिंह के बाद के शासक कमजोर और अक्षम थे।
- दरबारी गुटबाजी: सिख सरदारों और सेना के बीच सत्ता के लिए संघर्ष बढ़ गया।
- अंग्रेजों की महत्वाकांक्षा: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी पंजाब पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती थी।
- एंग्लो-सिख युद्ध (Anglo-Sikh Wars):
- प्रथम एंग्लो-सिख युद्ध (1845-1846): सिखों की हार हुई और उन्हें लाहौर की अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े।
- द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध (1848-1849): सिखों को निर्णायक रूप से पराजित किया गया।
- परिणाम: 1849 ईस्वी में पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।
8. निष्कर्ष (Conclusion)
सिखों का उदय भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय घटना थी, जो एक धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुई और मुगल उत्पीड़न के कारण एक शक्तिशाली राजनीतिक और सैन्य शक्ति में बदल गई। गुरुओं के बलिदान और महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व ने एक विशाल सिख साम्राज्य का निर्माण किया। हालांकि, उनके उत्तराधिकारियों की कमजोरी और ब्रिटिश की बढ़ती शक्ति के कारण अंततः इस साम्राज्य का पतन हो गया, जिससे पंजाब भी ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया।