मुगल साम्राज्य: शाह आलम द्वितीय (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
अली गौहर, जिसे शाह आलम द्वितीय के नाम से जाना जाता है, मुगल साम्राज्य का बारहवां शासक था। उसका शासनकाल (1759-1806 ईस्वी) मुगल साम्राज्य के तेजी से पतन और भारत में ब्रिटिश सत्ता के उदय का साक्षी रहा।
1. प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक (Early Life and Accession)
- जन्म: 25 जून 1728 ईस्वी को।
- पिता: आलमगीर द्वितीय।
- प्रारंभिक नाम: अली गौहर।
- राज्याभिषेक: अपने पिता आलमगीर द्वितीय की हत्या के बाद, वह 1759 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। हालांकि, उसे तुरंत दिल्ली में प्रवेश नहीं मिल सका और उसे कई वर्षों तक अवध के नवाब शुजा-उद-दौला के संरक्षण में रहना पड़ा।
2. शासनकाल की चुनौतियाँ (Challenges of the Reign)
शाह आलम द्वितीय का शासनकाल अत्यधिक अस्थिरता और शाही सत्ता के क्षरण का काल था।
- कमजोर केंद्रीय सत्ता: मुगल बादशाह केवल नाममात्र का शासक रह गया था, और वास्तविक शक्ति क्षेत्रीय सरदारों, मराठों और अंग्रेजों के हाथों में केंद्रित हो गई थी।
- आंतरिक गुटबाजी: दरबार में अमीरों के बीच लगातार गुटबाजी और संघर्ष जारी था।
- क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: अवध, बंगाल, हैदराबाद, मराठा और सिख जैसी क्षेत्रीय शक्तियाँ पूरी तरह से स्वतंत्र हो चुकी थीं।
3. बक्सर का युद्ध (Battle of Buxar) (22 अक्टूबर 1764 ईस्वी)
यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था, जिसने भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व की नींव रखी।
- पक्ष: ईस्ट इंडिया कंपनी (हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में) बनाम संयुक्त सेना (मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजा-उद-दौला और बंगाल के अपदस्थ नवाब मीर कासिम की)।
- परिणाम:
- ईस्ट इंडिया कंपनी की निर्णायक विजय हुई।
- यह युद्ध भारतीय सेनाओं की संगठनात्मक कमजोरी और ब्रिटिश सैन्य श्रेष्ठता को दर्शाता है।
- महत्व: इस युद्ध ने प्लासी के युद्ध (1757) के बाद ब्रिटिश सत्ता को कानूनी वैधता प्रदान की।
4. इलाहाबाद की संधि (Treaty of Allahabad) (अगस्त 1765 ईस्वी)
बक्सर के युद्ध के बाद रॉबर्ट क्लाइव ने शाह आलम द्वितीय और शुजा-उद-दौला के साथ दो अलग-अलग संधियाँ कीं।
- शाह आलम द्वितीय के साथ संधि (12 अगस्त 1765):
- ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व एकत्र करने का अधिकार) प्राप्त हुई।
- इसके बदले में, कंपनी ने सम्राट को 26 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया।
- शाह आलम द्वितीय को इलाहाबाद और कड़ा के जिले दिए गए।
- इस संधि ने मुगल सम्राट को ब्रिटिश संरक्षण में एक पेंशनभोगी बना दिया।
- महत्व: इस संधि ने भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक और वित्तीय शक्ति को वैध कर दिया, जिससे वे बंगाल के वास्तविक शासक बन गए।
5. मराठों और अंग्रेजों से संबंध (Relations with Marathas and British)
शाह आलम द्वितीय अपने अस्तित्व के लिए विभिन्न शक्तियों पर निर्भर रहा।
- ब्रिटिश संरक्षण में (1765-1771 ईस्वी): इलाहाबाद की संधि के बाद वह इलाहाबाद में ब्रिटिश संरक्षण में रहा।
- मराठों के संरक्षण में (1772-1803 ईस्वी):
- महादजी शिंदे के नेतृत्व में मराठों ने उसे 1772 ईस्वी में दिल्ली वापस लाया और उसे पुनः सिंहासन पर बैठाया।
- वह 1803 ईस्वी तक मराठों के संरक्षण में रहा।
- अंग्रेजों के पेंशनभोगी के रूप में (1803-1806 ईस्वी):
- 1803 ईस्वी में, द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान, अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मराठों को पराजित किया।
- शाह आलम द्वितीय पुनः अंग्रेजों का पेंशनभोगी बन गया और नाममात्र का सम्राट रह गया।
- उसका अधिकार केवल लाल किले तक सीमित हो गया।
- गुलाम कादिर का अत्याचार (1788 ईस्वी): रोहिल्ला सरदार गुलाम कादिर ने दिल्ली पर हमला कर शाह आलम द्वितीय को बंदी बना लिया और उसे अंधा कर दिया।
6. व्यक्तित्व और विरासत (Personality and Legacy)
- व्यक्तित्व: वह एक कमजोर और असहाय शासक था, जो बदलती राजनीतिक परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ था।
- विरासत:
- उसका शासनकाल मुगल साम्राज्य के अंतिम पतन और भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की स्थापना का प्रतीक है।
- उसके समय में मुगल बादशाह की प्रतिष्ठा पूरी तरह से समाप्त हो गई थी।
- वह एक कवि भी था और ‘आफताब’ उपनाम से कविताएँ लिखता था।
7. मृत्यु (Death)
- मृत्यु: 19 नवंबर 1806 ईस्वी को दिल्ली में।
8. निष्कर्ष (Conclusion)
शाह आलम द्वितीय का शासनकाल मुगल साम्राज्य के लिए एक दुखद और अपमानजनक दौर था। वह एक ऐसे समय में गद्दी पर बैठा जब साम्राज्य पहले से ही कमजोर हो चुका था, और उसकी अयोग्यता तथा बाहरी शक्तियों पर निर्भरता ने इसे और पतन की ओर धकेल दिया। उसके शासनकाल ने स्पष्ट कर दिया कि भारत में अब मुगल सत्ता का युग समाप्त हो चुका था और ब्रिटिश साम्राज्य का उदय हो रहा था।