सिंधु घाटी सभ्यता – सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक जीवन
सिंधु घाटी सभ्यता न केवल अपने उत्कृष्ट नगर नियोजन के लिए जानी जाती है, बल्कि इसके सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन के पहलू भी अत्यंत विकसित और अद्वितीय थे। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर हम इस सभ्यता के इन महत्वपूर्ण आयामों को समझने का प्रयास करते हैं।
1. सामाजिक जीवन (Social Life)
- सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification):
- समाज में शासक वर्ग (पुरोहित या व्यापारी), योद्धा, शिल्पकार, किसान और श्रमिक जैसे विभिन्न वर्ग मौजूद थे। दुर्ग और निचले शहर का विभाजन भी इस स्तरीकरण का संकेत देता है।
- हालांकि, मेसोपोटामिया या मिस्र की तरह कोई स्पष्ट ‘दास प्रथा’ के साक्ष्य नहीं मिलते हैं।
- पारिवारिक जीवन (Family Life):
- परिवार की संरचना मुख्यतः मातृसत्तात्मक मानी जाती है, क्योंकि मातृदेवी की बड़ी संख्या में मूर्तियाँ मिली हैं। हालांकि, यह केवल एक अनुमान है।
- घरों की बनावट से संयुक्त परिवार प्रणाली का संकेत मिलता है।
- वस्त्र और आभूषण (Dress and Ornaments):
- लोग सूती और ऊनी वस्त्र पहनते थे।
- पुरुष और महिलाएँ दोनों आभूषण पहनते थे, जिनमें हार, कंगन, अंगूठियाँ, कान की बालियाँ शामिल थीं। आभूषण सोने, चाँदी, तांबे, हाथीदांत और कीमती पत्थरों से बने होते थे।
- मोहनजोदड़ो से मिली ‘नर्तकी की मूर्ति’ और ‘दाढ़ी वाले पुरोहित’ की मूर्ति उनके वस्त्र और आभूषणों की जानकारी देती है।
- खान-पान की आदतें (Food Habits):
- मुख्यतः गेहूँ, जौ, चावल, दालें जैसे अनाज खाते थे।
- मांस (मछली, भेड़, बकरी, मुर्गी) और दूध उत्पादों का भी सेवन करते थे।
- फल और सब्जियाँ भी उनके आहार का हिस्सा थीं।
- मनोरंजन (Amusements):
- मनोरंजन के साधनों में शिकार, मछली पकड़ना, नृत्य, संगीत, पासे का खेल (डाइस) और बच्चों के लिए खिलौने शामिल थे।
- कुछ मुहरों पर जानवरों के बीच लड़ाई के दृश्य भी मिलते हैं।
- अंत्येष्टि प्रथाएँ (Burial Practices):
- मृतकों को आमतौर पर दफनाया जाता था। कुछ स्थानों पर आंशिक दफन या दाह संस्कार के भी साक्ष्य मिले हैं।
- कब्रों में अक्सर बर्तन, आभूषण या अन्य वस्तुएँ रखी जाती थीं, जो मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास का संकेत देती हैं।
- हड़प्पा में ‘R-37’ कब्रिस्तान और लोथल में युग्म दफन (Couple Burial) के साक्ष्य महत्वपूर्ण हैं।
2. आर्थिक जीवन (Economic Life)
- कृषि (Agriculture):
- सिंधु सभ्यता की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि था।
- मुख्य फसलें गेहूँ, जौ, मटर, तिल, मसूर, सरसों, चावल (लोथल और रंगपुर में) और कपास थीं। कपास की खेती करने वाले वे पहले लोग थे।
- सिंचाई के लिए नहरों (शोर्तुगई में), कुओं और जलाशयों का उपयोग किया जाता था।
- कालीबंगा से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
- पशुपालन (Animal Husbandry):
- गाय, भैंस, भेड़, बकरी, ऊँट, सूअर और मुर्गी जैसे जानवरों को पाला जाता था।
- कुत्ते और बिल्ली भी पालतू जानवर थे। घोड़े के साक्ष्य सुरकोटड़ा और लोथल से मिले हैं, लेकिन यह अभी भी बहस का विषय है कि वे व्यापक रूप से पालतू थे या नहीं।
- शिल्प और उद्योग (Crafts and Industries):
- धातु कर्म: तांबा, कांसा, सोना और चाँदी का उपयोग होता था। कांसा तांबे और टिन को मिलाकर बनाया जाता था।
- मनके बनाना: चन्हुदड़ो और लोथल मनके बनाने के प्रमुख केंद्र थे। कार्नेलियन, जैस्पर, सेलखड़ी जैसे पत्थरों का उपयोग होता था।
- मुहरें बनाना: सेलखड़ी से बनी मुहरें सबसे आम थीं, जिन पर जानवरों और अज्ञात लिपि के चित्र होते थे।
- मृदभांड: लाल और काले रंग के चित्रित मृदभांड व्यापक रूप से बनाए जाते थे।
- कपड़ा बुनाई: कपास की खेती के कारण कपड़ा उद्योग भी विकसित था।
- व्यापार और वाणिज्य (Trade and Commerce):
- सिंधु सभ्यता का आंतरिक और बाहरी दोनों तरह का व्यापार विकसित था।
- आंतरिक व्यापार बैलगाड़ियों और नदी मार्गों से होता था।
- बाहरी व्यापार मेसोपोटामिया (सुमेर) और फारस (ईरान) के साथ होता था।
- मेसोपोटामिया के अभिलेखों में ‘मेलुहा’ (Meluha) का उल्लेख मिलता है, जिसे सिंधु क्षेत्र माना जाता है।
- लोथल और सुत्कागेंडोर जैसे बंदरगाह व्यापार के लिए महत्वपूर्ण थे।
- वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) प्रचलित थी, क्योंकि सिक्कों का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
- माप-तौल प्रणाली (Weights and Measures):
- एक मानकीकृत माप-तौल प्रणाली प्रचलित थी, जो 16 के गुणक पर आधारित थी (जैसे 16, 32, 64, 160 आदि)।
- माप के लिए हाथीदांत के स्केल भी मिले हैं।
3. धार्मिक जीवन (Religious Life)
- मातृदेवी की पूजा (Mother Goddess Worship):
- बड़ी संख्या में मिली नारी मृण्मूर्तियाँ (Terracotta Figurines) मातृदेवी की पूजा का संकेत देती हैं, जिन्हें प्रजनन और उर्वरता की देवी माना जाता था।
- यह संभवतः सिंधु सभ्यता का प्रमुख धार्मिक विश्वास था।
- पशुपति महादेव (Pashupati Mahadev):
- मोहनजोदड़ो से मिली एक मुहर पर एक योगी की मुद्रा में बैठे पुरुष देवता का चित्रण है, जिसके चारों ओर हाथी, बाघ, गैंडा और भैंसा जैसे जानवर हैं, और उसके नीचे दो हिरण हैं। इसे पशुपति महादेव (प्रोटो-शिवा) माना जाता है।
- यह शिव के प्रारंभिक रूप का प्रतिनिधित्व करता है।
- प्रकृति पूजा (Nature Worship):
- सिंधु लोग प्रकृति की पूजा करते थे। इसमें पेड़ों (विशेषकर पीपल), जानवरों और नदियों की पूजा शामिल थी।
- किसी भी मंदिर या बड़े धार्मिक ढाँचे के साक्ष्य नहीं मिले हैं।
- वृक्ष पूजा (Tree Worship):
- पीपल का पेड़ पवित्र माना जाता था और इसकी पूजा की जाती थी, जिसके साक्ष्य मुहरों पर मिलते हैं।
- पशु पूजा (Animal Worship):
- कूबड़ वाला बैल (Humped Bull) एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक था।
- एक सींग वाला जानवर (यूनिकॉर्न) भी मुहरों पर अक्सर चित्रित होता था, जिसे संभवतः एक पौराणिक या पवित्र जानवर माना जाता था।
- नाग पूजा के भी कुछ संकेत मिलते हैं।
- अग्नि वेदियाँ (Fire Altars):
- कालीबंगा और लोथल जैसे स्थलों पर अग्नि वेदियाँ मिली हैं, जो संभवतः अनुष्ठानों या यज्ञों से संबंधित थीं।
- जल पूजा (Water Worship):
- मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार संभवतः अनुष्ठानिक शुद्धिकरण या जल पूजा से संबंधित था।
- अंतिम संस्कार की प्रथाएँ (Funerary Practices):
- मृतकों को दफनाने की प्रथा में धार्मिक विश्वासों का भी प्रभाव था, जैसा कि कब्रों में मिली वस्तुओं से पता चलता है।
- मंदिरों का अभाव (Absence of Temples):
- सिंधु सभ्यता में किसी भी बड़े मंदिर या धार्मिक भवन के स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिले हैं, जो इसे समकालीन मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं से अलग करता है। पूजा घरों में या खुले स्थानों पर होती थी।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन एक जटिल और सुव्यवस्थित समाज को दर्शाता है। कृषि और व्यापार पर आधारित एक मजबूत अर्थव्यवस्था थी, जबकि धार्मिक विश्वास प्रकृति और प्रजनन शक्ति के इर्द-गिर्द केंद्रित थे। यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप में एक समृद्ध और अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है, जिसने बाद की सभ्यताओं के लिए नींव रखी।