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सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत (Subsidiary Alliance and Doctrine of Lapse)

सहायक संधि और<!DOCTYPE html> <html lang="hi"> <head> <meta charset="UTF-8"> <meta name="viewport" content="width=device-width, initial-scale=1.0"> <title>सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने और भारतीय राज्यों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कई नीतियों और रणनीतियों का इस्तेमाल किया। इनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण नीतियाँ थीं सहायक संधि (Subsidiary Alliance) और व्यपगत सिद्धांत (Doctrine of Lapse)। इन नीतियों ने भारतीय राज्यों की संप्रभुता को समाप्त कर दिया और ब्रिटिश प्रभुत्व को मजबूत किया।

1. सहायक संधि (Subsidiary Alliance)

सहायक संधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारतीय राज्यों को अपने नियंत्रण में लाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक कूटनीतिक उपकरण था।

  • परिचय:
    • यह प्रणाली लॉर्ड वेलेजली (Lord Wellesley) द्वारा 1798 ईस्वी में भारत में लागू की गई थी।
    • हालांकि, इसका विचार पहले फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स द्वारा इस्तेमाल किया गया था।
  • सहायक संधि की शर्तें:
    • ब्रिटिश सेना का रखरखाव: भारतीय शासक को अपने राज्य में ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी को स्थायी रूप से तैनात करना होगा।
    • सेना का खर्च: शासक को इस ब्रिटिश सेना के रखरखाव के लिए कंपनी को धन या अपने क्षेत्र का एक हिस्सा देना होगा।
    • गैर-ब्रिटिश यूरोपीय लोगों का निष्कासन: शासक अपने राज्य में किसी भी गैर-ब्रिटिश यूरोपीय (विशेषकर फ्रेंच) को कंपनी की अनुमति के बिना नौकरी पर नहीं रख सकता था।
    • ब्रिटिश रेजीडेंट: शासक को अपने दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेंट (प्रतिनिधि) रखना होगा।
    • कंपनी की सर्वोच्चता: शासक को कंपनी को सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्वीकार करना होगा और किसी अन्य यूरोपीय शक्ति या भारतीय राज्य के साथ संबंध स्थापित नहीं करना होगा।
    • आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप: कंपनी ने शासक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वादा किया, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं हुआ।
  • सहायक संधि स्वीकार करने वाले प्रमुख राज्य (कालानुक्रम):
    • हैदराबाद (1798 ईस्वी): सहायक संधि स्वीकार करने वाला पहला प्रमुख राज्य।
    • मैसूर (1799 ईस्वी): टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद।
    • तंजौर (1799 ईस्वी)
    • अवध (1801 ईस्वी)
    • पेशवा (1802 ईस्वी): बेसिन की संधि के तहत।
    • बरार के भोंसले (1803 ईस्वी)
    • सिंधिया (1804 ईस्वी)
    • जोधपुर, जयपुर, बूँदी, भरतपुर (1818 ईस्वी)
  • सहायक संधि के परिणाम:
    • भारतीय राज्यों की संप्रभुता का अंत: शासकों ने अपनी स्वतंत्रता खो दी और ब्रिटिश के अधीनस्थ बन गए।
    • ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार: कंपनी बिना युद्ध लड़े या सीधे प्रशासन की जिम्मेदारी लिए अपने साम्राज्य का विस्तार कर सकी।
    • भारतीय शासकों का सैन्य रूप से कमजोर होना: अपनी सेनाओं को भंग करने या कम करने के कारण वे ब्रिटिश पर निर्भर हो गए।
    • आर्थिक शोषण: सेना के रखरखाव के लिए धन या क्षेत्र देने से भारतीय राज्यों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ा।
    • बेरोजगारी में वृद्धि: भारतीय सेनाओं के भंग होने से बड़ी संख्या में सैनिक बेरोजगार हो गए।
    • असुरक्षा की भावना: शासकों को अब बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह का डर नहीं था, जिससे वे विलासी और अक्षम हो गए।

2. व्यपगत सिद्धांत (Doctrine of Lapse)

व्यपगत सिद्धांत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारतीय राज्यों को सीधे ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक और आक्रामक नीति थी।

  • परिचय:
    • यह नीति लॉर्ड डलहौजी (Lord Dalhousie) द्वारा 1848 ईस्वी में भारत में लागू की गई थी।
    • यह नीति ब्रिटिश की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक थी।
  • व्यपगत सिद्धांत की शर्तें:
    • इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी भारतीय शासक का कोई प्राकृतिक उत्तराधिकारी (पुरुष) नहीं होता था, तो उसका राज्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सीधे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जाएगा।
    • भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार था, लेकिन इस सिद्धांत के तहत, दत्तक पुत्र को केवल निजी संपत्ति का उत्तराधिकारी माना जाता था, राज्य का नहीं।
    • कंपनी ने यह तय करने का अधिकार अपने पास रखा कि किस राज्य को दत्तक पुत्र लेने की अनुमति दी जाएगी और किसे नहीं।
  • व्यपगत सिद्धांत के तहत विलय किए गए प्रमुख राज्य (कालानुक्रम):
    • सतारा (1848 ईस्वी): व्यपगत सिद्धांत के तहत विलय किया गया पहला राज्य।
    • जैतपुर (1849 ईस्वी)
    • संभलपुर (1849 ईस्वी)
    • बघाट (1850 ईस्वी)
    • उदयपुर (1852 ईस्वी)
    • झाँसी (1853 ईस्वी): रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इनकार किया गया।
    • नागपुर (1854 ईस्वी)
  • कुशासन के आरोप पर विलय:
    • डलहौजी ने कुछ राज्यों को ‘कुशासन के आरोप’ लगाकर भी विलय किया, भले ही उनके पास प्राकृतिक उत्तराधिकारी थे।
    • अवध (1856 ईस्वी): यह सबसे प्रसिद्ध उदाहरण था, जहाँ नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगाकर राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। इस विलय ने भारतीय जनता में गहरा असंतोष पैदा किया और 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना।
  • व्यपगत सिद्धांत के परिणाम:
    • भारतीय शासकों में भारी असंतोष: इस नीति ने भारतीय शासकों में असुरक्षा और क्रोध की भावना पैदा की।
    • ब्रिटिश साम्राज्य का तीव्र विस्तार: कंपनी ने इस नीति का उपयोग करके बड़ी संख्या में भारतीय राज्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया।
    • 1857 के विद्रोह का प्रमुख कारण: झाँसी, नागपुर और अवध जैसे राज्यों का विलय 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक था।
    • भारतीय परंपराओं का उल्लंघन: दत्तक पुत्र को मान्यता न देना भारतीय परंपराओं और कानूनों का उल्लंघन था।

3. निष्कर्ष (Conclusion)

सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में अपने साम्राज्यवादी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल की गई दो प्रमुख रणनीतियाँ थीं। सहायक संधि ने भारतीय राज्यों को कंपनी के अधीनस्थ बना दिया, जबकि व्यपगत सिद्धांत ने उन्हें सीधे ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया। इन नीतियों ने भारतीय शासकों और जनता में भारी असंतोष पैदा किया, जो अंततः 1857 के महान विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक बना।

व्यपगत सिद्धांत (Subsidiary Alliance and Doctrine of Lapse)

सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत (Subsidiary Alliance and Doctrine of Lapse)

सहायक संधि (Subsidiary Alliance)

परिचय

सहायक संधि एक कूटनीतिक नीति थी जिसे लॉर्ड वेलेजली ने 1798 में शुरू किया। इसका उद्देश्य भारतीय रियासतों को ब्रिटिश अधीनता में लाना था, बिना प्रत्यक्ष युद्ध के।

मुख्य बिंदु

  • रियासतों को ब्रिटिश सेना का खर्च वहन करना होता था।
  • रियासतों को विदेशी संबंधों में ब्रिटिश सलाह माननी होती थी।
  • रियासतों को अपने क्षेत्र में ब्रिटिश रेजिडेंट को स्वीकार करना होता था।
  • बदले में ब्रिटिश रियासतों की सुरक्षा का वादा करते थे।

प्रभावित रियासतें

  • हैदराबाद: 1798 में पहली सहायक संधि की।
  • मैसूर: टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद।
  • अवध, ग्वालियर, इंदौर आदि।

परिणाम

  • रियासतों की स्वतंत्रता सीमित हो गई।
  • ब्रिटिशों का भारत पर नियंत्रण बढ़ा।
  • भारतीय सेना का विघटन हुआ।

व्यपगत सिद्धांत (Doctrine of Lapse)

परिचय

व्यपगत सिद्धांत को लॉर्ड डलहौजी ने 1848 में लागू किया। इसका उद्देश्य उत्तराधिकारी न होने पर रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना था।

मुख्य बिंदु

  • यदि किसी राजा का प्राकृतिक उत्तराधिकारी नहीं है, तो गोद लिए पुत्र को उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा।
  • ऐसी स्थिति में रियासत ब्रिटिश साम्राज्य में विलय हो जाएगी।
  • यह नीति हिंदू उत्तराधिकार कानून के विपरीत थी।

प्रभावित रियासतें

  • सतारा: 1848 में पहला विलय।
  • झांसी: रानी लक्ष्मीबाई का विरोध।
  • नागपुर, संभलपुर, अवध आदि।

परिणाम

  • रियासतों में असंतोष और विरोध बढ़ा।
  • 1857 के विद्रोह के प्रमुख कारणों में से एक।
  • ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार हुआ।

One-Liner Facts

यहाँ सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत से जुड़े 10 महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं:

  • सहायक संधि को लॉर्ड वेलेजली ने शुरू किया।
  • हैदराबाद ने पहली सहायक संधि की।
  • रियासतों को ब्रिटिश सेना का खर्च वहन करना होता था।
  • व्यपगत सिद्धांत को लॉर्ड डलहौजी ने लागू किया।
  • सतारा पहला राज्य था जो व्यपगत सिद्धांत के तहत विलय हुआ।
  • झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने विरोध किया।
  • व्यपगत सिद्धांत 1857 के विद्रोह का एक कारण था।
  • सहायक संधि से रियासतों की स्वतंत्रता सीमित हो गई।
  • व्यपगत सिद्धांत हिंदू उत्तराधिकार कानून के विपरीत था।
  • ब्रिटिशों ने भारत पर अपना नियंत्रण बढ़ाया।

सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत ब्रिटिशों की विस्तारवादी नीतियों के प्रमुख उपकरण थे। इन नीतियों ने भारतीय रियासतों की स्वायत्तता को कम किया और भारतीय समाज में असंतोष बढ़ाया, जो 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना।

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