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नगर नियोजन और वास्तुकला (Town Planning and Architecture)

सिंधु घाटी सभ्यता – नगर नियोजन और वास्तुकला

सिंधु घाटी सभ्यता – नगर नियोजन और वास्तुकला

सिंधु घाटी सभ्यता अपनी असाधारण नगर नियोजन और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे समकालीन सभ्यताओं से अलग करती है। यह योजनाबद्ध शहरी विकास, उन्नत जल निकासी प्रणाली और मानकीकृत निर्माण तकनीकों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

1. परिचय (Introduction)

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे प्रभावशाली विशेषता इसका सुनियोजित नगर नियोजन था। अधिकांश हड़प्पा शहर एक विशिष्ट पैटर्न पर निर्मित थे, जो उस समय के लिए अत्यंत उन्नत था। यह दर्शाता है कि इन शहरों का निर्माण किसी केंद्रीय प्राधिकरण या कुशल योजनाकारों द्वारा किया गया था।

2. नगरों की सामान्य संरचना (General Structure of Cities)

अधिकांश सिंधु घाटी के शहर दो या अधिक भागों में विभाजित थे:

2.1. दुर्ग (Citadel / Upper Town)

  • यह शहर का पश्चिमी भाग होता था, जो आमतौर पर एक ऊँचे चबूतरे पर निर्मित होता था।
  • यह किलेबंद होता था और इसमें महत्वपूर्ण सार्वजनिक इमारतें होती थीं।
  • माना जाता है कि यह क्षेत्र शासक वर्ग या प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उपयोग किया जाता था।
  • उदाहरण: मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार और अन्नागार, हड़प्पा का अन्नागार।

2.2. निचला शहर (Lower Town)

  • यह शहर का पूर्वी भाग होता था, जो दुर्ग की तुलना में कम ऊँचाई पर स्थित होता था।
  • यह आमतौर पर बड़ा होता था और इसमें सामान्य नागरिक रहते थे।
  • निचले शहर में भी नियोजित सड़कें और आवासीय भवन होते थे।
  • कुछ शहरों में निचला शहर भी किलेबंद था (जैसे कालीबंगा, लोथल)।

अपवाद:

  • धोलावीरा: यह शहर तीन भागों में विभाजित था – दुर्ग, मध्य शहर और निचला शहर।
  • चन्हुदड़ो: यह एकमात्र सिंधु शहर था जिसमें कोई दुर्ग नहीं था।

3. नगर नियोजन की विशेषताएँ (Features of Town Planning)

3.1. ग्रिड पैटर्न (Grid Pattern)

  • अधिकांश शहरों में सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं, जिससे शहर को आयताकार या वर्गाकार खंडों (ब्लॉकों) में विभाजित किया जाता था। इसे ग्रिड पैटर्न कहा जाता है।
  • यह पैटर्न हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे बड़े शहरों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

3.2. जल निकासी प्रणाली (Drainage System)

  • यह सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे उल्लेखनीय विशेषता थी।
  • प्रत्येक घर में एक या अधिक स्नानागार और शौचालय होते थे, जिनका पानी छोटी नालियों के माध्यम से मुख्य सड़क की बड़ी नालियों में जाता था।
  • नालियाँ पक्की ईंटों से बनी होती थीं और पत्थर की स्लैबों या ईंटों से ढकी होती थीं।
  • नियमित अंतराल पर मैनहोल (निरीक्षण छेद) होते थे, जिससे नालियों की सफाई की जा सके।
  • यह प्रणाली उस समय की अन्य सभ्यताओं की तुलना में कहीं अधिक उन्नत थी और स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता को दर्शाती है।

3.3. निर्माण सामग्री (Construction Material)

  • घरों और अन्य संरचनाओं के निर्माण के लिए मुख्य रूप से पक्की ईंटों (Baked Bricks) का उपयोग किया जाता था।
  • ईंटों का आकार मानकीकृत (standardized) था, आमतौर पर 1:2:4 के अनुपात में (मोटाई:चौड़ाई:लंबाई)।
  • कुछ स्थानों पर कच्ची ईंटों का भी उपयोग किया गया था, विशेषकर निचले शहरों में या बाहरी दीवारों के लिए।

3.4. सड़कें (Roads)

  • सड़कें सीधी और चौड़ी होती थीं, जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • मुख्य सड़कें लगभग 10 मीटर चौड़ी होती थीं।
  • सड़कों के किनारे कूड़ा-करकट के लिए कूड़ेदान भी पाए गए हैं।

3.5. सार्वजनिक इमारतें (Public Buildings)

  • विशाल स्नानागार (Great Bath – मोहनजोदड़ो):
    • यह दुर्ग क्षेत्र में स्थित एक विशाल ईंटों से बना तालाब था।
    • इसका उपयोग संभवतः अनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।
    • इसमें पानी के रिसाव को रोकने के लिए प्राकृतिक डामर (Bitumen) का लेप लगाया गया था।
    • इसके चारों ओर कमरे और एक कुआँ भी था।
  • अन्नागार (Granaries):
    • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा दोनों में विशाल अन्नागार पाए गए हैं, जो अनाज के भंडारण के लिए उपयोग किए जाते थे।
    • हड़प्पा का अन्नागार मोहनजोदड़ो से भी बड़ा था, जिसमें 6-6 की दो पंक्तियों में कुल 12 कक्ष थे।
    • यह अधिशेष कृषि उत्पादन और एक सुनियोजित अर्थव्यवस्था का संकेत है।
  • सभा भवन/कॉलेज (Assembly Hall/College – मोहनजोदड़ो):
    • मोहनजोदड़ो में एक बड़ा हॉल मिला है जिसमें स्तंभों की पंक्तियाँ थीं, जिसे कुछ विद्वान सभा भवन या कॉलेज मानते हैं।

3.6. आवासीय भवन (Residential Buildings)

  • घर विभिन्न आकारों के होते थे, लेकिन अधिकांश में एक केंद्रीय आँगन होता था जिसके चारों ओर कमरे बने होते थे।
  • घरों में कुएँ, स्नानागार और रसोईघर होते थे।
  • गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाता था; सड़कों की ओर कोई खिड़की नहीं होती थी और मुख्य प्रवेश द्वार सीधे आँगन में नहीं खुलता था।
  • कुछ घर दो मंजिला भी होते थे।

5. महत्व (Significance)

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर नियोजन और वास्तुकला का महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में निहित है:

  • अद्वितीय योजना: यह उस समय की विश्व की किसी भी अन्य सभ्यता में नहीं देखी गई योजनाबद्धता और मानकीकरण को दर्शाती है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जोर: उन्नत जल निकासी प्रणाली और स्वच्छता के प्रति जागरूकता उनके सार्वजनिक स्वास्थ्य के महत्व को दर्शाती है।
  • कुशल प्रशासन: यह एक कुशल और केंद्रीकृत प्रशासन का संकेत है जो इतने बड़े पैमाने पर शहरी विकास को अंजाम दे सकता था।
  • तकनीकी कौशल: पक्की ईंटों का मानकीकृत उपयोग और जल प्रबंधन की तकनीकें उनके उच्च तकनीकी कौशल को दर्शाती हैं।
  • सामाजिक संगठन: नगरों का विभाजन (दुर्ग और निचला शहर) समाज में कुछ हद तक स्तरीकरण का संकेत देता है।
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