संघ राज्य क्षेत्र (Union Territories – UTs) भारत के संघीय ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सीधे केंद्र सरकार द्वारा प्रशासित होते हैं। इसके अतिरिक्त, संविधान कुछ निर्दिष्ट क्षेत्रों (Specified Areas) के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान करता है, जिनमें अनुसूचित क्षेत्र और जनजातीय क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों का प्रशासन उनकी विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
1. संघ राज्य क्षेत्र (Union Territories – UTs)
संघ राज्य क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जो सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में होते हैं।
1.1. संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का भाग VIII (अनुच्छेद 239 से 241) संघ राज्य क्षेत्रों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 1(3): भारत के क्षेत्र में राज्यों के क्षेत्र, संघ राज्य क्षेत्र और ऐसे अन्य क्षेत्र शामिल होंगे जो अधिग्रहित किए जाएं।
1.2. संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन
- राष्ट्रपति द्वारा प्रशासन: संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन सीधे राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- प्रशासक / उपराज्यपाल: राष्ट्रपति संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन अपने द्वारा नियुक्त एक प्रशासक (Administrator) या उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) के माध्यम से करते हैं। प्रशासक राष्ट्रपति का एजेंट होता है, राज्य के राज्यपाल की तरह राज्य का प्रमुख नहीं।
- विधानमंडल वाले UTs:
- दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर (2019 में पुनर्गठन के बाद) में विधानमंडल और मंत्रिपरिषद हैं।
- इन UTs में, उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है, लेकिन कुछ मामलों में उसके पास विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं।
- अनुच्छेद 239AA: दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान (69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 द्वारा जोड़ा गया)।
- विधानमंडल रहित UTs: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव, लक्षद्वीप, लद्दाख (2019 में पुनर्गठन के बाद)। इनका प्रशासन सीधे केंद्र द्वारा नियुक्त प्रशासक/उपराज्यपाल द्वारा किया जाता है।
1.3. संघ राज्य क्षेत्रों के निर्माण के कारण
- रणनीतिक महत्व: जैसे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप।
- सांस्कृतिक विशिष्टता: जैसे पुडुचेरी (पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश), दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव (पूर्व पुर्तगाली उपनिवेश)।
- प्रशासनिक विचार: जैसे चंडीगढ़ (पंजाब और हरियाणा की राजधानी)।
- राष्ट्रीय राजधानी: दिल्ली।
- सीमावर्ती क्षेत्र: जैसे लद्दाख (संवेदनशील सीमा क्षेत्र)।
2. निर्दिष्ट क्षेत्रों का प्रशासन (Administration of Specified Areas)
भारतीय संविधान कुछ क्षेत्रों के प्रशासन के लिए विशेष प्रावधान करता है, जो उनकी जनजातीय प्रकृति को दर्शाते हैं।
2.1. अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Areas)
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित प्रावधान करती है।
- घोषणा: राष्ट्रपति किसी भी क्षेत्र को ‘अनुसूचित क्षेत्र’ घोषित कर सकते हैं।
- प्रशासनिक तंत्र:
- राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- प्रत्येक राज्य में एक जनजातीय सलाहकार परिषद (Tribes Advisory Council – TAC) का गठन किया जाता है, जिसमें 20 सदस्य होते हैं (जिनमें से तीन-चौथाई ST होते हैं)। यह ST के कल्याण और उन्नति से संबंधित मामलों पर सलाह देती है।
- संसद और राज्य विधानमंडल के कानून अनुसूचित क्षेत्रों में राज्यपाल के अनुमोदन के बिना लागू नहीं होते हैं।
- उद्देश्य: आदिवासी समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और भूमि अधिकारों की रक्षा करना, और उनके विकास को सुनिश्चित करना।
2.2. जनजातीय क्षेत्र (Tribal Areas)
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान करती है।
- स्वायत्त जिले: इन क्षेत्रों को ‘स्वायत्त जिलों’ (Autonomous Districts) के रूप में प्रशासित किया जाता है।
- प्रशासनिक तंत्र:
- प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद (District Council) और एक क्षेत्रीय परिषद (Regional Council) होती है।
- इन परिषदों के पास कानून बनाने, न्याय प्रशासन, भूमि, वन, नहरों, झीलों, खनन आदि से संबंधित मामलों पर व्यापक शक्तियाँ होती हैं।
- राज्यपाल को इन क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में महत्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- उद्देश्य: इन विशिष्ट जनजातीय क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों की स्वायत्तता, संस्कृति और पहचान को बनाए रखना।
3. संघ राज्य क्षेत्रों और निर्दिष्ट क्षेत्रों के प्रशासन के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to Administration of UTs and Specified Areas)
इन क्षेत्रों के प्रशासन को कई अनूठी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- संघ राज्य क्षेत्रों में लोकतांत्रिक deficit: विधानमंडल रहित UTs में लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की कमी।
- उपराज्यपाल/प्रशासक की शक्तियाँ: विधानमंडल वाले UTs में उपराज्यपाल/प्रशासक और निर्वाचित सरकार के बीच शक्तियों को लेकर संघर्ष।
- वित्तीय निर्भरता: संघ राज्य क्षेत्र और निर्दिष्ट क्षेत्र दोनों वित्तीय रूप से केंद्र सरकार पर अत्यधिक निर्भर होते हैं।
- विकास का अभाव: कुछ जनजातीय क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सामाजिक-आर्थिक विकास का अभाव।
- भूमि अलगाव: जनजातीय क्षेत्रों में भूमि अलगाव और संसाधनों के शोषण का खतरा।
- सांस्कृतिक पहचान का क्षरण: आधुनिकीकरण और बाहरी प्रभावों के कारण जनजातीय संस्कृति और पहचान का क्षरण।
- कानून और व्यवस्था: कुछ निर्दिष्ट क्षेत्रों में उग्रवाद और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ।
- जनजातीय सलाहकार परिषदों की प्रभावशीलता: कुछ SFCs की सलाहकारी प्रकृति और उनके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
संघ राज्य क्षेत्र और निर्दिष्ट क्षेत्र भारतीय संघीय प्रणाली के अद्वितीय घटक हैं, जिनका प्रशासन उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। संघ राज्य क्षेत्र सीधे केंद्र द्वारा प्रशासित होते हैं, जबकि अनुसूचित क्षेत्र (पांचवीं अनुसूची) और जनजातीय क्षेत्र (छठी अनुसूची) आदिवासी समुदायों की संस्कृति और भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधानों के तहत प्रशासित होते हैं। यद्यपि इन क्षेत्रों को लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की कमी, वित्तीय निर्भरता और विकास के अभाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इन क्षेत्रों का प्रशासन भारत की विविधता में एकता और समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इन चुनौतियों का सामना करने और इन क्षेत्रों के लोगों को सशक्त बनाने के लिए निरंतर प्रयासों और प्रभावी शासन की आवश्यकता है।