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ब्रिक्स और भारत के लिए इसका महत्व (BRICS and its importance to India)

ब्रिक्स (BRICS) प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। यह समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना और वैश्विक शासन में सुधार करना है। भारत के लिए ब्रिक्स एक महत्वपूर्ण मंच है जो उसे बहुध्रुवीय विश्व में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।

1. ब्रिक्स की अवधारणा और विकास (Concept and Evolution of BRICS)

ब्रिक्स की अवधारणा 21वीं सदी की शुरुआत में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है।

  • BRIC की उत्पत्ति:
    • 2001 में, गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने ‘BRIC’ (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) शब्द गढ़ा।
  • BRIC का गठन:
    • 2006 में, न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान इन चार देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक हुई, जिसने औपचारिक रूप से BRIC समूह का गठन किया।
  • दक्षिण अफ्रीका का शामिल होना:
    • 2010 में, दक्षिण अफ्रीका को इस समूह में शामिल किया गया, जिसके बाद यह ‘BRICS’ बन गया।
  • ब्रिक्स का विस्तार (BRICS+):
    • अगस्त 2023 में, जोहान्सबर्ग में 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान विस्तार की घोषणा की गई।
    • 1 जनवरी, 2024 से, चार नए देश – मिस्र, इथियोपिया, ईरान, और संयुक्त अरब अमीरात – पूर्ण सदस्य बने।
    • जनवरी 2025 में इंडोनेशिया भी पूर्ण सदस्य बन गया।
    • विस्तार के बाद, समूह को अनौपचारिक रूप से “ब्रिक्स+” कहा जाता है और इसमें अब 10 सदस्य देश हैं।
  • उद्देश्य:
    • सदस्य देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना।
    • वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संस्थानों में सुधार करना।
    • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देना।

2. ब्रिक्स के प्रमुख उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

ब्रिक्स विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है।

  • आर्थिक और वित्तीय सहयोग:
    • सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना।
    • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): 2014 में स्थापित, NDB ब्रिक्स और अन्य विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा और सतत विकास परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण प्रदान करता है।
    • आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (Contingent Reserve Arrangement – CRA): 2014 में स्थापित, CRA भुगतान संतुलन संकट के दौरान सदस्य देशों को अल्पकालिक तरलता सहायता प्रदान करता है।
  • राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग:
    • अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर समन्वय।
    • आतंकवाद और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की वकालत।
  • सांस्कृतिक और लोगों से लोगों का आदान-प्रदान:
    • शिक्षा, संस्कृति, खेल और पर्यटन में सहयोग।

3. भारत के लिए ब्रिक्स का महत्व

ब्रिक्स भारत के लिए कई रणनीतिक और आर्थिक लाभ प्रदान करता है।

  • बढ़ती वैश्विक भूमिका: ब्रिक्स भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
  • आर्थिक सहयोग: NDB के माध्यम से भारत को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण प्राप्त होता है।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: यह पश्चिमी प्रभुत्व को संतुलित करते हुए एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देता है।
  • सुरक्षा सहयोग: आतंकवाद और साइबर सुरक्षा जैसे साझा खतरों से निपटने के लिए सहयोग।
  • विकासशील देशों का नेतृत्व: ब्रिक्स भारत को ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों की वकालत करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।

4. आगामी शिखर सम्मेलन

  • 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (2025): मेजबान – ब्राजील (रियो डी जनेरियो)।
  • 18वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (2026): मेजबान – भारत।

5. ब्रिक्स के समक्ष चुनौतियाँ

ब्रिक्स को अपनी पूरी क्षमता को साकार करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

  • सदस्य देशों के बीच मतभेद: सदस्य देशों के बीच आर्थिक संरचना, राजनीतिक व्यवस्था और राष्ट्रीय हितों में भिन्नताएँ हैं (उदाहरण: भारत-चीन सीमा विवाद)।
  • चीन का प्रभुत्व: चीन की बड़ी अर्थव्यवस्था और बढ़ती शक्ति ब्रिक्स में असंतुलन पैदा कर सकती है।
  • विस्तार के बाद की चुनौतियाँ: नए सदस्यों के शामिल होने से समूह के भीतर आम सहमति बनाना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

6. निष्कर्ष

ब्रिक्स 21वीं सदी में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक है। यह समूह आर्थिक सहयोग, राजनीतिक समन्वय और वैश्विक शासन में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। भारत के लिए, ब्रिक्स वैश्विक मंच पर अपनी आवाज उठाने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को आकार देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। समूह का हालिया विस्तार वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए एक अधिक समावेशी मंच बनाने की दिशा में एक कदम है, लेकिन यह ब्रिक्स के लिए नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करेगा।

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