भारतीय संविधान एक संघीय प्रणाली को अपनाता है, जिसमें केंद्र और राज्यों दोनों स्तरों पर विधायिकाएँ (Legislatures) होती हैं। ये विधायिकाएँ कानून बनाने, सरकार पर नियंत्रण रखने और जनता की आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए जिम्मेदार हैं। केंद्र स्तर पर विधायिका को संसद (Parliament) कहा जाता है, जबकि राज्य स्तर पर इन्हें राज्य विधानमंडल (State Legislature) कहा जाता है।
1. केंद्रीय विधानमंडल: संसद (Union Legislature: Parliament)
भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है।
1.1. संरचना (अनुच्छेद 79)
- भारतीय संसद में राष्ट्रपति और दो सदन – लोकसभा (House of the People) और राज्यसभा (Council of States) – शामिल हैं।
1.2. लोकसभा (Lok Sabha) – निचला सदन
- रचना (अनुच्छेद 81):
- अधिकतम सदस्य संख्या: 550 सदस्य (530 राज्यों से, 20 केंद्र शासित प्रदेशों से)। (एंग्लो-इंडियन के लिए 2 आरक्षित सीटें 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2020 द्वारा समाप्त कर दी गईं)।
- सदस्यों का चुनाव: प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा, वयस्क मताधिकार के आधार पर।
- कार्यकाल (अनुच्छेद 83): 5 वर्ष, जब तक कि इसे पहले भंग न कर दिया जाए। आपातकाल के दौरान इसे एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- योग्यता (अनुच्छेद 84): भारत का नागरिक, 25 वर्ष की न्यूनतम आयु।
- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष: लोकसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव करते हैं।
- शक्तियाँ:
- धन विधेयक (Money Bills) केवल लोकसभा में ही पेश किए जा सकते हैं।
- मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।
- अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।
1.3. राज्यसभा (Rajya Sabha) – उच्च सदन
- रचना (अनुच्छेद 80):
- अधिकतम सदस्य संख्या: 250 सदस्य।
- 238 सदस्य: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि (अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा)।
- 12 सदस्य: राष्ट्रपति द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से नामांकित।
- कार्यकाल (अनुच्छेद 83): एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर 2 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं। सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
- योग्यता (अनुच्छेद 84): भारत का नागरिक, 30 वर्ष की न्यूनतम आयु।
- सभापति और उपसभापति: उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। सदस्य अपने सदस्यों में से उपसभापति का चुनाव करते हैं।
- विशेष शक्तियाँ:
- अनुच्छेद 249: संसद को राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है।
- अनुच्छेद 312: नई अखिल भारतीय सेवाओं के निर्माण के लिए संसद को अधिकृत कर सकती है।
1.4. संसद की शक्तियाँ और कार्य
- विधायी कार्य: संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाना।
- कार्यकारी पर नियंत्रण: प्रश्नकाल, शून्यकाल, अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, समितियों के माध्यम से मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण।
- वित्तीय कार्य: बजट को मंजूरी देना, कर लगाना और सरकारी खर्च को अधिकृत करना।
- संवैधानिक कार्य: संविधान में संशोधन करना।
- निर्वाचन कार्य: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करना।
- न्यायिक कार्य: राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि पर महाभियोग चलाना।
2. राज्य विधानमंडल (State Legislature)
राज्य विधानमंडल राज्य स्तर पर कानून बनाने और राज्य सरकार पर नियंत्रण रखने के लिए जिम्मेदार हैं।
2.1. संरचना (अनुच्छेद 168)
- राज्य विधानमंडल में राज्यपाल और एक या दो सदन शामिल होते हैं।
- कुछ राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल है (विधानसभा और विधान परिषद), जबकि अधिकांश राज्यों में एकसदनीय विधानमंडल (केवल विधानसभा) है।
- वर्तमान में, 6 राज्यों में विधान परिषदें हैं: आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना।
2.2. विधानसभा (Legislative Assembly – Vidhan Sabha) – निचला सदन
- रचना (अनुच्छेद 170):
- सदस्यों का चुनाव: प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा, वयस्क मताधिकार के आधार पर।
- अधिकतम सदस्य संख्या: 500 सदस्य। न्यूनतम सदस्य संख्या: 60 सदस्य। (कुछ अपवादों के साथ, जैसे गोवा, सिक्किम, मिजोरम)।
- कार्यकाल (अनुच्छेद 172): 5 वर्ष, जब तक कि इसे पहले भंग न कर दिया जाए। आपातकाल के दौरान इसे एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- योग्यता (अनुच्छेद 173): भारत का नागरिक, 25 वर्ष की न्यूनतम आयु।
- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष: विधानसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) का चुनाव करते हैं।
- शक्तियाँ:
- धन विधेयक केवल विधानसभा में ही पेश किए जा सकते हैं।
- मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।
2.3. विधान परिषद (Legislative Council – Vidhan Parishad) – उच्च सदन (जहाँ मौजूद है)
- रचना (अनुच्छेद 171):
- सदस्यों की संख्या: संबंधित राज्य की विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं और न्यूनतम 40 सदस्य।
- सदस्यों का चुनाव: अप्रत्यक्ष चुनाव और नामांकन द्वारा (स्थानीय निकायों, स्नातकों, शिक्षकों, विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने गए, और राज्यपाल द्वारा नामांकित)।
- कार्यकाल: एक स्थायी सदन है और इसे भंग नहीं किया जा सकता। इसके एक-तिहाई सदस्य हर 2 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं। सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है।
- उत्पादन और उन्मूलन: संसद एक राज्य में विधान परिषद का निर्माण या उन्मूलन कर सकती है यदि संबंधित राज्य विधानसभा इस आशय का प्रस्ताव विशेष बहुमत से पारित करती है।
2.4. राज्य विधानमंडल की शक्तियाँ और कार्य
- विधायी कार्य: राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाना।
- कार्यकारी पर नियंत्रण: प्रश्नकाल, स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव (विधानसभा में) के माध्यम से राज्य मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण।
- वित्तीय कार्य: राज्य के बजट को मंजूरी देना।
- संवैधानिक कार्य: कुछ संवैधानिक संशोधनों के लिए केंद्र द्वारा आवश्यक होने पर उनका अनुसमर्थन करना।
3. विधायी प्रक्रियाएँ (Legislative Procedures)
कानून बनाने की प्रक्रिया केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर समान सिद्धांतों का पालन करती है।
3.1. साधारण विधेयक (Ordinary Bills)
- किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
- दोनों सदनों द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति/राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा जाता है।
- लोकसभा और राज्यसभा के बीच गतिरोध होने पर संयुक्त बैठक का प्रावधान (केवल केंद्र में)।
3.2. धन विधेयक (Money Bills)
- केवल लोकसभा/विधानसभा में पेश किया जा सकता है (राष्ट्रपति/राज्यपाल की पूर्व सिफारिश से)।
- राज्यसभा/विधान परिषद की शक्तियाँ सीमित होती हैं (वे इसे 14 दिनों तक रोक सकती हैं)।
3.3. अध्यादेश (Ordinances)
- राष्ट्रपति (अनुच्छेद 123) या राज्यपाल (अनुच्छेद 213) द्वारा जारी किए गए अस्थायी कानून जब संसद/राज्य विधानमंडल सत्र में न हो।
- इनका वही बल और प्रभाव होता है जो विधायिका द्वारा पारित अधिनियम का होता है।
- इन्हें विधायिका के अगले सत्र के 6 सप्ताह के भीतर अनुमोदित किया जाना चाहिए।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय लोकतंत्र में केंद्रीय (संसद) और राज्य (राज्य विधानमंडल) दोनों स्तरों पर विधायिकाएँ कानून बनाने, सरकार पर नियंत्रण रखने और जनता की आकांक्षाओं को व्यक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लोकसभा और विधानसभा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदन हैं जो जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि राज्यसभा और विधान परिषदें राज्यों और विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह द्विसदनीय और संघीय ढाँचा भारत की विशाल विविधता को समायोजित करता है, शक्तियों के पृथक्करण को सुनिश्चित करता है, और एक जवाबदेह तथा समावेशी शासन प्रणाली को बढ़ावा देता है।