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संवैधानिक संशोधन (constitutional amendment)

संवैधानिक संशोधन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

संवैधानिक संशोधन (Constitutional Amendment) भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो इसे समय के साथ बदलने और विकसित होने की अनुमति देती है। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान देश की बदलती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप बना रहे। भारतीय संविधान के भाग XX (अनुच्छेद 368) में संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का प्रावधान है।

1. संवैधानिक संशोधन की अवधारणा (Concept of Constitutional Amendment)

संविधान में संशोधन की शक्ति संसद को दी गई है, लेकिन यह कुछ सीमाओं के अधीन है।

1.1. परिभाषा

  • संवैधानिक संशोधन का अर्थ है संविधान के प्रावधानों में परिवर्तन, परिवर्धन या निरसन करना।
  • यह संविधान को जीवंत दस्तावेज बनाए रखने में मदद करता है।

1.2. संशोधन की शक्ति

  • अनुच्छेद 368: संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • हालांकि, संसद की यह शक्ति ‘संविधान के मूल ढांचे’ (Basic Structure of the Constitution) के सिद्धांत द्वारा सीमित है, जैसा कि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद (1973) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया था।

2. संविधान संशोधन के प्रकार (Types of Constitutional Amendment)

भारतीय संविधान में संशोधन तीन तरीकों से किया जा सकता है।

2.1. संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन (Amendment by Simple Majority of Parliament)

  • यह संशोधन अनुच्छेद 368 के दायरे से बाहर हैं।
  • इसके लिए संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत (50% से अधिक) की आवश्यकता होती है।
  • उदाहरण:
    • नए राज्यों का गठन या मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन (अनुच्छेद 3)।
    • नागरिकता से संबंधित कानून।
    • राज्य विधान परिषदों का उन्मूलन या निर्माण।
    • संसद में कोरम।
    • संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते।

2.2. संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन (Amendment by Special Majority of Parliament)

  • यह संशोधन अनुच्छेद 368 के तहत आते हैं।
  • इसके लिए संसद के प्रत्येक सदन में निम्नलिखित की आवश्यकता होती है:
    • उस सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत (यानी 50% से अधिक)।
    • उस सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत।
  • उदाहरण:
    • मौलिक अधिकार।
    • राज्य के नीति निदेशक तत्व।
    • वे सभी प्रावधान जो पहले और तीसरे प्रकार के संशोधन में शामिल नहीं हैं।

2.3. संसद के विशेष बहुमत और राज्यों की सहमति द्वारा संशोधन (Amendment by Special Majority of Parliament and Ratification by States)

  • यह संशोधन अनुच्छेद 368 के तहत आते हैं।
  • इसके लिए संसद के प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है (जैसा कि ऊपर बताया गया है)।
  • इसके अतिरिक्त, इसे कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा साधारण बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिए।
  • उदाहरण:
    • राष्ट्रपति का चुनाव और उसकी प्रक्रिया।
    • केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन।
    • सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय।
    • संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति (अनुच्छेद 368 स्वयं)।
    • सातवीं अनुसूची की कोई भी सूची।

3. संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया की विशेषताएँ (Features of Constitutional Amendment Process)

भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण है।

  • कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण: भारत का संविधान न तो ब्रिटेन जितना लचीला है और न ही अमेरिका जितना कठोर।
  • संसद की प्रमुख भूमिका: अधिकांश प्रावधानों में संशोधन संसद द्वारा ही किया जा सकता है। राज्यों की भूमिका सीमित है।
  • संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं: संविधान संशोधन विधेयक पर गतिरोध होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।
  • राष्ट्रपति की सहमति अनिवार्य: संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा जाता है, और राष्ट्रपति को इस पर सहमति देनी ही होती है (उन्हें इसे न तो रोक सकते हैं और न ही पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं – 24वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा अनिवार्य किया गया)।

4. संविधान संशोधन से संबंधित महत्वपूर्ण वाद (Important Cases Related to Constitutional Amendment)

सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न वादों के माध्यम से संसद की संशोधन शक्ति की व्याख्या की है।

  • शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संसद के पास मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है।
  • गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967): सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले फैसले को पलट दिया और फैसला सुनाया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): सर्वोच्च न्यायालय ने अपने गोलकनाथ फैसले को पलट दिया और फैसला सुनाया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, जिसमें मौलिक अधिकार भी शामिल हैं, लेकिन वह ‘संविधान के मूल ढांचे’ (Basic Structure of the Constitution) को नहीं बदल सकती है। यह सिद्धांत संविधान की सर्वोच्चता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करता है।
  • मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980): सर्वोच्च न्यायालय ने ‘मूल ढांचे’ के सिद्धांत को दोहराया और कहा कि मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बीच संतुलन भी मूल ढांचे का हिस्सा है।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया इसकी गतिशील प्रकृति को दर्शाती है, जिससे यह समय के साथ बदलती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप ढल सके। अनुच्छेद 368 के तहत प्रदान की गई यह प्रक्रिया कठोरता और लचीलेपन का एक अनूठा मिश्रण है, जो स्थिरता और अनुकूलनशीलता दोनों सुनिश्चित करती है। संसद के साधारण बहुमत, विशेष बहुमत, और कुछ मामलों में राज्यों की सहमति के माध्यम से संशोधन किए जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘संविधान के मूल ढांचे’ के सिद्धांत की स्थापना ने संसद की संशोधन शक्ति पर एक महत्वपूर्ण सीमा लगाई है, जिससे संविधान के मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा सुनिश्चित होती है। यह प्रक्रिया भारत के लोकतांत्रिक शासन और संवैधानिक सर्वोच्चता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।

महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

संवैधानिक संशोधन (Constitutional Amendment) भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो इसे समय के साथ बदलने और विकसित होने की अनुमति देती है। यह सुनिश्चित करता है कि संविधान देश की बदलती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप बना रहे। भारतीय संविधान के भाग XX (अनुच्छेद 368) में संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का प्रावधान है। स्वतंत्रता के बाद से, भारतीय संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं, जिन्होंने देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया है।

1. पहला संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 (1st CAA, 1951)

यह भारतीय संविधान का पहला संशोधन था, जो स्वतंत्रता के तुरंत बाद किया गया।

  • मुख्य प्रावधान:
    • अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया: राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया। यह चंपकम दोरायराजन वाद (1951) के बाद लाया गया था।
    • अनुच्छेद 19 में संशोधन: भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों (जैसे सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, अपराध के लिए उकसाना) को स्पष्ट किया गया।
    • अनुच्छेद 31A और 31B जोड़े गए: भूमि सुधार कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए।
    • नौवीं अनुसूची जोड़ी गई: इसमें शामिल कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखने के लिए (हालांकि, आई.आर. कोएल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि 24 अप्रैल, 1973 (केशवानंद भारती वाद का दिन) के बाद नौवीं अनुसूची में डाले गए कानूनों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है)।

2. चौथा संविधान संशोधन अधिनियम, 1955 (4th CAA, 1955)

यह अधिनियम संपत्ति के अधिकार से संबंधित था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • अनुच्छेद 31 में संशोधन: यह स्पष्ट किया गया कि यदि राज्य किसी व्यक्ति की संपत्ति का अधिग्रहण करता है, तो मुआवजे की पर्याप्तता को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
    • कुछ और अधिनियमों को नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया।

3. सातवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 (7th CAA, 1956)

यह अधिनियम राज्यों के भाषाई पुनर्गठन के लिए महत्वपूर्ण था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • राज्यों का पुनर्गठन: राज्यों के पुनर्गठन आयोग (फजल अली आयोग) की सिफारिशों को लागू किया गया। राज्यों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया।
    • राज्यों की श्रेणियों (भाग A, B, C, D) को समाप्त कर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।
    • दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय या एक ही राज्यपाल का प्रावधान।
    • उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को केंद्र शासित प्रदेशों तक बढ़ाया गया।

4. नौवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1960 (9th CAA, 1960)

यह अधिनियम भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद को हल करने के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • बेरुबाड़ी संघ क्षेत्र (पश्चिम बंगाल) को पाकिस्तान को हस्तांतरित करने के लिए भारतीय क्षेत्र के हस्तांतरण का प्रावधान। यह बेरुबाड़ी संघ वाद (1960) के बाद लाया गया था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि भारतीय क्षेत्र को किसी विदेशी देश को सौंपने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।

5. दसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1961 (10th CAA, 1961)

यह अधिनियम दादरा और नगर हवेली को भारत में शामिल करने के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • दादरा और नगर हवेली को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारत में शामिल किया गया। यह क्षेत्र पुर्तगाली शासन के अधीन था।

6. बारहवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 (12th CAA, 1962)

यह अधिनियम गोवा, दमन और दीव को भारत में शामिल करने के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • गोवा, दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारत में शामिल किया गया। ये क्षेत्र भी पुर्तगाली शासन के अधीन थे और 1961 में सैन्य कार्रवाई द्वारा मुक्त कराए गए थे।

7. तेरहवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 (13th CAA, 1962)

यह अधिनियम नागालैंड राज्य के गठन के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • नागालैंड को राज्य का दर्जा दिया गया और इसके लिए विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 371A) किए गए, विशेषकर नागा संस्कृति और धार्मिक प्रथाओं की सुरक्षा के लिए।

8. चौदहवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 (14th CAA, 1962)

यह अधिनियम पुडुचेरी को भारत में शामिल करने और कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विधानमंडल बनाने के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • पुडुचेरी (पूर्व में पांडिचेरी) को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारत में शामिल किया गया। यह क्षेत्र फ्रांसीसी शासन के अधीन था।
    • हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन और दीव, और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के लिए विधानमंडल और मंत्रिपरिषद के गठन का प्रावधान।

9. पंद्रहवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 (15th CAA, 1963)

यह अधिनियम उच्च न्यायालयों से संबंधित कुछ प्रावधानों में संशोधन करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष की गई।
    • उच्च न्यायालयों को उन व्यक्तियों के खिलाफ रिट जारी करने की शक्ति दी गई जो उनके क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के बाहर रहते हैं, यदि कार्रवाई का कारण उनके क्षेत्राधिकार के भीतर उत्पन्न होता है।

10. सत्रहवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1964 (17th CAA, 1964)

यह अधिनियम भूमि सुधार कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • कुछ और भूमि सुधार अधिनियमों को नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया ताकि उन्हें न्यायिक समीक्षा से बचाया जा सके।

11. चौबीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 (24th CAA, 1971)

यह अधिनियम संसद की संविधान संशोधन शक्ति को स्पष्ट करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • यह स्पष्ट किया गया कि संसद के पास मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति है। यह गोलकनाथ वाद (1967) के फैसले को पलटने के लिए लाया गया था।
    • यह अनिवार्य किया गया कि राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी सहमति देनी ही होगी (उन्हें इसे न तो रोक सकते हैं और न ही पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं)।
    • अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन किया गया।

12. पच्चीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 (25th CAA, 1971)

यह अधिनियम संपत्ति के अधिकार और निदेशक तत्वों के संबंध में था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • अनुच्छेद 31 में संशोधन: ‘मुआवजा’ शब्द को ‘राशि’ (amount) से बदल दिया गया, जिससे मुआवजे की पर्याप्तता पर न्यायिक हस्तक्षेप सीमित हो गया।
    • अनुच्छेद 31C जोड़ा गया: यह प्रावधान किया गया कि कोई भी कानून जो अनुच्छेद 39(b) और 39(c) में निहित राज्य के नीति निदेशक तत्वों को लागू करने के लिए बनाया गया है, उसे अनुच्छेद 14, 19 और 31 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।

13. छब्बीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 (26th CAA, 1971)

यह अधिनियम रियासतों के शासकों के प्रिवी पर्स और विशेषाधिकारों को समाप्त करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • रियासतों के पूर्व शासकों के ‘प्रिवी पर्स’ (Privy Purses) और विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।

14. इकतीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1973 (31st CAA, 1973)

यह अधिनियम लोकसभा की सीटों की संख्या में वृद्धि करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • लोकसभा की सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 की गई।

15. पैंतीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1974 (35th CAA, 1974)

यह अधिनियम सिक्किम को भारत का ‘सहयोगी राज्य’ बनाता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • सिक्किम को ‘सहयोगी राज्य’ (Associate State) का दर्जा दिया गया।
    • इसके लिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 2A और एक नई दसवीं अनुसूची जोड़ी गई।

16. छत्तीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 (36th CAA, 1975)

यह अधिनियम सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य बनाता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य बनाया गया।
    • अनुच्छेद 2A और दसवीं अनुसूची को निरस्त कर दिया गया।

17. अड़तीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 (38th CAA, 1975)

यह अधिनियम आपातकाल और अध्यादेशों से संबंधित है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को गैर-न्यायोचित बनाया गया।
    • राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा अध्यादेश जारी करने की शक्ति को गैर-न्यायोचित बनाया गया।

18. उनतालीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 (39th CAA, 1975)

यह अधिनियम राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से संबंधित विवादों को न्यायिक समीक्षा से बाहर करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से संबंधित विवादों को न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया गया।
    • यह अधिनियम इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती देने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद लाया गया था।
    • यह अधिनियम नौवीं अनुसूची में भी जोड़ा गया।

19. बयालीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 (42nd CAA, 1976) – ‘लघु संविधान’

यह सबसे व्यापक संशोधन था, जिसे ‘लघु संविधान’ भी कहा जाता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • प्रस्तावना में संशोधन: ‘समाजवादी’ (Socialist), ‘धर्मनिरपेक्ष’ (Secular) और ‘अखंडता’ (Integrity) शब्द जोड़े गए।
    • मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया: भाग IV-A में अनुच्छेद 51A के तहत 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए।
    • राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य किया गया।
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 से बढ़ाकर 6 वर्ष किया गया (जिसे बाद में 44वें संशोधन द्वारा फिर से 5 वर्ष कर दिया गया)।
    • न्यायिक समीक्षा की शक्ति को सीमित किया गया।
    • राज्य के नीति निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों पर वरीयता दी गई (अनुच्छेद 31C का विस्तार)।
    • वन, शिक्षा, नाप-तौल, वन्यजीवों और पक्षियों का संरक्षण, और न्याय प्रशासन जैसे विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया।
    • अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के निर्माण का प्रावधान।
    • अनुच्छेद 39A (समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता), 43A (उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी), और 48A (पर्यावरण का संरक्षण और सुधार) जैसे नए DPSP जोड़े गए।

20. चवालीसवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 (44th CAA, 1978)

यह 42वें संशोधन द्वारा किए गए कुछ परिवर्तनों को पलटने और आपातकाल के प्रावधानों को संशोधित करने के लिए लाया गया था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटाया गया: इसे अब अनुच्छेद 300A के तहत एक कानूनी अधिकार बना दिया गया।
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल फिर से 5 वर्ष किया गया।
    • राष्ट्रीय आपातकाल के लिए ‘आंतरिक अशांति’ शब्द को हटाकर ‘सशस्त्र विद्रोह’ (Armed Rebellion) शब्द जोड़ा गया।
    • राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के लिए कैबिनेट की लिखित सिफारिश को अनिवार्य किया गया।
    • अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।
    • राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह को एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की शक्ति दी गई (हालांकि, यदि मंत्रिपरिषद पुनः उसी सलाह को भेजती है, तो राष्ट्रपति को उसे मानना होगा)।

21. बावनवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 (52nd CAA, 1985)

यह अधिनियम दल-बदल को रोकने के लिए था।

  • मुख्य प्रावधान:
    • दल-बदल विरोधी कानून (Anti-defection Law) को शामिल किया गया।
    • संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसमें उन आधारों को निर्धारित किया गया जिनके आधार पर किसी सांसद या विधायक को दल-बदल के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है।

22. इकसठवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 (61st CAA, 1989)

यह अधिनियम मतदान की आयु में कमी करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई।

23. पैंसठवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1990 (65th CAA, 1990)

यह अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग से संबंधित है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • अनुच्छेद 338 में संशोधन: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक विशेष अधिकारी के स्थान पर एक बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया।

24. उनहत्तरवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 (69th CAA, 1991)

यह अधिनियम दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ (National Capital Territory of Delhi) का विशेष दर्जा दिया गया।
    • दिल्ली के लिए एक विधान सभा और एक मंत्रिपरिषद का प्रावधान किया गया।
    • विधान सभा में 70 सदस्य और मंत्रिपरिषद में अधिकतम 7 सदस्य।

25. तिहत्तरवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (73rd CAA, 1992)

यह अधिनियम पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
    • संविधान में एक नया भाग IX (‘पंचायतें’) और एक नई ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।
    • पंचायतों के लिए त्रि-स्तरीय प्रणाली (ग्राम, मध्यवर्ती, जिला स्तर) का प्रावधान।
    • महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई (33%) सीटों का आरक्षण।
    • राज्य चुनाव आयोग और राज्य वित्त आयोग का गठन।

26. चौहत्तरवां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (74th CAA, 1992)

यह अधिनियम शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • शहरी स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं) को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
    • संविधान में एक नया भाग IXA (‘नगर पालिकाएँ’) और एक नई बारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।
    • नगर पालिकाओं के लिए तीन प्रकार (नगर पंचायत, नगर परिषद, नगर निगम) का प्रावधान।
    • महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई (33%) सीटों का आरक्षण।

27. छियासीवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 (86th CAA, 2002)

यह अधिनियम शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • अनुच्छेद 21A जोड़ा गया: 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया।
    • अनुच्छेद 45 में संशोधन: राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल को शामिल किया गया।
    • अनुच्छेद 51A(k) जोड़ा गया: माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु के अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करने का मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया।

28. इकानवेवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 (91st CAA, 2003)

यह अधिनियम मंत्रिपरिषद के आकार को सीमित करता है और दल-बदल को नियंत्रित करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • केंद्रीय और राज्य मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या को लोकसभा/राज्य विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% तक सीमित किया गया। (प्रधान मंत्री/मुख्यमंत्री सहित)।
    • किसी भी दल-बदल करने वाले सांसद या विधायक को मंत्री के रूप में नियुक्त होने से अयोग्य ठहराया गया।

29. बानवेवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 (92nd CAA, 2003)

यह अधिनियम आठवीं अनुसूची में भाषाओं को जोड़ता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाएँ – बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली – जोड़ी गईं।
    • इससे आठवीं अनुसूची में भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गई।

30. सत्तानवेवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 (97th CAA, 2011)

यह अधिनियम सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण दिया गया।
    • अनुच्छेद 19(1)(c) में संशोधन: सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया।
    • अनुच्छेद 43B जोड़ा गया: राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत में सहकारी समितियों को बढ़ावा देना।
    • संविधान में एक नया भाग IXB (‘सहकारी समितियाँ’) जोड़ा गया।

31. सौवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2015 (100th CAA, 2015)

यह अधिनियम भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते से संबंधित है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते (Land Boundary Agreement – LBA) को लागू किया गया।
    • कुछ भारतीय परिक्षेत्रों को बांग्लादेश को हस्तांतरित किया गया और बांग्लादेशी परिक्षेत्रों को भारत में मिलाया गया।
    • यह अधिनियम छठी अनुसूची में भी संशोधन करता है।

32. एक सौ एकवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 (101st CAA, 2016) – GST

यह अधिनियम वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • वस्तु एवं सेवा कर (GST) को लागू किया गया, जो एक एकीकृत अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है।
    • अनुच्छेद 246A जोड़ा गया: संसद और राज्य विधानमंडलों को GST से संबंधित कानून बनाने की शक्ति दी गई।
    • अनुच्छेद 279A जोड़ा गया: GST परिषद के गठन का प्रावधान।
    • यह अधिनियम कई अन्य अनुच्छेदों और अनुसूचियों में भी संशोधन करता है।

33. एक सौ दूसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 (102nd CAA, 2018)

यह अधिनियम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
    • संविधान में अनुच्छेद 338B जोड़ा गया, जो NCBC की संरचना, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 342A जोड़ा गया: राष्ट्रपति को किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।

34. एक सौ तीसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 (103rd CAA, 2019)

यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • अनुच्छेद 15(6) और 16(6) जोड़े गए: राज्य को नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया।
    • यह प्रावधान शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में 10% तक आरक्षण की अनुमति देता है।

35. एक सौ चौथा संविधान संशोधन अधिनियम, 2020 (104th CAA, 2020)

यह अधिनियम लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC/ST के लिए सीटों के आरक्षण को बढ़ाता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सीटों के आरक्षण को और 10 वर्षों के लिए (25 जनवरी, 2030 तक) बढ़ाया गया।
    • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित सीटों को समाप्त कर दिया गया।

36. एक सौ पांचवां संविधान संशोधन अधिनियम, 2021 (105th CAA, 2021)

यह अधिनियम राज्यों को अपनी स्वयं की OBC सूची बनाने की शक्ति बहाल करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी स्वयं की सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) की सूची बनाने की शक्ति बहाल की गई।
    • यह सर्वोच्च न्यायालय के मराठा आरक्षण पर फैसले के बाद लाया गया था, जिसने राज्यों की इस शक्ति को छीन लिया था।
    • अनुच्छेद 338B, 342A और 366 में संशोधन किया गया।

37. नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 (106th CAA, 2023)

यह अधिनियम लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।

  • मुख्य प्रावधान:
    • लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई (33%) सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया।
    • यह आरक्षण SC और ST के लिए आरक्षित सीटों के भीतर भी लागू होगा।
    • यह अधिनियम जनगणना और परिसीमन के बाद लागू होगा।
    • यह अधिनियम संविधान में नए अनुच्छेद 330A, 332A और 334A जोड़ता है।

38. निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया इसकी गतिशील प्रकृति को दर्शाती है, जिससे यह समय के साथ बदलती जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुरूप ढल सके। स्वतंत्रता के बाद से किए गए इन महत्वपूर्ण संशोधनों ने भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया है। भूमि सुधारों और भाषाई राज्यों के गठन से लेकर मौलिक अधिकारों के विस्तार, पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने, GST लागू करने और महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने तक, प्रत्येक संशोधन ने भारत को एक अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने में योगदान दिया है। ‘संविधान के मूल ढांचे’ के सिद्धांत के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय ने संसद की संशोधन शक्ति पर एक महत्वपूर्ण सीमा लगाई है, जिससे संविधान के मौलिक मूल्यों और सिद्धांतों की रक्षा सुनिश्चित होती है। यह प्रक्रिया भारत के लोकतांत्रिक शासन और संवैधानिक सर्वोच्चता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।

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